अल्जाईमर रोग को ज्ञात करने की नई तकनीक का विकास

 अल्जाईमर रोग को ज्ञात करने की नई तकनीक का विकास (By Dr. R. S. Sengar)

                                                                                                                                                                                           

अल्जाईमर रोग का पता लगाने के लिए अब आर्टिफिशीयल इंटेलीजेंस (ए-आई) तकनीक भी मददगार साबित होने जा रही है। मैसाचुसेट्स जनरल हास्पिटल में शोधकर्ताओं की एक टीम के द्वारा आर्टिफिशीयल इंटेलीजेंस (ए-आई) पर आधारित एक ऐसी तकनीकी का विकास किया है, जो नियमित रूप से एकत्र की गई मस्तिष्क की छवियों अर्थात ब्रेन इमजेज का विश्लेषण पर आधारित है। वैज्ञानिकों के द्वारा अल्जाईमर रोग को ज्ञात करने के लिए विकसित इस माडल के लिए इस रोग से पीड़ित एवं स्वस्थ्य व्यक्त्यिों की एम.आर.आई के विभिन्न आँकड़ों का विश्लेषण किया गया। इस दौरान शोधकर्ताओं के द्वारा अल्जाईमर के खतरों वाले 2348 व्यक्तियों के 1103 ब्रेन इमेजेज का अध्ययन किया गया तो वहीं स्वस्थ्य लोगों के 26,892 ब्रेन इमेजेज का भी अध्ययन किया गया और इस प्रकार पाँच डेटा सेटों के अध्ययन के बाद 90.2 प्रतिशत मामलों में अल्जाईमर को ज्ञात करने में सफलता प्राप्त हुई है। उम्र आदि विशेष आँकड़ों के बिना भी अल्जाईमर को ज्ञात करना ही इस माडल की सबसे बड़ी विशेषता है। इससे जुड़ें एक शोधकर्ता नेम इन का कहना है कि अल्जाईमर रोग अक्सर वृद् लोगों में होता है और अब इस रोग से प्रभावित लोगों की संख्या पूरे ही विश्व में बढ़ती जा रही है। जिसके सम्बन्ध में सचेत करने के लिए यह तकनीक काफी लाभकारी सिद् होगी।

 निरंतर गिरते जा रहे भू-जल के स्तर पर राष्ट्रपति की चिन्ता

‘कैच द रेन’ अभियान के द्वितीय चरण की शुरूआत करते हुए भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने निरन्तर कम होते जा रहे भू-जल स्तर पर गहरी चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जल-संकट के उत्पन्न होने पर सबसे अधिक परेशानियों का समाना महिलाओं को ही करना पड़ता है।

विशेष रूप से पहाड़ी और आदिवासी महिलाएं तो इससे जूझती ही रहती हैं और अपने परिवार के लिए पानी की व्यवस्था करने में उनका बहुत समय बर्बाद हो जाता है। जल-शक्ति मंत्रालय के स्वच्छ भू-जल शक्ति सम्मन जल शक्ति अभियान “कैच द रेन” कार्यक्रम के अन्तर्गत राष्ट्रति ने इस क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदार्शन करने वाली महिलाओं को सम्मानित भी किया। इस दौरान राष्ट्रपति ने कहा कि देश में स्वच्छता अभियान और स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता के जैसी देश व्यापि योजनाओं की सफलता में महिलाओं की भूमिका बेहद अहम है। 

इस का मुख्य आधार नारी ही हैं, क्योंकि नारी शक्ति के अभाव में जल शक्ति योजना की सफलता की उम्मीद करना बेमानी है। राष्ट्रपति ने कहा कि देश में अनियोजित शहरीकरण के चलते तालाब और कुएं जैसे विभिन्न जल स्रोत लुप्त होते जा रहे हैं और भू-जल का स्तर निरन्तर कम होता जा रहा हैं।

विश्व की 18 प्रतिशत आबादी वाले इस देश में विश्व का मात्र 4 प्रतिशत जल ही उपलब्ध है। ऐसे में जल संरक्षण के पारम्परिक तरीके लुप्त हो चुके हैं, वर्तमान समय में आधुनिक तरीकों के साथ उन तरीकों को भी अपनाना आज के समय की एक प्रमुख माँग है।

नारी शक्ति के सहयोग के बिना जल शक्ति की सफलता की कल्पना भी नही की जा सकती। “कैच द रेन” अभियान 2030 की शुरूआत एवं स्वच्छ सुजल छवि सम्मान 2023 के अवसर पर नारी शक्ति को भी सम्मानित किया गया।

 सरकार ने नैनो डीएपी लाँच करने की अनुमति प्रदान की

                                                                   

    भारत सरकार के केन्द्रीय उर्वरक मंत्री मन्सुख मांडवीय ने जानकारी प्रदान की कि सरकार के द्वारा नैनों तरल डीएपी उर्वरकों को लाँच करने की अनुमति प्रदान कर दी है, इससे किसानों को लाभ मिलेगा और देश को उर्वरकों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिल सकेगी। भारत सरकार के द्वारा पूर्व में नैनो यूरिया को अनुमति प्रदान की गई थी और अब नैनो तरल डीएपी को लाँच करने की अनुमति भी प्रदान कर दी है।

श्री मन्सुख मांडवीय के अनुसार देश को उर्वरकों के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं उर्वरक सहकारी संघ इफको के प्रबन्ध निेदेशक यू. एस. अवस्थी ने बताया कि सरकार के द्वारा नैनो डीएपी को भी बाजार में लाँच करने की अुनमति कर दी गई है। वर्ष 2021 में इफ्को के द्वारा ही नैनो तरल यूरिया बाजार में पेश किया था।

इससे पहले गत दिसम्बर माह के दौरान अवस्थी ने कहा था कि इफ्को के द्वारा शीघ्र ही 500 मिली की बोतल में डीएपी को भी लाँच किया जाएगा, जिसका बाजारू मूल्य लगभग 600 रूपये प्रति बोतल होगा। इसके माध्यम से भारत को विदेशी मुद्रा बचाने और सब्सिड़ी को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।

एक बोतल डीएपी, एक बोरी डीएपी के समतुल्य होगी जिसका बाजारू मूल्य 1350 रूपये के आसपास है। इसके अतिरिक्त इफ्को अब नैनो जिंक और नैनो कापर उर्वरकों को भी लाँच करने की योजना पर कार्य कर रहा है। निकटतम समय में इन नैनो उर्वरकों के उपयोग में वृद्वि तथा इनकी की माँग में इजाफा होना तय माना जा रहा है । इफको, गुजरात एवं उत्तर प्रदेश स्थित अपने संयंत्रों में नैनो यूरिया का उत्पादन कर रहा है।

  वर्ष 2030 तक भारत बनेगा विश्व में एक बड़ा कार्बन बाजार

एक अध्ययन जिसमें भारत के 21 बड़े कारोबारियों को शामिल किया गया था के अनुसार, वर्ष 2030 तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन बाजार बनकर उभर सकता है।

उक्त कारोबार, देश के औद्योगिक क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले 10 फीट जी उत्सर्जन के लिए उत्तरदायी हैं। वल्र्ड रिर्सोसेस इंस्टीट्यूट इंडिया के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में कार्बन बाजारों को लेकर 15 वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों को समाहित किया गया है।

एमबीएस इकाईयों के साथ 10 वर्ष के घरेलू अनुभव को भी इसमें शामिल किया गया है, इसके साथ ही भारतीय उद्योगों की आवश्यकताओं और उसके सन्मुख उपस्थित चुनौतियों और इस परिप्रेक्ष्य को समझने के लिए भारत के बड़े कारोबारियों के साथ सलाह-मशवरे और कार्बन बाजार में अपनी तरह के प्रथम सिमुलेशन को भी दसी दायरे के अन्तर्गत लिया गया है।

विश्व बैंक के अनुसार, कार्बन बाजार अब दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन के 16 प्रतिशत भाग का उत्सर्जन कर रहा है। भारत के औद्योगिक क्षेत्र को कवर करने वाला यह एक ऐसा कार्बन बाजार है, जो भारतीय कारपोरेट क्षेत्र के द्वारा मौजूदा सुरक्षित प्रतिबन्धताओं की औसत महत्वकाँक्षा स्तर के निर्धारित लक्ष्य का निर्धारण भी करता है।

इसके साथ ही वर्तमान नीति परिदृश्य की तुलना में वर्ष 2030 में सकल घेरलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 5.6 प्रतिशत तक कम करने की क्षमताओं से युक्त है। जो कि वर्ष 2022 और वर्ष 2030 के मध्य 1.3 अरब मीट्रिक टन कार्बन डाईआक्साइड के समतुल्य संचयी के बराबर है।