देश में प्राकृतिक खेती के लिए उठाए जा रहे हैं विशेष कदम

योगी सरकार उत्तर प्रदेश को जैविक खेती का गढ़ बनाना चाहती है। जहरीले रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग को कम करते हुए किसान किस प्रकार से प्राकृतिक खेती के साथ जुड़ सकतें, इस दिशा में ही कार्य किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में गंगा के तटवर्ती 27 और बुंदेलखंड के 7 जनपदों को तकनीक के साथ जोड़ते हुए केंद्र सरकार के साथ मिलकर प्रथम चरण में प्राकृतिक खेती की प्रक्रिया शुरू की है। इस खेती में उन तकनीकों का प्रयोग होगा जो इको फ्रेंडली होती हैं। इस तरह से यह प्राकृतिक एवं तकनीक का एक समन्वय होगां प्राकृतिक खेती जन-जमीन और जान के लिए सुरक्षित होने के कारण इको फ्रेंडली हैं। ऐसी खेती गो-संरक्षण में भी मददगार हैं। इस अभियान से वैज्ञानिकों के जुड़ने से अन्नदाता को बहुत लाभ होगा इससे उनकी आमदनी बढ़ेगी साथ ही फसलों को तमाम प्रकार के रोगों से भी मुक्ति मिलेगीं। राज्य सरकार सभी मंडल मुख्यालयों पर टेस्टिंग लैब स्थापित करने जा रही है, जहां बीज और उत्पाद के सर्टिफिकेशन की सुविधा भी उपलब्ध होगी। सरकार का लक्ष्य है कि  प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करते हुए प्रदेश को जैविक प्रदेश के रूप में विकसित किया जाए। कृषि क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती है न्यूनतम लागत में अधिकतम पैदावार लेना, जैविक खेती कम लागत में अच्छे उत्पादन और विष-मुक्त खेती का अच्छा माध्यम है।

जैविक खेती की संभावनाओं को देखा जाए तो इसकी बहुत अधिक संभावना है उत्तर प्रदेश में जैविक खेती के लिए भरपूर बुनियादी सुविधाएं बहुत पहले से ही उपलब्ध हैं। सरकार इन सुविधाओं का लगातार विस्तार भी कर रही है जैसे कि जैविक खेती का मुख्यालय नेशनल सेंटर फॉर ऑर्गेनिक फार्मिंग गाजियाबाद जिले में स्थित है, जहाँ प्रदेश के एक बड़े हिस्से में अभी भी परंपरागत खेती की जाती रही है।


कृषि विज्ञान केंद्र के साथ जुड़कर किसान बदल रहे हैं अपनी तकदीर


प्रदेश सरकार किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। अब इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र अर्थात केवीके को बड़ा माध्यम बनाया गया है। यह केंद्र किसानों की लागत कम करके उनकी आमदनी बढ़ाने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र अपने क्षेत्र के किसानों के साथ संवाद स्थापित कर और उन्हें कृषि की आधुनिक तकनीक कृषि यंत्रों एवं उन्नत बीज की जानकार.ी उपलब्ध करा रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र अपने क्षेत्र में किसानों को गो-आधारित प्राकृतिक खेती के प्रति भी जागरूक कर उन्हें इसके लाभ व इससे होने वाली आय वृद्धि के बारे में भी अवगत करा रहे हैं। इन केंद्रों पर किसानों को इंटीग्रेटेड फार्मिंग के साथ-साथ इंटरक्रॉपिंग व भव्यश्री आदि के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त कृषि विज्ञान केंद्रों के द्वारा अधिक से अधिक प्रदर्शन व प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं और महिला कृषकों को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है। कृषि विज्ञान केंद्रों में हाईटेक नर्सरी की स्थापना का कार्य भी प्रगति पर है।


आधुनिकता के रास्ते पर  है प्रदेश की खेती
किसान करने लगे हैं खेती में ड्रोन का प्रयोग


प्रदेश में खेती अधिकतर के किस राह पर बढ़ रही है यह अब खेती में ड्रोन के प्रयोग की शुरुआत बताती है। सरकार कृषि उत्पादक संगठन व कृषि स्नातकों को 40 से 50 प्रतिशत अनुदान पर ड्रोन उपलब्ध कराएगी। केंद्र सरकार की तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार को कुल 32 ड्रोन उपलब्ध कराए जा रहे हैं इनमें से चार कृषि विश्वविद्यालयों को 10 कृषि विज्ञान केंद्रों को और बाकी 78 आई सी ए आर आई इंडियन. काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट को मिलेंगे। ड्रोन के जरिए किसान एक एकड़ ख्.ोत में कीटनाशकों वाटर सॉल्विन्ग पानी में घुलनशील उर्वरकों एवं पोषक तत्वों का सिर्फ 7 मिनट में छिड़काव कर सकते हैं। इससे समय एवं संसाधन तो बचेगा ही संबंधित व्यक्ति को मैनुअल छिड़काव के कारण जहरीले रस.ायनों के सम्पर्क में आने के खतरो से छुटकारा भी मिलेगा। विशेषज्ञों के अनुसार खुले छिड़काव किए जाने से छिड़काव के और भी लाभ हैं अगर यह ऊपर से हो तब तो और ज्यादा लाभ मिलता है, ऊपर से किए जाने वाले छिड़काव से खेत समान रूप से संतृप्त होता .है। जिस दवा अथ्वा उर्वरक का भी छिड़काव किया जाता है वह पौधों में पत्तियों के जरिए ऊपर से नीचे तक जाता है तो इसका असर भी बेहतर होता है। बुलंद खाद एवं पोषक तत्व भी अलग अनुपात में एक 1 किलो के पैकों में उपलब्ध है और नैनो यूरिया भी उपलब्ध है। परंपरागत रूप से खेतों में किसान जिस खाद का छिड़काव करते हैं उसका 15 से 40 प्रतिशत ही फसल को प्राप्त होता है जबकि पानी के साथ किए. जाने वाले उर्वरक का करीब 90 प्रतिशत तक फसल को प्राप्त होता है। इससे फसल की ग्रोथ बेहतर होती है और ऊपज भी अच्छी होती है। श्रम समय और लागत में कमी के साथ ही अच्छी उपज से किसानों की आय भी बढ़ती है। यह परंपरागत खाद के छिड़काव में लगने वाली लागत की तुलना में अपेक्षाकृत सस्ता भी है। सीमित संख्या में ही सही उत्तर प्रदेश के किसान शीघ्र ही अपनी खेती बाड़ी में ड्रोन का प्रयोग कर सकेंगे। माना जाता है कि आने वाले वर्षों में ड्रोन की खेती में और उपयोगिता भी बढ़ेगी।