जलवायु परिवर्तन

                                                                          जलवायु परिवर्तन

                                                            

जलवायु परिवर्तन के चलते समय पूर्व पक रहें है बेड़ू-काँफल जलवायु परिवर्तन ने सम्पूर्ण जैव-विधिता को ही संकट में डाल दिया है। इसके कारण अब बेड़ू-काँफल समय से पूर्व ही पकने शुरू हो चुके हैं। उत्तराखण्ड के सहित हिमालय क्षेत्र के ग्रामीण अंचलों में सबसे बड़ी चुनौति ऐसे समुदायों के लिए उत्पन्न हो गई है जो कि परम्परागत रूप से वनस्पति संसाधनों के ऊपर ही निर्भर करते हैं।

    करंट साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार सम्पूर्ण उत्तराखण्ड़ में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के चलते वनों में उपलब्ध औषधीय पौधों में फूल और उनमें फल आने की अवधि अपने समय से एक महीना पूर्व तक हो चुकी है। इसके चलते जहाँ एक तरफ तो इनके उत्पादन में कमी आ रही है तो वहीं दूसरी तरफ इन औषधीय पादपों की गुणवत्ता के प्रभावित होने की आशंकाओं को भी एक सिरे से खारिज नही किया जा सकता है। इस रिपोर्ट में हेमवती नन्दन बहुगुणा विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों को उद्वत किया गया है।

                                                       

    उत्तराखण्ड़ के एक बेहद लोकप्रिय गीत बेड़ू (अंजीर) पाको बारमासा (भादो), कांफल पाको चैता, है परन्तु अब प्रतीत हो रहा है कि जलवायु परिवर्तन की दशा इस गीत के मुखड़े को बदलने के लिए भी विवश कर देंगी। इन दोनों फलों का उत्पादन लगातार कम हो रहा है इसके साथ ही अब इनके पकने का समय भी बदल गया है। जलवायु परिवर्तन प्रभावों के चलते बेड़ू, कांफल समेंत तमाम जंगली फलों के पकने का समय अब तकरीबन 20 से 25 दिन पूर्व ही होने लगा है। मार्च-अप्रैल में खिलने वाला बुरांश का फूल भी अब जनवरी में ही दिखाई देने लगा है।

                                                             

समय पूर्व ही खिल रहें हैं पुष्पः रिपोर्ट के अनुसार इन जंगलों में पाए जानें वाले जिन पौधों में फूल और फल जल्द आ रहे हैं, उनमें जम्बू गंदरायणी (एलियम स्ट्रेची), पाषाण-भेद (बर्गनिया लिगुलता), बुरांश (रोडोडेेड्रोन), जंगली हिमालयन चेरी (प्रनूस सेरासोइड्स), सेमल (बांम्बैक्स सेइबा), कचनार (बाहिनिया वैरीगेट) आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं।