कृषि अर्थव्यवस्था में नवीन प्रौद्योगिकियों का समावेशन

                                                     कृषि अर्थव्यवस्था में नवीन प्रौद्योगिकियों का समावेशन

                                                                                                                                    डॉ0 राकेश सिंह सेंगर एवं मुकेश शर्मा

    सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कृषि क्षेत्र की भागीदारी वर्ष 2019-20 में 17.8 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 19.9 प्रतिशत हो गई। कोविड-19 महामारी के दौरान भी भारतीय अर्थव्यवस्था के अनतर्गत कृषि ही ण्कमात्र क्षेत्र ऐसा रहा, जिसमें धनात्मक वृद्वि दर्ज की गई। भारतीय अर्थव्यवस्था में इतना महत्व रखने वाला कृषि क्षेत्र अभी भी प्रौद्योगिकी के समावेशन के मामले में काफी पीछे है। कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी समावेशन के माध्यम से संलग्न व्यक्तियों की उत्पादन क्षमता को बढ़या जा सकता है। भारतीय किसानों की आय को दुगुना करने, और देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर का आकार प्रदान करने के लिए भी कृषि अर्थव्यवस्था में नवीन प्रौद्योगिकियों का समावेश अति महत्वपूर्ण है।

    आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार देश का लगभग 54.6 प्रतिशत कार्य बल कृषि एवं सम्बद्व क्षेत्र से जुड़ी गतिविधियों में ही संलग्न है। ग्रामीण क्षेत्रा में तो लोगों का प्रमुख एवं प्राथमिक व्यवसाय कृषि ही है। इस कारण देश के समग्र विकास के लिए कृषि में नवीन प्रौद्योगिकियों का उपयोग आवश्यक ही नही अपितु अनिवार्य भी माना जा रहा है।

  • कृषि के क्षेत्र में हरित क्रॉन्ति, सदाबहार क्रॉन्ति, नीली क्रॉन्ति, श्वेत क्रॉन्ति एवं पीली क्रॉन्ति सहित अन्य विभिन्न क्रॉन्तियाँ भी होती रही हैं, और नवीन प्रौद्योगिकी का उपयोग ही इन सभी क्रॉन्तियों का आधार भी रहा है क्योंकि इन सभी क्रॉन्तियों में प्रौद्योगिकियों के माध्यम से ही उत्पादकता एवं उत्पादन बढ़ानें के प्रयास किए गए।
  • कृषि क्षेत्र में संलग्न व्यक्तियों की उत्पादन क्षमता को कृषि प्रौद्योगिकी के प्रभावी उपयोग के द्वारा ही बढ़ाया जा सकता है। कृषि क्षेत्र में रोजगार सृजन की क्षमता को बढ़ाने के लिए नवीन प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता है। वर्तमान में कृषि क्षेत्र में जैव-प्रौद्योगिकी, नैनो-प्रौद्योगिकी, सूचना एवं संचार तकनीक जैसी अति-आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है।
  • साथ ही विभिन्न प्रकार की अत्याधुनिक तकनीकों पर शोध एवं विकास पर भी कार्य किए जा रहे हैं। यह सभी ज्ञान-गहन प्रौद्योगिकियाँ (Knowledgementensivm Technosivms) हैं, जिनके लिए एक सुदृढ़ अनुसंधान एवं विकास प्रणाली की आवश्यकता होती है।
  • प्रौद्योगिकी के उपयोग से किसानों के लिए आजीविका के अवसरों में पर्याप्त वृद्वि हुई है।
  • देश की जनसंख्या में काफी तीव्र गति के साथ वृद्वि हो रही है और यदि ऐसा ही जारी रहता है तो आने वाले कुछ समय के बाद विश्व की सबसे बड़ी आबादी भारत में निवास करेगी। इस बढ़ती हुई जनसंख्या की भोजन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु देश के कृषि क्षेत्र में आधुनिक एवं नवीन प्रौद्योगिकियों का समावेशन करना भी आवश्यक है। नवीन प्रौद्योगिकी, संसाधनों का कुशलतम उपयोग ही सतत कृषि को बढ़ावा देता है।
  • नवीन प्रौद्योगिकयों को ही अपनाकर जल-अभाव वाले क्षेत्रों में भी मनोवाँछित फसल को उगाया जा सकता है। इसके साथ ही नवीन प्रौद्योगिकी ने विभिन्न क्षेत्रों के फसल पैटर्न में विविधता लाने में भी सहायता प्रदान की है। संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियाँ कृषि प्रौद्योगिकियों के उपयोग के पीछे एक प्रेरक शक्ति के रूप में जानी जाती हैं।

कृषि अथव्यवस्था में प्रौद्योगिकियों के समावेशन को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकः

किसानों की आवश्यकता एवं प्रौद्योगिकी की माँगः देश में विभिन्न भागों में किसानों की अपनी कुछ विशिष्ट आवश्यकताएँ होती हैं। प्रौद्योगिकी के द्वारा इन किसानों की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाने के बाद भी इन प्रौद्योगिकियों की माँग बनी रहती है। कृषि मं नवीन प्रौद्योगिकियों के उपयोग ने विभिन्न प्रकार के लाभों को भी प्रदान किया है, विशेष रूप से इसने लागत को कम करने में अपनी भूमिका को सफलतापूर्वक निभाया है।

इन प्रौद्योगिकियों के सकारात्मक उपयोग से किसानों की ‘इनपुट’ एवं ‘आउटपुट’ कीमतों में काफी अच्छा बदलाव आया है। इस प्रकार कह सकते हैं कि किसरन केवल ऐसी ही प्रौद्योगिकी में निवेश करने इच्छुक होता है जिनके अपनाने से उसकी लाभप्रदता में वृद्वि होती है।

पर्यावरण संरक्षण एवं सतत कृषि प्रणालीः कृषि क्षेत्र के द्वारा विभिन्न प्रकार की ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन किया जाता है, जिनमें मुख्य रूप से नाइट्रस ऑक्साइड (मिट्टी, उर्वरकों और खाद से) और मीथेन (जुगाली करने वाले जानवरों एवं धान के खेतों) के द्वारा उत्सर्जित होने वाली प्रमुख ग्रीन हाउस गैसें हैं। जलावयु परिवर्तन के कारण कृषि क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है। वर्तमान में नवीन प्रौद्योगिकियों का अनुप्रयोग कर इन समस्याओं के समाधान हेतु प्रयास किया जा सकता है।

  • उदाहरण के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अन्तर्गत कार्य करने वाली एक संस्था ने ‘हरित धारा’ नामक ‘एंटी-मेथेनोजेनिक फीड सप्लीमेंट’ को विकसित किया है, जो पशुओं के द्वारा उत्सर्जित मीथेन को कम करने में सहायक है। इन नवीन प्रौद्योगिकयों को अपनाकर सतत कृषि प्रणालियों को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • प्रौद्योगिकियों की उपलब्धता वहनीय मूल्य पर सुनिश्चित् होनाः कृषि जनगणना वित्तीय वर्ष 2015-16 (Agriculture Consus–2015–16) की रिपोर्ट के अनुसार, देश में कम और सीमित जोतों का आकार कुल जोत का 80.21 प्रतिशत है। इस कृषि भूमि पर कार्य करने वाले कृषकों के पास इतनी पूँजी नही होती है कि वे उन्नत प्रौद्योगिकियों  को अपनों के लिए इन्हें ऊँचे मूल्यों पर खरीद सकें। इसके अलावा बैंकों से ऋण प्राप्त करने में भी उनके सामने समस्याएं आती हैं। इस प्रकार भारत में किसी भी उन्नत कृषि प्रौद्योगिकी को व्यापक पैमाने पर अपनाए जाने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी उपलब्धता वहनीय दरों पर समस्त कृषक वर्गों के लिए सुनिश्चित बनाया जाना चाहिए।
  • कृषि-विस्तार सेवाओं की उपलब्धताः प्रयोगशालाओं में किवसित की गई नवीन प्रौद्योगिकियों के उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए कृषि-विस्तार सेवाओं (Agricultrure Extension Services) की आवश्यकता होती है। कृषि-विस्तार सेवाएं प्रयोगशालाओं अथवा कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग में सहायक सिद्व होती हैं।
  • कृषि क्षेत्र के विकास के लिए इसे एक महत्वपूर्ण पहलू माना जाता है। भारत में कृषि पंजीकरण का स्तर ब्रिक्स देशों के सदस्रू देश चीन एवं ब्र्राजील आदि देशों से निम्न है। इसी कारण से वर्तमान सरकार का जोर कृषि-विस्तार सेवाओं को बढ़ावा देकर कृषि प्रौद्योगिकी के साथ ही कृषि में पंजीकरण को भी बढ़ावा देना रहा है। सरकार निजी क्षेत्रों की भागीदारी के माध्यम से भी प्रौद्योगिकियों को अपनाने की दिशा में कार्य कर रही है।
  • अनुकूल कृषि नीतियाँः भारत सरकार के द्वारा कृषि क्षत्र के लिए बनाई गई अनुकूल नीतियों का प्रभाव प्रौद्योगिकियों को अपनाने की दर पर भी आवश्यक रूप से पड़ता है। यदि सरकार के द्वारा बनाई गई नीतियाँ इस प्रकार की हो कि इसमें प्रौद्योगिकी को अपनाने को बढ़ावा मिले तो इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

वहीं सरकार के द्वारा कृषि में प्रौद्योगिकी को अपनाने के प्रति उपेक्षा तथा नीतिगत समर्थन के अभाव में प्रौद्योगिकी को अपनाए जाने की दर पर सकारात्मक प्रभाव होता है। वर्तमान समय में विश्व के लगभग सभी देश प्रौद्योगिकी को कृषि क्षेत्र में अपनाएं जाने को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे कि लोगों की भोजन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति को सुनिश्चित् किया जा सके।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।