महिलाओं में तेजी से बढ़ती जा रही है ओवरी सिस्ट की समस्या

                                               महिलाओं में तेजी से बढ़ती जा रही है ओवरी सिस्ट की समस्या

                                                                                                                                           डा0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                               

ओवरी सिस्ट अर्थात बच्चेदानी में रसौली या गाँठ, मटर के जितने छोटे आकार या फिर वह इतना बड़ा भी हो सकता है कि देखने पर लगे कि वह महिला गर्भवती है।

   दोस्तों, आज हम एक ऐसी समस्या के बारे में बात करने जा रहे हैं जो कि वर्तमान समय में एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में उभरकर सामने आई है। दोस्तों, अभी हाल ही में किए एक अध्ययन में बताया गया कि विश्व में लगभग 75 से 80 प्रतिशत महिलाएं इस समस्या से पेरशान हैं। इस समस्या का नाम है ओवेरियन सिस्ट अर्थात बच्चेदानी की रसौली।

दोस्तों पहले यह समस्या अधिकतर विवाहित और उम्रदराज महिलाओं में ही देखने को मिलती थी। परन्तु आज इस समस्या से अनमेरिड़ (बिन ब्याही) और शादी के बाद बच्चा होने से पूर्व ही महिलाओं को इस समस्या का समाना करना पड़ रहा है।

क्या है ओवेरियन सिस्टः- दोस्तों सिस्ट की समस्या ओवरी (अण्ड़ाश्य), विशेष रूप से प्रजनन की आयु वाली महिलाओं में पायी जाने वाली एक समस्या जो तेजी से बढ़ती जा रही है। दोस्तों यदि ओवेरीयन सिस्ट के साइज अथवा उसके आकार के बारे में बात करे तो यह मटर के दाने के जितना छोट या फिर इतना बड़ा भी हो सकता है कि देखने से ऐसा प्रतीत हो कि मानो वह महिला गर्भवती है।

                                                      

ओवेरीयन सिस्ट के प्रकारः- दोस्तों, सिस्ट की बजह से दर्द और रक्तस्राव होता है, हालांकि यह ओवरी कैंसर का प्रारम्भिक चरण भी हो सकता है। सिस्ट के कुछ प्रमुख प्रकार तथा उनका उपचार करने के तरीके कुछ इस प्रकार हैं-

एण्डोमीट्रियोटिक सिस्टः इस प्रकार की सिस्ट में रक्त भरा रहता है और महावारी के दौरान प्रभावित महिला को बहुत तेज दर्द सहन करना पड़ता है। इसके कारण महिला को पेल्विक (कोख अथवा पेड़ू) के क्षेत्र में लम्बे समय तक दर्द, इनफर्टिलिटी तथा यौन सम्बन्धों के दौरान भी दर्द की समस्या उत्पन्न हो सकती है।

उपचारः- एलोपैथी चिकित्सा पद्वति के अन्तर्गत एण्डोमीट्रियोटिक सिस्ट का उपचार लैप्रोस्कोपिक विधि के माध्यम से किया जाता है। इस विधि के अन्तर्गत सिस्ट वाल को ही हटा दिया जाता है, परन्तु कई बार सर्जन के द्वारा गलती से काफी मात्रा में सामान्य ओवरी टिश्यू को भी हटा दिया जाता है। इसके प्रभाव सम्बन्धित महिला की ओवरी की कार्य क्षमता एवं बच्चे पैदा करने की क्षमता पर नकारात्मक होते हैं। इसका अर्थ यह है कि इस विधि के माध्यम से हटाई गई सिस्ट के बाद किसी महिला का मां बनना लगभग असम्भव ही होता है। इस सिस्ट से पीड़ित महिला को गर्भ धारण करने में परेशानी होती है।

                                                  

मात्र इतना ही नही इस प्रकार की सिस्ट के चलते पीड़ित महिला में बाँझपन (इनफर्टिलिटी) की समस्या भी आ जाती है। वर्तमान में कार्बन डाई आक्साईड लेजर तकनीक इस मामले में काफी कारगर सिद् हुआ है। यह विधि मंहगी तो है परन्तु इसमें ओवरी को कम नुकसान होता है।

पालीसिस्टिक ओवेरियन डिजीजः- इस प्रकार के सस्ट अधिकतर युवा महिलाओं में सामने आते है, इस समया के कारण भी महिलाओं को गर्भधारण करने में परेशानी आती है। इसके कारण, पीड़ित महिला के चेहरे, स्तन एवं पीठ आदि पर पुरूषों के समान ही बाल निकल आते हैं और उनका मासिक धर्म भी अनियमित ही रहता है।

उपचारः- आमतौर पर इस प्रकार की सिस्ट का उपचार खानपन नियंन्त्रण, कुछ व्यायाम और दवाओं के माध्यम से किया जा सकता है, जबकि कुछ मामलों में इन पारम्पकि विधियों से आराम नही मिलने पर इसका उपचार भी लैप्रोस्कोपिक विधि के माध्यम से ही किया जाता है। 

डर्माइड सिस्टः- प्रजनन की आयु वाली महिलाओं में इस प्रकार की सिस्ट की समस्या अधिक होती है। इस प्रकार की सिस्ट से पीड़ित महिला को तेज दर्द होता है। इस प्रकार के सिस्ट अपनी रचना में मुड़ भी सकते हैं, जिसके कारण ओवरी में मरोड़ के चलते नुकसान भी हो सकते हैं और इस प्रकार के सिस्ट का उपचार भी लैप्रोसकोपिक विधि के माध्यम से ही किया जाता है

जर्म सेल ट्यूमर तथा अन्य कैंसरः यह समस्या युवा महिलाओं में अधिक होती है, जिससे भविष्य में इनफर्टिलिटी की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है। इस प्रकार के कैंसर्स ट्यूमर को लैप्रोस्कोपिक बैग में डालकर बाहर किया जाता है, जिससे कि कैंसर, ओवरी के दूसरे हिस्सों में नही फैल सकें। पीड़ित महिला की ओवरी को भविष्य में प्रसव के लिए सुरक्षित रखने के लिए इसमें रेडियोथैरेपी अथवा कीमोथेरेपी आदि को दिया जाता है।

                                                           

लेखक: मुकेश शर्मा होम्योपैथी के एक अच्छे जानकार हैं जो पिछले लगभग 25 वर्षों से इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हे। होम्योपैथी के उपचार के दौरान रोग के कारणों को दूर कर रोगी को ठीक किया जाता है। इसलिए होम्योपैथी में प्रत्येक रोगी की दवा, दवा की पोटेंसी तथा उसकी डोज आदि का निर्धारण रोगी की शारीरिक और उसकी मानसिक अवस्था के अनुसार अलग-अलग होती है। लेखक कई महिलाओं को इस समस्या से छुटकारा चुके हैं, जो कि अब अपना सामान्य जीवन जी रही हैं और कई बिना ब्याही लडकियां तो अब मां भी बन चुकी हैं।

डिस्कलेमरः इस पोस्ट में व्यक्त किए गए विचार स्वयं लेखक के हैं।