कौशल के माध्यम से ग्रामीण नौजवानों का सश्क्तीकरण

                                                 कौशल के माध्यम से ग्रामीण नौजवानों का सश्क्तीकरण

                                                                                                          डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 शालिनी गुप्ता एवं मुकेश शर्मा

                                                 

संस्थागत सुधारों से कौशल विकास कार्यक्रमों की गुणवता और बाजार में उनकी प्रासंगिकता सुधरेगी और व्यवसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण में विश्वसनीयता आयेगी जिससे कौशल के क्षेत्र में निजी निवेश में वृद्वि होगी तथा नियोक्ता भी इसमें भागीदार होंगे। इससे व्यवसायिक शिक्षा का आकांक्षात्मक मूल्य वृद्वि से कुशल श्रमशक्ति की उपलब्धता में बढ़ोत्तरी होगी और भारत दुनिया में कौशल की राजधानी बन सकेगा।

कुशल युवा का अभिप्राय एक ऐसे व्यक्ति से है जो अपनी अनिवार्य शिक्षा को पूरी करने के बाद अपना प्रथम रोजगार प्राप्त करने की उम्र के बीच है। इस समय भारत में युवाओं की संख्या विश्व में सर्वाधिक है और भारत की 27 प्रतिशत आबादी 15-29 वर्ष के बीच की है। युवाओं की इतनी बड़ी संख्या के कारण आज भारत को इसकी जनसांख्यिकीय लाभ मिल रहा है।

                                          

आज भारत में टेक्नोलॉजी संचालित श्रम बाजार से सूचना और संचार टेक्नोलॉजी की जानकारी को औपचारिक स्कूली पढ़ाई से जोड़ने की आवश्यकता है ताकि स्कूली शिक्षा पूरी न करने वाले और जल्द रोजगार की तलाश में लगे लोग ऑनलाइन कौशल सीखने के साथ ही देश के भीतर और दुनिया भर में रोजगार के रोजगार अवसरों की जानकारी हांसिल कर सकें।

नियोक्ताओं की भी युवाओं को प्रशिक्षण देने और प्रशिक्षुता के माध्यम से नवीनतम टेक्नोलॉजी से परिचय कराने तथा रोजगार के जरिए प्रशिक्षण देने में महत्वपूण भूमिका है। इस सम्बन्ध में भारतीय सरकार की कुछ पहल इस प्रकार हैं-

राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्धन योजना (एनएपीएस): इस कार्यक्रम की शुरूआत 19 अगस्त वर्ष 2016 को की गई थी, जिसका लक्ष्य वर्ष 2020 तक 50 लाख युवाओं को प्रशिक्षु के रूप में प्रशिक्षण प्रदान करना है। इस योजना के तहत सरकार प्रशिक्षुओं को दिए जाने वाले निर्धारित स्टाइपेंड की 25 प्रतिशत राशि में साझेदारी करती है। परन्तु किसी नियोक्त के साथ काम करने वाले प्रत्येक प्रशिक्षु को प्रतिमाह अधिकतम 1500 रूपये की राशि स्टाईपेंड के रूप में प्रदान की जाएगी। सरकार बुनियादी प्रशिक्षण प्रदान करने वालों को प्रत्येक नए प्रशिक्षु (जिसे किसी व्यवसाय विशेष का कोई औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त नही है) के प्रशिक्षण में आने वाले कुल खर्च में से 7,500 रूपये की साझेदारी करेगी।

इस योजना की विशेषताएं अग्रलिखित हैं-

किसी प्रशिक्षुता चक्र की पूर्ण अवधि में आवेदनों को सफलततापूर्वक निपटानें हेतु एक ऑनलाइन पोर्टल बनाया गया है- (www.apprenticeship.gov.in) उक्त पोर्टल इन चीजों में सहायता देता हैः-

  • प्रतिष्ठान, उम्मीदवारों और बुनियादी सेवा प्रदाताओं का पंजीकरण करना।
  • प्रतिष्ठान अपने यहां प्रशिक्षुओं के लिए सीटों/रिक्तियों की घोषणा कर सकते हैं।
  • प्रतिष्ठान विशेष-क्षेत्र, व्यवसाय, क्षेत्रवार उम्मीदवारों को खोज सकते हैं और उन्हें सूचीबद्व कर सकते हैं।
  • प्रतिष्ठान अपने दावे के साथ ब्यौरा एवं रिकार्ड ऑनलाइन भेज सकते हैं।
  • प्रशिक्षु प्रतिष्ठानों से से ऑफर लेटर्स ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं और इसे स्वीकार कर सकते हैं।
  • सभी आवश्यक अनुबंधित दायित्वों को ऑनलाइन ही प्रोसेस करना चाहिए।
  • प्रशिक्षुकता संबंधी अनुबंधों की समयबद्व स्वीकृति।
  • अनुपालन एवं निगरानी हेतु केन्दीकृत डाटाबेस बनाना होगा।
  • ऑनलाइन परीक्षा प्रणाली के साथ परीक्षा हॉल टिकट तैयार करने और उन्हें जारी करने की सुविधा।

                                                        

राज्य प्रशिक्षुता सलाहकार (एसएएएज) और प्रशिक्षुता के क्षेत्रीय निदेशालय अपने-अपने राज्य/क्षेत्रों में कार्यान्वयन एजेंसी के तौर पर कार्य करते हैं, 40 से अधिक लोगों को काम पर रखने वाले प्रतिष्ठानों के लिए प्रशिक्षुओं को काम रखना अनिवार्य है। जिन प्रतिष्ठानों में 6 से लेकर 40 लोग तक कार्य करते हैं, वे भी इसी पोर्टल के द्वारा प्रशिक्षुओं को अपने यहां काम पर रख सकते हैं। पोर्टल में प्रशिक्षुओं के पुजीकरण एवं प्रशिक्षुता अनुबंध भेजने की व्यवस्था भी है। एच्छिक व्यवसायों में प्रशिक्षु प्रशिक्षण राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) द्वारा प्रदान किया जाता है।

17 दिसम्बर, 2018 को ऐच्छिक व्यवसायों के अंतर्गत 74,520 प्रतिष्ठान पंजीकृत थे, जिनमें प्रशिक्षुता के 28,296 अवसर उपलब्ध थे। इसके अंतर्गत 11, 10,510 उम्मीदवारों में से 4, 73,445 प्रशिक्षुओं को काम पर रखा गया। उद्योगों के साथ सम्पर्क सुधारने हेतु कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के रोजगार और प्रशिक्षण महानिदेशालय (डीजीई एंड टी) ने भारत में व्यवसायिक शिक्षा प्रणाली का जर्मन मॉडल अपनाया है जिसके अंतर्गत प्रशिक्षण की दोहरी प्रणाली आरम्भ की गई है।

इस दोहरी प्रणाली में उद्योगों में व्यवहारिक प्रशिक्षण के साथ आईटीआई में सैद्वांतिक और बुनियादी व्यवहारिक प्रशिक्षण भी शामिल है जिससे आईटीआई और उद्योगों के बीच बेहतर सम्बंध स्थापित किया जाता है। इसके अंतर्गत आईटीआई को संबंधित राज्य को सूचित करते हुए उद्योगों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने होते हैं।

र्स्टाटअप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम (एसवीईपी):- ग्रामीण हस्तशिल्पियों और बुनकरों समेत ग्रामों के निर्धन लोगों की सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार र्स्टाटअप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम ग्राम-स्तर पर लागू कर रही है, ताकि वे गांवों में ही गैर-कृषि क्षेत्र मे उद्यम शुरू कर सकें। र्स्टाटअप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम राष्ट्रीय ग्रामीण उद्यमिता मिशन (एनआरएलएम) की उप-योजना है, इसकी शुरूआत गांवों के निर्धन लोगों को टिकाऊ उद्यम स्थापित करने में सहायता देकर उन्हें गरीबी से बाहर निकालने के उद्देश्य से की गई थी।

                                                  

ग्राम स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आरएसईटीआई):- ग्रामीण विकास मंत्रालय ग्रामीण युवाओं के लिए ग्राम स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान संचालित कर रहा है जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब परिवारों की आय में विविधता लाना है। ये संस्थान ग्रामीण विकास मंत्रालय, राज्य सरकार और बैंकों के बीच त्रिपक्षीय साझेदारी का परिणाम हैं। 31 प्रतिभागी बैंक इस योजना में शामिल हैं जिनकी मदद से देशभर में 586 आरएसईटीआई खोले गए हैं।

आरएसईटीआई केन्द्र उम्मीदवारों को कृषि प्रक्रिया, उत्पाद और सामान्य उद्यमिता विकास कार्यक्रमों में प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, ताकि वे स्वरोजगार में भी संलग्न हो सकें और इसे करने के बाद कुछ उम्मीदवार सवेतन रोजगार भी प्राप्त कर सकते हैं।

राष्ट्रीय नियोजनीयता संवर्धान मिशन (एनईईएम):- राष्ट्रीय नियोजनीयता संवर्धान मिशन (एनईईएम) का उद्देश्य तकनीकी या गैर-तकनीकी संर्वग के अंतर्गत स्नातक डिग्री या डिप्लोमा पाठ्यक्रम की पढ़ाई कर रहे अथवा डिगी या डिप्लोमा की पढ़ाई बीच में ही छोड़ चुके लोगों की नियोजनीयता को बढ़ाना है। अब तक एर्नईएम योजना के तहत 20 एजेंटों का पंजीयन किया जा चुका है।

एनईईएम ऐसे लोग (एजेंट) होते हैं जिनके संबंध छोटे उद्योगों आदि से होते हैं इसलिए इन्हें कौशल मांग की जानकारी भी रहती है और ये मांग के अनुसार उपयुक्त लोागें का चयन कर सकते हैं। वर्ष 2017-18 के दौरान एनईईएम एजेंटों के माध्यम से 43,000 से अधिक उम्मीदवारों को विभिन्न उद्योगों में प्रशिक्षुता पदान की गई।

राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी):- एनएसडीसी ने फेसबुक सोशल एप्प के साथ नीतिगत साझेदार का समझौता किया है ताकि भारत में युवा और उद्यमियों को डिजिटल कौशल से संपन्न बनाया जा सके। यह समझौता ओडिशा के भुवनेश्वर में किया गया और इससे कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय को डिजीटल मार्केटिंग के बारे में फेसबुक के प्रशिक्षण को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करने में सहायता मिलेगी।

इसके अतिरिक्त, इससे प्रशिक्षणार्थियों को स्थानीय, घरेलू और अन्तराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच बनाने में आसानी होगी। इस कार्यक्रम में डिजीटल मार्केटिंग, ऑनलाइन सुरक्षा और वित्तीय साक्षरता के बारे में क्षेत्रीय भाषा के पाठ्यक्रम शामिल है। फेसबुक एनएसडीसी द्वारा नामजद लोगों को प्रशिक्षण उपलब्ध कराती है, इससे रोजगार खोजने वालों के कौशल में वृद्वि होती है और उन्हें रोजगार मिलने की संभावनाओं में बढ़ोत्तरी होती है।

                                                   

प्रवासी कौशल विकास योजन (पीकेवीवाई):- 2 जुलाई, 2016 को विदेश मंत्रालय और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय ने एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत प्रवासी कौशल विकास योजना पर अमल किया जाएगा, इस योजना का उद्देश्य कुछ खास क्षेत्रों  और रोजगारों में संभावित प्रवासी कामगारों के कौशल में वृद्वि करके उन्हें अंतर्राष्ट्रीय-स्तर का बनाना है ताकि उन्हें विदेशों में रोजगार हासिल करने में सहायता मिल सके। इस योजना का प्रारम्भिग जोर उन क्षेत्रों में कौशल विकास पर है जिनकी उन देशों में (ईसीआर) बड़ी मांग है जहो प्रवासन जांच आवश्यक होती है। घरेलू नौकर, ड्राईवर और निर्माण मजदूर भी इन्हीं में शामिल हैं। बाद में इस योजना का दुनिया के अन्य भागों में भी विस्तार किया जाएगा।

    इस योजना के एक हिस्से के रूप में देश के विभिन्न भागों में अंतर्राष्ट्रीय कौशल केन्द्र इंडिया इन्टरनेशनल स्किल सेंटर स्थापित किए गए र्हैं, ताकि अंतर्राष्ट्रीय रूप से मान्य कौशल विकास, मूल्यांकन और योग्यताओं पर ध्यान केन्द्रित किया जा सके। परीक्षण के तौर पर चलाए जा रहे चरण में घरेलू नौकर, खुदरा व्यापार, पर्यटन और आथित्य, पूंजीगत साज-सामान, स्वास्थ्य देखभाल, निर्माण, स्वचालन और सुरक्षा समेत 16 केन्द्र स्थापित किए गए हैं।

प्रस्थान-पूर्व अभिविन्यास प्रशिक्षण (पीडीओटी) का उद्देश्य संभावित प्रवासियों के सॉफ्ट स्किल्स में गंतव्य देश की संस्कृति, भाषा, रीति-रिवाज और कायदे-कानून की समझ का विकास करना है। उन्हें विदेशों में रोजगार करने वालों का कल्याण और उनके संरक्षण के लिए भारत के विनियामक ढ़ांचे और योजनाओं के बारे में भी जानकारी दी जाती है। सभी आईआईएससीज में 160 घंटे का लंबा पीडीओटी कार्यक्रम आयाजित किया जाता है जिसमें गंतव्य देश और भाषा के बारे में जानकारी तथा डिजिटल साक्षरता भी शामिल है।

एक दिन का अन्य अल्पावधि कार्यक्रम निकट भविष्य में बाहर जाने वाले ऐसे सभी संभावित प्रवासियों के लिए आयोजित किया जाता है जिन्होने प्रशिक्षण के लिए पंजीकृत एजेंटों के माध्यम से अपना नाम दर्ज कराया है। इस कार्यक्रम की शुरूआत 8,000 उम्मीदवारों को एकदिवसीय पीडीओटी कार्यक्रम में प्रशिक्षण दिया जा चुका है (15 अप्रैल, 2018 तक)।

जन शिक्षण सेस्थान (जेएसएस):- जन शिक्षण संस्थान जिन्हें इससे पहले ‘‘श्रमिक विद्यापीठ‘‘ के नाम से जाना जाता था, अकुशल लोगों, महिलाओं, अनुसूचित जातियों/जन-जातियों/अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों और अल्पसंख्यकों के सशक्तिकरण पर ध्यान केन्द्रित करने हेतु स्थापित किए गए हैं। जन शिक्षण संस्थान दो तरह की गतिविधियों में संलग्न है‘ (i) व्यवसायिक पाठ्यक्रमः कौशल/व्यवहारिक ज्ञान के अनुप्रयोग वाले प्रशिक्षण पाठ्यक्रम जिनसे बाजार में मांग बढ़े और आमदनी भी हो।

इसमें मुख्य व्यवसाय निम्न हैं- कटिंग और टेलरिंग, बैग बनाना, ब्यूटी कल्चर, खाद्य-प्रसंस्करण, वैल्डिंग, मोटर वाहनों की मरम्मत और प्लमबिंग (पप) जीवन को परिपूर्ण बनाने वाले शैक्षिक घटकों को छोड़कर अन्य सांकेतिक गतिविधियों का संचालन। जन शिक्षा संस्थानों का अनोखा लाभ यह है कि इनके माध्यम से लाभार्थियों को उनके घर के पास के ही कौशल का प्रशिक्षण और व्यवसायिक शिक्षा प्रदान की जा सकती है।

जन-शिक्षण संस्थानों का गठन एनजीओ/विश्वविद्यालयों के द्वारा किया जाता है और ये सोसाइटी पंजीयन अधिनियम, 1860 के अंतर्गत पंजीकृत होते हैं। इस समय देश में 248 जन-शिक्षण संस्थान कार्य कर रहे हैं जिनके द्वारा प्रतिवर्ष 3-4 लाख लोग लाभान्वित हो रहे हैं। भारत सरकार इन संस्थानों को शत-प्रतिशत वित्तीय सहायता एकमुश्त उपलब्ध करा रही है।

                                     

राष्ट्रीय व्यवसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण परिषद (एनसीवीईटी):- केंद्रीय मंत्रीमण्डल ने कौशल के क्षेत्रों में मौजूदा विनियामक संस्थाओं-राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण परिषद (एनसीवीटी) और राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी (एनएसडीए) का विलय करके राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण परिषद (एनसीवीईटी) के गठन की स्वीकृति प्रदान की गई। एनसीवीईटी दीर्घकालीन और अल्पकालीन व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण में लगी सभी संस्थाओं के कामकाज को विनियमित करेगी और उनके कामकाज के न्यूनतम मानदंड़ों का निर्धारण करेगी।

एनसीवीईटी के बुनियादी कार्य निम्न प्रकार से हैं-

(1) प्रमाण-पत्र प्रदान करने वाले संगठनों, मूल्यांकन करने वाले संगठनों और कोशल संबंधी सूचना प्रदाताओं को मान्यता प्रदान करना

(2) प्रमाण-पत्र प्रदान करने वाले संगठनों एवं क्षेत्रीय कौशल परिषदों द्वारा तैयार योग्यताओं को मान्यता प्रदान करना,

(3) व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों को प्रमाण-पत्र प्रदान करने वाली संस्थाओं तथा मूल्यांकन एजेंसियों आदि के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से विनियमित करना।

राष्ट्रीय कौशल विकास निगम को अब एनसीवीईटी के तहत कर दिया गया है और यह विनियमन संबंधी कार्यों को अपनी क्षेत्रीय कौशल परिषदों के माध्यम से ही इस कार्यक्रम को पूर्ण करेगी।

    इन संस्थागत सुधारों से कौशल विकास कार्यक्रमों की गुणवत्ता और बाजार में उनकी प्रासांगिकता सुधरेगी और व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण में विश्वसनीयता आयेगी जिससे कौशल के क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ेगा तथा नियोक्ता भी इसमें भागीदार होंगे। इससे व्यापवसायिक द्विाक्षा का आकांक्षत्मक मूल्य बढ़ने से कुशल श्रमशक्ति की उपलब्धता में भी बढ़ोत्तरी होगी और भारत दुनिया में कौशल की राजधानी बन सकेगा।

    कुल-मिलाकर ग्रामीण युवा दीर्घकाल तक नियोजन हेतु सक्षम बने रहेंगे, उसके लिए आवश्यक है कि बच्चों की स्कूली शिक्षा पूरी न कर पाने की रोकथाम हो और वे कम से कम माध्यमिक-स्तर तक की शिक्षा अनिवार्य रूप से पूरी कर सकें जोकि टिकाऊ रोजगार प्राप्त करने के लिए कौशल विकास पाठ्यक्रमों को पूरा करने हेतु आवश्यक है।

टेक्नोलॉजी संबंधी विकास को आज के दौर में कौशल विकास का जोर अल्पावधि के अजाय दीर्घावधि पाठ्यक्रम पूरे करके होना चाहिए ताकि नौजवान बड़ी तेजी से विकसित हो सके और रोजगार के बाजार में लम्बे समय तक टिका रह सकें।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।