भारत में शैक्षणिक सुधार: वर्तमान समय की माँग

                                              भारत में शैक्षणिक सुधार: वर्तमान समय की माँग

                                              

‘‘वर्तमान समय में केवल नैतिक शिक्षा को आरम्भ करने की ही आवश्यकता नही है, अपितु चेतना या अपने आपकी प्रकृति को समझना भी अतिआवश्यक है।’’

भारत की शैक्षणिक नीति पर महात्मा गाँधी ने अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त किए तथा उन्होंने कहा कि मुझे मालूम है कि एक विचारधारा, जो केवल सार्वजनिक स्कूलों के अन्तर्गत प्रदान की जाने वाली धर्म-निरपेक्ष शिक्षा में विश्वास करती है। इसके साथ ही मै यह भी अच्छी तरह से जानता हूँ कि भारत जैसे एक देश में, जहाँ विश्व में सबसे अधिक प्रचलित धर्मों का प्रतिनिधित्व किया जाता है और जहाँ एक ही धर्म के विभिन्न सम्प्रदाय भी होते हैं, ऐसे देश में किसी भी प्रकार की धार्मिक शिक्षा का प्रावधान करने में निश्चित् रूप से कठिनाइयाँ समाने आएंगी।

परन्तु यदि भारत, अपने आप को आध्यात्मिक रूप से दिवालिया घोषित कराना नही चाहता है तो यहाँ भी युवाओं की धार्मिक शिक्षा को मान्यता प्रदान की जानी चाहिए, जो कि कम से कम धर्म निरपेक्ष के सन्दर्भ में तो यह आवश्यक है ही।

                                                   

भारत में शिक्षा प्रत्येक पाँच वर्ष में बदली जाती है, जब कोई भी नई सरकार सत्ता में आती है, इस तथ्य से हम सब खूब अच्छे से परिचित हैं। यह एक ऐसा तथ्य है जिसे हम सभी ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान विशेष रूप से परिवर्तित होते हुए देखा है। यहाँ यह ध्यान देना भी आवश्यक है कि भारत ने स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद जब से अपने संविधान को अपनाया है, तब से ही यहाँ नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा को आरम्भ करने के सभी प्रयासों को अवरूद्व करने के लिए, भारतीय राजनीति के पुरोधाओं के द्वारा धर्म-निरपेक्ष शब्द को मनमाने और गलत तरीके से प्रचारित किया।

                                                  

हालाँकि, यह बात अलग है कि भारत में गठित शिक्षा आयोगों के द्वारा देश में बार-बार नैतिक शिक्षा को आरम्भ करने की सिफारिशें भी की जाती रही हैं।