सितम्बर/उद्यान

                                                                                            सितम्बर/उद्यान

                                                               

फल:

1.  केला में 50-60 ग्राम यूरिया प्रति पौधा देकर मिट्टी में मिलाना।

2.  बनाना बीटिल की रोकथाम हेतु मोनोक्रोटोफास 1.25 मिली प्रति ली. पानी में घोलकर छिड़काव या कार्बोफ्यूरान, 3-4 ग्राम अथवा फोरेट 2-2. 5 ग्राम प्रति पौधा की दर से तने के चारों ओर मिट्टी में मिलाना तथा इतनी ही मात्रा को गोफे में डालना।

3.  केले के पर्ण चित्ती, सिगार एण्ड तथा एन्थ्रेक्नोज रोग के नियन्त्रण हेतु व्लाइटाक्स 3 ग्राम/ली. पानी में घोलकर उसका छिड़काव करे।

4.  केले की पत्तियों तथा सूखी एवं संक्रमित पत्तियों की कटाई।

5.  अन्य फलों के बागों की जुताई निराई गुड़ाई।

6. आम में लगने वाले गमोसिस नामक रोग की रोकथाम हेतु भूमि में खाद की तरह कॉपर सल्फेट 250 ग्राम + जिकं सल्फेट 250 ग्राम + बोरेक्स 125 ग्राम + बुझा चूना 100 ग्राम; दस वर्ष या अधिक उम्र के पौधे मिलना चाहिए। बरसात न हो तो इसके प्रयोग करने के तुरन्त बाद सिंचाई करनी चाहिए।

                                                

1.  बागों की जुताई निराई-गुड़ाई। आम में गमोसिस नाम के रोग की रोकथाम हेतु भूमि में खाद की तरह कापर सल्फेट 250 ग्राम + जिंक सल्फेट 250 ग्राम + बोरेक्स 125 ग्राम + बुझा चुना 100 ग्राम; दस वर्ष या अधिक उम्र के पौधे देना चाहिए। यदि बरसात न हो तो इसका प्रयोग करने के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई अवश्य करें।

2.  आम में एन्थ्रेक्नोज रोग से बचाव हेतु कापर आक्सीक्लोराइड का 3 ग्राम/ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

3.  बेर एवं आंवला में अवशेष उर्वरकों; तत्व के रूप में की निम्न मात्रा थालों में प्रयोग करें।

नत्रजन, फासफोरस और पोटश बेर के पौधों में प्रतिवर्ष 5 ग्राम, 2.5 ग्राम, 5 ग्राम तथा 5 वर्ष या उससे अधिक आयु के पौधों में 40 ग्राम, 20 ग्राम, 40 ग्राम। आंवला एक वर्ष के पौधों में 50 ग्राम- 40-50 ग्राम और दस वर्ष के पौधों में 500 ग्राम -4 0 0 - 5 0 0 ग्राम मात्रा का प्रयोग किया जाना चाहिए।

4.  आंवला में फल सड़न रोग की रोकथाम हेतु ब्लाइटाक्स का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

5.  आंवला में फलों की निक्रोसिस आदि के प्रभाव को रोकने हेतु 6 ग्राम बोरिक एसिड प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तर पर दो छिड़काव करें।

6.  आंवला में इण्डरबेला नामक कीट की रोक थाम हेतु डाइक्लोरोवास (नुवान) के 1 मिली. प्रति ली. पानी की दर से बने घोल बगनाकर उसमें रूई भिगोकर तार की मदद से छिद्रों में डालना चाहिए तथा चिकनी मिट्टी के द्वारा इन छिद्रों को बन्द कर देना चाहिए।

                                                              

1.  बाग की निराई-गुड़ाई एवं सिंचाई।

2.  सफेद मक्खी व छाल खाने वाली कीटों का नियन्त्रण।

3.  उर्वरक टॉप ड्रेसिंग।

4.  सूक्ष्म तत्वों का छिड़काव।

5.  आंवला में फल सड़न रोग की रोकथाम हेतु ब्लाइटाक्स (3 ग्राम प्रति ली. पानी में) तथा फलों के निक्रोसिस को रोकने हेतु बोरिक एसिड (6 ग्राम प्रति ली. पानी में) घोल बनाकर 15 दिन के अन्तर पर दो छिड़काव करना चाहिए।

6.  इण्डरबेला कीट (आंवला में) का नियंत्रण।

शाकभाजी एवं मसाला फसलों के लिए:

1.  टमाटर, की बुवाई। पिछले माह की तैयार पौध की 60 x 45 सेमी. की दूरी पर रोपाई आवश्यक सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई।

2.  लहसुन की बुवाई।

3.  अदरक में कंद सड़न व्याधि के विरूद चेस्टनट कम्पाउण्ड का प्रयोग करना।

1. ठंड़ के मौसम वाली सब्जियों की रोपाई एवं बुवाई। पिछले बोये गये बीज से तैयार किए गए पौधों की रोपाई एवं यथा आवश्यक सिंचाई एवं निराई गुड़ाई भी करते रहें।

2. बैगन की तुड़ाई छंटाई एवं विपणन यूरिया 50 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से टॉपड्रेसिंग के माध्यम से देना चाहिए।