राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एवं भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित शैक्षिक कार्यशाला का समापन

                         राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एवं भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित शैक्षिक कार्यशाला का समापन

                                             

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला ‘‘शिक्षा में भारतीयता एवं भारतीय ज्ञान परंपरा’’ पर आधारित कार्यशाला का समापन आज दिनाँक 03.09.023 दिन रविवार को हुआ।

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की पूर्व प्रो वाइस चांसलर डॉ वाई विमला ने अपने संबोधन में कहा कि हमें समर्पण भाव से अपने प्रत्येक कार्य को करना चाहिए। मोह तो अवश्य करें लेकिन अपने दायित्यों का निर्वहन भी उसी प्रकार से करते रहें। उन्होंने कहा कि हमारी अंतरात्मा कभी भी हमें गलत कार्य करने के लिए प्रेरित नहीं करती है। परन्तु हम लोग ही उससे हटकर कार्य करते हैं और हमें इस प्रवृत्ति से बचाना चाहिए। उन्होंने बताया सफलता अकस्मात ही नहीं आती, अपितु यह कार्य के प्रति समर्पण और दृढ़ संकल्प से आती है।

डॉ योगेंद्र सिंह, सहसंयोजक शिक्षा सेवा उत्थान न्यास, ने अपने संबोधन में कहा कि हम सबको एक साथ मिलकर भारत और भारतीयता के लिए कार्य करना होगा और उसी काम को हम सभी लोग कर भी रहे हैं। भारत का हमेशा से संबंध आत्मीयता के साथ ही रहा है, और प्रत्येक कार्य चाहे वह क्षेत्र का शिक्षा हो, स्वस्थ का हो, व्यापार हो या फिर चाहे वह कृषि हो क्यों न हो, सब कुछ अनुशासन पर ही आधारित हुआ करता था।

                                                                   

सिंधु घाटी की सभ्यता हो या वैदिक युग हो अथवा वह रामायण काल हो या फिर महाभारत काल, अपने प्रत्येक काल में भारत जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में एक समृद्ध राष्ट्र हुआ करता था।

डॉ योगेंद्र ने शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के 10 विषयों पर प्रकाश डाला, उन्होंने चरित्र निर्माण और व्यक्तित्व के समग्र विकास पर भी विस्तार पूर्वक चर्चा की।

डॉ सुबोध शर्मा ने न्यास के कार्यों की संकल्पना आयाम और विभाग आदि के सम्बन्ध में चर्चा की। प्रोफेसर हरेंद्र सिंह ने कार्यकर्ता निर्माण एवं कार्यकर्ता नियोजन आदि की प्रक्रिया के सम्बन्ध में सभागर में उपस्थित लोगों को विस्तार से बताया।

प्रोफेसर वाचस्पति मिश्रा, संस्कृति विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय ने अपने संबोधन में शिक्षा में संस्कृति के महत्व की जानकारी दी और भारतीयता एवं ज्ञान परंपरा और उसकी उपयोगिता के बारे में विस्तार से बताया।

                                                      

मुख्य वक्ता जगराम जी, संयोजक शिक्षा सेवा उत्थान न्यास, उत्तर क्षेत्र एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश ने अपने संबोधन में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के द्वारा संचालित किए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों और उसकी उपयोगिता के बारे में जानकरी प्रदान की। चरित्रवान कार्यकर्ता निर्माण कैसे किया जाए और कार्यों को अच्छे तरीके से किस प्रकार से संपन्न किया जाए, इसके बारे में भी उन्होने मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु अच्छे शिक्षकों का होना अति आवश्यक है।

शिक्षक, शिक्षा एवं पाठ्यक्रम के माध्यम से शिक्षा के समय में शिक्षा के कार्य अपेक्षित है, ऐसे में यदि शिक्षक के द्वारा शिक्षा का पाठ्यक्रम ही दोषपूर्ण होगा तो उससे अच्छे शिक्षक कभी भी तैयार नहीं हो सकते। इसके लिए न्यास ने इस आधारभूत विषय पर काम करना आरंभ कर दिया है। शिक्षक, शिक्षा के पाठ्यक्रम में व्यवहारिकता, भारतीयता एवं छात्रों के व्यक्तित्व के समग्र विकास का समावेश कर सम्पूर्ण देश में शिक्षक, शिक्षा के विद्वान एवं आचार्य सभी को एकत्र कर विभिन्न कार्यशालाओ का आयोजन निरंतर अन्तराल पर करते रहना चाहिए।

उक्त कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर शैलेंद्र सिंह ‘‘गौरव’’, योग एवं प्राणायाम डॉक्टर नवजोत सिद्धू पंचकोश का व्यावहारिक प्रशिक्षण और एडवोकेट मनु गोस्वामी द्वारा किया गया। कार्यक्रम का धन्यवाद प्रस्ताव डॉक्टर वीरेंद्र कुमार तिवारी के द्वारा किया गया।

                                                              

इस कार्यक्रम में प्रोफेसर राकेश सिंह सेंगर, प्रोफेसर डी बी सिंह, डॉ देश दीपक, डॉ नीलेश कपूर, डॉ शालिनी गुप्ता, डॉ जितेंद्र सिंह, डॉक्टर सीमा जैन और श्रीमती मनु गोस्वामी आदि ने अपना विशेष सहयोग प्रदान किया।