ग्रीष्मकालीन गेंदा से उन्नत तकनीक द्वारा अधिक लाभ

                                                   ग्रीष्मकालीन गेंदा से उन्नत तकनीक द्वारा अधिक लाभ

                                                                                                                      डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा

                                                 

गेंदा, हमारे व्यावहारिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उत्तरी भारत के मैदानी भागों में गेंदे की फसल की उपलब्धता एवं उत्पादन मांग के अनुरूप कम है। इसके उत्पादन को वैज्ञानिक पद्धति द्वारा बढ़ाया जा सकता है। भारतीय साहित्य, पौराणिक ग्रन्थों, मूर्तियों के भित्ति चित्रों, भवनों और कलाओं में विभिन्न प्रकार के फूलों एवं शोभाकारी पौधों की झलक देखनें को मिलती है, जिसमें गेंदे के फूल का महत्व अधिक है। गेंदे के फूल मुख्य रूप से माला, भगवान की पूजा व अर्चना शादी के अवसर पर मंडप और वाहन सजाने के लिये प्रयोग करते हैं। इस फूल को हजारा, मेरी गोल्ड तथा वनस्पति जगत में टेजिटस इत्यादि  नामों से भी जाना जाताहै। यह कम्पोजीटी कुल का बहुत ही उपयोगी फूल है। मुख्य रूप से गेंदे में दो तरह की किस्में पाई जाती हैं:

1.   टेरीटस इरेक्टा (अक्रीका मेरीगोल्ड)

2.   टेजीटस पेट्रला (फ्रेंच मेरीगोल्ड)

उन्नतशीत प्रजातियाँ:-

                                                          

(क)  अफ्रीकन किस्में - पौधों की ऊँचाई 80-90 सेंटीमीटर तथा व्यास 15-20 सेंटीमीटर तक होता है। फूलों का रंग पीला, चमकीला पीला, सुनहरा पीला, नारंगी और सफेद (मटमैला) होता है। इस किस्म में कुछ बौनी किस्में विकसित की गई हैं, जिसके पौधों की ऊँचाई 20-30 सेंटीमीटर होती है।

1.   कारनेशन प्लावर्ड: गुइना गोल्ड, सन जाइन्ट, गोल्डन येलो, क्राऊन काईजेन्थ, फीएस्टा।

2.   बौनी किस्में: हैपीनेस, स्पन गोल्ड और कपिड।

3.   संकर किस्में: टोरीडोर, कलाइमैक्स।

4.   गन्ध रहित पत्ती वाली किस्में: हवाई क्राऊन गोल्ड, हनी काम्ब, कपिड।

(ख) फ्रेन्च किस्म - पौधे 30-40 सेंटीमीटर ऊँचाई के होते हैं। फूल सिंगल या डबल, छोटे आकार के, परन्तु अधिक संख्या में खिलते हैं। इसमें भी कुछ बौनी किस्में हैं, जिनके पौधे 25 सेंटीमीटर लम्बे होते हैं। फूल गहरे लाल, महोगनी, लाल नारंगी, बसंती, पीले मिश्रित धारीदार आदि रंगों में मिलते हैं।

                                                                   

1.   डबल किस्में: रस्टी रेड, प्लेम और स्प्रे।

2.   सिंगल किस्में: नाटी मैरीएटा, डैटी मैरीएटा, स्टार ऑफ इण्डिया, हारमोनी।

    अफ्रीकन और फ्रेंच गेंदे के क्रास से वर्ण संकर किस्में तैयार की गई है, जिनमंे से ”नगेट“ बहुत ही अच्छी किस्म है।

जलवायु - गेंदा, आसानी से उगाया जाने वाला मौसमी फूल है, परन्तु अत्यधिक ठंडे और गर्म मौसम में फसल बुरी तरह से प्रभावित होती है।

भूमि का चुनाव - व्यापारिक पैदावार के लिये जमीन उपजाऊ होना अति आवश्यक है। दोमट बलुअर दोमट या मटियार दोमट अति उत्तम एवं जल निकास की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिये।

बीज बोने का समय - ग्रीष्मकालीन फसल लेने केलिये बीज फरवरी एवं 15 मार्च के बीच की बुआई अच्छी होती है। उपयुक्त गेंदे के बीज बहुत हल्के होते हैं। आकार में चपटे व इनका रंग नीचे से काला तथा ऊपर से सफेद होता है। इन्हें मिट्टी के नीचे तथा क्यारी के एक साथ फैला देना चाहिये। ऊपर से मिट्टी की हल्की परत लगाकर उनकी हल्की सिंचाई करनी चाहिये। 4-5 दिन में अंकुर निकलने शुरू हो जाते हैं। एक एकड़ क्षेत्रफल में रोपाई करने के लिये 80 से 100 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

                                                                       

पौध तैयार करना - मृदा शोधन फार्मालीन 1 भाग और पानी 50 भाग मिलाकर क्यारी में छिड़कें, ताकि मिट्टी भीग जाये और फिर पॉलीथीन से ढक कर एक सप्ताह के लिये छोड़ दें। यह कार्य बुआई के एक सप्ताह पहले करें। बीज को फफूंदनाशी दवा 1 ग्राम बावस्टीन ़ 1 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज से शोधित कर बुवाई करें।

रोपाई - अफ्रीकन किस्म के लिये पौधे 45-50 सेंटीमीटर की दूरी पर और फ्रेंच किस्म की 25-30 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपाई की जाती है।

खाद व उर्वरक - एक एकड़ क्षेत्रफल के लिये 10-12 टन सड़ी गोबर की खाद तथा 50-60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस एवं 30 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता पड़ती है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा रोपाई के 30-35 दिन बाद खड़ी फसल में देनी चाहिये।

सिंचाई - गर्मी के दिनों में पौधों को 4-5 दिन के अन्तर पर पानी देना चाहिये। पानी के अभाव में फूल के गुण पर प्रभाव पड़ता है।

पिचिंग - इस क्रिया के द्वारा छोटे झाड़ीनुमा अधिक शाखाओं वाले पौधे से अधिक फूल प्राप्त होते हैं। पिचिंग, फूल की पहली कली दिखायी देने पर ऊपरी भाग (भुनगी) को तोड़ देते हैं तथा नई शाखाओं को 10-12 सेंटीमीटर के बाद फिर से एक बार शाखाओं के अग्रभाग को तोड़ देना चाहिये।

                                                                 

कटिंग से पौध तैयार करें - नये स्वच्छ पौध से फूल निकलने से पहले या फूल एक या दो बनते समय ही कटिंग का चुनाव करते हैं। कटिंग के लिये ऊपरी भाग से लगभग तीन गांठ की शाखा को ऊपर की 3-4 पत्तियों को छोड़कर अन्य को हटा देते हैं। कटिंग को बालू भरे बर्तन या क्यारियों में लगा देते हैं। कटे हुए भाग पर जड़ वृद्धि नियामक जैसे रूटडिक्स, ऐराडिक्स, कराडिक्स लगानेसे जड़ें स्वस्थ निकलती हैं। कटिंग का निचला भाग गांठ के ठीक नीचे हो तथा कटिंग को कटाव के बाद पानी के भरे बर्तन में रखें। अब उपरोक्त पाउडर को छोटी कटोरी में कटिंग रखकर तुरन्त निकाल लें तथा हल्का झटका दें, जिससे पाउडर की अधिक लगी हुई मात्रा हट जाये। अब बालू भरे बर्तन या क्यारियों में अंगुली या लकड़ी छिद्र बनाकर, जो लगभग 2-3 सेंटीमीटर की दूरी पर हो, में कटिंग के निचले एक तिहाई भाग को गाड़ दें। इसके बाद आवश्यकतानुसार नमी बनाये रखनी चाहिये। जड़ें 10-12 दिन में (मौसम के अनुसार) निकल आती हैं। फिर यथास्थान इनकी रोपाई करें।

कीडे़ और बीमारियों की रोकथाम - गेंदे की फसल में कम बीमारी फैलती है, परन्तु कीड़ों में ग्रास हापर मुख्य है, जो काटकर नुकसान पहंुचाता है। इसकी रोकथाम के लिये रोगोर 0.2 प्रतिशत या 5-10 प्रतिशत फालीडाल पाउडर का बुरकाव 10 किलोग्राम/एकड़ की दर से सुबह में करें।

फूलों की तुड़ाई और उपज - जब फूल लगभग तीन चौथाई भाग खिल जायें तो बाहर भेजने के लिये फूल डंठल सहित तोड़ें। सही देखरेख होने पर एक एकड़ में 50-60 क्विंटल/एकड़ फूल प्राप्त किये जा सकते हैं। एक एकड़ में आय-व्यय का ब्यौरा तालिका-1 में दिया गया है।

                                                      

तालिका-1: एक एकड़ क्षेत्रफल का आय-व्यय का विवरण

 

आय-व्यय

भूमि की तैयारी - पहली जुताई (डिस्क हैरो)

100.00

एक सिंचाई 125 रुपये प्रति एकड़ (पलेवा)

125.00

हैरो से जुताई (तीन)

300.00

मेड़ नाली एवं क्यारियां 5 मजदूर, 50 रु॰ प्रति मजदूर

250.00

पौध लगाना 80-100 ग्राम बीज प्रति एकड़ 1000 रु. प्रति किलो

- नर्सरी में उगाने का खर्च

- गोबर की खाद क्यारियों में फैलाने का खर्च 2 मजदूर, 50 रु. प्रति

- पौधों को क्यारियों में लगाना 5 मजदूर

- सिंचाई (1) कुल 8 सिंचाई

सिंचाई के लिये 4 मजदूर, 50रु. प्रति

(स) निराई-गुड़ाई 2 गुडाईयां 10 मजदूर 50/- रुपये

 

 

100.00

100.00

 

250.00

1000.00

200.00

500.00

खाद और उर्वरक

120 क्विंटल/एकड़ रुपये 10 क्विंटल 50/- रुपये

600.00

यूरिया 110 किलोग्राम

374.00

सिंगल सुपर फास्फेट 187 किलोग्राम

562.00

पोटाश 38 किलोग्राम

100.00

फूल तोड़ने के लिये 15 मजदूर 50/- रुपये प्रति

750.00

ढुलाई तथा मंड़ी में बेचना:

- बोरी की कीमत

- ढुलाई की कीमत

- आढ़ती कमीशन 10/- रुपये

 

200.00

1000.00

 

3000.00

कुल योग

9591.00

कुल आय 50 क्विंटल प्रति एकड़ 5 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से कीमत 30000-9591/- रुपये

20,409.00

कुल लाभ

20,409.00

    

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।