त्वचा के रोगों से बचने के लिए खिलाड़ी लापरवाही न बरतें

                                                        त्वचा के रोगों से बचने के लिए खिलाड़ी लापरवाही न बरतें

                                                                                                                                                 डॉ0 दिव्याँशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                           

खिलाड़ियों को अपने खेलों के अभ्यास, ट्रेनिंग और विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं के दौरान काफी मेहनत करनी पड़ती है और इसके लिए उन्हें खूब पसीना भी बहाना पड़ता है। साधारणतया तो खिलाड़ी फिजीकली फिट, स्ट्राँग और हैल्दी रहते ही हैं, परन्तु कई बार विभिन्न कारणों के चलते उनसे कुछ छोटी-छोटी गलतियाँ अथवा लापरवाही हो जाती है जिनके कारण उन्हें विभिन्न प्रकार की त्वचा से सम्बन्धित परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है।

    इसके अतिरिक्त खिलाड़ियों को बहुत अधिक धूप, धूल एवं प्रदूषण आदि का सामना भी करना पड़ता है, जिसका सबसे पहला प्रभाव भी उनकी त्वचा पर ही दिखाई पड़ता है। इसके सम्बन्ध में विभिन्न त्वचा रोग विशेषज्ञों का कहना है कि त्वचा से सम्बन्धित परेशानियों से बचने के लिए खिलाडियों को कुछ स्किन केयर टिप्स को अपनाते हुए लापरवाहियों से बचना चाहिए।

त्वचा के विकरों को पहिचानें

                                                     

    इसके लिए सर्वप्रथम खिलाड़ी स्वयं को बाहरी तापमान के अनुसार ढालें। धेप में बॉडी टैम्प्रेचर को नियन्त्रित करना, पर्यावरण के साथ संवेदी रिसेप्टर्स प्रदान करना, शरीर में पानी तथा विटामिन डी की कमी होना आदि। यह सब खिलाड़ी के स्वास्थ्य एवं उसके कार्य पर निर्भर करता है। अतः एथलीटों को प्रभावित करने वाले त्वचा के विकारों पहचानना चाहिए और यदि कोई समस्या उत्पन्न हो जाती है तो इसका प्रभावी उपचार करने में देर नही करनी चाहिए अन्यथा यह कोई बड़ी परेशानी भी खड़ी कर सकता है।

त्वचा का संक्रमण

    त्वचा से सम्बन्धित रोगों में त्वचा के उसंक्रमण का होना सबसे आम समस्या है, जो कि एथलीटों को बहुत बुरी तरह से प्रभावित करता है। इसके चलते खिलाड़ियों को रूग्णता हो सकती है जिसके फलस्वरूप वे अभ्यास छोड़ने अथवा खेल के अयोग्य भी हो सकते हैं।

सम्पर्क से होने वाले खतरे

    आपसी सम्पर्क वाले खेलों के खिलाड़ियों को सबसे अधिक परेशान करने वाला कारक है। कबड्डी, कुश्ती तथा जूड़ों के जैसे खेलो के अलावा विशेषरूप से पहलवानों को इस पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है। क्योंकि इन खेलों में त्वचा के संक्रमण का खतरा सदैव ही बना रहता है।

इम्पीटिगो संक्रमण

    त्वचा के एक सतही जीवणु संक्रमण को इम्पीटिगो संक्रमण कहते हैं। इम्पीटिगो संक्रामक है जो कुश्ती, कबड्डी, बॉक्सिंग एवं कराटें आदि खेलों के खिलाड़ियों में फैलता है। अतः इस समस्या से परेशान खिलाड़ियो को सलाह दी जाती है कि वे नहाने की साबुन और तौलिए आदि को साझाा करने से बचें।

पिटेड केराटोलिसिस संक्रमण

    पिटेड केराटोलिसिस पैरों में होने वाला एक सतही जीवाणु संक्रमण है, जो कि कोरिनेटोबैक्टीरियम जीनस के बैक्टीरिया के कारण होता है। यह संक्रमण आमतौर पर पसीने से तर पैरों वाले युवा पुरूषों में होता है। जबकि नमी और उष्णकटिबन्धीय जलवायु इसके कारक भी हो सकते हैं। 

पिटेड केराटोलिसिस संक्रमण का उपचार

    इस संक्रमण को समाप्त करने के लिए खिलाड़ी के शरीर में उपलब्ध नमी को करना होता है। अतः इसके लिए खिलाड़ी समय-समय पर अपने मौजों को बदलें और पैरों को सूखा रखने के लिए किसी स्तरीय पाउडर जैसे माइक्रोपोरस सेलुलोज और टैल्कम पाउडर आदि का प्रयोग करना उचित रहता है। एंटीपरोपिपिरेंट्स को शीर्ष पर लगाना (एल्युमीनियम क्लोराइड 20 प्रतिशत समाधान रात में) आदि को शामिल कर खिलाड़ी अपने पैरों को सदैव शुष्क बनाएं रखें। 

बैक्टीरियल इन्फेक्शन

    बैक्टीरियल फॉलिकुलिटिस, फृरूनाकाट्स, कार्बुनकल और इनपेटिगो एथलीटों में होने वाला एक आम जीवाणु संक्रमण है।

फुरूनकुलोसिस

    एक अध्ययन के अनुसार हावर्ड स्कूल यूनिवर्सिटी के 25 प्रतिशत खिलाड़ी प्रतिवर्ष फुरूनकुलोसिस नामक संक्रमण से पीड़ित होते हैं।

फॉलिकुलिटिस

    आमतौर पर फुन्सियों के रूप में प्रकट होने वाले इस संक्रमण में जब फुन्सी एक गहरी सूजन वाली गाँठ के रूप में परिवर्तित हो जाती है। शरीर में उत्पन्न होने वाले फोड़े अक्सर फॉलिकुलिटिस के कारण ही होते हैं और परेशानियों को बढ़ाते हैं।

कार्बुनकल

    फोडें, शरीर में जब अधिक व्यापक, गहरे, संचारी और द्रव्यमान से युक्त होते हैं और उस समय उत्पन्न होते हैं जब कई बारीकी से सेट फुरूनकल इण्क साथ एकत्र हो जाते हैं। कार्बुनकल के मरीज अक्सर अस्वस्थ ही रहते हैं और उन्हें बुखार के साथ ही अन्य प्रकार का अस्वस्थता बनी रहती है। यह संक्रमण आमतौर पर बाल वाले स्थान विशेषरूप से जहाँ घर्षण और पसीने की अधिक सम्भावना रहती है जिनमें गर्दन, चेहरा, खोपड़ी, बगल, कमर, हाथ-पैर, जाँघ एवं नितम्ब आदि का क्षेत्र।

उपचार

    फॉलिकुलिटिस संक्रमण से प्रभावित क्षेत्र को प्रतिदिन किसी जीवाणुरोध साबुन (क्लोरहेक्सासाइडिन ग्लूकोनेट 2-4 प्रतिशत समाधान या बेंजोयल पेरोक्साइड 10 प्रतिशत वॉश) कें साथ धोना और एक एंटीबॉयोअिक जैसे मुपिरोसिन 2 प्रतिशत मलहम प्रतिइिदन दो से तीन बार लगाना चाहिए। हालांकि इसके लिए प्रतिदिन मौखिक एंटीबॉयोटिक की खुराक भी लेनी पड़ सकती है।

मूल्यांकन करने की प्रक्रिया

    बार-बार संक्रमित होने वाले मरीजों का मूल्यांकन एस ओरियंस की क्रॉनिक नेजल कैरिज के लिए किया जाना चाहिए।

फंगल इन्फेक्शन

                                                                

    इस रोग को जॉक इच (टिबिया कुरिस), एथलीट फुट (टिबिया पेंडिस), दाद (टिबिया कॉर्पोरिस) आदि के नामों से भी जाना जाता है और एथलीट्स में इसका खतरा अधिक होता है।

रोग के प्रमूख कारण

  • पसीने और वेट के कारण त्वचा के हर्माटोज्वाईन्ट्स पर इसका विकास तेजी के साथ होता है।
  • कवकीय त्वचा का त्वचा के साथ सम्पर्क होने पर, विभिन्न प्रकार की साझा सुविधाओं और वस्तुओं जैसे कि लॉकर रूम तथा तौलिया आदि के उपयोग के कारण यह होता है।
  • पहलावनों में टिबिया कॉर्पोरिस का खतरा अधिक होता है। टिबिया कुरिस वंक्षण सिलवटों को बढ़ाता है और यह खिलाड़ी की जाँघों की ओर बढ़ता है।

फंगल इन्फेक्शन का उपचार

  • टिबिया कॉर्पोरिस, कुरिस एवं पेंडिस का उपचार सामयिक चिकित्सा के माध्यम से किया जा सकता है।
  • टर्बिनाफाइन 1 प्रतिशत क्रीम अथवा केटाकोनाजोल आदि का प्रयोग किया जा सकता है। इसके साथ ही मौखिक रूप से ली जाने वली एंटिफंगल दवाओं पर भी विचार किया जा सकता है। लुकोनाजोल, दो से चार सप्ताह के लिए साप्ताहिक रूप से 200 मिलीग्राम, व्यापक सूजन या दुर्दन्य मामलों में उपयोग किया जा सकता है।

पहलवानों के लिए गाइडलाईन्स

1.   नेशनल कोलीगेट एथलेटिक एसोसिशन (एनसीएए) के द्वारा दिए गए कुश्ती के दिशा-निर्देशों के अनुसार पहलवानों को प्रतियोगिता से 24 घंटे से पूर्व तक उनकी त्वचा पर कोई नया घाव नही होना चाहिए।

2.   खिलाड़ी की 72 घंटे की एंटीबॉयोटिक थेरेपी पूरी करनी चाहिए, कोई गीला, स्त्रावित या पीपयुक्त घाव नही होना चाहिए और कोई पीपयुक्त सक्रिय घाव भी नही होना चाहिए।

3.   पहलवानों को प्रतियोगिता में लौटने के लिए त्वचा पर होने वाले घावों के लिए कम से कम 72 घंटे की सामयिक चिकित्सा की आवश्यकता होती है और खोपड़ी के घावों के लिए दो सप्ताह की मौखिक एंटीफंगल चिकित्सा की आवश्यकता होती है।

4.   व्यापक और सक्रिय घावों वाले पहलवानों को कुश्ती के लिए अयोग्य घोषित भी किया जा सकता है।

लेखक: डॉ0 दिव्याँशु सेंगर, प्यारे लाल जिला अस्पताल मेरठ, में मंडिकल ऑफिसर के रूप में कार्य कर रहे हैं।