कृत्रिम बुद्विमत्ता की दुनिया में वर्ल्डकॉइन

                                                                कृत्रिम बुद्विमत्ता की दुनिया में वर्ल्डकॉइन

                                                            

    कृत्रिम मेधा अर्थात आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की दुनिया में वर्ल्डकॉइन की दस्तक जितनी अधिक रोमांचित करने वाली है, यह उतनी ही अधिक रहस्यमयी भी है। टूल फॉर ह्यूमैनिटी कम्पनी के द्वारा भारत के सहित 20 देशों में वर्ल्डकॉइन प्रोजेक्ट लाँच किया गया है। इसके सह-संस्थापक चैटजीपीटी बनाने वाली कम्पनी ओपेनआई के सीईओ सैम ऑल्टमैन हैं।

अब तक इसे एक विश्वस्तरीय वर्चुअल आईडी विकसित करने का एक प्रयास कहकर प्रचारित किया जा रहा है। इसके लिए दावा किया जा रहा है कि इससे कृत्रिम मेधा पर टिकी सेवाओं का बिजनेस मॉडल स्थापित किया जा सकेगा। इस वर्चुअल आईडी को प्राप्त करने के लिए सम्बन्धित व्यक्ति को 25 क्रिप्टो करेंसी (लगभग 50 यूएस डॉलर) फ्री प्रदान किए जा रहे हैं।

                                               

    सैम ऑल्टमैन ने गत 24 जुलाई को लाँच करते समय इसे एक मानवता के लिए कदम बताते हुए कहा था कि वे दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति की एक डिजिटल आईडी बनाएंगे और वर्ल्डकॉइन का उपयोग लोगों के जीवन में कृत्रिम मेधा की राह को आसान बनाएगा। इस वर्चुअल आईडी के माध्यम से यूनिवर्सल बेसिक इनकम अथार्त यूबीआई की व्यवस्था को खड़ी करने के तर्क प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

    एक डिजिटल आईडी के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को कृत्रिम मेधा से सम्बन्धित सेवाओं पर एक तय आमदनी किस प्रकार मिलेगी? इस सवाल पर कम्पनी का कहना है कि भविष्य की आर्थिक गतिविधयों में एआई (कृत्रिम मेधा) और इंटरनेट के एंडवांस वर्जन वेब-3 की विशेष भूमिका होगी। ऐसे में एआई आधारित सेवाओं के लिए एक वर्चुअल आईडी की आवश्यकता होगी।

कम्पनी के द्वारा इस वर्चुअल आईडी पर एक्टिवेट होने वाला वर्ल्डएप वॉलेट भी पेश कर दिया है। इस वर्ल्डएप में दुनिया का कोई भी व्यक्ति, इस वॉलेट में पैसे रखने के साथ ही दुनिया के किसी भी कोने में पैसे ट्राँसफर भी कर सकता है।

    एलन मस्क भी एआई के माध्यम से यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) के समर्थक रहे हैं। दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को एआई संचालित आर्थिक गतिविधियों से जोड़कर आय की गारंटी देने के जैसे दावे करने के बाद विभिन्न स्थानों पर वर्ल्डकॉइन सेन्टर पर लम्बी कतारे लगी हैं। कम्पनी बेहद आक्रमक तरीके से इसे युवाओं की बीच प्रमोट कर रही है, तो इससे कई देश चौकन्ने भी हो गए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भविष्य में वर्ल्डकॉइन आईडी एआई से सम्बन्धित किसी भी आर्थिक गतिविधि का सबसे बड़ा माध्यम होगा।

                                                                        

    हालांकि, फ्राँस, जर्मनी और केन्या आदि देशों ने इस परियोजना पर जांच बैठा दी है और वहीं ब्रिटेन भी इस परियोजना के प्रति कड़ा रूख अपनाए हुए है। इसके खिलाफ इन देशों का कहना है कि जिस प्रकार से वर्ल्डकॉइन के नाम पर लोगों का बॉयोमीट्रिक डाटा एकत्र किया जा रहा है, वह एक प्रकार से उनकी निजता पर हमला करने के जैसा ही है।

    असल में वर्ल्डकॉइन आईडी को तैयार करने के लिए सम्बन्धित व्यक्ति की आँखें की पुतलियों (आईरिस) को पहिचान के तौर पर कैद किया जाता है और लोगों को वर्ल्डकॉइन आईडी बनवाने के बदले में कुछ क्रिप्टो फ्री में भी दिए जा रहे हैं।

जबकि इंडोनेशिया में नकदी और कुछ अन्य उपहार भी इसके लिए दिए जाने की खबरें आ रही हैं। व्यक्ति की निजता में इंटरफियर के जैसे आरोपों के बाद कम्पनी की ओर से सफाई दी गई कि पुतलियों की इमेज से आईरिस कोड जनरेट हो जाने के बाद यह इमेज अपने आप ही डिलीट हो जाती है और सम्बन्धित व्यक्ति का पर्सनल डाटा इन्क्रिप्टेड फार्मेट में संचित किया जाता है, परन्तु लोगों के बायोमीट्रिक डाटा को कम्पनी क्यों और किस प्रकार से प्रोसेस करेगी इसके सम्बन्ध में अभी स्थिति साफ नही है।

     वर्ल्डकॉइन के माध्यम से क्रिप्टो करेंसी को नया जीवन प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि फिलवक्त तक क्रिप्टो करेंसी के सम्बन्ध में कोई ग्लोबल फ्रेमवर्क उपलब्ध नही है। अमेरिका के कुछ राज्यों में इसे कानूनी मान्यता प्राप्त है, तो यूरोपीय संघ में बुनियादी रेगुलेशन विकसित कर इसको टैक्स दायरे में लाया गया है।

    बायोमीट्रिक डाटा के हैंकिंग से जुड़ी विभिन्न प्रकार की आशंकाओं को भी खारिज नही किया जा सकता। परन्तु इसकी दस्तक पर जहाँ एजेन्सियों को अधिक चौकन्ना रहने की आवश्यकता है तो वहीं हमें शीघ्र ही कृत्रिम मेधा और क्रिप्टो करेंसी से सम्बन्धित स्पष्ट नीतियों को बनाना होगा। 

                                                                           एनसीएफ ने जारी किया प्रावधान

अब वर्ष में दो बार होंगी बोर्ड की परिक्षाएं

    दसवी और बारहवीं की बोर्ड परीक्षाएं अब साल में दो बार हुआ करेंगी और विद्यार्थियों के पास इसमें से सर्वश्रेष्ठ अंकों को बनाए रखने का विकल्प भी मौजूद रहेगा। इसके अलावा कक्षा 10वीं और 12वीं के विद्यार्थियों को दो भाषाओं का अध्ययन भी करना होगा, जिनमें से कम से कम एक भाषा भारतीय भाषा का होना अनिवार्य रहेगा। वर्तमान में कक्षा 9 और 10 के छात्र दो भाषाओं का अध्ययन अनिवार्य रूप से करते हैं, तो वहीं कक्षा 11 और 12 के छात्र एक भाषा का अध्ययन ही करते हैं।

    उक्त प्रावधान शिक्षा के नए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढाँचें (एनसीएफ) के अन्तर्गत शामिल है, इस नए प्रावधान को केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने 23/08/2023, दिन बुधवार को जारी किया।

इसरो के पूर्व प्रमुख के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति के द्वारा तैयार एनसीएफ में यह भी शामिल किया गया है कि स्कूल बोर्ड उचित समय में ‘माँग के अनुसार’ परीक्षा की पेशकश करने की क्षमता को भी विकसित करेंगे।

केन्द्रीय शिक्षा मंत्री ने कहा कि नई शिक्षा नीति (एनईपी) के अनुसार नया पाठ्यचर्या का ढाँचा अब तैयार कर लिया गया है और इसके आधार पर वर्ष 2024 के शैक्षणिक सत्र के लिए सम्बन्धित पाठ्यचर्या की तैयारियाँ पूर्ण कर ली गई हैं। उन्होंने बुधवार को ‘नेशनल ओवरसाइट कमेटी’ एनओसी एवं ‘नेश्नल सिलेबस एंड टीचिंग-लर्निंग मैटेरियल कमेटी’ एनएसटीसी की संयुक्त बैठक के दौरान एनसीएफ को राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधानएवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) को सौंप दिया।

छात्र अपनी रूचि के अनुसार कर सकेंगे विषय का चयन:- अब कक्षा 11वीं एवं 12वीं के लिए विषयों का चयन केवल कला, विज्ञान तथा वाणिज्य स्ट्रीम तक ही सीमित नही रहेगा अपितु छात्र-छात्राओं को अपनी रूचि के अनुसार विषयों का चयन करने का विकल्प भी उपलब्ध रहेगा।

लक्ष्य है कि छात्रों पर से बोर्ड एक्जाम के तनाव को कम करना

    एनसीएफ के अनुसार, छात्रों पर से बोर्ड परीक्षाओं के बोझ को विभिन्न कदमों के माध्यम से कम किया जा सकता है। बोर्ड की परीक्षा को पाठ्यक्रम के अनुरूप माध्यमिक स्तर पर छात्रों की क्षमताओं का मूल्यांकन भी किया जाना चाहिए। यह परीक्षाएं छात्रों के प्रदर्शन की वैद्य एवं विश्वसनीय तस्वीर को पेश करने वाली होनी चाहिए।

प्रदर्शन आधारित हो मूल्यांकन

    व्यवसायिक शिक्षा, कला शिक्षा, शारीरिक शिक्षा और सेहत एनसीएफ का एक अभिन्न अंग है अतः इन मामलों में मल्यांकन प्रदर्शन के आधार पर ही होना चाहिए। इसके अन्तर्गत सिफारिश की गई है कि मूल्यांकन, 75 प्रतिशत प्रदर्शन आधारित तथा 25 प्रतिशत मूल्यांकन लिखित परीक्षा पर आधारित होना चाहिए।

  • सभी बोर्डों को सेमेस्टर प्रणाली को अपनाने की सलाह दी गई है।
  • पाठ्यक्रम का बोझ कम करने के लिए तथ्यों के स्थान पर छात्र की क्षमताओं पर ध्यान केन्द्रित करने की सलाह दी गई है।
  • विज्ञान एवं अन्य विषयों के मूल्यांकन को प्रदर्शन आधारित किया जाए।

पाठ्य पुस्तकों की कीमतों में आयेगी कमी

    एनसीएफ के अनुसार, बोर्ड की परीक्षाएं महीनों के कोचिंग एवं रट्टा लगाने की क्षमता के मुकाबले छात्र-छात्राओं की समझ और उनकी दक्षता के स्तर का मूल्यांकन करेंगी। कक्षाओं में पाठ्य पुस्तकों को कवर करने की वर्तमान प्रथा से बचा जाएगा, जिससे पाठ्य पुस्तकों की कीमतों में भी कमी आयेगी।

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम का ढाँचा चार स्तरों में विभाजित किया जाएगाः- एनसीएफ का विभाजन चार सतरों पर किया गया है। इसमें पहला है बुनियादी स्तर, जिसके अन्तर्गत कक्षा तीन से लेकर कक्षा आठ तक के छात्र शामिल होंगे। इस दूसरा है तैयारी स्तर, जिसमें कक्षा आठ से लेकर कक्षा 11 तक के छात्रों को सम्मिलत किया जाएगा। तीसरा स्तर होगा मध्य स्तर, जिसमें 11 वर्ष से लेकर 14 वर्ष तक के छात्र होंगे और चौथा स्तर होगा माध्यमिक स्तर जिसमें 14 वर्ष से लेकर 18 वर्ष तक के छात्र-छात्राओं को शामिल किया जाएगा।

                                                                       जैसा बीज, उसीके अनुरूप फल

    एक पिता के दो पुत्र थे, जिनमें से एक ने अपने व्यापार को बढ़ाते-बढ़ाते काफी उन्नति की और वह आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होकर आनंद पूर्वक अपने जीवन को व्यतीत करने लगा। वहीं उसके दूसरे पुत्र को उसके व्यापार में घाटा आने से उसके परिवार के सामने दो समय के भोजन की व्यवस्था करने में भी कठिनाईयाँ आने लगी। जिसके चलते उसका ईश्वर पर से विश्वास भी डगमगाने लगा।

    इसी बीच, एक दिन वह गंगा तट पर स्थित एक संत के आश्रम में जा पहुँचा। संत महाराज को प्रणाम करने के बाद उसने उनसे कहा कि महाराज मै तो इस परिणाम पर पहुँचा हूँ कि ईश्वर केवल एक कल्पना मात्र ही है और यदि वह है भी तो फिर वह पक्षपाती है। वह किसी को सुख देता है तो किसी को अपार दुख् भी देता है।

    इसके बाद वह संत महाराज उसे अपने बागीचे में लेकर गए, जहाँ पर एक ही खेत में गन्ना, चिरायता, चमेली के फूल और गुलाब के पौधे लगे हुए थै। संत ने उसे समझाया कि भाई, यहाँ देखो एक ही जमीन पर एक ओर तो मीठा गन्ना है, तो वहीं दूसरी ओर कड़वे पत्ते वाला चिरायता भी लगा हुआ है। यहाँ चमेली के पौधें अपनी सुगन्ध बिखेर रहे हैं तो दूसरी ओर गुलाब के काँटे भी भय पैदा कर रहे हैं।

    अब इस भिन्नता के लिए इन्हें पैदा करने वाली जमीन का कोई दोष नही है, अपितु इस जमीन में जैसा बीज बोया गया उसी के अनुरूप ही फल प्राप्त हुए। ठीक इसी प्रकार से सुख एवं दुख के लिए परमपिता परमेश्वर जिम्मेदार नही बल्कि हमारे कर्म और संस्कार ही जिम्मेदार होते हैं। संत महाराज के ऐसे वचनों को सुनकर उस व्यक्ति का मन एक बार फिर से ईश्वर के प्रति श्रद्वानत हो उठा।