महंगे गेंहूँ के पीछे की वास्तविक कथा

                                                        महंगे गेंहूँ के पीछे की वास्तविक कथा

                                                                                                                      डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा

                                                         

    विश्व के दो सबसे बड़े गेंहूँ निर्यातक देश युद्व में संलग्न है। रूस के द्वारा यूक्रेन से गेंहूँ का निर्यात रोकने के लिए प्रयास दोगुने कर दिए गये है। फरवरी 2022 में युद्व के शुरू होने के बाद अब भी युद्व से पहले की तुलना में कम ही हैं। यूक्रेन में गेंहूँ की खेती करने वाले कुछ किसान युद्व में शामिल हो गय, परन्तु अभी भी जो कुछ बचे हुए हैं, वे रूसी हमलों के उपरांत भी गेंहूँ की खेती ही कर रहे हैं।

    इस प्रकरण के चलते विश्व का सबसे बड़ा गेंहूँ निर्यातक देश रूस अब अलग-थलग सा पड़ चुका है, और पिछले दिनों वह यूक्रेनी अनाज को काला सागर के माध्यम से निर्यात करने की अनुमति प्रदान करने वाले समझौते से भी पीछे हट गया है। केवल इतना ही नही, गत सप्ताह रूस ने डेन्यूब नदी के किनारे स्थित यूक्रेनी अनाज भण्ड़ारों एवं गोदामों पर हमला करने के लिए ड्रोन् का उपयोग किया था, इन अनाज भण्ड़ारों एवं गोदामों का उपयोग यूक्रेन गेंहूँ का निर्यात करने के लिए करता है।

इन सबके बीच, शिकागो की एग्रीसोर्स कम्पनी के अध्ययक्ष डेन बासे ने बताया कि पिछले सप्ताह गेंहूँ की कीमतें बढ़ाई गई थी, जो कि इस आशंका के चलते हुआ था कि गेंहूँ का निर्यात करने वाले भारत को भी शीघ्र ही इसे आयात करना पड़ेगा। जबकि गेंहूँ की इस मूल्य वृद्वि का रूस-यूक्रेन के युद्व से कोई लेना-देना नही है।

    हमारी वेबसाईट के प्रस्तुत लेख में गेंहूँ के मूल्यों में उछाल एवं गिरावट में सट्टेबाजी की भूमिका को रेखाँकित करने का प्रयास किया गया है, चूँकि यह विषय विवास्पद है तो यह आर्थिक दृष्टि से दिलचस्प भी है। मैंसाचुसेट्स विश्वविद्यालय, एमहर्स्ट की अर्थशास्त्री जयति घोष लिखती हैं कि वर्ष 2022 में गेंहूँ की कीमतों में वृद्वि के लिए यूक्रेन पर रूस द्वारा किए गए हमलों को दोष देना एक तरह से गुमराह करने के जैसा प्रयास ही होगा।

                                                  

गेंहूँ की कीमतों में आए उछाल पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि विश्व के चार बड़े अनाज के व्यापारियों ने वर्ष 2022 में काफी पैसा कमाया। घोष ने बताया कि वर्ष 2022 के बसंत काल में आया गेंहूँ की कीमतों में उछाल का बाकी दुनिया पर गहरा प्रभाव पड़ा। जिसके तहत बहुत से गरीब लोगों को ऊँची कीमतों पर ही गेंहूँ खरीदने के लिए विवश होना पड़ा। ऐसे में घोष केवल एक अकेली अर्थशास्त्री नही हैं जो कि गेंहूँ की कमीतों में आए इस उछाल के लिए सट्टेबाजी को ही दोष देती हैं।

    मई, 2022 में एक गैर-लाभकारी खोजी समाचार संस्थान लाइटहाउस की रिपोर्ट ‘द हंगर प्रोफिटियर’ शीर्षक के अन्तर्गत एक आलेख का प्रकाशन किया था, जिसमें कहा गया था कि जहाँ एक ओर दुनियाभर में लाखों लोगों को भूख का सामना करना पड़ रहा है तो वहीं दूसरी ओर गेंहूँ की बढ़ती कीमतों से लाभ कमाने के फेर में सट्टेबाजों ने वस्तु बाजार में तहलका मचा दिया।

    गरीबों के लिए गेंहूँ की ऊँची कीमतों के लिए घोष की चिंताओं पर तो सहमत हुआ जा सकता है। परन्तु यह कहानी लालची सट्टेबाजों और जरूरतमंद उपभोक्ताओं की तुलना कहीं अधिक जटिल है। इसके लिए हमें आँकड़ों पर गौर करना होनाः वर्ष 2022 के बसंत के मौसम में सट्टेबाज गेंहूँ की ऊँची कीमतों पर दाव लगा रहे थे, परन्तु अब वे गेंहूँ की कम कीमतों पर दाव लगा रहे हैं।  यह प्रकरण लोगों की इस धारणा को को कमजोर करता है कि सट्टेबाज सदैव ऊँची कीमतों की ही वकालत करते रहे हैं। घोष ने बताया कि वर्ष 2022 के बसंत मौसम में गेंहूँ की कीमतों में वृद्वि का कोई औचित्य नही था, क्योंकि उस समय बाजारों में गेंहूँ की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में थी।

                                                          

    देखा जाए तो उनकी बात भी बिलकुल सही है कि गेंहूँ की कोई कमी नही थी, परन्तु केवल सट्टेबाज ही नही अपितु बहुत से अन्य लोग भी गेंहूँ की कमी होने की आशंका को लेकर चिंति थे। समुद्री बीमाकर्ताओं ने काला सागर के रास्ते गेंहूँ लेकर जाने वाले जहाजों का बीमा करने से मना कर दिया। उस समय यह प्रतीत हो रहा था कि अब रूस के गेंहूँ के निर्यात में कटौति कर दी जाएगी। जबकि रूसी राष्ट्रपति पुतिन परमाणु हथियारों के उपयोग करने की अनुमति दे रहे थे, जिससे पूरी दुनिया में उथल-पुथल मच जानी तय थी।

इलिनोड्स विश्वविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्री स्कॉट इरविन ने बताया कि ‘ऐसे असाधारण और अनिश्चितता वाले माहौल में यह कोई आश्चर्य की बात नही है कि गेंहूँ की कमीतें अपने बहुत ऊँचे स्तर पर पहुँच गई’ क्योंकि बाजार यह पता लगाने का प्रयास कर रहा था कि इसके निहितार्थ क्या होंगे।’

                                                                 

गेंहूँ की कीमतें उस समय स्थिर हो पाई जब यह स्पष्ट हो गया कि गेंहूँ में गेंहूँ की फसल बम्पर हुई है, जिसे निर्यात करने की अनुमति भी दी जाएगी और इसके साथ ही यूक्रेन को काला सागर के रास्ते अनाज के निर्यात को अनुमति प्रदान करने वाली पहल पर हस्ताक्षर कर दिए गए।

अमेरिकी कृषि मंत्रालय के मुख्य अर्थशास्त्री सेठ मेयर ने कहा कि ‘‘सट्टेबाज बाजारों में एक उपयोगी भूमिका का निर्वहन करते हैं’’। बाजार अब जोखिम एवं राशन की आपूर्ति से निपटने की कोशिश कर रहा है। सट्टेबाज बाजार को संकेत देते हैं कि यदि कीमतें बढ़ रही हैं तो आप उत्पादन को बढ़एं।

इसके अलावा सट्टेबाज वस्तुओं को खरीदकर कीमतों के बढ़ने पर स्वतः ही मुनाफा नही कमाते हैं, यदि बुलबुला फूटता है तो उन्हें अधिक कीमत पर खरीदी गई वस्तु को कम मूल्य पर बेचने के लिए भी बाध्य होना पड़ सकता है। अतः यह एक जोखिमों से भरा व्यवसाय है। बावजूद इसके अनाज के बड़े व्यापारियों को भी इससे पूरी तरह से बरी नही किया जा सकता है। ये व्यापारी भी केवल कुछ हाथों को मजबूत करने की प्रवृति का पोषण करते हैं। असल में वे लोग व्यापार के अलावा और भाी बहुत कुछ करते हैं।

अनाज का भण्ड़ाण एवं जहाज से उसका परिवहन और उसे प्रसंस्करण की व्यवस्था को भी अंजाम यही वर्ग देता है। इसमें चार बड़े समूह इस वक्त विश्व बाजार पर पूरी तरह से हावी हैं जिन्हें उनके नाम के पहले अक्षर के आधार पर एबीसी और डी समूह का नाम दिया जा सकता है। इनमें आर्चर डेनियल मिडलैण्ड, बंज, कारगिल और लुई ड्रेफस है।

इसके सम्बन्ध में घोष ने तर्क दिया कि चतुर व्यापारियों के द्वारा युद्व की आशंका को पैदा किया गया और गेंहूँ की कमीतों में वृद्वि की और इससे अकूत धन कमाया और खुदरा निवपेशकों का उपयोग कर पैसा कमाया। इस तरीके से उन्होंने खुदरा निवेशकों एवं उपभोक्ता दोनों को ही हानि पहुँचाई। घोष् कमी की गम्भीर चेतावनियों को प्रसारित करने के लिए मीडिया को भी दोषी ठहराती हैं, जो कि सट्टेबाजों के हाथों में ही खेल रही थी।

                                                            

इसके सापेक्ष यह कहना ही अधिक उचित रहेगा कि पिछले वर्ष फरवरी-मार्च में अनाज की कीमतों पर युद्व के प्रभावों को लेकर केवल पत्रकार ही चिंतित नही थे। यह कहना भी सही नही है कि सट्टेबाज आर्थिक रूप से मूल्यवान अवधि के लिए मूल्य को एक विशेष राशि तक बढ़ा सकने में सक्षम है। परन्तु यह अवश्य ही कहा जा सकता है कि इन बड़ी कम्पनियों ने बाजार के ज्ञान को अपनी विशषता के आधार पर एक कहानी बनाई और इसे उन्होंनें बाजार की मानक प्रक्रिया का नाम दिया और लोगों ने इस पर भरोसा भी कर लिया।

अमेरिका कृषि विभाग के द्वारा जारी किए गए आँकड़ों पर गौर करने की भी आवश्यकता है, जिससे कि लोग जानकार बने और इन कम्पनियों की ‘मानक प्रक्रियाओं’ के पीछे छिपी असली कहानी को समझ पाएं। इसके बाद अब इस समाधान को स्वीकार करने में अर्थर्शािस्त्रयों को भी कोई हिचक नही होगी।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभागए सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।