पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले पौधों की 62 प्रजातियाँ जल-संकट में भी रहती हैं सुरक्षित

                                      पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले पौधों की 62 प्रजातियाँ जल-संकट में भी रहती हैं सुरक्षित

                                                           

‘‘इनमें जल-संकट का प्रभाव नही होता, जिनमें से 16 प्रजातियाँ हैं स्वदेशी’’

    भारतीय वैज्ञानिकों के दल ने पश्चिमी घाट (पर्वत श्रंखला) के अन्तर्गत पौधों की 62 ऐसी प्रजातियों की खोज की है, जो गम्भीर जल-संकट के दौरान भी जीवित रहने में सक्षम हैं। पौधों की इन प्रजातियों को इनकी इसी विशेषता के कारण इन्हें जल-संकट का सामना करने के योग्य संवहनी पौधों अर्थात डेसीकेशन टोलरेन्ट वैस्कुलर (डीटी) प्लांट्स प्रजातियों के अन्तर्गत वर्गीकृत किया गया है।

    ज्ञात हो कि पश्चिमी घाट एक पर्वत श्रंखला है जो कि भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिमी तट के समानांतर फैली हुई है, जिसका विस्तार मुख्य रूप से गुजरात से लेकर महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक एवं तमिलनाड़ु से होते हुए केरल तक है। इसे सह्याद्रि पर्वत श्रंखला के नाम से भी जाना जाता है और यह अपनी जैव-विद्यिता के लिए भी एक विशिष्ट पहिचान रखती है और यूनेस्को के द्वारा भी इस पर्वत श्रंखला को विश्व धरोहर के रूप में घोषित किया गया है।

भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने की जारी जानकारी

इसके सम्बन्ध में भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के द्वारा जारी की गई जानकारी के माध्यम से ज्ञात होता है कि सूखे से प्रभावित नही होने वाले पौधों की 62 प्रजातियों में से लगभग 16 प्रजातियाँ भारतीय मूल की ही हैं। इनमें से 12 प्रजातियाँ तो ऐसी हैं जो कि पश्चिमी घाट के बाहरी भागों में ही पाई जाती हैं।  

पुनर्जीवित हो जाते हैं यह पौधें

                                                          

    आगरकर शोध संस्थान (एआरआई), पुणे के वैज्ञानिकों ने बताया कि पौधों की यह प्रजातियाँ सूखे या पानी की गम्भीर एवं भीषण स्थिति का सामना करने में सक्षम होती हैं। पौधों की यह प्रजातियाँ अपने अंदर उपलब्ध पानी की 95 प्रतिशत मात्रा के समाप्त हो जाने के बाद भी दोबारा से पानी के प्राप्त हो जाने के बाद पुनर्जीवित भी हो सकती हैं। सूखे की स्थिति में पौधे हाइवरनेशन की स्थिति में चले जाते हैं और दोबारा से पानी के प्राप्त होने के बाद फिर से हरे-भरे हो जाते हैं।

अपनी इस अनूठी क्षमता के चलते यह प्रजातियाँ ऐसे शुष्क एवं प्रतिकूल वातावरण में भी जीवित रह पाने में सक्षम होती हैं, जिसके अन्तर्गत अधिकतर पौधे जीवित नही रह पाते हैं।

इस प्रकार के पौधों का मिलना अपने आप में एक चमत्कार

                                                             

    इन वैज्ञानिकों के अनुसार पश्चिमी घाट एक जैव-विविद्यता सम्पन्न क्षेत्र होने के चलते एक प्रमुख हॉटस्पॉट भी है। इस क्षेत्र में पौधों और जीव-जन्तुओं की अनेक दुर्लभ प्रजातियों को पाया जाता है। इन प्रजातियों में से कुछ प्रजातियाँ तो ऐसी भी हैं कि जिन्हें पूरी दुनिया में कहीं ओर नही पाया जाता है।

    यद्पि इस क्षेत्र में भारी वर्षा होती है तो इस क्षेत्र में इस प्रकार की प्रजातियों का पाया जाना अपने आप में किसी चमत्कार से कम नही है। इसके सम्बन्ध में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पौधे प्रमुख रूप से उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में सतह से उभरे चट्टानी भूभागों में पैदा हो जाते हैं। हालांकि भारत में अभी तक डीटी पौधों का अध्ययन अपेक्षाकृत कम ही किया गया है।

                                                       

कई फलदार पौधे भी शामिलः- इन सब प्रजातियों में से लगभग 20 प्रतिशत छोटे फलदार पौधे हैं जो कि विटामिन-सी के समेत अन्य विभिन्न प्रकार के न्यूट्रिऐंट्स से भी भरपूर होते हैं। इन पौधों की लम्बाई दो-ढाई फिट से लेकर मध्यम आकार के वृक्षों के आकार के जितनी होती है।

                                                     खरीफ की फसलों के लिए लाभप्रद है यह बारिश

                                                   

    अभी कुछ दिनों से जारी बारिश खरीफ मौसम की फसलों के लिए अत्यन्त लाभकारी सिद्व होगी। सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ0 आर. एस. सेंगर ने बताया कि इस बारिश से खरीफ की विभिन्न फसलों जिनमें धान, कपास, ज्वार एवं बाजरा आदि के समेत दलहनी फसलों को भी विशेष लाभ प्राप्त होगा।

    डॉ0 सेंगर ने बताया कि यह बारिश विशेषतौर पर धान की फसल के लिए सोने पर सुहागा के जैसी है। उन्होने बताया कि कपास की फसल में आवश्यकता एवं फसल की अवस्था के अनुसार ही सिंचाई करनी चाहिए और अधिक बारिश के बाद खेत से जल निकासी का उचित प्रबन्ध करना चाहिए अन्यथा अतिरिक्त जल के होने से कपास की फसल पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

किसान कहिन

                                                     

    गाँव जंगेठी के किसान सतीश ने बताया कि धीमी-धीमी बरसात के होने से उनकी धान की फसल लहलहा उठी है। यह बारिश धान की फसल के लिए बहुत ही लाभदायक है। इसके अलावा यह बारिश अन्य फसलों के लिए भी अत्यन्त लाभकारी सिद्व होगी और बारिश के चलते किसान भाई भी काफी खुश नजर आ रहे हैं।

                                                

    गाँव जाटौली के किसान होराम सिंह ने बताया कि बारिश के नही होने से सूखे के स्थिति का सामना करना पड़ रहा था। परन्तु अब बारिश के होने से अब फसलों में दोबार से रौनक लौट आई है। यह बारिश समस्त फसलों के लिए वरदान की तरह है और अब इसके कारण से लग रहा है कि इस बार फसलों का उत्पादन भी अच्छा ही रहेगा।

                                                      कपास की फसल की देखभाल करना भी आवश्यक

                                                    

    डॉ0 आर. एस. सेंगर ने कहा कि बारिश के बाद फसलों में बीमारियों के आने की आशंका बढ़ जाती है। कपास की फसल में भी इस महीने गुलाबी सूँडी नामक रोग दिखाई देने के आसार हैं। इसको देखते हुए किसानों को अपनी कपास की फसल की निगरानी बढ़ा देनी चाहिए। इसके लिए जिन खेतों में कपास की फसल 100 दिन से ऊपर की हो चुकी है, तो इसके लिए 13:0:45 के दो पैकेट प्रति एकड़ की दर से दो स्प्रे 10 या 15 दिन के अन्तराल पर करना उचित रहता है।

    वहीं जिन खेतों में कपास की फसल 100 दिन से कम अवस्था की है तो किसान भाई इसके लिए जिंक और यूरिया का स्पे भी कर सकते हैं। इस स्प्रे के लिए 25 प्रतिशत यूरिया तथा 0.5 प्रतिशत जिंक (21 प्रतिशत वाला) का घोल बनाकर अपनी फसल पर स्प्रे करें। यदि खेत की रेतीली मृदा में मैग्नीशियम की कमी के लक्षण सामने आते हैं तो 0.5 प्रतिशत मैग्नीशियम सल्फेट का छिड़काव भी अवश्य ही करना चाहिए।

                                                                

    ड्रिप विधि से लगाई गई कपास की फसल में ड्रिप के माध्यम से प्रति सप्ताह घुलनशील खाद, जिसमें दो पैकेट 12:61:0, तीन पैकेट 13:0:46, 6 किग्रा. यूरिया और 100 ग्राम जिंक प्रति एकड़ की दर से कम से कम 10 सप्ताह तक अवश्य प्रयोग करें। गुलाबी सूँडी की निगरानी के लिए दो फैरोमोन ट्रैप प्रति एकड की दर से लगाएं और इनमें फसने वाले गुलाबी सूँडी के पतंगों की गिनती तीन दिन के अंतराल पर करते रहना चाहिए। यदि फैरोमोन ट्रैप में कुल 4 पतंगे प्रति ट्रैप तीन दिनों में आते हैं तो फसल पर कीटनाशक द्रव्य के छिड़काव की आवश्यकता है।