पौधों का स्वास्थ्य एवं सुरक्षा

                                                                       पौधों का स्वास्थ्य एवं सुरक्षा

                                                                                                                    डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा

                                                                

फसलें विश्व खाद्य सुरक्षा का पर्याय हैं। इसमें कोई सन्देह नही कि फसलें हैं तो खाद्य पदार्थ है, और खाद्य पदार्थ हैं तो हम हैं, पृथ्वी पर जीवन है। जिस प्रकार जल के बिना जीवन संभव नहीं है ठीक उसी प्रकार भोजन के बिना भी जीवन संभव नहीं है। पृथ्वी का क्षेत्रफल सीमित है परन्तु इस पर जनसंख्या के बढ़ने की सीमा असीमित है। यदि जनसंख्या इसी दर से बढ़ती रही तो वह दिन दूर नहीं जब धरती पर सबसे कीमती बस्तुएं खाद्य पदार्थ ही नही होंगे।

बढ़ते औद्योगिकीकरण तथा नगरीकरण के कारण कृषि योग्य भूमि साल दर साल घटती ही जा रही है और इस बढ़ोतरी की कोई सीमा भी नहीं है। उधर दूसरी ओर पृथ्वी पर जनसंख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। ऐसी स्थिति में मानव जाति के पास एक ही विकल्प रह जाता है और वह है फसल की पैदावार बढ़ाना और फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए हमारी फसलों का स्वस्थ रहना अति आवश्यक है।

                                                       

यही कारण है कि सभी देशों ने मिलकर इस गंभीर स्थिति का संज्ञान लिया और वर्ष 2020 को अंतर्राष्ट्रीय पादप स्वास्थ्य वर्ष (International Year of Plant Health) घोषित किया। यहाँ पादप स्वास्थ्य तथा फसल स्वास्थ्य शब्दों का एक ही अर्थ है यानि दोनों शब्द एक दूसरे के पर्याय है।

पादप-स्वास्थ्य के दायरे में वे सब उपाय आते हैं जो फसलों की उपज एवं गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किये जाते हैं। क्योंकि किसी भी स्वस्य फसल या पौधे से हम यह आशा करते हैं कि उससे अधिक से अधिक उपज प्राप्त हो और यह उपज उत्तम गुणवत्ता युक्त हो यानि स्वस्थ फसल उत्पाद व्यापक दृष्टिकोण से पादप स्वास्थ्य की परिभाषा में सुरक्षा, संरक्षण, पोषण एवं गुणवत्ता का एक प्रमुख अंग हैं, परन्तु अंतर्राष्ट्रीय पादप-स्वास्थ्य वर्ष 2020 घोषित करने के केंद्र में पारिस्थितिकी संतुलन (Ecological Balance) बनाए रखते हुए पादप सुरक्षा (Plant Protection) है। अतः इस लेख के अन्तर्गत हम इसी दृष्टिकोण से इस स्थिती पर विचार करेंगे-

                                                           

फसलों के अनेक शत्रु होते हैं जो किसी न किसी रूप में उनके स्वास्थ्य को हानि पहुंचाते हैं। इन शत्रुओं को हम दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं। जिनमें पहली जैविक और दूसरी अजैविक। जैविक यानि वे सब चीजें जिनमें जान है, अर्थात जो जीवित हैं, जैसे मनुष्य, पशु-पक्षी, जानवर, चूहे, कीड़े-मकोड़े, खरपतवार, बैक्टीरिया, फंगस, वाइरस और नेमेटोड आदि। अजैविक शत्रुओं में मुख्य रूप से प्राकृतिक आपदाएं होती है, जैसे अत्यधिक गर्मी, सर्दी, वर्षा, ओलावृष्टि, बाढ़, आंधी-तूफान एवं भूकंप आदि। दोनों प्रकार के शत्रुओं से फसलों को बचाने के लिए सभी देशों के सरकारें कुछ न कुछ उपाय करती रहती हैं तथा इसके लिए नियम, कानून भी बनाती हैं।

जैविक और अजैविक कारकों से सुरक्षा के लिए हमारे देश में भी अनेक नियम और कानून उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए, प्राकृतिक अथवा मानव-जनित आपदाओं से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के अंतर्गत स्थापित राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों और वनस्पतियों पर होने वाले दुष्प्रभावों से निपटने के लिए नेशनल इनोवेटिव्स ऑन क्लाइमेट रेविलिएंट टेक्नोलॉजीज (NICRA), फसल को किसी भी प्रकार से हानि या नष्ट होने पर मुआवजे के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना आदि ऐसे अनेक प्रावधान है। ये सभी पहलू परोक्ष या अपरोक्ष रूप से फसल-स्वास्थ्य से जुड़े हुए हैं और इन सबका इस लेख में वर्णन करना लेख के आकार की निर्धारित सीमा तथा अंतर्राष्ट्रीय पादप-स्वास्थ्य वर्ष 2020 की विषय-वस्तु पर केन्द्रित रहने के कारण संभव नहीं है, इसलिए इस लेख में हम पादप स्वास्थ्य के केवल सुरक्षात्मक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय नियमों व कानूनों पर ही विचार करेंगे।

उत्तम स्वास्थ्य बनाये रखने के बारे में अंग्रेजी की एक प्रचलित कहावत है, “प्रिक्वेंशन इज बैटर दैन क्यौर“। अतः फसलों के स्वास्थ्य को कीट-पतंगों और रोगों तथा पर्यावरण और पारिस्थितिकी को इन कीट-पतंगों तथा रोगों को नष्ट करने के लिए प्रयुक्त जहरीले पेस्टिसाइड्स से बचाने के मामले में भी यही कहावत चरितार्थ होती है। यानी विदेशों से फीट-पतंगों व रोगाणुओं को देश में प्रवेश करने से रोकना और जो कीट-पतंगे व रोगाणु देश में वर्तमान में मौजूद हैं उन्हें अंतिम उपाय के रूप में पेस्टिसाइड्स के सुरक्षित एवं समुचित प्रयोग से नष्ट करना।

                                                                       

विदेशों से आने वाले कीड़े-मकोड़ों के नियंत्रण में हर साल किसानों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा पेस्टिसाइड खरीदने में ही चला जाता है। ऊपर से पेस्टिसाइड के हानिकारक प्रभावों से तरह-तरह की स्वास्थ्य एवं पर्यावरण समस्याएं भी पैदा होती हैं।

इसी प्रकार की समस्याओं के निराकरण के लिए अनेक राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय नियम व कानून बनाये गए हैं। ये कानून मुख्यतौर पर दो श्रेणियों में विभाजित किये जा सकते हैं, एक, प्रिवेंटिव जिनके अंतर्गत क्वारंटाइन तथा दूसरे क्योरेटिव जिनके अंतर्गत पेस्टिसाइड संबंधी कानून आते हैं। दोनों श्रेणियों के नियम कानूनों का विवरण इस प्रकार हैः

  1. (i) क्यारंटाइन के क्षेत्र में भारतीय नियम कानून

फसलों और पेड़-पौधों के स्वास्थ्य को कीट-पतंगों, रोगाणुओं तथा फंगस आदि से बचाव तथा विदेशों से इन के आयात को रोकने के बारे में मुख्य भारतीय नियम व कानूनों का विवरण नीचे दिया जा रहा है।

(i) डेस्ट्रिक्टटिव इनोक्ट एंड पेस्ट एक्ट 1914: यह एक्ट 1914 में बना एवं इसके द्वारा, दूसरे देशों से कीट-पतंगों, रोगाणुओं तथा फंगस आदि के भारत में नियंत्रित प्रवेश अथवा रोक के प्रावधानों को लागू किया जाता है। इस एक्ट में कुल 6 सेक्शन हैं, जिनमें अन्य प्रावधानों के अतिरिक्त केन्द्र तथा राज्य सरकारों को कानून बनाने की शक्ति प्रदान की गयी है कि वे किसी भी ऐसी वस्तु के आयात या एक राज्य से दूसरे राज्य में आने-जाने को नियंत्रित अथवा प्रतिबंधित कर सकते जिनके द्वारा देश में या किसी राज्य में किसी कोट-पतंगे या रोगाणुओं के प्रवेश के सम्भावना हो सकती है।

इन्हीं शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारत सरकार ने वर्ष 1944 में डोमेस्टिक क्वारंटाइन रेग्युलेशन 19 तथा वर्ष 2003 में प्लांट क्वारंटाइन (रेगुलेशन ऑफ इम्पोर्ट इन टू इंडिया) आर्डर-2005 भी जारी किये गये।

                                                                        

(ii) डोमेस्टिक क्वारेंटाइन रेग्युलेशन 1944: डिप एक्ट के अंतर्गत डोमेस्टिक क्यारंटाइन रेग्युलेशन 1944 जारी किया गया जिसका उद्देश्य देश अन्दर किसी रोग या कीड़े-मकोड़ों को एक राज्य से दूसरे राज्य में फैलने से रोकना है। हालांकि विभिन्न कारणों से इसका अनुपालन भारत में पूरी तन्मयता के साथ नहीं हो पाया है।

इतना सब कुछ होने के बाद भी नियमों और कानूनों में कमी और उनका कड़ाई से पालन न करा पाने के कारण किसी न किसी देश से प्रत्येक साल दो साल में कोई न कोई कौड़ा-मकोड़ा या बीमारी देश में प्रवेश कर ही जाती है और उसके बाद एक राज्य से दूसरे राज्यों में फैल जाती है, जिसके कारण पूरे देश के किसानों को इसका परिणाम भुगतना पड़ता है, और यही हमारी नियति बनी हुई है।

(iii) प्लांट क्वारंटाइन (रेगुलेशन ऑफ इम्पोर्ट इन टू इंडिया आर्डर-2003:

डिस्ट्रक्टटिव इन्सेक्ट एंड पेस्ट एक्ट-1914 (यथा संशोधित) के सेक्शन 3(i) के अंतर्गत जारी यह आर्डर 1 जनवरी 2004 से लागू हुआ है। इसमें नवम्बर 2018 तक 78 संशोधन हो चुके हैं। इन नियमों का मुख्य उद्देश्य विदेशों से सामान के साथ जाने-अनजाने में आने वाले कीड़े-मकोड़ों, फसल रोग-जनकों व बीमारियों को देश में प्रवेश करने से रोकना है। कृषि मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन डायरेक्टोरेट ऑफ प्लांट प्रोटेक्शन, क्यारंटाइन एंड स्टोरेज (DPPQ&S), फरीदाबाद, हरियाणा द्वारा इसके मुखिया प्लांट प्रोटेक्शन एडवाइजर टू द गवर्नमेंट ऑफ इंडिया (PPA) की निगरानी में इस एक्ट को लागू किया गया है।

इस एक्ट के अंतर्गत विदेशों से आयात किये जाने वाले सामान की देश में प्रवेश से पहले बंदरगाहों, हवाई अड्डों, तथा रेल या सड़क सीमाओं पर ही गहनता से जांच की जाती है तथा यदि किसी सामान में किसी संक्रमण की कोई सम्भावना होती है या पाया जाता है तो आवश्यकतानुसार उसको उपचारित करके ही अन्दर आने दिया जाता है। यदि यह सामान पेड़-पौधे या उनके कोई जिन्दा भाग है तो उन्हें पहले पोस्ट-एंट्री क्वारंटाइन नर्सरी (PQEN) में एक निश्चित अवधि के लिए उगाकर देखा जाता है कि उस पर किसी रोग का लक्षण तो नहीं उभर कर नही आया है। यदि वह पौधा रोग से ग्रसित होता है तो उसे वही नष्ट कर दिया जाता है।

निरोगी पाए जाने पर उसे आयात करने वाले व्यक्ति या संस्था को सौंप दिया जाता है। विदेशों से आने वाले अधिकांश जल, थल और वायु प्रवेश द्वारों ओर सीमाओं पर इस विभाग के अधिकारीं तैनात होते हैं जो आने वाले प्रत्येक कन्साइन्मेंट से की जांच करते हैं। इस आर्डर में कुल 10 शेड्यूल हैं। शेड्यूल 1 में उन 80 प्रवेश मार्गों ( 44 समुद्री पोर्ट, 3 हवाई अड्डे और 5 थल मार्ग), शेड्यूल 2 में 78 इनलैंड कंटेनर डिपो तथा शेड्यूल में उन 11 फौरन पोस्ट ऑफिसों को सूची है जहाँ से आयातित वस्तुओं की देश में प्रवेश की अनुमति है।

शेड्यूल ऐसे 15 पौधों की सूची हैं जिनका आयात, सूची में दिए गए देशों से प्रतिबंधित है। शेड्यूल 5 में उन 17 पौधों की सूची दी गयी है जिनका आयात सूची में दिए गए कुछ संस्थानों द्वारा कुछ शर्तों तथा एफिडेविट देने के पश्चात् स्वीकृत किया जा सकता है। शेड्यूल 5 में 685 पौधों की सूची है जिनका आयात अतिरिक्त घोषणा तथा विशिष्ट शर्तों के आधार पर किया जा सकता है। शेडयूल 7 में ये 300 पौधे हैं जिनके आयात के लिए पहले निर्यातक देश से फायटोसेनेटरी अथॉरिटी सर्टिफिकेट, प्लांट क्वारेंटाइन द्वारा इंस्पेक्शन तथा जरूरत पड़ने पर फ्यूमिगेशन करने के बाद ही देश में प्रवेश की अनुमति दी जा सकती है।

शेडयूल 8 में 81 खरपतवारों, 8 में विभिन्न कार्यों के लिए फीस, 10 में 49 परमिट प्रदान करने वाले संस्थानों की सूची दी गयी है। शेड्यूल 11 में पोस्ट-एंट्री क्वारंटाइन फैसिलिटी के सर्टिफिकेशन हेतु 45 इंस्पेक्शन अधिकारियों की सूची तथा शेड्यूल 10 में राष्ट्रीय पादप आनुवंशिकी संसाधन व्यूरो के जीन बैंक या परीक्षणों के लिए स्वीकृत 3 फसलों के बीजों की मात्रा निर्धारित की गई है। उपरोक्त सूचियों में उल्लेखित पौधों की संख्या जरूरत के अनुसार बदलती रहती है।

(1) अन्य सम्बंधित नियमः भारत में ट्रांस्जीनिक्स से सम्बन्धित समस्त क्रियाकलाप वर्ष 1989 से कानूनी नियमों के अंतर्गत नियंत्रित होते हैं। इनके विभिन्न पहलुओं को निम्नलिखित नियमों, विधानों व दिशानिर्देशों आदि द्वारा नियंत्रित किया जाता है- 

  • एन्वायरॉन्मेंट प्रोटेक्शन एक्ट-1986
  • रिकॉम्बिनेंट डी. एन. ए. सेफ्टी गाइडलाइन्स-1980 (यथा संशोधित-1984)
  • प्रोटेक्शन ऑफ प्लॉट वैरायटी एंड फार्मर्स राइट्स एक्ट-2001
  • नेशनल सीड पॉलिसी-2002
  • बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी एक्ट-2002
  • फॉरेन ट्रेड पॉलिसी-2006
  • फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्स एक्ट-2006

                                                                             

(II) कमेटियाँः पादप स्वास्थ्य सुरक्षा नियमों के कड़ाई से पालन करने हेतु देश में सम्बंधित सरकारी विभागों की समितियां भी कार्य करती है जैसे-

अ. रिव्यू कमेटी ऑन जेनेटिक मैनीपुलेशन्सः राष्ट्रीय स्तर पर क्रियाशील यह कमेटी बायोटेक्नोलॉजी विभाग के अंतर्गत आती है। यह जेनेटिकली मॉडिफाइड या ट्राजीनिक्स पर चल रही समस्त अनुसन्धान परियोजनाओं का अवलोकन करती है। यह ट्रांस्जीनिक्स पर अनुसन्धान, ट्रेनिंग आदि के लिए शोध करने के अभिलाषी संस्थानों में जाकर वहां की सुविधाओं का निरीक्षण करती है तथा संतुष्ट होने पर इम्पोर्ट परमिट प्रदान करने के लिए क्लीयरेंस प्रदान करती है राज्य तथा जिला स्तर पर भी इसी प्रकार की कमेटियां होती हैं जो ट्रांस्जीनिक्स पर चल रहे कार्यों पर निगरानी रखती है।

ब. रिकॉम्बिनेट डी.एन.ए. एडवाइजरी कमेटीः यह कमेटी बायोटेक्नोलॉजी विभाग के अंतर्गत कार्य करती है। वह जेनेटिकली मॉडिफाइड ओर्गेनिजम्स या ट्रांस्जीनिक्स के सुरक्षा पहलुओं पर निगरानी रखती है। ट्रान्जीनिक्स पर रिकॉम्बिनेंट रिसर्च उपयोग तथा उनके प्रयोग के सुरक्षात्मक पहलुओं पर सरकार को आवश्यक सलाह देती है। बायोटेक्नोलॉजी विभाग ट्रांस्जीनिक्स तथा रिकॉम्बिनेट डी.एन.ए. उत्पादों पर किये जाने वाले अनुसंधानों का अवलोकन, स्वीकृति, कार्यान्वयन तथा निगरानी करता है।

स. जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रेजल कमेटीः यह कमेटी भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग के अंतर्गत कार्य करती है। बायोटेक्नोलॉजी विभाग की तरह यह भी ट्रांस्जीनिक्स के प्रयोग पर अपनी सलाह देती है। अंतर यह है कि बायोटेक्नोलॉजी विभाग अनुसन्धान प्रयोगों को नियंत्रित करता है जबकि यह कमेटी ट्रांस्जीनिक्स के बड़े पैमाने पर व्यवसायिक प्रयोग व प्रबंधन को नियंत्रित करती है।

द. इंस्टीट्यूट बायोसेफ्टी कमेटीः यह कमेटी सम्बंधित अनुसन्धान संस्थान स्तर पर आयातित ट्रांस्जीनिक्स की सुरक्षा पहलुओं पर अपनी एक्सपर्ट राय देती है। इन ऑर्गेनिजम्स पर अनुसन्धान करने वाले प्रत्येक अनुसन्धान संस्थान सरकार के साथ संपर्क बनाये रखने के लिए नोडल पॉइंट का कार्य भी करती है ।

1 (B) क्वारंटाइन के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय नियम-कानून अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्वारंटाइन के क्षेत्र में मुख्य तौर पर तीन कानून हैं जो अलग-अलग देशों द्वारा आपस में अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के अंतर्गत बनाये गए हैं। सदस्य देश इन कानूनों को मानने के लिए बाध्य होते हैं ।

                                                                              

(i) एशिया एण्ड पेसिफिक प्लांट प्रोटेक्शन कमीशनः वर्ष 1956 में गठित इस कमीशन के 5 देश सदस्य हैं। इस कमीशन का मुख्य उद्देश्य एशिया एण्ड पेसिफिक देशों के लिए रीजनल प्लांट प्रोटेक्शन एग्रीमेंट्स करवाना, उनके बीच संपर्क द्वारा तालमेल स्थापित करना तथा रीजनल प्लांट प्रोटेक्शन प्रणाली को बढ़ावा देना और उसे गठित करना है। यह सदस्य देशों में स्थानीय स्तर पर प्लांट प्रोटेक्शन स्थिति का पुनर्वलोकन करता है तथा उसके द्वारा प्लांट प्रोटेक्शन उपायों को विकसित करने में सहायता करता है।

इन उपायों में रीजनल लेवल पर फायटोसेनेटरी उपायों के लिए मानक विकसित करना, इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट व पेस्टिसाइड के वितरण और उपयोग के नियमों के पालन को प्रोत्साहित करना सदस्य देशों के बीच प्लांट प्रोटेक्शन का एक प्रभावी वातावरण उत्पन्न करना, देशों द्वारा अपने फायटोसेनेटरी मानक विकसित करना तथा वेबसाइट द्वारा सूचना के आदान-प्रदान की सुविधा उपलब्ध करना शामिल हैं।

(ii) डब्ल्यू. टी. ओ. एग्रीमेंट आन एप्लीकेशन ऑफ सेनिटरी एंड फायटो- सेनेटरी मेजर्स (SPS Agreement): एस. पी. एस. एग्रीमेंट के नाम से प्रचलित इस एग्रीमेंट का उद्देश्य खाद्य सुरक्षा, पादप एवं जानवरों की सुरक्षा के मुद्दों पर विभिन्न देशों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाना है। यह एग्रीमेंट अपने सेक्शन 3 के द्वारा सभी देशों को खाद्य सुरक्षा, पादप एवं जानवरों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके लिए, विभिन्न क्षेत्रों में तीन अंतर्राष्ट्रीय मानक विकसित करने वाले संगठनों को चिन्हित किया गया है।

(क) खाद्य-सुरक्षा के लिए कोडेक्स एलीमेंटेरियस कमीशन

(ख) वर्ल्ड आर्गेनाइजेशन फॉर एनीमल हेल्थ एंड जूनोसिस

(ग) इंटरनेशनल प्लांट प्रोटेक्शन कन्वेंशन ऑन प्लांट क्वारंटाइन ऑफ़ पैस्ट

(iii) इंटरनेशनल प्लांट प्रोटेक्शन कन्वेंशन ऑन प्लांट क्वारंटाइन ऑफ़ पैस्ट (IPPC): यह समझौता 1950 में लागू हुआ था और वर्तमान में 188 देश इसके सदस्य हैं, जिनमें से भारत भी एक है। प्लांट हेल्थ के क्षेत्र में यह एक अंतर्राष्ट्रीय स्टैण्डर्ड सेटिंग बॉडी है जिसके बनाये स्टैंडर्ड्स को सदस्य देश अपनाते हैं या उनके दिशा-निर्देशों के अनुसार खुद के स्टैंडर्ड्स तैयार करते हैं। इस संस्था ने अब तक कुल 42 स्टैंडर्ड्स जारी किये है। इन्हीं स्टैंडर्ड्स का अनुपालन करते हुए भारत ने भी अब तक आवश्यकतानुसार 22 स्टैंडर्ड्स बनाये हैं।

इस संस्था के प्रमुख कार्य हैं-

(क) पूरे विश्व में प्लॉट प्रोटेक्शन की स्थिति का अवलोकन करना

(ख) नये क्षेत्रों में कीट-पतंगों व बीमारियों के प्रसार को रोकने के लिए उपायों की पहचान करना और उसके लिए मानक विकसित करना तथा मतभेद व आपसी विवादों के समाधान के लिए नियम व कानून बनाना।

(ग) रीजनल प्लांट प्रोटेक्शन ऑगेनाइजेशन्स की मान्यता के लिए दिशा-निर्देशों को अपनाना।

(घ) कन्वेंशन में उठे मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।

(अ) कन्वेंशन ऑन बायोलाजिकल डायवर्सिटी (CBD): यह समझौता 5 जून 1992 को 168 देशों द्वारा हस्ताक्षरित किया गया था और वर्तमान के 106 देश इसके सदस्य है। इसके दो मुख्य उद्देश्य है- पहला, इसके अवयवों के सतत् उपयोग और दूसरा, आनुवंशिक संसाधनों द्वारा प्राप्त लाभों की ईमानदारी के साथ उचित सहभागिता।

इस कन्वेंशन के दो सप्लीमेंट एग्रीमेंट भी हैं। एक तो नगोया प्रोटोकोल जो आनुवंशिक संसाधनों से की बेरोकटोक उपलब्धता तथा उनके द्वारा प्राप्त लाभों का ईमानदारी और उचित सहभागिता के साय उपयोग ’नगोया प्रोटोकोल’ 2014 में लागू हुआ था। दूसरा सप्लीमेंट ’कार्टाजीना प्रोटोकॉल के नाम से जाना जाता है।

                                                               

यह आधुनिक बायोटेक्नोलोजी द्वारा विकसित लिविंग मॉडिफाइड ऑर्गेनिजम्स (LKP) के सुरक्षित अंतर्राष्ट्रीय निर्यात और रखरखाव तथा उपयोग को करता है। यह प्रोटोकॉल वर्ष 2003 में लागू किया गया था। ज्ञात हो इन आर्गेनिजम्स को (GMO) के नाम से भी जाना जाता है, का मनुष्यों द्वारा उपयोग अथवा कीट-पतंगों के बॉयोलोजिकल कट्रोल में इनका उपयोग सदैव ही विवादों में रहा है।

2 (i) पेस्टिसाइड के क्षेत्र में भारतीय नियम-कानूनः पेस्टिसाइड एक कानूनी विषय है। पेस्टिसाइड्स का आयात, निर्माण, परिवहन, भण्डारण, वितरण, उपयोग बचे हुये या बेकार पेस्टिसाइड को फैंकना, उपचार के लिए छिड़काव आदि समस्त क्रियाएं कानूनी रूप से नियंत्रित होती है। उपरोक्त में से कोई भी कार्य कानून के बिना या उसका उल्लंघन करके नहीं किया जा सकता है। यह सब क्रियाएं एक एक्ट के द्वारा नियंत्रित होती है, जिसका नाम है ‘द इनसेक्टिसाइड एक्ट-1968’, जिसके प्रावधानों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

  • इंसेक्टिसाइड एक्ट-1968: यह एक्ट 1968 में लागू हुआ था इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य पेस्टिसाइड की उपरोक सभी क्रियाओं को कानूनी रूप से नियंत्रित करना है। 1968 से लेकर अब तक इसमें अनेक संशोधन हुए है। इसमें कुल 38 सेक्शन हैं। पहले 3 सेक्शन, एक्ट का नाम, उसके कार्यक्षेत्र तथा परिमाषा से सम्बंधित है। सेक्शन-4, में सेंट्रल इन्सेक्टिसाइड बोर्ड के गठन तथा उसके सदस्यों को नामित करने का प्रावधान है। वर्तमान में बोर्ड के सदस्यों की निर्धारित संख्या है, जिसमें सभी सम्बंधित संस्थानों के प्रतिनिधि होते हैं। प्रमुख विभागों में स्वास्थ्य, पर्यावरण कृषि, खाद्य, रसायन, पेट्रोलियम, परिवहन, भण्डारण आदि शामिल हैं।

सेक्शन-5, में रजिस्ट्रेशन कमेटी का प्रावधान है जो देश में पेस्टिसाइड निर्माण, आयत, बिक्री आदि के लिए रजिस्ट्रेशन करती है। इस कमेटी में कुल 6 सदस्य होते हैं। सेक्शन-6 से लेकर -11 तक बोर्ड और कमेटी की कार्य प्रणाली तथा उसके खिलाफ शिकायतें तथा अपील आदि की प्रक्रिया का वर्णन है। सेक्शन 12 से लेकर 15 तक लाइसेंसिंग ऑफिसर की नियुक्ति लाइसेंसिंग की प्रक्रिया लाइसेंसिंग ऑफिसर की शक्तियां, उसके खिलाफ शिकायतों का निपटारा, अपील आदि के नियम दिए गए हैं।

                                                                           

सेक्शन-16 में सेंट्रल इंसेक्टिसाइड लैब के स्थापित करने का प्रावधान है जो निदेशालय के मुख्यालय फरीदाबाद में स्थापित है। नकली तथा मिलावटी पेस्टिसाइड की टेसिं्टग के लिए यह अपीलेट है जिसका निर्णय अंतिम माना जाता है सेक्शन-17 व 18 कुछ पेस्टिसाइड के आयात, बिक्री आदि पर प्रतिबंधों के सेक्शन 19 में इंसेक्टिसाइड एनालिस्ट की नियुक्ति के प्रावधान दिए गए हैं। सेक्शन-19 से 23 तक इंसेक्टिसाइड इंस्पेक्टर की नियुक्ति, उनकी पावर काम करने के नियम तथा निर्माता द्वारा पेस्टिसाइड के निर्माण, भण्डारण आदि के स्थानों की जानकारी इंस्पेक्टर को देने की बाद्धयता का प्रावधान है।

सेक्शन-24 में एनालिस्ट की रिपोर्ट देने की विधि तथा 25 में नकली पेस्टिसाइड को जप्त करने का प्रावधान है। सेक्शन-26 से 33 तक पेस्टिसाइड पॉइजनिंग, पब्लिक सेफ्टी के कारण बिक्री पर रोक, रजिस्ट्रेशन के निरस्तीकरण, पेस्टिसाइड से सम्बंधित अपराध और उनकी सजा, अपराधी द्वारा बचाव में स्वीकृत साक्ष्य, मुकदमा चलाने की प्रक्रिया, अतिरिक्त पेनल्टी लगाने के लिए मजिस्ट्रेट की पावर तथा कम्पनियों द्वारा किये गए अपराध के निपटारे के नियमों का वर्णन है।

सेक्शन 93 से 37 तक केंद्र तथा राज्य सरकारों की पावर्स तथा सेक्शन 58 में इंसेक्टिसाइड के घरेलू तथा किसानों के द्वारा अपने खोतों में उपयोग करने आदि पर इस एक्ट के लागू नही होने का प्रावधान है। सेक्शन 26 से 39 तक पेस्टिसाइड पॉइजनिंग, पब्लिक सेफ्टी के कारण विक्री पर रोक, रजिस्ट्रेशन के निरस्तीकरण, पेस्टिसाइड से सम्बंधित अपराध और उनकी सजा, अपराधी द्वारा बचाव में स्वीकृत साक्ष्य, मुकदमा चलाने की प्रक्रिया, अतिरिक्त पेनल्टी लगाने के लिए मजिस्ट्रेट की पावर तथा कम्पनियों द्वारा किये गए अपराध के निपटारे के नियमों का वर्णन है।

सेक्शन 33 से 37 तक केंद्र तथा राज्य सरकारों की पावर्स तथा सेक्शन 38 में इंसेक्टिसाइड के घरेलू तथा किसान द्वारा अपने खेतों में उपयोग करने आदि पर इन एक्ट के लागू न होने का प्रावधान है। चूँकि यह एक्ट बहुत पुराना हो चुका है और आधुनिक परिवेश और परिस्थितियों में इसमें महत्वपूर्ण संशोधनों की आवश्यकता है, इसके स्थान पर पेस्टिसाइड मैनेजमेंट बिल सरकार के पास विचाराधीन है।

  • इंसेक्टिसाइड रूल्स 1971: द इसेक्टिसाइड एक्ट 1968 के सेक्शन 36 के अंतर्गत बने इन नियमों को 1971 में बनाया गया। इनका मुख्य उद्देश्य द इंसेक्टिसाइड एक्ट 1968 के विभिन्न प्रावधानों को साकार रूप में विस्तृत नियम बनाकर जमीनी स्तर पर लागू करना है। इन नियमों में कुल 46 सेक्शन हैं जो 9 चेपटरर्स में विभाजित हैं। इन नियमों के द्वारा इसेक्टिसाइड बोर्ड, रजिस्ट्रेशन कमेटी तथा लेबोरेटरी की कार्यविधि तय करना है। इसके अतिरिक्त लाइसेंस प्रदान करने, पेकिंग, लेबलिंग, इसेक्टिसाइड एनालिसिस, इंसेक्टिसाइड इंस्पेक्टर, ट्रांसपोर्टेशन, स्टोरेज, प्रयोग करते समय सुरक्षा उपकरणों व उपायों, आदि की कार्यविधि का वर्णन दिया गया है। इन नियमों में समय समय पर जरूरत के अनुसार परिवर्तन होते रहते हैं।

2 (B) पेस्टिसाइड के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय नियम-कानूनः पेस्टिसाइड के क्षेत्र में कई अंतर्राष्ट्रीय समझौते, नियम एवं कानून आदि बनाये गये हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न पकार से हैं-

(1) इंटरनेशनल कोड ऑफ कंडक्ट फॉर डिस्ट्रीब्यूशन एंड यूज ऑफ पेस्टिसाइड (PCC - DUP): जब किसी देश के पास पेस्टिसाइड से सम्बंधित अपने खुद के नियम कानून न हो या वे अपर्याप्त हो तो उस उद्देश्य से बनाया गया। यह अंतरर्राष्ट्रीय स्तर के आदर्श मानकों का एक सेट है जिसे कोई भी देश अपना सकता है। ये स्वैच्छिक मानक सभी देशों द्वारा एक जिम्मेदार और आमतौर पर जनसमुदाय द्वारा मान्य व्यापारिक प्रक्रियाओं, पेस्टिसाइड के प्रभावी तथा सक्षम प्रयोग तथा प्रयोग के दौरान स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभावों में अधिक से अधिक कमी लाने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से विकसित किये गए हैं। वर्ष 1985 ये मानक विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के द्वारा अपनाए जा चुके हैं ।

(i) रॉटरडैम कन्वेंशन ऑन प्रायर इन्फॉर्ड दि कंसेंट प्रोसीजर फॉर सर्टेन हजार्ड्स कैमिकल्स एंड पेस्टिसाइड्स इन इंटरनेशनल ट्रेडः यह एक मल्टीलेटरल ट्रीटी है, जिसे 2008 में लागू किया में गया तथा इसमें 161 सदस्य हैं। इसका मुख्य उद्देश्य हजार्ड्स रसायनों तथा पेस्टिसाइड्स के आयात में सामूहिक जिम्मेदारी के अहसास को बढ़ावा देना। यह सूचना का खुला आदान-प्रदान करता है तथा निर्यातकों से इस बात की अपील करता है कि निर्यात किये जाने वाले सामान पर उचित लेबल लगायें, सुरक्षित प्रयोग एवं रख-रखाव के लिए दिशा-निर्देश शामित करें तथा आयातक को रसायन से सम्बंधित सभी प्रकार के प्रतिबन्ध अथवा रोक पर पूर्ण जानकारी प्रदान करें।

(ii) स्टॉकहोम कन्वेंशन ऑन परसिस्टेंट ऑर्गेनिक पॉल्यूटेंट्स: यह एक पर्यावरण से सम्बंधित ट्रीटी है जो मई 2004 से प्रभावी है। इसका मुख्य उद्देश्य मानव स्वास्थ्य तथा पर्यावरण की रक्षा के लिए हानिकारक परसिस्टेंट ऑर्गेनिक पॉल्यूटेंट्स के उत्पादन तथा प्रयोग पर प्रतिबंध या रोक लगाना है। परसिस्टेट ऑर्गेनिक पॉल्यूटेंट्स ये कार्बनिक रसायन हैं जो बातावरण में बिना नष्ट हुए वर्षों तक बने रहते हैं तथा हवा, पानी और भूमि के द्वारा व्यापक क्षेत्र में फैल जाते हैं।

ये जहरीले रसायन अंततः खाद्य श्रृंखला का हिस्सा बनकर मनुष्य तथा अन्य जीवों के फैटी टिशुओं में जमा हो जाते हैं और बीमारी या धीमी गति से मौत का कारण भी बन सकते हैं।

(iii) बेसल कन्वेंशन ऑन कण्ट्रोल ऑफ ट्रांस-बाउंड्री मूवमेंट ऑफ हजार्ड्स बेस्ट एंड देअर डिस्पोजलः यह अंतर्राष्ट्रीय ट्रीटी है जिसका उद्देश्य पर्यावरण के लिए हानिकारक रासायनिक अथवा अन्य प्रकार के कचरे के उत्पादन को कम करना, उनके नष्ट करने को व्यस्थित करना तथा उनके एक देश से दूसरे देश में अनाधिकृत रूथानान्तरण को नियंत्रित करना। कृषि के क्षेत्र प्रयोग किये जाने वाले कई रसायन इस श्रेणी आते हैं तथा इस्तेमाल के बाद पेस्टिसाइड के डब्बों के नष्ट करने या पुराने बेकार पेस्टिसाइड फेंकने के क्रिया भी इस कन्वेंशन के दायरे में ही आते है इसलिए यह कन्वेंशन भी पादप सुरक्षा जुड़ा हुआ है। यह ट्रीटी 1992 से प्रभावी है या 187 देश इसके सदस्य हैं। भारत भी इस ट्रीटी का सदस्य है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।