जानकारी: विश्व गुर्दा दिवस 9 मार्च पर विशेष्

जानकारी: विश्व गुर्दा दिवस 9 मार्च पर विशेष्

अपनी किडनी की सेहत का रखें ध्यान और इन दवाओं का सेवन न करें-
डा0 दिव्याँशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
    विशेषज्ञों के अनुसार, किडनी से सम्बन्धित 60 प्रतिशत समस्याओं का कारण कई अन्य रोगों के लिए सेवन की जाने वाली दवाईयाँ होती हैं। अतः किडनी की सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि दवाओं के सेवन करने के दौरान अपेक्षित सावधानी बरती जानी चाहिए और यथासम्भव इस प्रकार की दवाईयों का सेवन करने से बचा जाना चाहिए जो सीधे-सीधे किडनी को नुकसान पहुँचा सकती हैं। 
    बैंगलोर मेडिकल कालेज एंड रिसर्च सेन्टर के इंटरनल मेडिसिन के प्रोफेसर प्रभु एस के द्वारा बताया गया कि देश-विदेश में किए गए अनेक अध्ययनों के परिणामों पर दृष्टि डाली जाए तो अनेक दवाएं इस प्रकार की होती है जो सीधे-सीधे किडनी को प्रभावित करती हैं। 
    चिकित्सकों के अनुसार, विभिन्न प्रकार के दर्द निवारकों से लेकर एंटीबायोटिक, एंटी टीबी, एंटी फंगल, एंटी-कैंसर तथा मनोरोगों के उपचार में दी जाने वाली विभिन्न दवाईयाँ मानव के गुर्दे को गम्भीर रूप से क्षति पहुँचाती हैं, और गुर्दे की होने वाली क्षतियों में 60 प्रतिशत मामलों में इसी प्रकार की दवा का सेवन करना एक प्रमुख कारण माना जाता है। 
    यह दवाईयाँ गुर्दों की कार्य प्रणाली के अन्तर्गत पोस्ट काऊ-फ्री रेडिकल्स तत्वों की संख्या में वृद्वि कर उनमें सूजन और अन्य विकारों को पैदा कर धीरे-धीरे गुर्दों को गम्भीर रूप से प्रभावित करती हैं। 
    इसके सम्बन्ध में डा0 दिव्याँशु सेंगर ने बताया कि सबसे प्रमुख बात यह है कि इस सम्भावित खतरे से किस प्रकार बचा जा सकता है, तो इसके बारे में उनका कहना है कि इस समस्या से बचने के लिए ऐसी दवाओं के सेवन करने से बचना चाहिए जो हमारे गुर्दों को नुकसान पहुँचा सकती हैं। 
आमतौर पर किसी भी दवा के विभिन्न प्रकार के विकल्प बाजार में उपलब्ध होते हैं, परन्तु फिर भी यदि किसी कारणवश विकल्प उपलब्ध न हो तो इन दवाओं की न्यूनतम डोज का सेवन सीमित समयावधि तक किया जा सकता है। 
डा0 सेंगर ने बताया कि बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो चिकित्सक से परामर्श किए बिना ही विभिन्न दवाईयों का सेवन आरम्भ कर देते है, और यही दवाईयाँ धीरे-धीरे उनकी किडनी को गम्भीर रूप से क्षतिग्रस्त कर देती हैं, और किडनी के सबसे बड़े दुश्मन के रूप में उभरकर सामने आती हैं।
डा0 दिव्याँशु सेंगर ने बताया कि विश्व किडनी दिवस के अवसर पर लोगों को गुर्दों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भी किया जाना आवश्यक है। इसके लिए पूरे देश में स्थान-स्थान पर कैम्पों का आयोजन कर लोगों को इसके बारे में अवगत करना होगा कि ऐसी दवाओं का सेवन कम से कम करें जो उनके गुर्दों को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
इस समस्या से बचाव के लिए आप अपनी दैनिक जीवनचर्या में कुछ सकारात्मक बदलाव भी कर सकते हैं, जैसे कि प्रतिदिन कम से कम दो से ढाई लीटर पानी पीना और भोजन करने के तुरन्त बाद पेशाब करने के लिए जाना तथा पेशाब करने के तुरन्त बाद पानी का सेवन नही करना आदि जैसे कई अन्य उपाय हैं जो आपकी किडनी को नया जीवन प्रदान करने में सक्षम हैं।
अल्जाईमर रोग को ज्ञात करने की नई तकनीक का विकास
    अल्जाईमर रोग का पता लगाने के लिए अब आर्टिफिशीयल इंटेलीजेंस (ए-आई) तकनीक भी मददगार साबित होने जा रही है। मैसाचुसेट्स जनरल हास्पिटल में शोधकर्ताओं की एक टीम के द्वारा आर्टिफिशीयल इंटेलीजेंस (ए.आई) पर आधारित एक ऐसी तकनीकी का विकास किया है, जो नियमित रूप से एकत्र की गई मस्तिष्क की छवियों अर्थात ब्रेन इमजेज का विश्लेषण पर आधारित है। 
वैज्ञानिकों के द्वारा अल्जाईमर रोग को ज्ञात करने के लिए विकसित इस माडल के लिए इस रोग से पीड़ित एवं स्वस्थ्य व्यक्त्यिों की एम.आर.आई के विभिन्न आँकड़ों का विश्लेषण किया गया। इस दौरान शोधकर्ताओं के द्वारा अल्जाईमर के खतरों वाले 2,348 व्यक्तियों के 1,103 ब्रेन इमेजेज का अध्ययन किया गया, तो वहीं स्वस्थ्य लोगों के 26,892 ब्रेन इमेजेज का भी अध्ययन किया गया और इस प्रकार पाँच डेटा सेटों के अध्ययन के बाद 90.2 प्रतिशत मामलों में अल्जाईमर को ज्ञात करने में सफलता प्राप्त हुई है। 
उम्र आदि विशेष आँकड़ों के बिना भी अल्जाईमर को ज्ञात करना ही इस माडल की सबसे बड़ी विशेषता है। इससे जुड़ें एक शोधकर्ता नेम इन का कहना है कि अल्जाईमर रोग अक्सर वृद् लोगों में होता है और अब इस रोग से प्रभावित लोगों की संख्या पूरे ही विश्व में बढ़ती जा रही है। जिसके सम्बन्ध में सचेत करने के लिए यह तकनीक काफी लाभकारी सिद् होगी।
कृषि समाचार
डा0 आर. एस. सेंगर
निरंतर गिरते जा रहे भू-जल के स्तर पर राष्ट्रपति की चिन्ता
‘कैच द रेन’ अभियान के द्वितीय चरण की शुरूआत करते हुए भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने निरन्तर कम होते जा रहे भू-जल स्तर पर गहरी चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जल-संकट के उत्पन्न होने पर सबसे अधिक परेशानियों का समाना महिलाओं को ही करना पड़ता है। 
विशेष रूप से पहाड़ी और आदिवासी महिलाएं तो इससे जूझती ही रहती हैं और अपने परिवार के लिए पानी की व्यवस्था करने में उनका बहुत समय बर्बाद हो जाता है। जल-शक्ति मंत्रालय के स्वच्छ भू-जल शक्ति सम्मन जल शक्ति अभियान ‘‘कैच द रेन’कार्यक्रम के अन्तर्गत राष्ट्रति ने इस क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली महिलाओं को सम्मानित भी किया। इस दौरान राष्ट्रपति ने कहा कि देश में स्वच्छता अभियान और स्वच्छ पेजल की उपलब्धता के जैसी देश व्यापि योजनाओं की सफलता में महिलाओं की भूमिका बेहद अहम है।  
इस का मुख्य आधार नारी ही हैं, क्योंकि नारी शक्ति के अभाव में जल शक्ति योजना की सफलता की उम्मीद करना बेमानी है। राष्ट्रपति ने कहा कि देश में अनियोजित शहरीकरण के चलते तालाब और कुएं जैसे विभिन्न जल स्रोत लुप्त होते जा रहे हैं और भू-जल का स्तर निरन्तर कम होता जा रहा हैं। 
विश्व की 18 प्रतिशत आबादी वाले इस देश में विश्व का मात्र 4 प्रतिशत जल ही उपलब्ध है। ऐसे में जल संरक्षण के पारम्परिक तरीके लुप्त हो चुके हैं, वर्तमान समय में आधुनिक तरीकों के साथ उन तरीकों को भी अपनाना आज के समय की एक प्रमुख माँग है। 
नारी शक्ति के सहयोग के बिना जल शक्ति की सफलता की कल्पना भी नही की जा सकती। ‘‘कैच द रेन’ अभियान 2030 की शुरूआत एवं स्वच्छ सुजल छवि सम्मान 2023 के अवसर पर नारी-शक्ति को भी सम्मानित किया गया।
सरकार ने नैनो डीएपी लाँच करने की अनमति प्रदान की
    भारत सरकार के केन्द्रीय उर्वरक मंत्री मन्सुख मांडवीय ने जानकारी प्रदान की कि सरकार के द्वारा नैनों तरल डीएपी उर्वरकों को लाँच करने की अनुमति प्रदान कर दी है, इससे किसानों को लाभ मिलेगा और देश को उर्वरकों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिल सकेगी। भारत सरकार के द्वारा पूर्व में नैनो यूरिया को अनुमति प्रदान की गई थी और अब नैनो तरल डीएपी को लाँच करने की अनुमति भी प्रदान कर दी है। 
श्री मन्सुख मांडवीय के अनुसार देश को उर्वरकों के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं उर्वरक सहकारी संघ इसको के प्रबन्ध निेदेशक यू. एस. अवस्थी ने बताया कि सरकार के द्वारा नैनो डीएपी को भी बाजार में लाँच करने की अुनमति दे दी है। वर्ष 2021 में इसकों के द्वारा ही नैनो तरल यूरिया बाजार में पेश किया था। 
इससे पहले गत दिसम्बर माह के दौरान अवस्थी ने कहा था कि इसको के द्वारा शीघ्र ही 500 मिली की बोतल में डीएपी को भी लाँच किया जाएगा, जिसका बाजारू मूल्य लगभग 600 रूपये प्रति बोतल होगा। इसके माध्यम से भारत को विदेशी मुद्रा बचाने और सब्सिड़ी को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।
एक बोतल डीएपी, एक बोरी डीएपी के समतुल्य होगी जिसका बाजारू मूल्य 1,350 रूपये के आसपास है। इसके अतिरिक्त इसको अब नैनो जिंक और नैनो कापर उर्वरकों को भी लाँच करने की योजना पर कार्य कर रहा है। निकटतम समय में इन नैनो उर्वरकों के उपयोग में वृद्वि तथा इनकी की माँग में इजाफा होना तय माना जा रहा है । इसको गुजरात एवं उत्तर प्रदेश स्थित अपने संयंत्रों में नैनो यूरिया का उत्पादन कर रहा है। 
वर्ष 2030 तक भारत बनेगा विश्व में एक बड़ा कार्बन बाजार
एक अध्ययन जिसमें भारत के 21 बड़े कारोबारियों को शामिल किया गया था, के अनुसार वर्ष 2030 तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन बाजार बनकर उभर सकता है। 
उक्त कारोबार, देश के औद्योगिक क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले 10 फीट जी उत्सर्जन के लिए उत्तरदायी हैं। वल्र्ड रिर्सोसेस इंस्टीट्यूट इंडिया के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में कार्बन बाजारों को लेकर 15 वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों को समाहित किया गया है। 
एमबीएस इकाईयों के साथ 10 वर्ष के घरेलू अनुभव को भी इसमें शामिल किया गया है, इसके साथ ही भारतीय उद्योगों की आवश्यकताओं और उसके सन्मुख उपस्थित चुनौतियों और इस परिप्रेक्ष्य को समझने के लिए भारत के बड़े कारोबारियों के साथ सलाह-मशवरे और कार्बन बाजार में अपनी तरह के प्रथम सिमुलेशन को भी दसी दायरे के अन्तर्गत लिया गया है। 
विश्व बैंक के अनुसार, कार्बन बाजार अब दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन के 16 प्रतिशत भाग का उत्सर्जन कर रहा है। भारत के औद्योगिक क्षेत्र को कवर करने वाला यह एक ऐसा कार्बन बाजार है, जो भारतीय कारपोरेट क्षेत्र के द्वारा मौजूदा सुरक्षित प्रतिबन्धताओं की औसत महत्वकाँक्षा स्तर के निर्धारित लक्ष्य का निर्धारण भी करता है। 
इसके साथ ही वर्तमान नीति परिदृश्य की तुलना में वर्ष 2030 में सकल घेरलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 5.6 प्रतिशत तक कम करने की क्षमताओं से युक्त है। जो कि वर्ष 2022 और वर्ष 2030 के मध्य 1.3 अरब मीट्रिक टन कार्बन डाईआक्साईड के समतुल्य संचयी के बराबर है।
वैश्विक पर्यावरण में कार्बन डाईआक्साईड की बढ़ती मात्रा पर चिन्ता
    अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार वर्ष 2022 पूरे विश्व में कार्बन डाईआक्साईड उत्सर्जन की बढ़ती हुई दर अपनी नई ऊँचाईयों पर है। अक्षय ऊर्जा स्रोतों की मात्रा में वृद्वि होने के उपरांत भी वैश्विक कार्बन डाईआक्साईड उत्सर्जन 0.9 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2022 में रिकार्ड 36.8 टन तक पहुँच चुकी है जो कि तीन चैथाई से अधिक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए उत्तरदायी है। 
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी आइए के अनुसार, हाल के दिनों में वैश्विक कार्बन डाईआक्साईड उत्सर्जन को रोकने के प्रयासों में पवन एवं सौर ऊर्जा के साथ ही साथ इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग में भी उल्लेखनीय वृद्वि दर्ज की गई है। सौर ऊर्जा और विद्युत चालित वाहनों को उपयोग में लाने से कार्बन डाईआक्साईड के उत्सर्जन में भी उल्लेखनीय कमी आई है। गतवर्ष 55 करोड़ टन अतिरिक्त कार्बन डाईआक्साईड के उत्सर्जन में कमी दर्ज की गई थी। 
आई ई ए के कार्यकारी निदेशक खातिर विरोध ने कहा कि हम जीवाश्म ईधन के बढ़ते उत्सर्जन पर भी नजर रखेंगे, जो दुनिया के जलवायु के लिए निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा है। 
कार्बन डाईआक्साईड के उत्सर्जन में बढोत्तरी का एक प्रमुख कारण है हवाई यात्राओं में वृद्वि
आई. ई. ए. के विश्लेषण में पाया गया है कि कार्बन डाईआक्साईड के उत्सर्जन में तेल का सबसे बड़ा योगदान था, जिसमें 2.5 प्रतिशत की वृद्वि दर्ज की गई है, जिसमें से लगभग आधी वृद्वि केवल हवाई यात्राओं की बढ़ोत्तरी के कारण हुई। कोविड-19 के दौरान जारी नियमों की सख्ती के कारण चीन के कार्बन डाईआक्साईड उत्सर्जन के स्तर में कमी दर्ज की गई थी। परन्तु वहीं, दूसरी ओर ऐशिया की अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के आर्थिक विकास के कारण कार्बन डाईआक्साईड के उत्सर्जन में 4.2 प्रतिशत तक की वृद्वि भी दर्ज की गई। 
गैस की कमी होने के चलते कोयले के उपयोग में हुई वृद्वि
    विरोल के अनुसार स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग में कमी के चलते वर्तमान में कार्बन डाईआक्साईड उत्सर्जन लगभग तीन गुना से भी अधिक हो चुका है। आई.आईए. का कहना है कि पिछले वर्ष कोयले के अपेक्षा से अधिक अनुप्रयोग के कारण कार्बन डाईआक्साईड के उत्सर्जजन में 1.6 प्रतिशत तक की वृद्वि दर्ज की गई थी। रूस–यूक्रेन युद् के चलते रूसी गैस की आपूर्ति में आई कमी के कारण विभिन्न यूरोपीय देशों में इस प्रकार के ईंधनों के उपयोग में वृद्वि हुई है और अब गैस की निरन्तर बढ़ती कीमतों के सापेक्ष ऐशियाई देशों में भी कोयले के ईंधन के उपयोग में व्यापक वृद्वि दर्ज की जा रही है।

लेखकः आर. एस. सेंगर सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ के प्रोफेसर एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं।