कृषि विश्वविद्यालय में विकसित तकनीकियों को एग्री इनोवेट बाजार में उतारेगा

                            कृषि विश्वविद्यालय में विकसित तकनीकियों को एग्री इनोवेट बाजार में उतारेगा

                                            

कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा विगत वर्षों में विकसित की गई तकनीकियों को क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध कराने के लिए कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ के० के० सिंह जी एवं भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्, नई दिल्ली के द्वारा स्थापित एग्री इनोवेट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ प्रवीण मालिक के मध्य एक सहमति पत्र हस्ताक्षरित किया गया।

                                                             

कुलपति सभा कक्ष में आयोजित एक समारोह के दौरान कुलपति डॉ के० के० सिंह ने बताया की विश्वविद्यालय के द्वारा विकसित तकनीकियों को बाजार में पेश करने के लिए विश्वविद्यालय के पास कोई नियमावली उपलब्ध नहीं थी। जिस कारण से विश्वविद्यालय में विकसित तकनीकियाँ जन-उपयोगी होने के उपरांत भी, किसानों और पशुपालकों तक नहीं पहुंच पा रही थी।

इसके समाधान की लिए विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद्, नई दिल्ली के द्वारा प्रतिपादित प्रकिया के अनुरूप तकनिकी स्थानांतरण नियमावली बनायीं गयी है, जिसका अनुमोदन विश्वविद्यालय की माननीय विद्धत परिषद् से होने के क्रम में एग्री इनोवेट के साथ सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये गए है।

                                                        

एग्री इनोवेट न केवल विश्वविद्यालय के द्वारा विकसित तकनीकियों को एग्री-इनोवेट बाजार में पेश करेगा अपितु समय-समय पर तकनीकी एवं विधिक परामर्श भी उपलब्ध कराएगा। इस अवसर पर एग्री इनोवेट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ प्रवीण मालिक ने सभा कक्ष में उपस्तिथ सभी अधिकारियो को एग्री इनोवेट के उद्देश्यों, कार्यप्रणाली एवं उनके द्वारा विभिन्न संस्थाओ को उपलब्ध कराये जा रहे सहयोग का भी विवरण दिया।

डॉ मलिक द्वारा सरदार पटेल विश्वविद्यालय को सभी प्रकार के सहयोग का आश्वासन दिया गया । विश्वविद्यालय के निदेशक शोध द्वारा सभी का धन्यवाद् ज्ञापित किया।

इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अधिकारी डॉ बी. आर. सिंह, डॉ रविंद्र कुमार, डॉ विवेक धामा, डॉ आर. एस. सेंगर, डॉ बृजेन्द्र, डॉ पंकज कुमार भी उपस्तिथ थे। कार्यक्रम का सञ्चालन डॉ अमित कुमार प्राध्यापक पशु जैव प्रौद्योगिकी संकाय के द्वारा किया गया।

                                                    आनुवांशिक अभियांत्रिकी (Genetic Engineering)

                                              

    पौधों का आनुवांशिक रूपान्तरण बाहरी DNA को सीधे कोशिकाओं में डालने से या फिर भित्ती विहीन कोशिकाओं द्वारा अपने अन्दर समाने से किया जाता रहा है। इस प्रक्रिया के दौरान एक चौंका देने वाली खबर यह है कि कोलोन पैसेफिक लिमिटेड नामक कम्पनी ने एग्रोबैक्टीरियम के माध्यम से नीला गुलाब बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है। इसके लिए कंपनी ने पिटूनिया से नीले रंग का जीन निकाल कर उसे गुलाब में प्रत्यारोपित कर दिया।

                                                                   

    इसी प्रकार एन्थ्यूरियम, कार्नेशन आदि पौधों में भी फूलों का रंग बदलने हेतु प्रयोग किये जा रहे हैं। उपरोक्त बातों से यह सिद्ध हो जाता है कि जैव तकनीक का प्रयोग विषाणु मुक्त पौधे पैदा करने, नई किस्मों का निरन्तर विकास करने हेतु लाभकारी ढंग से किया जा सकता है तथा भारत में इसकी सफलता की प्रबल सम्भावनाएँ उपलब्ध हैं।

    पुष्प उत्पादन एक उपयोगी कार्य है यदि पुष्पोत्पादन में आधुनिक तकनीक का सफल समावेश किया जाए तथा किसानों को उपयुक्त प्रशिक्षण उपलब्ध करवाया जाए तो भारत की भौगोलिक विविधता का भरपूर सदुपयोग कर गाँवों का अधिक आर्थिक उत्थान हो सकेगा।

 

                                                                              बांस उत्पादन एक लाभकारी उद्यम

                                                                

बांस, घास कुल की प्रजाति है, भारत में लगभग 120 बांस प्रजातियां पाई जाती हैं। हमारे प्रदेश में लगभग 7 बांस प्रजातियां (स्थानीय/पर स्थानीय) पाई जाती हैं। इनमें से डेंड्रोकेलेमस स्ट्रिक्टिस प्रमुख है और बड़े भू-भाग में पाया जाता है।

प्रदेश में बांस (डेड्रोकेलेमस स्ट्रिक्टस) प्राकृतिक रूप में पाया जाता है। मुख्यतः बस्तर, बालाघाट, होशंगाबाद, मण्डला, रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, शहडोल, नरसिंहपुर, जबलपुर, बैतूल, सिवनी, राजनांदगावं, छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, सतना, सरगुजा इत्यादि जिसों में बड़े वृक्षों के जंगलों में उनके नीचे अथवा कहीं विशुद्ध रूप से यह प्रजाति पाई जाती है।

                                                                    

इन सभी जंगलों में समय चक्र के अनुसार किसी न किसी क्षेत्र में बांस फूलते आए हैं। फूलने के बाद बांस का भिर्रा सूख जाता है एवं उनके बीज एकत्रित कर लिए जाते हैं। बीज जो भिर्रा से गिराकर एकत्रित किया जाता है, उसे हस्क (छिलका) के साथ निकालना चाहिए, ताकि भण्डारण की अवधि में उसकी अंकुरण क्षमता बनी रहे।

पौधशाला संबंधी जानकारी: आमतौर पर बांस की पौध क्यारियों में बीज बोकर तैयार करते हैं। जब पौधा 18 माह का हो जाता है तो उसको थैली में ट्रांसप्लांट किया जाता है। कही-कही बीज को सीधे मिट्टी एवं खाद से भरी थैलियों में माह अक्टूबर में बोकर, पौधे तैयार किए जाते हैं।

                

  • पौधशाला जो पहले स्थापित की गई हो, वहां पानी का बहाव अच्छा होना चाहिए।
  • पौधशाला क्षारयुक्त जमीन पर नहीं होनी चाहिए।
  • 10×1.25 मीटर आकार की क्यारी 60 सेमी. गहराई तक खोदी जानी चाहिए।
  • खोदी गई मिट्टी में जड़ें एवं पत्थर अलग करके मिट्टी को पर्याप्त समय तक वेदरिंग हेतु बाहर ही रहने दें। ताकि उसके कीटाणु मर जाएं। इसके पश्चात् करीबन 1.5 घन मीटर पुरानी गोबर खाद मिट्टी में मिलाकर पुनः खरवा देना चाहिए ताकि 15 सेमी. गहराई की क्यारी तैयार हो जाये।
  • क्यारी में 5 सेमी. के अंतर पर फेम के आधार पर बीज मई/जून अथवा सितम्बर/अक्टूबर में बोना चाहिए। इसके पश्चात् बीज को महीन मिट्टी से ढंक दें। मिट्टी की पर्त की मोटाई अधिक नहीं होनी चाहिए।
  • क्यारी में घास ढांककर बारीक छिद्र वाले झरने को ऊपर से पानी देना चाहिए। यह पानी दिन में दो बार अंकुरण होने तक देना चाहिए। अंकुरण होने तक दिए जाने वाले पानी की मात्रा कम, परन्तु पर्याप्त हो।
  • बीज लगभग दस दिन में अंकुरित हो जाता है। जब नए पौधे क्यारी में दिखने लगें, तब ऊपर की घास निकालकर दिन में दो बार पानी देते रहना चाहिए।
  • एक क्यारी के लिए एक किलो बांस के बीज की आवश्यकता होती है। बीज की  अंकुरण क्षमता के आधार पर क्यारी से लगभग 10-15 हजार बांस पौधे तैयार किए जाते हैं।
  • वर्षा ऋतु के बाद समय-समय पर (तीन माह में एक बार) पौधे के ऊपर के हिस्से को काटना चाहिए ताकि कंद मोटे होते जायें।
  • पौधों को 18 माह बाद अक्टूबर-दिसम्बर के बीच क्यारियों से खोदकर निकाला जाये तथा प्रत्येक पौधे से प्रकन्द को इस प्रकार से तोड़ा जाए कि प्रत्येक पर तने के साथ एक नया बना कंद अवश्य जुड़ा हों इस प्रकार प्रत्येक पौधे से कई रोपण योग्य पौधे तैयार किए जा सकते हैं।
  • इन पौधों को मिट्टी एवं खाद से भरी पॉलीथीन थैलियों में लगाया जाए। यदि चिकनी मिट्टी है, तब इनमें मिट्टी, रेत व गोबर का अनुपात 3: 1: 1 होना चाहिए।
  • यदि पौधशाला में पौधे जल्दी उगाकर रोपण कार्य में लेना है, तब पौधे पॉलीथीन बैग्स में अच्छी तरह से जमने के बाद ही दो प्रतिशत यूरिया का छिड़काव किया जाये।
  • थैली में लगाने के पश्चात् पौधे का तना आमतौर पर सूख जाता है, किन्तु सिंचाई पर्याप्त होने से नया पीका निकलता है। रोपणयुक्त पौधा इस प्रकार दो वर्ष का हो जाता है।