सागौन का उन्नत वृक्षारोपणसागौन का उन्नत वृक्षारोपण

                                                                        सागौन का उन्नत वृक्षारोपण

                                                                                                                          डॉ0 राकेश सिंह सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                                     

सागौन, एक वृहत तथा पर्णपाती वृक्ष है। यह एक कठोर काष्ठीय वृक्ष विभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता है, किन्तु इसकी अच्छी वृद्धि के लिये गहरी, अधिक ह्यूमस व अच्छे जल निकास की भूमि सर्वोत्तम होती है। प्रस्तुत लेख में हमारे विशेषज्ञ सागौन के उन्नत वृक्षारोपण की जानकारी विस्तार से प्रदान करने जा रहे हैं।

सागवान, सागौन या टीक भारतवर्ष की वृक्ष जातियों में एक अत्यंत बहुमूल्य वृक्ष है। इसके व्यवसायिक वृक्षारोपण में प्रतिवर्ष बढ़ोत्तरी हो रही है। देश में लगभग 9.77 मिलियन हैक्टेयर का प्राकृतिक सागौन का जंगल विद्यमान है। वर्तमान समय में समगतिशील आधार पर औसतन 8.2 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में सागौन का वृक्षारोपण प्रतिवर्ष किया जा रहा है।

सागौन के वृक्षों की उत्तम वृद्धि व अच्छी बढ़वार हेतु विभिन्न उन्नत विधियां प्रयुक्त की जानी चाहिये-

                                                       

बीज उपचार - ग्रीष्मकाल के प्रारम्भ होते ही सागौन के बीज पककर धरती पर गिरना प्रारम्भ कर देते हैं। अच्छे वृक्षारोपण के लिये उच्च गुणवत्ता वाले के बीज का होना अत्यंत आवश्यक हैं। जबकि कलोनल बीज प्रक्षेत्र के बीज-सामान्य वृक्ष बीज से बेहतर जमाव व वृद्धि प्रदान करते हैं। सागौन में बीज के जमाव की समस्या एक प्रमुख समस्या है। जमाव का न होना या देरी से होने के मुख्य कारण, इसकी कड़ी या मोटी मीजोकार्प का मुलायम न हो पाना होता है, जिसके कारण भ्रूण खोल से बाहर नहीं आ पाता है।

जमाव के अच्छे परिणाम प्राप्त के लिये निम्न प्रारम्भिक बीज उपचार किये जा सकते हैं-

  • सागौन के बीज को क्रमशः पानी में भिगोना एवं छाया में सुखाना चाहिए।
  • सागौन के बीज को पानी में कम से कम छह दिनों तक भिगोयें। यह विधि उपरोक्त विधि की अपेक्षा अच्छे परिणाम देती है।
  • सागौन बीजों का अम्लीय उपचार करना चाहिए।
  • सागौन बीज उपचार यंत्र-प्रथम प्रकार (गिरेवाल व अन्य द्वारा विकसित) इस यांत्रिक विधि में सामान्य कंक्रीट मिलान यंत्र में सागौन के फल, बालू तथा धातु के टुकड़ों को समान अनुपात में मिलाकर दो घंटों तक यंत्र को लगातार चलाया जाता है।
  • सागौन बीज उपचार यंत्र-द्वितीय प्रकार (बापत व फुलारी द्वारा विकसित) यह यंत्र सामान्य चक्की की पद्धति पर कार्य करता है तथा प्रथम प्रकार के यंत्र की कई खामियों को दूर करता है। यह यंत्र 15 मिनट में लगभग 10-12 किलोग्राम बीज को तैयार करता है। अधिक मात्रा में बीज तैयार करने के लिये यह उपयुक्त विधि है।

                                                            

सागौन के पौधों की नर्सरी की तैयारी - नर्सरी स्थान को 3-4 बार 12 इंच की गहराई तक जुताई कर तैयार किया जाता है। भूमि अनुसार गोबर की खाद को मिलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिये। बीज क्यारियों (सीड बेड) को लगभग 20-30 सेंटीमीटर ऊँचाई पर बनाना चाहिये। एक 22×4 मीटर की क्यारी के लिये 4 किलोग्राम बीज उपयुक्त होता है। क्यारियों के किनारे ऊँचे होने पर जल संचय उचित तरीके से होता है।

सागौन की नर्सरी में नमी का उचित स्तर बनाये रखने के लिये क्यारी को हल्के घास-फूस से आच्छादित कर देना चाहिये। सागौन के वृक्षों का जमाव लगभग 10-15 दिनों में प्रारम्भ होकर 20 दिनों में पूर्ण होता है।

पौध की देखभाल - सागौन की नर्सरी की प्रथम सिंचाई, बीज की बुवाई

                                                                           

के तुरन्त बाद तथा बाद की सिंचाईयां एक हफ्ते के अन्तराल पर करनी चाहिये। वर्षाकाल में वर्षा अनुसार ही सिंचाई करनी चाहिये। फव्वारा पद्धति में सिंचाई करने पर अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। पौध की निराई लगभग हर दूसरे सप्ताह करनी चाहिये।

एक किलोग्राम यूरिया प्रति बेड की दर से 10वें या 11वें सप्ताह में डालनी चाहिये। 10 ग्राम थिमेट तथा बी.एच.सी. भी समान रूप से जून-जुलाई या अगस्त में डालना उपयुक्त रहता है। नोवामिन का घोल (32 लीटर पानी में 100 मिलीलीटर नोवामिन) का छिड़काव दूसरे हफ्ते में करना चाहिये।

सागौन के वृक्षारोपण हेतु पौधों का चुनाव जुलाई, अगस्त व अक्टूबर में करना चाहिये। भूमि सतह से 6 सेंटीमीटर ऊँचाई (कालर ऊँचाई) पर व्यास के आधार पर संकलन करना उपयुक्त होता है। उच्च गुणता के समान पौधों को उखाड़कर लगभग 5 सेंटीमीटर तना तथा 25-30 सेंटीमीटर जड़ रखकर स्टंप बनाये जाते हैं।

                                                

वृक्षारोपण कार्य - विभिन्न नये अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि सागौन के पौधों की 2.74×1.83 मीटर से कम दूरी तथा 2.74×3.66 मीटर से अधिक दूरी पर रखने से कोई विशेष लाभ नहीं होता है। अतः वर्तमान समय में देश के अधिकांश क्षेत्रों में 1.83 × 1.83 मीटर की दूरी पर लगभग 1200 वृक्ष प्रति एकड़ से सागौन का वृक्षारोपण किया जा रहा है। कृषि वानिकी के अंतर्गत 10×51 मीटर की दूरी पर वृक्ष लगाकर फसलों पर इनकी छाया का प्रभाव काफी हद तक कम किया जा सकता है।

सिंचाई करने से सागौन से आरम्भिक वृद्धि तीव्र होती देखी गई है। वर्षा होने तक सागौन की हर तीसरे सप्ताह सिंचाई करनी चाहिये। ड्रिप सिंचाई से सागौन में अच्छे परिणाम मिले हैं। सीवेज पानी से सिंचाई करने पर ऊँचाई, व्यास, आयतन आदि में वृद्धि होती है। पौधों की निराई तीन, दो तथा एक बार क्रमशः पहले, दूसरे तथा तीसरे वर्षों में की जानी चाहिये। अगस्त तथा सितम्बर माह में दो उर्वरक खुराक 50 ग्राम (एन.पी. के.) प्रथम तीन वर्षों तक देनी चाहिये। प्रथम दो वर्षों में डीएपी की एक खुराक भी वृद्धि के लिये उपयुक्त पाई गई है।

                                           

सागौन की सुषुप्तावस्था - सागौन में सुप्तावस्था जनवरी से अप्रैल माह तक होती है, अतः सागौन में बढ़वार इस अवधि में कम होगी या फिर नहीं होती है, किंतु सिंचित क्षेत्रों में वृक्षारोपण के प्रथम दो वर्षों में इस अवधि में भी सागौन में वृद्धि होते देखी गई है।

वृक्षों की छंटाई प्रत्येक चौथे वर्ष में की जानी चाहिये, तत्पश्चात् आठवें, तेरहवें तथा बीसवें वर्षों में पुनः वृक्षों की छंटाई की जानी चाहिये। इससे सागौन के वृक्षों में वृद्वि, बढ़वार एवं उनका आकार आदि सही रहते हैं।

सागौन की प्रमुख किस्में - सागौन चालीस या अधिक वर्षों में पूर्ण रूप से

पककर तैयार होता है। सागौन की किस्में - बेरी, एफ.जी.-1, गोरखपुर डेंडल आदि प्रमुख हैं।

बीमारी तथा कीट-प्रकोप व रोकथाम - छाल तथा तना कटने से हृदय

गलन (हाट राट) की समस्या इसका मुख्य रोग है। इस रोग से लगभग 40-85 प्रतिशत तक का नुकसान हो सकता है।

कालर राट (राइजोक्टोनियां) सागौन की गंभीर बीमारियों में से एक है। यह मुख्यतः मानसून काल के दौरान होती है। इसकी रोकथाम के लिये कार्बेन्डाजिम, थायोफिनेट मिथाइल, कार्बोक्सिन तथा मिथोजाइमिथाइल मर्करी क्लोराइड मुख्य रूप से प्रभावी उपाय हैं।

 

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभागए सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।