स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव: नये इतिहास का सृजन

                                                   स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव: नये इतिहास का सृजन

                                                                                                                                       प्रोफेसर, आर. एस. सेंगर एंव अन्य

                                              

    स्वतंत्रता दिवस, प्रत्येक भारतीय के लिए एक जश्न मनाने का अभूतपूर्व अवसर होता है। वर्तमान समय में चल रही आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में आज का इंसान स्वयं अपनी आजादी को ही भूल गया है। स्वतंत्रता दिवस के सन्दर्भ प्रत्येक भारतीय के मन एक अलग ही उमंग एवं जोश से परिपूर्ण रहता है। 15 अगस्त के दिन चहुँओर एक उत्सव, उमंग और राष्ट्रीयता की भावना अपनी चरम ऊँचाईयों पर रहती है। इन सभी खुशी की लहरों के बीच सवाल उठ रहा है कि आखिर आजादी है क्या?

                                                           

यदि हम आजादी को कविता और शायरी की भाषा में व्यक्त करना चाहें तो यह तो सुन्दरतम अहसास होता है। किसी गुलाम से आजादी का अर्थ यदि पूछा जाए तो उसके लिए अपनी बेड़ियों को तोड़कर स्वच्छन्द रूप से विचरण करना ही आजादी है। एक स्वतंत्र व्यक्ति से यह पूछना कि आजादी क्या है? तो यह अपने आप में पेचीदगी से भरा सवाल हो सकता है।

एक स्वतंत्र व्यक्ति के लिए आजादी के साथ सम्बद्व अधिकारों को जानना जहाँ सजगता होती है, वहीं कर्तव्य पर विराम का चिन्ह भी लग जाता है। स्वतंत्रता का भाव केवल मानव के लिए ही नही अपितु यह प्रत्येक प्राणी के लिए उत्साह वर्धन करने वाली ही होती है। किसी पिंजरे में कैद किसी पंछी को अपने समाज को स्वच्छंद रूप से आकाश में विचरण करते देखना, उसके लिए स्वतंत्रता के मूल्य का समझने वाले क्षण होते है।

अतः कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता का पूर्णरूप से मूल्यांकन वही व्यक्ति अच्छे से कर सकता है जिसने कभी न कभी दासता का जीवन व्यतीत किया हो।

                                         

स्वतंत्रता दिवस के इस पावन अवसर पर शिवमंगल सिंह सुमन का यह पंक्तियाँ बरबस ही स्मरण हो आती हैं-

“हम पक्षी उन्मुक्त गगन के, पिंजरबद्व न गा पाएंगे,

कनक तीलियों से टकराकर, पुलकित पंख टूट जाएंगे।

हम बहता जल पीने वाले, मर जाएंगे भूखे और प्यासे,

कहीं भली है कटुक निबोरी, कनक कटोरी की मैदा से।।“

स्वतंत्रता किसे अच्छी नही लगती है? कोई इसे छीनने के लिए आतुर होता है तो कोई अपनी विवशता के आगे मूक ही बना रहता है। मानव से लेकर पशु-पक्षियों एवं पेड़-पौधों के अन्दर भी स्वतंत्रता की ललक का अहसास आसानी से किया जा सकता है। हम अपने आस-पास में उपलब्ध प्राकृतिक वातावरण में भी स्वतंत्रता के अनेक सुन्दर उदाहरण प्राप्त कर सकते हैं।

पौधों और वृक्षों की प्रजातियों को हम यदि भरपूर स्वतंत्रता प्रदान करें तो वे एक विशाल वन का रूप धारण कर अपनी विभिन्न प्रजातियों के वृहद् स्वरूप हमारे समक्ष रख देते हैं, और इन्ही पौधों एवं वृक्षों की बोनसाई प्रजातियों को हम अपने घर के गमलों में सजा लेते हैं तो उनकी आजादी भी जंजीरों में जकड़ जाती है और सुन्दर पौधें एवं वृक्ष केवल हमारे घर की शोभामात्र ही बनकर रह जाते हैं।

                                                      

वैसे देखा जाए तो स्वतंत्रता का महत्व हमें अनगिनत स्वरूपों में दिखाई देता है और विकास के लिए भी एक आवश्यक तत्व होता है। वास्तव में स्वतंत्रता तो वह साधन है जिसके माध्यम से हमारे अन्दर नित्य नये विचारों का प्रस्फुटन होता रहता है। रचनात्मक कला के चलते विकास के लिए सर्वोत्तम मार्गों का सृजन भी होता है।

अतः यह कहने में भी कोई संकोच नही है कि जब किसी कलाकर, अभिनेता या वैज्ञानिक आदि को अपने विचारों को पंख लगाने या उन्हें साकार रूप प्रदान करने की स्वतंत्रता प्राप्त होती है तो कोई नृत्य एवं संगीत का बेताज बादशाह बनकर देश का गौरव भी बन जाता है। यह एक शाश्वत् सत्य है कि हमारी स्वतंत्रता हमें उत्साहित ही करती है।

15 अगस्त 1947 के बाद, से हमने अपने लिए बहुत कुछ अर्जित किया है। हमने अपनी प्रगति एवं विकास के मार्गों पर भी अपने कदम बढ़ाएं हैं। ऐसे तो इस बात की कल्पना करने मात्र से ही शरीर में एक सिहरन सी होती है कि यदि हम स्वतंत्र न होते तो फिर क्या होता? स्वतंत्रता प्राप्ति के अभाव में हम आज के इस भारत की तस्वीर को नहीं देख पाते।

बेशक हम अपनी आजादी का उत्सव पूरे गौरव एवं उमंग के साथ ही मनाते रहें हैं, परन्तु हमारी एक नजर उस ओर भी जानी चाहिए, जहाँ अभी भी हमारे अपने लोग गरीबी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं। यह हमारे देश के कर्णाधारों एवं जनप्रतिनिधियों का दायित्व है कि वे इस पर विचार करें कि हमारे अपने ही लोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु असहाय क्यों हैं।

                                                                       

    कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि उनका भाग्य ही उन्हें कहीं अधिक दुर्भाग्य परोस रहा हो। निश्चित् रूप से वे सहानुभूति के पात्र हैं, और एक तिरस्कृत जीवन जीना ही उनकी नियति बन चुकी है। ऐसे में क्या हम गर्व के साथ यह कह सकते हैं कि हमारे समाज का निर्धन वर्ग हमारी ही तरह से स्वतंत्रता का जश्न मनाते हुए अपने ह्दय से गौरान्वित होने का अनुभव कर रहा है?

    सच्चाई तो यह है कि वह तो केवल शारीरिक रूप से महज कुछ ही पलों के लिए हमारे साथ उस मिली हुई स्वतंत्रता का अनुभव कर पाता है, जिसने अभी तक उनके जीवन में प्रवेश भी नही किया है। भारत की यही तस्वीर, हमें अपनी जड़ों के समीप होने के महत्व का स्मरण भी कराती है। हम जिस गरीबी और निर्धनता के बारे में बाते कर रहे हैं, वह हमारा एक और संघर्ष है अशिक्षा के विरूद्व, अंधविश्वास के विरूद्व, कुरीतियों के विरूद्व, अमीरी-गरीबी में व्याप्त असमानता के विरूद्व, समाज में व्याप्त जातिवाद के विरूद्व, विभिन्न धर्मों के बीच बढ़ती वैमनस्यता के विरूद्व, स्त्री-पुरूष के बीच असमानता के विरूद्व, असत्य प्रसार के विरूद्व, जमाखोरी एवं घूसखोरी के विरूद्व और भ्रष्टाचार के विरूद्व आदि।

    वर्तमान में हमारे लिए यह अतिविचारणीय तथ्य है कि देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, भुखमरी, कुपोषण, आतंकवाद और नक्सलवाद के कारण स्वतंत्रता क्यों हांफने लगी है? निश्चित् रूप से आज हमारा देश विश्व स्तर पर प्रगति कर रहा है परन्तु इसके उपरांत भी 140 करोड़ भारतीय नागरिकों के बीच कहीं भ्रष्टाचार तो कहीं गंदी राजनीति एक नासूर की तरह ही है। 15 अगस्त का दिन हम सभी भारतियों के लिए अत्याधिक सम्मान एवं गौरव का दिन है। निःसन्देह हम बहुत भाग्यशाली रहे कि हमें इतिहास में ऐसे महान स्वतंत्रता संग्राम करने वाले लोग एवं क्रॉन्तिकारी मिले, जिन्होनें न केवल हमे आजादी दिलवायी बल्कि अपना सर्वोच्च बलिदान देकर भरत के सच्चे वीर सपूत होने का उदाहरण भी प्रस्तुत किया।

यह हमारे लिए अत्यन्त गौरव का विषय है कि हम अपनी स्वतंत्रता का ‘अमृत महोत्सव’ उत्सव मना रहे हैं, तो ऐसे में यह भी एक आवश्यक तत्व है कि हम स्वयं से कुछ सवाल पूछें?  जैसे कि आजादी कोई वरदान स्वरूप है अथवा एक बार मिल गई तो बस मिल ही गई। इसके बाद न तो इसको सहेजने की आवश्यकता है और न ही इसके विस्तार की आवश्यकता है। ऐसे में हमें यह भी स्मरण रखना होगा कि जिस देश में आजादी की गूँज बन्द हो जाए या फिर मन्द पड़ जाए, तो फिर वहाँ आजादी का बागवान का सुरक्षित रहना सम्भव नही है।

                                                                

हमें इस तथ्य को भी नही भूलना चाहिए कि आजादी केवल दिखावे अथवा फैशन की कोई चीज नही है और कहीं ऐसा न हो कि फैशन के इस दौर में हमारी आजादी की गारंटी भी जाती रहे। जिस प्रकार से हमारे दाद-परदादाओं के द्वारा बनाए गए घर को साफ-सफाई एवं रिपेयर आदि की आवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार से हमें अपनी आजादी एवं लोकतंत्र को भी लगातार ही सहेजना होगा।

आज जबकि हम अपने देश का 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, ऐसे में हमें यह प्रण लेना चाहिए कि हम अपने देश के विकास में आवश्यक सहयोग प्रदान करेंगे और देश को अखण्ड़ एवं एक बनाए रखने के लिए हरसम्भव प्रयास करेंगे। यह निश्चित् है कि जब हमस ब एक साथ मिलकर अपने समक्ष उपलब्ध समस्याओं एवं दुश्मनों के सामने खड़ें होंगे तो हम अपने देश को विश्व का एक अग्रणी राष्ट्र बनाकर ही दम लेंगे। अभी हमने अपने आपको बहुत-सी ऐसी जंजीरों से मुक्त कराना बाकी है, जो हमारे आगे बढ़ने और एक समृद्वशाली राष्ट्र बनने में बाधाएं उत्पन्न करती हैं।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।

डिस्कलेमरः उपरोक्त विचार लेखक के अपने विचार हैं।