ओमेगा-थ्री फैटी एसिड फेफड़ों के लिए लाभकारी

                                             ओमेगा-थ्री फैटी एसिड फेफड़ों के लिए लाभकारी

                                                                                                                                 डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                         

    कम लोगों को ही इस बात का पता है कि आमेगा-थ्री फैटी एसिड विभिन्न तरकों से हमारे शरीर को लाभ देने के अलावा यह हमारे फेफड़ों की सेहत के लिए भी काफी प्रभावित होता है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के शोधकताओं के द्वारा किए एक अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है।

इन शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि ओमेगा-थ्री से कैंसर एवं ह्नदय रोगों में होने वाले लाभों के बारे में तो अधिकतर लोग जानते ही हैं, परन्तु फेफड़ों के क्रॉनिक रोगों के अन्तर्गत अभी इस पोषक तत्व की भूमिका को कम करके आंका जा रहा था। इसके सापेक्ष ऐसे लोग जिनके रक्त में ओमेगा-थ्री का स्तर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध था, उनके फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती उम्र में भी कम नही हुई थी। इससे स्पष्ट होता है कि यह पोषक तत्व फेफड़ों की सेहत में भी व्यापक सुधार करता है।

                                                          कम नींद माँ और बच्चा दोनों को ही करती है कुप्रभावित

                                                       

बच्चे को जन्म देने के बाद, एक लम्बे समय तक नई बनी माँ को अक्सर कम नींद की समस्या बनी रहती है। नार्थ-वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में यह जानने का प्रयास किया कि नींद की कमी शिशु एवं माँ दोनों के स्वास्थ्य को किस प्रकार प्रभावित करती है। शोधकर्ताओं ने नई बनी माताओं को दो समूह में विभाजित किया।

इसमें पहला समूह प्रतिदिन 6 से 8 घण्टें तक की नींद ले रहा था तो दूरे समूह की माताएं 7 से 8 घण्टे तक की नींद ले रही थी। इस अध्ययन सामने आया कि जो माताएं रात में कम नींद ले पा रही थी, उनके बच्चे भी कम नींद ही ले पा रहे थे। यदि तीन माह की उम्र से ही बच्चे का बेड टाईम रूटीन बनाकर तय कर दिया जाए तो ऐसे बच्चे रात में अच्छी तरह से नींद ले पाते हैं और इसका सकारात्मक प्रभाव माता की नींद पर भी नजर आता है, और वह हर समय थकान का अनुभव करती हैं।

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वैसे तो संतुलित एवं पोष्टिक आहार का सेवन करना आयु के प्रत्येक पड़ाव पर आवश्यक होता है, परन्तु किशोर अवस्था में इसका महत्व कहीं अधिक बढ़ जाता है। क्योंकि इस दौरान शारीरिक विकास अपने चरम पर होता है। जबकि लड़कियों में इस दौरान पीरियड्स के साथ ही उनके शरीर में विभिन्न प्रकार के बदलाव आने शुरू हो जाते हैं, जिसके कारण इन लड़कियों के आहार पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है। जिससे कि उनका शारीरिक विकास भी सही तरीके से होने के साथ ही भविष्य में भी उन्हें किसी प्रकार की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या का सामना नही करना पड़े।

सही पोषण होता है आवश्यक

किशोररावस्था के दौरान कद के बढ़ने के साथ ही अन्य प्रकार के शारीरिक विकास भी तेजी के साथ होने लगते हैं, जिसके कारण इस समय सामान्य से अधिक पोषण की आवश्यकता होती है। शरीर की मांसपेशियों को सुदृढ़ता प्रदान करने और नए ऊतकों के निर्माण और उनकी रिपेयर के लिए 85ध् सामान्य से अधिेक मात्रा में प्रोटीन की आवश्यकता होती है और इसके साथ ही फैट्स एवंकार्बोहाइड्रेट्स भी समुचित मात्रा में आवश्यक होते हैं, जो हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करने के साथ ही फैट में विलयशील विटामिन्स के स्तर में संतुलन बनाने में सहायक होती है।

रोगों से बचाव

                                                     

किशोर युवतियों को प्रतिदिन लगभग 2,200 कैलोरी की आवश्यकता होती है, जिसकी पूर्ती के लिए उनके आहार में समस्त पोषक तत्वों का संतुलित मात्रा में होना आवश्यक है, नही होने की स्थिति में किशोर युवतियों को भविष्य में विभिन्न स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिलताओं का सामना भी करना पड़ सकता है।

हड्डियों की परेशानी

किशेरावस्था के दौरान कद में तेजी से वृद्वि होती है अतः इसके लिए हड्डियों की सुदृढ़ता बहुत ही आवश्यक होती है और हड्डियों की मजबूती के लिए उनके आहार में उचित मात्रा में कैल्शियम का होना भी आवश्यक है।

पीरियड्स के दौरान समस्या

किशोरवय की लड़कियों के आहार में पोषक तत्वों की मात्रा के पर्याप्त रूप में उपलब्ध नही होने के कारण कुछ लड़कियों में अधिक एवं अनियमित रक्तस्राव की समस्या उत्पन्न हो जाती है और इसके साथ ही उनमें बार-बार होने वाले संक्रमण का खतरा भी अपने चरम पर होता है। केवल इतना ही नही, पोषण की कमी के चलते भविष्य में इनइ लड़कियों को गर्भधारण करने से लेकर लेकर उनके प्रसव के समय तक अनेक प्रकार की समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए किशोरवय की लड़कियों के आहार में नियमित रूप से जिंक सहित अन्य खनिजों का समावेश उचित मात्रा में करना आवश्यक होता है।

किशोरवय की लड़कियों के लिए उचित आहार

किशोर उम्र की लड़कियों में सबसे बड़े बदलाव पीरियड्स के आरम्भ होने पर होता है, अतः इस दौरान विशेष रूप से उनके खान-पान का ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए हरी एवं पत्तेदार सब्जियाँ, मौसमी फल, सुखे मेवे, देशी घी, गुड़, अण्ड़े, चिकन, दलहन एवं साबुत अनाज उनके आहार में शामिल करना चाहिए।

विटामिन-सी युक्त पोधण के लिए किशोर युवतियों की डाइट में आँवला, नींबू और संतरा आदि को शामिल करना चाहिए। इससे किशोर लड़कियों के सम्पूर्ण विकास में सहायता प्राप्त होती है।

इन चीजों का न करें सेवन

  • नवयुवतियों को अधिक मात्रा में जंक फूड्स का सेवन नही करना चाहिए, क्योकि जंक फूड्स में ट्राँस एवं अनसैचुरेटेड फैट्स आदि की अधिकता रहती है, जिससे कम उम्र में ही ह्नदय रोगों से सबन्धित बीमारियों के खतरे में वृद्वि होती है।
  • कोल्ड ड्रिंक्स, बिस्किट्स, कैण्ड एवं चिप्स आदि में चीनी की मात्रा अत्याधिक होने के कारण शरीर में कैलोरी की मात्रा बढ़ जाती है अतः इस प्रकार की चीजों के सेवन करने से बचना ही श्रेयकर होता है।
  • कैफीन से युक्त विभिन्न पेय पदार्थ जैसे चाय एवं कॉफी आदि का सेवन भी इस उम्र में कम ही करना चाहिए।

वजन बढ़ने के भय से चिकनाई का सेवन न करना भी नुकसान दायक होता है, अतः देशी घी जैसी सेहतमंद वसा को किशोरवय की लडकियों के नियमित आहार में शामिल करना चाहिए।

नवयुवतियों के लिए स्नैक्स के रूप में चिप्स अथवा बाजार में मिलने वाली नमकीन आदि के स्थान पर उन्हें रोस्टेड नट्स, भेल अथवा फ्रूट चाट का सेवन ही करना श्रेयकर होता है।

लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल में मेडिकल आफिसर हैं।