रिश्तों में दोस्ती की सीमाएं

                                                                  रिश्तों में दोस्ती की सीमाएं

                                                               

    दोस्ती, एक ऐसा रिश्ता जिसका चुनाव हम स्वयं अपनी इच्छा से करते हैं। दोस्ती के जैस रिश्ता जिसमें किसी भी विषय पर खुलकर बात करने और एक साथ मिलकर निर्णय करने अवसर प्राप्त होता है, ऐसा अन्य किसी भी रिश्ते में नही होता है। परन्तु यदि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान हम यह भूल जाएं कि यह भी एक परिवार ही होता है, जिसका अपना एक सिस्टम होता है, तो इसके विभिन्न दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं।

    याद रखें कि पारिवारिक सम्बन्धों में दोस्ती करना असलियत में एक तरह से रस्सी पर चलने जैसा ही एक करतब होता है, जहाँ आपको दोस्ती और रिश्ते में संतुलन बनाना आवश्यक होता है। दोस्त आपके साथ घर पर तो नही रहते हैं जबकि परिवार आपके साथ ही रहता है। यदि कोई व्यक्ति अपनी नौकरी को छोड़कर अपने मन से कोई काम करना चाहे तो दोस्त इसमें उसे प्रोत्साहित ही करेंगे। किन्तु, शायद एक दोस्त तरह रहने वाला आपका जीवन साथी ही करें।

    क्योंकि आपके इस निर्णय का प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ना तय है और ऐसे में अपने जीवनसाथी से दोस्तों की तरह प्रोत्साहन की आशा करना, मतलब अपने रिश्तों को खराब करना ही है।

    अपने पेरेन्ट्स से दोस्ती इसलिए महत्वपूर्ण होती है, जिससे कि बच्चे बिना किसी संकोच के उनसे अपनी बातें शेयर कर सकें और पेरेन्ट्स उन्हें सही दिशा दिखा सकें। हालांकि यहाँ भी आपको अपनी दोस्ती के लिए एक सीमा का निर्धारण करना होगा। इसके लिए बच्चों को केवल इतनी दोस्ती का माहौल देना ही पर्याप्त होगा कि वे अपनी बात खुलकर कह पाएं और इसका अर्थ यह कदापि नही है कि बच्चों को ऐसा माहौल दिया जाए कि च्चे उसे ‘‘फॉर ग्रांटेड़’’ लेने लगे और उसके चक्कर में कोई गलत कदम उठाने लगे। अक्सर इस उम्र के बच्चे गलत या सही चीजें प्रायः दोस्तों से ही सीखते हैं।

    वहीं कई बार बच्चों से कुड नही छिपाने के चक्कर में हम उनसे अपनी आर्थिक स्थिति से लेकर परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अपने रिश्तों आदि के बारे में उनसे खुलकर बाते करने लगते हैं। विभिन्न अध्ययनों में सामने आया है कि आर्थिक स्थिति का बाल मन पर बहुत अधिक गहरा प्रभाव पड़ता है। एक खराब आर्थिक स्थिति के चलते कई बच्चे डिप्रेशन का शिकार भी हो जाते हैं तो कई बार बच्चे आर्थिक स्थिति के चलते अपने मन की बात या अपनी आवश्यकताओं को अपने माता-पिता को बताने से बचने लगते हैं। वहीं इसके विपरीत बहुत अधिक अमीर बच्चों में लापरवाही और धमण्ड़ आदि भरावनाएं पनपने लगती हैं।

    हालांकि, रिश्तों में दोस्ती का महत्वपूर्ण स्थान होता है, परन्तु इसमें यह ध्यान रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है कि रिश्तों में दोस्ती को एक दूसरे को सम्मान देते हुए आगे बढ़ाने की आवश्यकता होती है। रिश्तों में दोस्ती रिश्तों को कहीं अधिक सुदृढ़ बनाते हुए उन्हें मधूरता प्रदान करती है, जबकि रिश्तों को दोस्ती में बदलने का दबाव रिश्तों को समाप्त या तोड़ भी सकता है।

दोस्ती का रिश्ता होता है सब रिश्तों पर भारी

                                                           

    हमारे जीवन में जीवन के प्रति सपने बदलते रहते हैं, विभिन्न ट्रेंड्स भी आते और जाते रहते हैं लेकिन इस सब में दोस्ती एक ऐसी चीज है जो कभी भी नही बदलती है और न ही इसकी अहमियत कम होती है।  इस फ्रेन्डशिप डे के अवसर पर हमारे प्रोफेसर राकेश सिंह सेंगर जी बता रहें हैं सोशल मीडिया के वर्तमान दौर में हमारे प्रत्येक रिश्तें में एक दोस्ती का भाव जरूरी क्यो आज के समय की एक जरूरी माँग बन गया है।

    दुनिया के सबसे अहम और सुन्दरतम शब्दों में शुमार किया जाने वाला एक शब्द जिसे दोस्त कहा जाता है। एक सच्चा दोस्त आपके प्रत्येक सही एवं गलत निर्णयों में हमेशा आपके साथ होता है। एक सच्चा दोस्त आपको आने वाली प्रत्येक कठिनाई से बचता है तो वह आपके काम के लिए अनेक प्रयत्न भी करता रहता है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि आप चाहे जो भी कहे या करें तो दोस्त आपके प्रति कभी भी कोई पूर्वाग्रह नही पालता है। आखिर ऐसा क्यों न हो, जबकि यह रिश्ता, दुनिया के सबसे सुन्दरतम रिश्तों में से एक माना जाता है और यह बात विभिन्न शोधों में भी कई बार स्पष्ट हो चुकी है।

    दुनिया में, दोस्ती का रिश्ता ही एकमात्र ऐसा रिश्ता होता है जिसकी तुलना आप किसी अन्य रिश्ते के साथ नही कर सकते। दोस्ती यही भाव यदि आप अपने प्रत्येक रिश्ते में भी बनाकर रखें तो आपका जीवन बहुत ही खूबसूरत हो जाएगा। इससे बहुत कुछ बदल सकता है आपके जीवन में। लेकिन इस भाव का असली अर्थ समझने से पहले हम आपको कुछ छोटे-मोटे किस्से भी सुनाता हूँ जिससे कि यह बात आप अच्दी तरह से समझ सकें-

                                                               

किसाा 1: किसी माँ ने अपनी बेटी को उसकी किसी सहेली से बाते करते समय रोते हुए सुना, तो उस माता ने ध्यान किया कि उसकी हंसती-खेलती किशोरवय बेटी पिछले कुछ दिनों से अचानक ही उदास रहने लगी है। जब उसकी माँ ने उससे इसके बारें में पूछा तो वह मुस्कुराने लगी और बिलकुल सामान्य व्यवहार करने का प्रयास करने लगी। माँ के काफी जोर देने पर भी उसने कहा कि कोई विशेष बात नही हैं। जबकि बेटी की पढ़ाई से लेकर उसके सामान्य व्यवहार में भी कई नकारात्मक परिवर्तन आ रहे थे।

    बेटी के पिता ने भी उससे पूछा कि कहीं उसे कोई परेशान तो नही कर रहा है, तो भी बेटी का उत्तर यही रहा कि उसे किसी प्रकार की कोई समस्या नही है। लड़की के माँ-बाप ने उसकी सबसे अंतरंग सहेली से भी इसके बारें में जिक्र किया तो सहेली ने दउलटा उनसे ही पूछ लिया कि कहीं कोई किसी प्रकार का आकर्षण अथवा प्रेम आदि का कोई चक्कर तो नही है तो लड़की की माँ ने कहा कि 15 वर्ष की इस आयु कैसा प्रेम। लेकिन उस सहेली के कहने पर जब लड़की की माँ ने उससे पूछा तो लड़की कुछ पल के लिए तो चुप हो गई लेकिन इसके बाद वह अपनी माँ के गले से लगकर रोने लगी।

किस्सा -2: एक किशेर आयु के लड़के ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसके पिता उस पर आईआईटी करने के लिए प्रेशर बना रहे थे, और वह इसे नही कर पा रहा था। अब उसके पिता यही कह रहें हैं कि यदि वह आईआईटी नही करना चाह रहा तो यही बात उसने पहले उनसे क्यों नही कही, यदि वह कहता तो वह उसे आईआईटी की तैयारी करने के लिए मजबूर नही करते।

किस्सा-3: इसी प्रकार का एक किस्सा पति-पत्नि के बीच का है। इसमें पति बहुत ही मिलनसार एवं हंसमुख किस्म के व्यक्ति थे। अपने दफ्तर एवं दोस्तों की पार्टी के वे शान हुआ करते थे। घर-पकिरवार एवं अपनी पत्नि का का पूरा ध्यान रखते हुए वह पत्नि के साथ मित्रवत व्यवहार किया करते थे, उनका कहना था कि उनकी पत्नि उनकी सबसे अच्छी दोस्त है। उनकी पत्नि भी काफी खुश दिखाई देती थी। फिर अचानक एक दिन खबर मिली कि उन दोनों का तलाक हो गया।

    ऐसे में अब सवाल उठता है कि किस कारण के चलते वह 15 वर्ष की बच्ची अपनेग किसी दोस्त के सामने तो रो सकती है, परन्तु वह अपनी माँ को कुछ भी नही बता पाती है? क्यों वह किशोर अपना जीवन तो समाप्त कर सकता है परन्तु अपने माता-पिता के सामने अपना दिल खोलकर उनसे बात नही कर सकता?

    व्ह परिवार जो आपके साथ अपना जीवन व्यतीत करता है, जो आपस में एक दूसरे के लिए जी भी सकते हैं तो मर भी सकते हैं। तो फिर ऐसे में वे एक दोस्त ही क्यों नही हो सकते? फिर भी इस सब से अलग हमारे सामने उस दम्पत्ति का भी तो किस्सा है जो अपना जीवन मित्रवत् ही व्यतीत कर रहे थे, फिर अचानक ही खबर आती है कि उनमें तलाक हो गया। इस दुनिया में अपने मन की बात कहने के लिए सदैव दोस्त को ही क्यों चुना जाता है।  

                                                         

    वर्तमान युग के परिप्रेक्ष्य में इस चर्चा का अपना एक अलग ही महत्व होगा कि माता-पिता और संतान अथवा पति-पत्नि आदि जैसे सम्बन्ध अपने पारम्परिक ढर्रें पर न चलकर अब क्यों न मित्रवत हो जाएं। इससे सम्बन्धों में एक खुलापन, अपने मन की बात कह सकने की आजादी तो होनी ही चाहिए।

    जब हमारे रिश्तों में दोस्ती का भाव आ जाता है तो उससे हमारे रिश्ते अधिक विकसित और खुशनुमा स्वरूप ग्रहण कर लेते हैं। बच्चा हो या फिर जीवन साथी इससे उनके आत्मविश्वास में वृद्वि होती है। परन्तु इसके लिए एक स्वस्थ संवाद का होना भी बहुत आवश्यक है, जिसका दोनों ओर से होना बहुत जरूरी है।

    विभिन्न शाोधों के अनुसार एक अच्छी दोस्ती की शुरूआत के लिए लगभग 11 इंटरेक्शन अर्थात 11 बार मिलना-जुलना और आपस में बातचीत करना करना आवश्यक होता है। जिसमें दोनों को ही लगभग तीन-तीन घण्टे तक चलना चाहिए। वर्तमान की दौड़-भाग से परिपूर्ण जिन्दगी में समय का यह प्रथम और सबसे जरूरी निवेश कहा जा सकता है।