अब देश को चाहिए एक नई हरित क्रांति

                                                            अब देश को चाहिए एक नई हरित क्रांति

                                                                                                                            प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 शालिनी गुप्ता

देश में नई हरित क्रांति की समय की माँग

                                                         

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि दुनिया को प्राकृतिक खेती का रास्ता दिखाने और किसानों को समृद्धि के रास्ते पर आगे बढ़ाने के लिए भारत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आज एक नई हरित क्रांति की निहायत ही जरूरत है। यह हरित क्रांति जैविक उत्पादों के लिए पूरी दुनिया में बाजारों की खोज कर दुनिया भर से पैसा भारत में लाएगी।

अमित शाह ने कहा कि गुजरात के कच्छ जिले में 500 मि.ली. की तरल उर्वरक की 2 लाख बोतल का प्रतिदिन उत्पादन होगा, जिससे आयातित उर्वरक पर निर्भरता कम होगी और 10,000 करोड रुपए की सब्सिडी भी बच सकेगी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में देश में नई हरित क्रांति की शुरुआत हो चुकी है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए आगामी 5 में साल में देश में 3 लाख प्राथमिक कृषि क्रेडिट सोसाइटी बनाने का लक्ष्य भी रखा गया है। इफको के नए तरल यूऱिया से किसानों को काफी लाभ मिल सकेगा।

इससे हमारी धरती माता भी सुरक्षित रहेगी तथा जमीन को उपजाऊ बनाए रखना जो कि वर्तमान समय में किसानों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है, उससे भी आसानी से निपटा जा सकेगा। तरल उर्वरक जमीन में नीचे नहीं उतरता है और यह पौधों तक ही सीमित रहता है। इससे हमारा भूमिगत जल भी प्रदूषित नहीं होगा तथा जमीन भी सुरक्षित और उपजाऊ बनी रहेगी। उत्पादन के बढ़ने से किसानों को आर्थिक लाभ तो होगा ही साथ ही देश में उर्वरक का उत्पादन होगा तो सरकार को इसे विदेशों से आयात नहीं करना पड़ेगा।

भारत में आज सतत कृषि विकास की मांग में तेजी आ रही है, हालांकि हरित क्रांति के चलते देश में उत्पादन में तो उत्तरोत्तर बढ़ोत्तरी हुई, लेकिन रासायनिक खादों के इस्तेमाल से मिट्टी की गुणवत्ता प्रतिदिन कम होती चली गई। इसके परिणामस्वरूप आज देश में बंजर हो चुकी भूमि का प्रतिशत काफी बढ़ चुका है। भारत ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए पिछले कुछ सालों से सतत कृषि विकास की दिशा में गंभीर प्रयास किए हैं।

जिसके परिणाम स्वरूप आज देश में जैविक और प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में निरंतर बढ़ोत्तरी हो रही है, इसके साथ ही सिंचाई में कम जल खपत करने वाली पद्धतियों का इस्तेमाल भी दिनों दिन बढ़ रहा है। एक ही कृषि प्रणाली के तहत कृषि के साथ-साथ मधुमक्खी पालन, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन और रेशम कीट पालन आदि को बढ़ावा दिए जाने से एक तरफ पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित हो रही है, तो वहीं दूसरी तरफ किसानों की आर्थिक स्थिति को भी बेहतर बनाया जा रहा है।

                                                                  

सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से बेहतर भविष्यवाणी और पर्यावरण तथा मिट्टी की स्थिति आदि की निगरानी आसान हो जाने से खेती को अधिक लाभदायक और टिकाऊ बनाया जा रहा है। जिससे उत्पादन और उत्पादकता दोनों ही बढ़ रही है। आज आईसीटी उपकरण किसानों को जल प्रबंधन किट और रोग नियंत्रण के लिए मिट्टी परीक्षण और फसल कटाई के उपरांत की प्रबंधन तकनीक आदि पर समय पर सटीक और  प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करके अपनी कृषि की उत्पादन क्षमता बढ़ाने में सक्षम बना रहे हैं।

भारत सरकार के द्वारा कृषि में उत्थान के उद्देश्य देश के विभिन्न हिस्सों में कृषकों को जैविक खेती करने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास भी किया जा रहा है। इसका दोहरा लक्ष्य है, जिसमें पहला जैविक कृषि उत्पाद को बढ़ाना तथा दूसरा जैविक खेती से मृदा स्वास्थ्य को बेहतर बनाना। भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के सुखद परिणाम अब सामने आने लगे हैं। मृदा जांच से यह पता चलने पर कि हमारी भूमि में किस पोषक तत्व की कमी है, उसकी कमी को अब अनुमान के आधार पर उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है केवल उसी तत्व की पूर्ति कर दी जाती है। अतः अब इसकी वजह से पूर्व में उर्वरकों पर होने वाले खर्च में भी 8-10 प्रतिशत तक की कमी देखने को मिल रही है। इसके साथ ही खेतों में सही उर्वरकों के इस्तेमाल करने से फसलों की उत्पादकता में भी 5-6 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने में आ रही है।

भारत सरकार के द्वारा किसानों को ,उनके उत्पादों का उचित मूल्य दिलाने तथा बिचौलियों की भूमिका को समाप्त करने के उद्देश्य से इलेक्ट्रॉनिक कृषि बाजार की स्थापना भी की गई है, जो आज तकरीबन देश के हर हिस्से तक अपनी पहुंच बना चुके हैं। सतत कृषि की प्रगति के लिए एक राष्ट्रीय मिशन का गठन भी किया गया है, जो कृषि को अधिक उत्पादक, टिकाऊ, लाभदायक तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति सहिषणु बनाने के लिए कार्य कर रहा है। उत्पादन तथा उत्पादकता को बढ़ाने के लिए बीज तथा पौधारोपण सामग्री पर एक यूपी मिशन का गठन भी किया गया है जिसके उद्देश्यों में प्रमाणित एवं गुणवत्तापूर्ण बीजों का उत्पादन करना तथा बीज प्रजनन प्रणाली को मजबूती प्रदान करना बीज और उत्पादन हेतु नई तकनीक और तौर-तरीकों को बढ़ावा देना एवं उनका परीक्षण करना भी शामिल है।

                                                         

भारतीय केंद्र सरकार के द्वारा देश के कृषि क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता दी जा रही है जिससे कृषि एवं ग्रामीण विकास से जुड़ी तमाम नई योजनाएं भी इसी क्रम में अस्तित्व में आई है। इन योजनाओं के सफल कार्यान्वयन के सकारात्मक नतीजे भी अब सामने आने लगे हैं और वर्तमान में देश खाद्यान्न, दूध, फल, सब्जी, मछली, मुर्गी पालन और पशुपालन आदि के क्षेत्रों में न सिर्फ आत्मनिर्भर बन सका, बल्कि विविध प्रकार के कृषि उत्पादों का निर्यात भी कर रहा है।

बहुत से कृषि उत्पादों में विश्व का शीर्ष उत्पादक होने के कारण, आज देश में अनाज का उचित भंडार मौजूद है। इन योजनाओं के चलते ही आज किसानों की आमदनी में भी उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की जा रही है, अपितु इसके साथ ही बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की कमाई भी संभव हो सकी है। सतत कृषि विकास से रासायनिक आदानों के कम प्रयोग से जहाँ एक तरफ मृदा उर्वरता में वृद्धि होगी तो वहीं दूसरी तरफ कृषिगत उत्पादों की गुणवत्ता भी बढ़ेगी, इससे उपभोक्ताओं का बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करने और समुदाय की विभिन्न बीमारियों को कम करने में मदद भी मिलेगी। साथ ही सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम अपनी भावी पीढ़ी के हाथों एक सुरक्षित भविष्य सौंपने की दिशा में भी अग्रसर हो सकेंगे, जो नई हरित क्रांति होगी वह निश्चित रूप से भावी पीढ़ी के सुरक्षित भविष्य के लिए लाभकारी ही साबित होगी।

यदि हम भारत में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर, प्रति व्यक्ति जीडीपी किसी भी देश या क्षेत्र में प्रति व्यक्ति औसत आर्थिक उत्पादन का आकलन करता है। भारत में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र के योगदान में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट आई है, क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था में विविधता आई है और अन्य क्षेत्रों जैसे सेवा क्षेत्र और विनिर्माण क्षेत्र आदि का विकास हुआ है।

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय का अनुमान है कि कृषि और संबंधित क्षेत्रों का जीबीए 2020-21 में 20.2 प्रतिशत था जो 2021-22 में घटकर 19.8 प्रतिशत हुआ और वर्ष 2022-23 में फिर से घटकर 18.3 प्रतिशत हो गया है। हाल ही के वर्षों में आर्थिक शक्ति के समीकरणों में काफी बदलाव आया है और ब्रिक देशों ब्राजील, रूस भारत और चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्था में केंद्र में आ गए हैं। ब्रिक देशों की जीडीपी विकास दर संयुक्त राज्य अमेरिका और जर्मनी जैसे पारंपरिक रूप से मजबूत अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कहीं अधिक है।

संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था किसी भी मापदंड से दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में चीन की दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी है, जबकि तीसरे स्थान के लिए भारत और जापान में होड़ लगी हुई है। वर्ष 2008 और 2009 में वैश्विक मंदी के बावजूद भारत सकल घरेलू उत्पाद की प्रभावशाली विकास दर को बनाए रखने में कामयाब रहा था, विशेष रूप से यह देखते हुए कि दुनिया के अधिकांश देश कम से कम 1 वर्ष नकारात्मक वृद्धि के दौर से गुजरे हैं।

                                                                 

हालांकि, भारत के प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान समय के साथ कम हुआ है, परन्तु इसके उपरांत भी यह भारत की अर्थव्यवस्था का एक अनिवार्य क्षेत्र बना हुआ है। विशेष रूप से रोजगार और आजीविका के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए, कृषि क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए ही भारत सरकार द्वारा, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना और राष्ट्रीय कृषि बाजार सहित विभिन्न योजनाओं की शुरूआत की गई है। इन योजनाओं का उद्देश्य भारत में किसान की उत्पादकता में वृद्धि लाना, जोखिम को कम करना और किसानों की आय में वृद्धि करना शामिल है।

सतत कृषि का विकास, एक ऐसी कृषि पद्धति है जिसमें मिट्टी, पर्यावरण और समुदाय के दीर्घकालिक स्वास्थ्य आदि मुद्दों को केन्द्र में रखा जाता है। भावी पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करते हुए, खाद मांग को पूरा करना अपने आप में महत्वपूर्ण है। दुनिया के पर्यावरण संरक्षण के महत्व के बारे में अधिक जागरूक होने के कारण हाल के वर्षों में सतत कृषि पर विशेष ध्यान दिया गया है।

सतत कृषि पर्यावरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य, मानव समुदायों और पशु कल्याण आदि को संरक्षित रखते हुए भोजन, फाइबर या अन्य वनस्पति या पशु उत्पादों का उत्पादन करती है। जिन पद्धतियों के माध्यम से हमारे प्राकृतिक संसाधनों जैसे मिट्टी, जल और हवा को भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित और पुनर्जीवित किया जाता है। किसान ऐसी सतत कृषि प्रणालियां विशेष रूप से कर सकते हैं, जो उन्नत तकनीकों को अपनाकर पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बढ़ावा देती हैं।

                                                              

हालांकि यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि प्राकृतिक कृषि कोई जादुई समाधान नहीं है और सतत कृषि के लिए इसे अन्य सतत कृषि पद्धतियों जैसे मृदा संरक्षण, फसल चक्र और एकीकृत कीट प्रबंधन के साथ लागू किया जाना चाहिए। यदि इनको सही से लागू किया जाता है तो निश्चित रूप से एक नई हरित क्रांति देश में पैदा हो सकेगी जिसमें हम कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर अपनी आर्थिक स्थिति को भी ठीक है कर सकेंगे।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।