डेंगू बुखार की समय पर जाँच एवं इसका उपचार अति आवश्यक

                                                डेंगू बुखार की समय पर जाँच एवं इसका उपचार अति आवश्यक

                                                                                                                                                     डॉ0 दिव्यांशु सेंगर

                                            

    मानसून के दौरान अनेक प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं आती रहती हैं और डेंगू बुखार भी उन्हीं में से एक है। यदि आपको बुखार, सिरदर्द और बदन दर्द की समस्या हो रही है तो आपको तुरन्त ही डेंगू की जाँच कराकर अविलम्ब इसका उपचार आरम्भ कर देना चाहिए।

    इस समय अनेक क्षेत्रों में वर्षा एवं जल-जमाव के कारण मच्छरों के माध्यम से उत्पन्न बीमारियाँ तेजी से फैल रही हैं। जिनमें विशेष रूप से डेंगू बुखार के मामले सामने आ रहे हैं। जबकि कुछ स्थानों पर तो डेंगू के गम्भीर रूप डेंगू-2 के मामले भी सामने आने की बाते की जा रहीं हैं। डेंगू-2 प्रारूप में प्रभावित व्यक्ति का रक्तचॉप बहुत कम हो जाता है जिसके चलते व्यक्ति में रक्तस्राव की सम्स्या भी हो सकती हैं।

यह बात अलग है कि बड़े स्तर पर इसकी पुस्टी अभी तक नही हुई है। अभी गम्भीर लक्षणों वाले मरीज समाने नही आ रहे हैं। अधिकतर सामन्य प्रकार के लक्षण ही दिख रहे हैं, जैसे कि बुखार, सिरदर्द और बदन दर्द आदि।

प्लेटलेट्स कम होने के उपरांत भी घबराना नही चाहिए- डेंगू बुखार वाले मरीजों की प्लेटलेट्स कम होने लगती हैं, जबकि कुछ मरीजों को अलग से प्लेटलेट्स चढ़ाने की आवश्यकता भी हो सकती है। अतः यदि किसी मरीज की प्लेटलेट्स कम हो रही है तो उपचार के माध्यम से इसका समाधान किया जा सकता है।

दवाओं के सेवन में आवश्यक है सावधानी- यदि आपके आस-पास के लोगों में बुखार चल रहा है तो आपको आईब्रूफेन या फिर वोवरॉन जैसी दवओं का सेवन करने बचना ही ठीक रहता है। यदि बुखार तेज है तो मरीज के माथे पर ठण्ड़े पानी में भी सूती कपड़े की पट्टियाँ रखनी चाहिए और बायोसिटामोल नामक गोली का प्रयोग करना चाहिए। किसी को भी बुखार होने पर डेंगू की जाँच अवश्य कराएं। इसके लिए प्रारम्भ में एंटीजन टेस्ट किया जाता है और फिर इसके बाद एंटीबाफडी टेस्ट किया जाता है।

आइजीएम टेस्ट भी होता है आवश्यक- आइजीएम टेस्ट भाी एंटभ्बॉडीज टेस्ट होता है, जिसमें आइजीजी टेस्ट का कोई भी महत्व नही होता है। रक्त के गाढ़े पन से बचने के लिए अधिक पानी का सेवन करना जरूरी होता है। इसमें पीसीवी का स्तर जितना अधिक बढ़ा हुआ होगा, रक्त का गाढ़ापन भी उतना ही अधिक होता है। इसके साथ ही ऐसा होने से रोगी की प्लेटलेट्स में भी हानि होती है।

                                                       

चिकित्सक की देख-रेख में करें दवाईयों का सेवन- निमुस्लाईड, वोवेरॉन एवं ब्रूफेन आदि दवाओं की सहायता से बुखार को खत्म करने का प्रयास बिलकुल न करें। यदि मरीज का बुखार 101-102 डिग्री तक भी है तो पैरासिटामॉल 6-6 घण्टे के अन्तर से ली जा सकती है। बुखार के चढ़ते ही Liquid का सेवन अधिक करना लाभदायक रहता है। यदि कोई व्यक्ति पहले से ही हार्ट एवं किडनी आदि की समस्या से जूझ रहा है तो ऐसे व्यक्ति को अपने चिकित्सक की देखरेख में ही दवाओं का सेवन करना चाहिए। यदि प्लेटलेट्स का स्तर 50,000 से कम है, ब्लीडिंग एवं लो-बीपी की समस्या निरंतर बनी हुई है तो इसका विकल्प केवल अस्पताल में भर्ती होना ही होता है।

डॉक्टर से सम्पर्क करने का समय-

1.   यदि किसी मरीज को उल्टियाँ हो रही हैं और पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन भी नही कर पा रहा है, तो ऐसे में मरीज को तुरन्त ही अस्पताल ले जाना चाहिए।

2.   यदि रोगी का प्लेटलेट्स का स्तर तो ठीक है परन्तु वह मरीज खाने-पीने के दौरान परेशानी का अनुभव कर रहा है तो इस स्थिति में उसे तुरन्त अस्पताल लेकर जाना ही उचित रहता है।

3.   यदि किसी मरीज की तबयित में दो या तीन के अन्दर कोई सुधार नही आता है तो इसे लिए किसी योग्य फिजिशियन अथवा पीडियाट्रिशन से परामर्श करना चाहिए।

खान-पाप का भी रखें ध्यान-

1.   अधिक मसालेदार और डिब्बाबन्द भोजन से परहेज करें।

2.   इस बात का विशेष ध्यान रखें कि मरीज जो भी भोजन कर रहा है वह सुपाच्य हो, जिससे कि शरीर को इस भेजन से कोई परेशानी न हो।

3.   हमेशा स्वच्छ एवं शुद्व पेजल का ही प्रयोग करें।

                                                                        शिशु के साथ माँ भी रहती है स्वस्थ

                                                                       

    स्तनपान करने से केवल शिशु ही नही अपितु माता को भी बहुत सारे लाभ प्राप्त होते हैं। माँ का दूध एक नवजात शिशु के लिए सम्पूर्ण आहार होता है। स्तनपान करना शिशु के लिए जन्म से लेकर 06 माह की आयु तक के लिए तो यह बहुत ही आवश्यक होता है। स्तनपान करने से न केवल शिशु का स्वास्थ्य बेहतर होता है बल्कि इसके साथ ही यह शिशु का अनेक रोगों एवं संक्रमण आदि से भी बचाव करता है। एक नवजात शिशु को स्तनपान करने से होने वाले लाभ-

  • शिशु के जन्म के 24 से 48 घण्टे के अन्दर स्तनपान कराने से जो पोषण प्राप्त होता है वह बच्चे के लिए अत्यन्त ही लाभकारी होता है।
  • आजकल विभिन्न अस्पतालों में स्तनपान कराने बढ़ाने के विभिन्न तरीको का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है, तो लोागें को इसका लाभ भी उठाना चाहिए।
  • जनरली स्तनपान कराने में दो प्रकार की समस्या होती हैं जिनमे पहली स्तनपान नही कर पा रहा है तो दूसरी यह होती है कि माँ के शरीर में पर्याप्त मात्रा में दूध ही नही बन पा रहा है। इसके लिए आवश्यक है कि माँ अपने आहार में विभिन्न प्रकार के दुग्ध उत्पादों के अतिरिक्त अपने नियमित आहार में कुछ विशेष चीजों को आवश्यक रूप से शामिल करें, जैसे कि जीरा, अजवायन, सूजी और दलिया इत्यादि।
  • जब एक माँ अपने बच्चे को स्तनपान कराती है तो इससे माता के गर्भाश्य को वापस अपने आकार में आने में सहायता प्राप्त होती है।
  • बच्चे को स्नपान कराने से ऊर्जा की खपत बढ़ जाती है इससे माँ का अपना वजन नियन्त्रित करने में सहायता प्राप्त होती है। कहने का अर्थ यह है कि स्तनपान कराने वाली महिला का वजन अपने आप ही नियन्त्रित रहता है।
  • यह भी माना जाता है कि बच्चे को स्तनपान कराने वाली महिला को सतन कैंसर होने की सम्भावनाएं भी काफी कम हो जाती हैं।

  

लेखकः डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल मेरठ, में मेडिकल ऑफिसर है।