जलवायु परिवर्तन के सम्बन्ध में भारत की भूमिका

                                                  जलवायु परिवर्तन के सम्बन्ध में भारत की भूमिका

                                                  

1. भारत ने वर्ष 2070 तक शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ‘‘नेट-जीरो’’ का संकल्प व्याक्त किया है।

2. राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के माध्यम से भारत वर्ष 2047 तक ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाएगा।

3. पृथ्वी के वायुमण्ड़ल में ऑक्सीजन की मात्रा 20.95 प्रतिशत होती है।

4. पर्यावरण में ग्रीन हाउस प्रभाव में कार्बन डाईऑक्साइड के चलते ही वृद्वि होती है।

5. भारत में आर्द्र भूमियों के अन्तर्गत सर्वाधिक क्षेत्र रखने वाला भारतीय राज्य गुजरात है।

6. यूनाईटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेन्ज (UNFCCC) वर्ष 1992 में अस्तित्व में आया।

7. पृथ्वी के वायुमण्ड़ल में ओजोन की उपस्थिति काफी महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि ओजो पैराबैंगन-बी को शोषित कर लेती है।

8. जलवायु परिवर्तन पर भारत की प्रथम राष्ट्रीय योजना का प्रकाशन वर्ष 2008 में किया गया।

9. ओजोन संरक्षण सम्बन्धी अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ पर 16 सितम्बर, 1987 को हस्ताक्षर किए गए।

10. एनजीटी के द्वारा रामसर स्थलों की सुरक्षा में विफल रहने पर केरल राज्य सरकार पर 10 करोड़ रूपये का जुर्माना लगाया गया।

11. कगारू रेट मरूस्थलीय प्रदेश का एक ऐसा जीव, जो कि ठोस मूत्र का विसर्जन कर जल का संरक्षण करता है और जीवन पर्यन्त जल का सेवन किए बिना ही जीवित रह सकता है।

                                                      व्यक्ति के शरीर में पोटेशियम का उचित स्तर ह्नदय रोगों से बचाव

                                                   

  • एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पोटेशियम का उचित स्तर 3.5 से 5 मिग्रापीएल माना जाता है।
  • हमारे दिल की रक्षा करने में सहायता करता है पोटेशियम, इसका कम या अधिक होने से बढ़ती हैं दिल सम्बन्धी परेशानियाँ।
  • कम नमक खाने की आदत से होता है लाभ

पिछले कुछ दिनों से अचानक दिल का दौरा पड़ने के कई मामलों का सामने आना जारी है। इसमें एक अच्छे खासे इंसान की जान तक चली जाती है, तो ह्नदय रोग विशेषज्ञ इसके लिए पोटेशियम का अहम रोल मानते हैं। मनुष्य के शरीर में पोटेशियम की मात्रा का उचित स्तर बना रहना आवश्यक है, क्योंकि पोटेशियम की मात्रा का कम होना या अधिक होना दोनों ही स्थितियाँ सीधे-सीधे इंसान के दिल को ही प्रभावित करती हैं।

आपके खाने-पीनें में किन वस्तुओं को शामिल किया जाना चाहिए और किन वस्तुओं को शामिल नही किया जाना चाहिए इसको लेकर विभिन्न महत्वपूर्ण तथ्य वर्तमान में रखे जा रहे हैं। फिल्म निर्देशक सती श कौशिक सहित कई सेलीब्रिटी भी अचानक ह्दय गति के रूकने के कारण ही काल के गाल में समा चुके हैं। लगभग रोजाना ही इस प्रकार की खबरें भी आती रहती हैं कि ह्दय गति के रूक जाने के कारण फलां युवा की मौत हो गयी है। आखिर ह्दय गति के रूकने के कारण इन होने वाली मौतों के सिलसिले में हमने शहर के ह्दय रोग विशेषज्ञों से बात की तो उन्होंने बताया कि-

मेरठ मेडिकल कॉलेज के फिजियोलॉजिस्ट डॉ0 अरविन्द बताते हैं कि एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पोटेशियम की उचित मात्रा 3.5 से 5 एमपीएल (माइक्रोग्राम / लीटर) होनी चाहिए। पोटेशियम की मात्रा के कम होने की स्थिति को हाइपोकैलिमिया, तो वहीं पोटेशियम की मात्रा का 5 एमपीएल से अधिक होने पर इसको हाइपर-कैलिमिया कहते हैं और यह दोनों स्थितियाँ ही हमारे दिल के लिए खतरनाक साबित होती हैं। इससे ह्नदय से सम्बन्धित समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं, जिससे हार्ट के ब्लॉक होने की स्थिति तक पैदा हो सकती है।

    इसके चलते हमारे दिल की धड़कनें कम या अधिक होने लगती हैं ओर दिल की धड़कनों को सामान्य करने में पोटेशियम की उचित मात्रा होना अतिआवश्यक है। पोटेशियम की मात्रा कम या अधिक होने पर गुर्दों से सम्बन्धित रोगों के बढ़ने की आशंका सबसे अधिक रहती है। जब हमारे गुर्दे खराब होने लगते हैं तो हमारे शरीर में पोटेशियम की मात्रा का स्तर भी बढ़ने लगता है। इसलिए कहा जाता है कि जो लोग किड़नी की विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त है उन्हें नारियल पानी का सेवन नही करना चाहिए और इसके साथ ही ऐसे लोगों को विभिन्न प्रकार के ड्राईफ्रूट्स, केले एवं जूस आदि का सेवन करने से भी बचना चाहिए।

                                                            

    हमारे शरीर में पोटेशियम की मात्रा के अधिक होने से हमारे पेट के लिए भी सही नही है, जबकि इसकी मात्रा के कम होंने पर हमारी आंतों की क्रिया पर विपरीत प्रभाव होता है। इसके फलस्वरूप हमें कांस्ट्रीपेशन (बंद लगना) आदि समस्याएं होने लगती हैं और हमारी पाचन क्रिया बिगड़ने लगती है। अतः इस प्रकार से कहा जा सकता है कि दिल, किडन एवं पेट आदि को क्रियाओं को बाधित करता है पोटेशियम की मात्रा का असंतुलन।

इससे बचने के उपाय

    पोटेशियम की मात्रा के असंतुलन के कारण उत्पन्न होने वाली बीमारियों से बचने के लिए सबसे आवश्यक यह है कि हम सब अपनी डाइट पर विशेष ध्यान दें। अपने शरीर में डिहाईड्रेशन की स्थिति को विकसित न होने दें अर्थात पानी का सेवन पर्याप्त मात्रा में करें। व्यक्ति को उल्टी-दस्त आदि की समस्या के होने पर पोटेशियम अधिक मात्रा में शरीर बाहर निकल जाता है अतः इसकी पूर्ती करना भी अतिआवश्यक होता है। इस मौसम में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए, जबकि किडनी एवं दिल के रोगियों को विशेष सावधानियाँ बरतनी चाहिए। हालांकि, इसमें आयु सीमा का कोई प्रतिबन्ध नही है, परन्तु फिर भी बच्चों एवं वृद्व लोगों को इसकी सम्भावनाएं भी अधिक रहती हैं।