बुजुर्गों को अब मिला टैक्नोलॉजी का सहारा

                                                     बुजुर्गों को अब मिला टैक्नोलॉजी का सहारा

                                                     

‘‘आधुनिक तकनीकी युग में तकनीक की दुनिया का लाभ दुनियाभर के युवाओं ने भरपूर रूप से उठाया है। ऐसे में ही अब सवाल भी उठने लगा है कि क्या इन तकनीकों में से हमारे बुजुर्ग लोग भी कुछ लाभ प्राप्त कर सकते हैं’’।

इस बात में कोई भी दो राय नही हैं कि इंसान की आयु में जैसे-जैसे बढ़ोत्तरी होती है तो इसके साथ ही उसकी सेहत से जुड़े जोखिम भी बढ़ने लगते हैं। बुजुर्गों की मांसपेशियों के कमजोर पड़ने के साथ ही उनकी शारीरिक गतिविधयाँ भी कम होने लगती हैं। इस स्थिति में अपने बुजुर्गों की देखभाल करना भी चुनौतिपूर्ण हो सकता है।

                                                        

यही कारण है कि जो लोग अपने माता-पिता के साथ नही रहते हैं या उन्हें किसी कारणवश उन्हें अपने माता-पिता से दूर रहना पड़ता है, तो उन्हें अपने सदैव ही आपने माता-पिता की सेहत की चिन्ता बनी रहती है। इनमें से कुछ बुजुर्ग लोग ऐसे भी होते हैं कि जिन्हें नियमित रूप से अपना चैकअप कराने की आवश्यकता होती है, परन्तु किसी सही केयर टेकर के न होने के कारण वे ऐसा करने या कराने में असमर्थ रहते हैं।

ऐसी स्थिति में यदि इन सब कार्यों के लिए तकनीकी मदद मिल जा तो इन बुजुर्गों की ढेर सारी परेशानियाँ आसानी के साथ हल हो सकती हैं। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए वर्तमान समय में बहुत से एप और तकनीकें भी चलन में आ चुकी है, जिन्होंने हमारे बुजुर्गों के लिए इस कार्य को काफी आसान कर दिया है। अतः वर्तमान में जानना आवश्यक है आधुनिक तकनीकीकरण ने हमारे बुजुर्गों की किस प्रकार की सहायता की है।

सेहत की मॉनिटरिंग करना

                                                           

कुछ स्मार्ट वाच या गैजेट्स हैं, जो बुजुर्गों के लिए उनकी पूरी सेहत के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्रदान करते है। जैसे कि उन्होंने कितनी नींद ली है, उनके ब्लड शुगर लेवल और उन्होने कितने स्टेप्स पूरे किए या फिर वे कितने समय तक सक्रिय रहें हैं। यह सारी बातें किसी भी व्यक्ति की पूरी सेहत कैसी है, इसके बारे में अन्दाजा दे सकती हैं। इस प्रकार की मॉनिटरिंग में किसी भी प्रकार की कमी आने पर सम्बन्धित व्यक्ति का परिवार जागरूक हो सेता है। इस सुविधा की मदद से समय पर उनकी आवश्यक जाँचे भी कराई जा सकती हैं।

एक सहायक की भूमिका में अहम भूमिका

                                                          

अधिकतर सरकारें और विभिन्न बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ बुजुर्गों की सेवा के लिए ऐसी चीजें तैयार करती रहती हैं, जिनके माध्यम से बुजुर्गों को केयर गिवर की आवश्यकता ही न पड़े। बहुत-से बुजुर्ग ऐसे भी हैं, जो केयर गिवर सुविधा के लिए सामर्थ्य से युक्त नही है। ऐसे में यह सुविधा लाभदायक सिद्व हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका की ऑनर नामक कम्पनी है, जो बुजुर्गों के लिए उबर जैसी सुविधाएँ प्रदान करती है। इससे बुजुर्गों की देखभाल समय पर सम्भव हो सकती है और उनके पूरे शेडयूल तैयार किया जा सकता है।

संवाद करने में आसानी होती है-

हमारे बुजुर्गों को यदि किसी चीज की आवश्यकता पड़ती है तो अ बवे किसी के आने की प्रतीक्षा करने के स्थान पर तुरंत एंबुलेंस या सहायता नंबर पर कॉल कर सकते हैं। इससे बुजुर्गों और हेल्थ केयर सुविधाओं के बीच संवाद स्थापित होने में सहायता प्राप्त होती है, जो कि तकनीक के माध्यम से ही सम्भव है। बुजुर्ग किसी भी एप या वेबसाईट के माध्यम से डॉक्टर का अपॉइंटमेंट भी ले सकते हैं।

स्मार्ट होम के जैसी तकनीक

                                                      

बुजुर्गों के लिए स्मार्ट होम में रहना सबसे लाभदायक रहता है, क्योंकि इससे ऐसी तकनीक का प्रयोग किया जाता है, जो हमारे बुजुर्गों के बीमार होने अथवा उनके साथ कुछ भी गलत होने पर एकदम घर के बाकी सदस्यों के पास अलर्ट भेजने के काम को करता है। इसके माध्यम से उनके परिवार के सदस्य उनकी प्रतिदिन की एक्टिविटी को भी चेक कर सकते हैं और उनकी सेहत का ख्याल रख सकते हैं।

हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर एण्ड सर्विस

    वर्तमान तकनीकी युग में हम उपलब्ध टैक्नोलॉजी को, हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर एण्ड सर्विस आदि, तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है। इसमें हार्डवेयर अर्थात गैजेट्स, जिनका उपयोग आप लोग निरंतर कर रहे हैं। उनकी क्षमता, दक्षता और संचालित करने के लिए तरीके को ध्यान से समझें।

    इसी प्रकार सॉफ्टवेयर का अर्थ विभिन्न प्रकार के एप्स अथवा वेब एप्लिकेशन्स, जो कि गैजेट्स या सेवाओं आदि को संचालित करने में सहायक होती हैं। किसी एक्सपर्ट से इनके प्रयोग के तरीकों का अच्छी तरह से समझें। तीसरा है, सर्विस, अर्थात ट्रैवलिंग, बुकिंग, बीमा, बैंकिंग और शॉपिंग आदि, परन्तु किसी भी सेवा को लेते समय अलर्ट रहें।

    किसी अपरिचित व्यक्ति के साथ अपने ओटीपी, पासवर्ड, या केवाईसी के नाम पर अपनी व्यक्तिगत को साझा न करें। यदि आप सावधान, सजग रहेंगे तो निस्संदेह डिजिटल टैक्नोलॉजी हमारे बुजुर्गों के लिए किसी भी वरदान से कम नही हैं।

                                                                      चिल्लाएं नहीं

                                                                  

    चिल्लाना, संवाद का कोई बेहतर और प्रभावी तरीका नही हैं। इसके सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों की मानी जाएं तो बार-बार चिल्लाने की आपकी आदत से दूसरों के साथ आपसे सम्बन्ध तो खराब होते ही हैं, इसके साथ ही चिल्लाने वाले व्यक्ति पर भी इसका गलत प्रभाव पड़ता है।

    हालांकि, कुछ लोग तो इसलिए भी चिल्लाते हैं कि वे अपने आप को दूसरों से बेहतर और ताकतवर मानते हैं। वहीं कई बार किन्हीं दूसरे व्यक्तियों अनुशासित करने के लिए तो विभिन्न अवसरों पर अपने आप को दूसरे लोगों के समाने लाचार और मजबूर पाकर भी हम चिल्लाने लगते हैं।

    विभिन्न मनोवैज्ञनिकों का कहना है कि यदि चिल्लाना आपका पैर्टन अथवा आदत ही बन जाता है तो यह उस व्यक्ति की अपनी सेहत के लिए ही अच्छा नही होता है।

                                                        

    ‘‘द जर्नल ऑफ चाइल्ड डवलपमेंट’’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों पर चिल्लाना, उन्हें किसी शारीरिक दण्ड़ देने के जैसा प्रभाव ही छोड़ता है। चिल्लाने से बच्चों में बेचैनी, तनाव एवं अवसाद जैसे लक्षणें में वृद्वि करता है। वहीं मनोविज्ञानी बर्नार्ड गोल्डन के मुताबिक किसी व्यक्ति के चिल्लाने के दौरान उसके शरीर का चेतावनी तन्त्र सक्रिय हो उठता है। ऐसे में हम तुरन्त ही, फाईट, फ्लाइट अथवा फ्रीज की स्थिति में आ जाते हैं।

                                                  

    इस स्थिति का प्रभाव हमारे दिमाग के उन हिस्सों पर पड़ता है जो कि कार्टिसोल और एड्रेनेलिन नामक हार्मोन्स के स्तर को बढ़ता है, और हम सम्भावित खतरों से लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे में कई बार गलत फैंसले लेने की आशंका भी बढ़ जाती है। हमारे अन्दर प्रेम एवं हमदर्दी जैसे भावों का स्तर कम हो जाता है और हम दूसरों को नीचा दिखाने में जुट जाते हैं।