वर्तमान समय में हमारी मानसिक सेहत का हाल

                                                              वर्तमान समय में हमारी मानसिक सेहत का हाल

                                                               

    ‘‘अधिकाँश लोगों का मानना है कि पैसा, सफलता, सुंदरता, शक्ति एवं प्रतिष्ठा आदि हमें प्रसन्नता एवं संतुष्टि प्रदान करते हैं। परन्तु जब देर-सबेर यह भ्रम टूट जाता है तो अनेक प्रकार की मानसिक समस्याएं सर उठाने लगती हैं। ऐसे में, अब पहले से कहीं अधिक हम सभी के लिए यह आवश्यक है कि हम अपनी मानसिक सेहत पर भी विशेष रूप ध्यान केन्द्रित करें’’।

    जीवन में प्रसन्न कैसे रहा जा सकता है, इस सवाल का उत्तर आपके मानसिक स्वास्थ्य पर काफी हद तक निर्भर करता है। लेकिन, जब तक इस सबसे साधारण दुविधा का सही उत्तर प्राप्त नही हो जाता, तो हमारी मानसिक सेहत से जुड़ी समस्याएं भी ज्यो-की-त्यो ही बनी रहती हैं। ऐसे में यदि आप सतही वास्तविकता के स्थान पर इसका अर्थ गहराई से समझेंगे तो तो आप पाएंगे कि जब एक साधारण व्यक्ति यह कहता है कि वह खुश है तो इससे उसका आश्य यह होता है कि वह सामाजिक चलन के अनुसार खुश है। जिसे उसने समाज से ही सीखा है और स्वयं को उसी के अनुरूप ढालता है।

                                                      

    हालांकि, इस धारणा से कोई भी नही बच सकता कि पैसा, सफलता, युवावस्था, आकर्षण, रूतबा और शक्ति हमारी प्रसन्नता एवं संतुष्टि के आधार हैं। इसके साथ ही जब यह भ्रम टूटता है तो मानसिक परेशानियाँ एक गम्भीर समस्या के रूप में हमारे सामने आने लगती हैं और तनाव एवं अवसाद के जैसी परेशानियों के निदान करने के लिए अकूत धनराशि का व्यय करना पड़ता है। इससे हमें तत्काल रूप से थोड़ी-बहुत राहत तो प्राप्त हो जाती है परन्तु इसकी मूल समस्या तो जस की तस ही बनी रहती है।

बात बुनियादी सिद्वाँतों की

प्रस्तुत लेख में बेहद गम्भीर मनोविकृति की समस्याओं जैसे कि सिजोफ्रेनिया आदि के सम्बन्ध में बात नही की जा रही हैं। असलियत में मनोविकृतियों के सम्बन्ध में, जिस प्रकार का चिकित्सीय ढाँचा तैयार किया गया है, वह उतना कारगर ही नही है। किसी व्यक्ति के मानसिक असंतुलन का सही वर्णन न तो कोई आनुवांशिक कारण, न ही परिवार का पिछला इतिहास और न ही किसी व्यक्ति की सेहत से सम्बन्धित समस्याओं का इतिहास आदि, इसका सही रूप से वर्णन कर पाने में सक्षम नही है। इन लक्षणों में थोड़ी राहत प्रदान करने वाली कुछ दवाओं को को छोड़कर कुल मिलाकर यह स्थिति दयनीय ही है।

                                                                    

हालांकि, इससे बचने का का एक बेहतर मार्ग भी हो सकता है, जिसे सुख-दुःख, तनाव और एक अच्छी मानसिक सेहत के सम्बन्ध में विचार करके तलाश किया जा सकता है। यह आपस में विपरीत जोड़े हैं, जिन्हें समझने के लिए हम सबको एक साथ मिलकर ही सोचना होगा।

इसके समाधान के लिए हमें दवाओं के उपचार से आगे निकल कर प्रत्येक सभ्यता के ऋषि-मुनियों एवं आध्यात्मिक गुरूओं को गहराई से जानना होगा और विशेष रूप से प्राचीन पूर्वी सभ्यता के बारे में गहारई से जानना होगा। परन्तु किसी भी सुझाव आदि की पैरवी किए बिना मानव की चेतना से सम्बन्धित भी कुछ ऐसे मूलभूत सिद्वाँत हैं, जिनको अनदेखा कर पाना सम्भव ही नही है। 

परिवर्तन के समस्त चरणों में यह नियम सदियों से ऐसे ही चले आ रहें हैं। यह समस्त नियम दुःखों एवं कष्टों से बाहर निकलने का राशता तो बताते हैं, परन्तु इन सभी में आध्यात्मिक एवं साँस्कृतिक स्तर पर वयापक रूप से भिन्नता व्याप्त है। उदाहरण के लिए जैसे बौद्व धर्म का मध्य मार्ग, अद्वैत वेदांग से अलग है और ये दोनों ही इसाई धर्म की परम्पराओं से भिन्न हैं।

वर्तमान आधुनिक समाज में यह भिन्नताएं या तो विलुप्त हो चुकी हैं, या फिर धार्मिक कट्टरता के आगे जड़ हो चुकी हैं, तो वहीं यह मानसिक स्वास्थ्य के बर्बाद होने का मूल कारण भी हैं। असली बात तो यह है कि चिकित्सक भी सही तरीके से यह नही जानते हैं कि प्रसन्न किस प्रकार से रहा जाए। वे जो भी इसके लिए समाधान देते हैं वह दवाई के रूप में ही होता है। जो कि तात्कालिक समस्या से छुटकारा पाने का एक अस्थाई उपचार होता है।

यदि आप सामाजिक मान्यताओं के अनुसार अपनी मानसिक सेहत को सुधारने का प्रयास कर रहे हैं तो आप इसका कोई स्थाई हल नही खोज पाएंगे। इसके हल के लिए हमें अपनी घिसी-पिटी मान्यताओं से बंधें मस्तिष्क से ऊपर उठकर ही सोचना होगा।

लेकिन इसमें विडंबना यही है कि हमारा दिमाग तो केवल भौतिक प्रगति में ही उलझा रहता है। अभी तक हम अपनी मानसिक दुनिया की असलियत से अनभिज्ञ हैं। हम यह नही जानते हैं कि हमारा दिमाग किस हद तक समस्याएं खड़ी कर सकता है और मानसिक दशाएं कितनी अधिक शक्तिशाली हो सकती हैं।

अपने भीतर की चेतना से जुड़ें

                                                                 

  • शुद्व चेतन अवस्था को प्राप्त करते ही हमारे मस्तिष्क में चल रहे तमाम विरोधाभास स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं और हम अपने मूल रूप में वापस लौट आते हैं।
  • हमारा दिमाग जब जीवन में आने वाली चुनौतियों से निपटने में सक्रिय रूप से भाग लेता है तो हमें सुख उवं दुख की अनुभूति होती है।
  • मानसिक जागरूकता के अधिक गहरे स्तर पर सम्पूर्ण ब्रह्मांड हमारी चेतना के साथ जुड़ जाता है, जो कि हमारे शारीरिक एवं मानसिक गुणों के उद्गम का एक स्रोत भी है।
  • चेतना के गुणों की खोज हमारे दिमाग की उपज नही होती है और यही कारण है कि दुनिया के उतार-चढ़ाव से उसकी सक्रियता जरा भी प्रभावित नही होती है।
  • चेतना की सक्रियता ही हमें संतुलन की ओर लेकर जाती है, जहाँ हमारा स्थूल शरीर एवं मानसिक विचार एकरूप होने लगते हैं। इसके साथ ही मानव जाति के सबसे आनंददायक भावों जैसे कि प्रेम, दउया, सहयोग, सत्य, सुंदरता, कलात्मकता और उसके आंतरिक विकास की यात्रा का भी आरम्भ हो जाता है।
  • मस्तिष्क की सक्रियता से अधिक हमें अपनी चेतना को अधिक गूढ़ स्तर पर स्थापित करना चाहिए।
  • हम लोगों की इच्छाएं भी निरंतर बदलती रहती हैं और हम इनमें ही उलझते रहते हैं।
  • मस्तिष्क की सक्रियता हमारी चेतना के मूल स्वभाव में बाधा उत्पन्न करती है, जो कि हमारी वृत्तियों अर्थात मानसिक विचारों और इच्छाओं के लिए एक सघन ढ़ाल का कार्य करती है।
  • हमारा मस्तिष्क अनिश्चितताओं से भरा हुआ होता है, जो निरंतर विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों के साथ जूझता रहता है। अतः इन्हें भी स्थाई सलामती और प्रसन्नता का आधार नही माना जा सकता है।  

प्रसन्नता एवं मान्यता

    अरब के एक व्यापारी को पता चला कि इथोपिया के लोगों के पास चाँदी बहुत अधिक है, तो उसने वहाँ जाकर चाँदी का काम करने के बारे में सोचा और एक दिन अपने सैंकड़ों ऊँटों पर प्याज लादकर वह इथोपिया की ओर चल पड़ा। उधर इथोपिया के निवासियों ने पहले कभी प्याज नही खाया था, और वे प्याज खाकर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उस व्यापारी के सारे प्याज को खरीद लिया और उस प्याज के वजन के बराबर उसे चाँदी तोले कर दे दी। इससे वह व्यापारी बहुत खुश हुआ और बहुत धनवान बनकर वह स्वदेश लौट आया।

    इसी प्रकार एक दूसरे वयज्ञप्ज्ञश्रभ् क्ज्ञै भी इसके बारे में पता चला तो उसने भी इथोपिया जाने की ठान ली। उस व्यापारी ने प्याज से भी अच्छी वस्तु लहसुन को अपने ऊँटों के ऊपर लाद लिया और वह इथोपिया की और चल दिया। इथोपिया के लागों ने लहसुन का स्वाद चखा तो वे प्रसन्नता से नाच उठे, क्योंकि उन्हे लहसुन प्याज से भी अधिक अच्छा लगा था।

    इथोपिया के लोगों ने लहसुन तो सारा खरीद लिया, परन्तु अब इसके बदले में उस व्यापारी को क्या दें यह सवाल उठने लगा। इसके समाधान के लिए उन्होंने सेाचा कि उनके पास चाँदी तो बहुत है, परन्तु उनके पास चाँदी से भी कीमती वस्तु प्याज है तो उन्होंने प्याज से भरी बोरियाँ, इस व्यापारी के ऊँटो पर लाद दी। बाद में व्यापारी ने इन्हें देखा तो वह खीज उठा।

    वह व्यापारी समझ नही पा रहा था कि आखिर अमूल्यता की कसौटी क्या हैं? तो उसने फैंसला किया कि यह सब अपनी-अपनी मान्यताओं और प्रसन्नता का खेल है।

                                                                 सांस के सम्बन्ध में

                                                                

वह प्रत्येक सांस, जो हम लेते हैं, वह शान्ति, आनंद और स्थिरता से भरपूर हो सकती है।

                                                                                                                                                   -तिकन्हात हन्न।

जब भी आपका मन अशांत हो तो सबसे पहले अपने सांस लेने के तरीकों में बदलाव करें।

                                                                                                                                                -पंतजलि, योग-सूत्र।

अपनी सांसों पर निरंतर ध्यान दें और अपन सांस के साथ बने रहें, जब आप अपनी सांस के साथ वाकई अन्दर तक जाएंगे तो आप यह समझ पाएंगे कि अपने शरीर के साथ आप किस स्थान पर बंधे हुए हैं।

                                                                                                                                                        -जग्गी वासुदेव।

                                                              

अनियमित सांस से केवल जुनून की पूर्ति होती है, जबकि धीमी एवं नियमित श्वास से शांति एवं प्रसन्नता की पूर्ति होती है।

                                                                                                                                                         -महर्षि रमण।

मेरे जीवन में सांस लेने के बाद जीतना सवार्धिक मीत्वपूर्ण स्थान रखता है। पहले सांस लेना और फिर जीतना।

                                                                                                                                  - जॉर्ज स्टीनब्रेनर, एक अमेरिकी उद्यमी।