कृषि विश्वविद्यालय में अमरूद की लकड़ी पर उगा गैनोडरमा मशरूम

                                         कृषि विश्वविद्यालय में अमरूद की लकड़ी पर उगा गैनोडरमा मशरूम

                                            

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मशरूम प्रयोगशाला प्रभारी डॉक्टर गोपाल सिंह ने बताया की वैसे तो इस सीजन में आर्टिफिशियल तरीके से मशरूम को उगाया जाता है, लेकिन कुछ मशरूम प्रजातियाँ ऐसी भी हैं जो प्राकृतिक रूप से बरसात के मौसम में उगाती हैं। मशरूम प्रयोगशाला के प्रभारी प्रोफेसर गोपाल सिंह ने बताया कि उन्होंने अमरूद के पेड़ों के ठूठ पर गैनोडरमा मशरूम के स्पान को डाल दिया था, जिसके चलते यह मशरूम पेड़ों पर उग आया है।

प्रोफेसर गोपाल सिंह ने बताया औषधीय गुणों से युक्त यह मशरूम लकड़ी पर बरसात में उगाता है। यह उत्तर प्रदेश में सामान्यतः जुलाई से सितंबर तक यह प्राकृतिक रूप से सूखे पेड़ों की जड़ों या तने पर पाया जाता है। इसका प्रयोग करने से दिमागी कमजोरी, कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह और पेट के रोग में लाभ प्राप्त हो सकता है, हालांकि, चिकित्सक के परामर्श पर इसका उपयोग किया जाना चाहिए।

                                                 

उन्होंने बताया गैनोडर्मा मशरूम को प्राकृतिक रूप से भी उत्पादित किया जा सकता है। जिसकी उत्पादन तकनीक के बारे में जानकरी प्राप्त करने हेतु मशरूम अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से किसान संपर्क कर सकते हैं। गैनोडर्मा मशरूम को ऋषि मशरूम के नाम से भी जाना जाता है यह कभी-कभी अकेले या समूह में होने वाला एक मृतोपजीवी मशरूम है।

डिवीजन ऑफ टेक्नोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर आर एस सेंगर ने बताया कि मशरूम प्राचीन काल से ही अपने स्वाद एवं प्रतिष्ठा के कारण उपयुक्त आहार के रूप में उपयोग किया जाने वाला मशरूम है। यह उच्च गुणवत्ता के प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण तथा खाद्य रेशों का एक अच्छा सूप है। यूनानियों ने इसे रणभूमि योद्धाओं को मजबूती प्रदान करने वाला, रूस वासियों ने भगवान का पूजन तथा चीनियों ने इसे आयु बढ़ाने वाला रसायन की संज्ञा दी है।

मशरूम में कई प्रकार के विटामिंस जैसे ए, बी, सी, डी एवं के आदि पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, तांबा तथा पोटेशियम आदि खनिज लवण भी पाए जाते हैं। इस प्रकार यह एक अत्यधिक पौष्टिक आहार है। हेमू तथा कई रोगों जैसे हृदय रोग, बेरी-बेरी, चर्म रोग, रक्त की कमी, बच्चों का सूखा रोग तथा मधुमेह के रोगियों के लिए इसका सेवन एक आदर्श औषधि के रूप में जाना जाता है।

कृषि प्रसार विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ डी के सिंह ने कहा की मशरूम को उगाने से किसानों को दोहरा लाभ हो सकता है क्योंकि इसका उत्पादन कम जगह में किया जा सकता है और इससे आय भी अच्छी प्राप्त की जा सकती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में किसान इसकी खेती कर भी रहे हैं और कृषि विश्वविद्यालय, मशरूम उत्पादन तकनीक के प्रचार प्रसार के लिए अपने स्तर पर काफी कार्य कर रहा है।

                                                       

 

गैनोडर्मा मशरूम जो कि कृषि विश्वविद्यालय परिसर में अमरूद की जड़ों तथा तने पर उग आया हैकृषि विश्वविद्यालय के मशरूम लैब के प्रभारी प्रोफेसर गोपाल सिंह प्रोफेसर, आर एस सेंगर एवं प्रोफेसर डीके सिंह ने अवलोकन किया और इसकी उपयोगिता के बारे में किसानों और छात्रों को जानकारी दी।

कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर के के सिंह ने कहा कि किसानों को मशरूम उत्पादन भी करना चाहिए जिससे सह व्यवसाय के रूप में वह अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं मशरूम की मार्केट में डिमांड भी बहुत है और यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी भी है