रिश्तों में दूरी को कम करने की पहल

                                                               रिश्तों में दूरी को कम करने की पहल

                                                             

    ‘‘आयु में वृद्वि होने के साथ ही बच्चों के स्वभाव एवं व्यवहार में विभिन्न प्रकार के परिवर्तन आते हैं, और यही परिवर्तन बच्चों और उनके माता-पिता के साथ उनके सम्बन्धों में दूरी आने का कारण भी बन जाते हैं। बच्चों के साथ रिश्तों में आने वाली इस दूरी को किस प्रकार से कम किया जा सकता है, इस बारे में प्रकाश डालता एक एक विशेष लेख’’।

    जब आपका बच्चा बड़ा हो रहा होता है तो इसके साथ ही इसमें बच्चे की अपनी दुनिया, अपनी फैंटेसी के साथ अपने सपने भी होते हैं। हो सकता है कि वह उन लम्हों को भी जीने का प्रयास कर रहा हो जो कि उसकी बढ़ती हुई उम्र के लिए एक बेहद सामान्य होते हैं। हालांकि ऐसे में आपको यह भी देखना होगा कि ऐसे ही लक्षण आपके बच्चे की आयु के अन्य बच्चों में भी दिखाई देते हैं अथवा नहीं।

    आयु के हिसाब से आये परिवर्तन के कारण, आपका बच्चा आप से दूर तो नही जा रहा है। यदि आपको आप दोनों के बीच किसी असामान्य दूरी का अनुभव होता है तो यह सचेत हो जाने का समय है।

बच्चों की बढ़ती दूरी की पहिचान

                                                        

    क्या आपने कभी अपने बच्चे की मनोस्थिति को पढ़ने का प्रयास किया है? परन्तु इसकी ओर आपका ध्यान शायद ही कभी गया हो, कि वह किस प्रकार से घर, स्कूल और अन्य प्रकार के तनावों को अपनी आयु के अनुसार सम्भाल रहा है। ऐसे में यदि आपको अपने बच्चे के सम्बन्ध में उससे सम्बन्धित बातों पता इधर उधर से चले और आपका बच्चा डर या किसी अन्य कारण से आपसे अपनी बातों को छिपाने लगे तो ऐसे में आपको समझ जाना चाहिए कि आप दोनों के बीच एक अपरिचित सी दूरी आने लगी है।

    ऐसा होने पर आप अपने बच्चे के बातचीत करने के तरीकों पर भी गौर कर सकते हैं। कहीं आपका बच्चा आपसे नजरे चुराकर बाते तो नही कर रहा या फिर आपके सामने आते ही वह अपनी बात के विषय को ही बदलने लगे अथवा वह चुप हो जाता हो। इस प्रकार के लक्षण अपने बच्चे में दिखने लगे तो आपको बहुत ही समझदारी के साथ काम करना होगा।

अपने बच्चे की बात को ध्यान से सुनें

    यदि आप अपने बच्चे की बात को सुनें बिना ही उस पर क्रोधित होने लगते हैं, तो आपका यह व्यवहार भी आपके और बच्चे के बीच दूरी को बढ़ाने वाला हो सकता है। बच्चा इस बात को समझ जाता है कि उसके कुछ भी कहने के उपरांत उसके प्रति आपका व्यवहार कैसा होगा और वह आपसे बात करने से बचने लगता है।

    इस स्थिति में यह एक आवश्यक बात है कि बच्चे की बातों को तसल्ली से सुना जाए। यदि आपका बच्चा कुछ गलत है तो एक संयमित व्यहार को अपनाते हुए आपको अपने बच्चे को अपनी बातों को सही तरीके से समझाना होगा।

अपनी उम्मीदो पर नियंन्त्रण रखें

                                                   

    अभिभावकों की अपने बच्चे से उम्मीदों की कहानी उसकी बहुत कम उम्र में ही रिपोर्ट कार्ड से आरम्भ हो जाती है, जो कि समय के साथ ही साथ बढ़ती जाती है और उन्हें इसका आभास ही नही हो पाता है कि कब उन्होंनें अपने बच्चे के सिर पर अपनी इन उम्मीदों की टोकरी को सजा दिया होता है। इन उम्मीदों को पूरा नही कर पाने के भय से बच्चे गलत कदम उठानें के लिए विवश होते हैं।

    इसके सम्बन्ध में मनोचिकित्सकों का कहना है कि माता-पिता अक्सर अपनी दबी हुई इच्छाओं को अपने बच्चों के माध्यम से पूरा करने का प्रयास करते हैं। ऐसा करते समय वह यह भूल जाते हैं कि उनके बच्चे का पूरी तरह से उसका अपना एक अलग व्यक्तित्व होता है। अतः आप अपने बच्चे को उसकी तरह से ही समझाने की कोशिश करें और उसे अपनी उम्मीदों की कसौटी पर तौलना बन्द करें।

बच्चे को पर्याप्त समय दें

    बहुत हद तक यह भी सम्भव है कि आपकी अपनी व्यस्तता भी बच्चे और आपके बीच आई इस दूरी का एक अन्य कारण हो। ऐसा होने पर एक दोस्त की तरह से ही उसके करीब जाने का प्रयास करें। इसके लिए पहल करते हुए पहले आप उससे उसकी दिनचर्या के बारे में उससे बातें करना आरम्भ करें और इसमें आप उसके साथ अपनी बातों को भी साझा कर सकते हैं।

    जब धीरे-धीरे करके उसकी और आपकी दूरियाँ कम होंगी तो आप उसके मन की बातों को जानने का प्रयास भी करते है। इसके साथ ही उसे यह अहसास भी कराना आवश्यक है कि वह आप पर भरोसा करके आपको अपनी कोई भी बात बता सकता है। लेकिन इसके लिए यह भी जरूरी है कि आप उसके द्वारा बतायी गई बातों को किसी और के साथ भूलकर भी साझा नही करें। परन्तु यदि आप अपने जीवन साथी को यह बात बताना चाहते हैं, तो उससे पहले यह सुनिश्चित् कर लें कि इस बात का पता आपके बच्चे को नही चलेगा कि आपने उसकी बातों को अपने जीवन साथी के साथ साझा किया है।

                                                 नई-नई माँ बनी कामकाजी महिलाओं के सम्बन्ध में

                                                   

    ‘‘जब कोई कामकाजी महिला नई-नई माँ बनती है तो उनके सामने केवल शारीरिक ही नही अपितु कुछ मानसिक एवं सामाजिक समस्याएं भी आती है, जिनके प्रति उन्हें पहले से तैयारियाँ कर लेनी चाहिए। इसी के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान करता है हमारा यह आर्टिकल-’’

    किसी भी महिला के लिए बेहद अनमोल क्षण होते हैं जब वह मातृत्व सुख प्राप्त करती है। मातृत्व जीवन खुशियों से भरा एक सफर होता है, जबकि इससे जुड़ी कुछ समस्याएं भी होती हैं। महिला की गर्भावस्था के दौरान होने वाले हार्मोनल चेन्जेज, उसके मन एवं शरीर की परिवर्तित छवि के सम्बन्ध में उथल-पुथल का कारण बन जाते हैं। हालाँकि अधिकतर माताएं इन परेशानियों से पार भी पा लेती हैं, परन्तु सभी के साथ ऐसा नही होता है। ऐसे में ऐसी माताओं को यह समझने की आवश्यकता होती है कि वे बिना किसी अपराध बोध के साथ वे किस प्रकार से अपने मातृत्व जीवन और उससे सम्बन्धित प्रत्येक खुशी के क्षण को जी सकती हैं।

1. प्रमुख शारीरिक परेशानियाँ

                                                           

    सिजेरियन डिलिवरी एवं सामान्य डिलिवरी के उपरांत शरीर पर मार्क्स वाले स्थानों पर दर्द होता है, जो कि सामान्य रूप से चार सप्ताह में दूर हो जाता है। हालाँकि खराब लैंचिंग और गलत स्तनपान कराने के तरीकों के कारण भी दर्द हो सकता है। लैक्टेशन कंसल्टेंट इस प्रकार के केस में गर्म पैक, आईस पैक, ब्रेस्ट मसाज, मिल्क एक्सप्रेशन तथा पैरासिटामोल के जैसी साधारण दर्द निवारक मेडिसिन्स के माध्यम से इसका प्रबन्धन कर सकते हैं।

    कुछ महिलाओं में स्टिच लाईन, मूत्र-मार्ग, गर्भाश्य या स्तनों में संक्रमण भी हो सकता है। शिशु को जन्म देने के 24 घण्टे के बाद 100 डिग्री से अधिक फीवर होने पर तुरन्त डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए। इसके अतिरिक्त कुछ महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान मूत्र का रिसाव हो सकता है जो कि शिशु को जन्म देने के बाद जारी रह सकता है। खाँसने, छींकने एवं हँसने के दौरान इस रिसाव में वृद्वि भी हो सकती है। हालाँकि कीगल के जैसे कुछ व्यायाम कर अपनी माँसपेशियों को मजबूती प्रदान कर इस समस्या से छुटकार भी पाया जा सकता है।

    गर्भाश्य, आँत्र और मूत्राश्य के जैसे अंग आगे की ओर बढ़ भी सकते हैं, इसका कारण यह होता है कि गर्भावस्था के कारण महिला की श्रोणी माँसपेशियाँ कमजोर पड़ जाती हैं। ‘पेल्विक फ्लोर एक्सरसाईज’ शरीर की सामान्य संरचना को पुनर्स्थापित करने में मदद करता है। इस दौरान पेल्विक माँसपेशियों पर दबाव बढ़ने के कारण गर्भावस्था एवं डिलिवरी के चलते सम्बन्धित महिला में पाइल्स अर्थात बवासीर के खतरों में वृद्वि होती है। नियमित रूप से पेल्विक एक्सरसाईज, उच्च फाईबर युक्त आहार का सेवन करना और पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करने से इसमें आराम पाया जा सकता है। स्टूल सॉफ्टनर एवं एनल क्रीम के जैसी दवाएँ गर्भावस्था के दौरान हुई पाइल्स को ठीक भी कर सकती हैं। यदि यह ठीक नही हो पाती है तो इसके लिए होम्योपैथी का उपचार किसी कुशल होम्योपैथ से कराकर इस रोग से मुक्ति पाई जा सकती है।

2. मानसिक समस्याएं

                                                 

    लगभग 10 से 15 प्रतिशत नई माताओं में मानसिक समस्याओं को भी देखा गया है। यह चिन्ता, अवसाद, घबराहट अथवा जुनून के जैसे विकार हो सकते हैं। इनके साधारण लक्षण अत्यधिक चिन्ता, बेचैनी, अनिंद्रा, ध्यान केन्द्रित नही कर पाने की समस्या, भूख कम लगना, अधिक थकान का होना, दिल की धड़कनों का बढ़ना, श्वसन की गति सामान्य से अधिक होना और कम्पकपीं वाला सिरदर्द आदि सामने आते हैं।

    माताओं की स्वयं से अत्याधिक आशाएं और एक आदर्श माँ बनने की कोशिश इसे और अधिक बढ़ा देती है। इस समस्या के उपचार में शामिल पर्याप्त रूप से आराम करना, जीवन साथी, परिवार एवं दोस्तों की मदद आदि शामिल होते हैं। हालाँकि कुछ महिलाओं को किसी प्रशिक्षित व्यक्ति के द्वारा परामर्श की आवश्यकता भी होती है।

3. सामाजिक परेशानियाँ

    डिलिवरी के उपरांत बालों का झड़ना एक आम समस्या है, जो कि कुछ महीनों तक भी जारी रह सकती है। इसके लिए आयरन एवं प्रोटीन युक्त आहार और उचित निंद्रा से इसे कम किया जा सकता है। वजन का बढ़ना, चेहरे और शरीर पर पिगमेन्टेशन, स्ट्रेच के निशान और लूज स्किन आदि सम्बन्धित महिला के शरीर की छवी को ही बदल देती हैं, जिसके कारण अनेक महिलाएं दुःखी रहती हैं। इसके लिए स्किन केयर तथा एक्सरसाईज के माध्यम से नई माताएं बेहतर महसूस करती हैं।

क्या हैं इसके उपाय

    मातृत्व अवकाश के पूर्ण हो जाने के बाद नई कामकाजी माताओं में गम्भीर भावनात्मक उथल-पुथल रहती है। अपने न्यू बोर्न बेबी को छोड़कर काम पर जाना, एक आदर्श माँ नही बन पाने का अपराध बोध रहता है। इसके अन्तर्गत स्तनपान से लेकर अपने बच्चे को किसी अन्य व्यक्ति की देखरेख में छोड़ना आदि तक के विषय शामिल होते हैं। इसके समाधान के लिए सर्वप्रथम यह देखें कि कौन-कौन लोग उपलब्ध हैं, जैसे कि आपका अपना साथी, आपके माता-पिता, आपकी ससुराल पक्ष के लोग, दोस्त, पड़ौसी, नैनी या डे-केयर आदि, और उपलब्ध लोगों के लिए एक कार्यक्रम का निर्धारण करें। इसके लिए काम पर जाने से 15 दिन पूर्व योजना बनाएं जिससे कि आपका बच्चा और उसकी देखभाल करने वाला व्यक्ति एक-दूसरे के साथ अच्छी तरह से घुल-मिल सकें।

    इसके लिए आपको हमेशा एक बैकअप भी तैयार रखना चाहिए, जो कि आवश्यकता होने पर बच्चे की देखभाल के लिए हर समय उपलब्ध रहे। आप स्वयं भी बच्चे की देखभाल करने वालों के साथ एक स्वस्थ तालमेल स्थापित करें और उनसे समय-समय पर संवाद करते रहें। सुबह के समय अपने बच्चे को आप फीड कराएं और उसके साथ क्वलिटी समय व्यतीत करें। काम पर जाने से पहले बच्चे का दूध तैयार करके ही जाएं और अपाने वार्डरोब को पहले से ही व्यवस्थित करें।