लौंग की खेती का सही तरीका लौंग की खेती कैसे करें:

                                                             लौंग की खेती का सही तरीका लौंग की खेती कैसे करें:

लौंग की खेती कैसे होती है और कितनी हो सकती है कमाई

                                                                

भारत के सभी हिस्सों में अलग-अलग प्रकार की खेती की जाती है क्योंकि देश के विभिन्न भागों की जलवायु, भूमि की उर्वरा क्षमता और भूमि का आकार भिन्न भिन्न है। आज भी भारत की लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या खेती पर निर्भर है। कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है।

देश के किसानों को कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाओं से लाभान्वित भी कर रही है। ऐसे में किसानों का रुझान खेती के प्रति बढ़ने लगा है। अब किसान पारंपरिक खेती को छोड़ नगदी फसल की खेती पर अधिक ध्यान दे रहे हैं।

अतः आज हम आपको एक ऐसी ही नकदी फसल की खेती के बारें में बताने जा रहे है। जिसकी एक बार खेती कर कई सालों तक पैदावार ली जा सकती है और यह है लौंग की खेती। लौंग की खेती कर किसान 2 से 2.5 लाख रूपये तक वार्षिक प्रति एकड़ कमा सकते है, लौंग एक मसाला वर्गीय फसल है। बाजार में इसकी मांग सदैव बनी रहती है, लौंग का उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है।

                                                                  

स्वाद में कड़वा होने के कारण इसका उपयोग कीटाणुनाशक और दर्दनाशक दवाओं में किया जाता है। लौंग की खेती कर किसान लाखों रुपए का टर्नओवर हासिल कर सकते हैं। तो इसलिए आज हम आज की इस पोस्ट के जरिये लौंग की खेती से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी आपके लिए लेकर आए हैं।

लौंग के खास उपयोग के बारे में जानकारी

                                                        

    लौंग की खेती एक मसाला फसल के रूप में की जाती है। इसके फलों का मसाले में बहुत अधिक उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त लौंग आयुर्वेदिक दवाइयों के निर्माण में भी उपयोग की जाती है। लौंग की तासीर अधिक गर्म होती है, जिसके कारण सर्दियों के मौसम में सर्दी जुकाम हो जाने पर लौंग का काढ़ा बनाकर पीने से आराम मिल जाता है।

लौंग के तेल का उपयोग खाद्य पदार्थों के स्वाद के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के औद्योगिक उत्पादों में किया जाता है। लौंग के तेल का उपयोग टूथपेस्ट, दांत दर्द की दवा, पेट की बीमारियों की दवा के उपयोग में किया जाता है। हिन्दू धर्म में लौंग को हवन और पूजा के दौरान भी किया जाता है।

लौंग का पौधा एक सदाबहार पौधा होता है, जिसका पूर्ण विकसित पौधा कई वर्षाे तक पैदावार देता है तथा इसका पौधा 150 वर्षाे तक जीवित रहता है। किसान भाई लौंग की खेती कर अधिक समय तक पैदावार प्राप्त कर सकते है।

अनुसंधन केंद्रों पर लौंग की खेती (Clove Farming)

                                                                                                                   लौंग का पौधा एक सदाबहार पौधा होता है। इसके पौधों को बारिश की अधिक जरुरत पड़ती है। साथ ही इसका पौधा तेज धूप और अधिक सर्दी को सहन कर पाने में सक्षम नही होते है। इसके पौधों के उचित विकास के लिए अनुकूल मौसम की आवश्यकता होती है। देश के विभिन्न भागों की जलवायु, भूमि की उर्वरा क्षमता भिन्न-भिन्न है। देश में अनुकूल मौसम की स्थिति के कारण, लौंग की खेती महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में ही की जाती है। लौंग की खेती कोंकण कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत विभिन्न अनुसंधान केंद्रों पर भी की जाती है।

लौंग की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु

                                                                      

भारत के उन क्षेत्रों में लौंग की खेती उपयुक्त है जहां की जलवायु उष्ण कटिबंधीय तथा गर्म होती है। लौंग की खेती करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी तथा नम कटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती को जलभराव वाली भूमि में नहीं करना चाहिए। जलभराव की स्थिति में लौंग के पौधों के खराब होने की स्थिति बढ़ जाती है।

लौंग के पौधों को सामान्य वर्षा की आवश्यकता होती है तथा अधिक तेज धूप और सर्दियों में गिरने वाला पाला इसके पौधों के लिए हानिकारक होता है। इसकी खेती ठंडे और अधिक बारिश वाले स्थानों पर संभव नहीं है। पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए छायादार जगह और 30 से 35 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच होनी चाहिए।

लौंग की खेती के लिए खेत की तैयारी (Long ki Kheti)

                                                                    

लौंग की खेती के लिए सबसे पहले खेत को अच्छे से तैयार करना जरूरी है। सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि पहले वाली फसल के अवशेष और कीट आदि नष्ट हो जाए। गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करने से फसल में कीटों का प्रकोप कम होता है जिससे बेहतर उत्पादन मिलता है। खेत की जुताई के लिए किसान भाई रोटावेटर का उपयोग कर सकते हैं। रोटावेटर की सहायता से खेत की दो से तीन बार गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।

इसके बाद खेत को पाटा लगाकर समतल कर लेना चाहिए। लौंग की खेती में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि खेत में जलभराव नहीं होना चाहिए। इसके लिए खेत में जलनिकासी की उचित व्यवस्था करनी चाहिए। खेत की तैयारी के बाद लौंग के पौधे लगाने के लिए 15 से 20 फीट की दूरी पर एक मीटर व्यास के चौड़े और डेढ़ से दो फीट गहरे गड्डे तैयार करने चाहिए। इन गड्ढों को तैयार करते समय खाद और उर्वरक की आवश्यक मात्रा मिट्टी में मिलाकर गड्ढों में भर देनी चाहिए और इसके बाद सिंचाई कर देनी चाहिए ताकि गड्ढों में मिट्टी का जमाव सही तरीके से हो सके।

खेती के लिए पौधों की तैयारी, रोपाई और तरीका

                                                             

लौंग के बीज को तैयार करने के लिए लौंग के पेड़ से पके हुए कुछ फलों को इकट्ठा किया जाता है। इसके बाद उनको निकालकर रखा जाता है। जब बीजों की बुआई करनी हो, तब पहले इससे पहले बीज को रातभर के लिए भिगोकर रखें। इसके बाद बीज फली को बुआई करने से पहले हटा दें। ध्यान रहे बीजों से पौधों को तैयार करने से पहले बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए।

चूँकि लौंग के बीजों से पौधों को तैयार होने में 2 वर्ष का समय लग जाता है, इसलिए यदि आप चाहे तो इसके पौधों को किसी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से भी खरीद सकते है, इससे आपका समय बचेगा और पैदावार भी जल्द प्राप्त होगी। इसके तैयार पौधों को बारिश के मौसम में लगाना काफी उपयुक्त माना जाता है।

इस दौरान सिंचाई की कम जरूरत होती है, तथा मौसम में आद्रता बनी रहती है, जो पौधों के अंकुरण के लिए अधिक लाभदायक होता है। लौंग के पौधों को खेत में तैयार किये गड्ढो में लगाया जाता है, इससे पहले इन गड्ढो में एक छोटा सा गड्ढा बना लिया जाता है। फिर इन छोटे गड्ढो में पौधों को लगाकर मिट्टी से अच्छी तरह से ढक दिया जाता है। लौंग की खेती मिश्रित खेती की तरह की जाती है।

इसलिए इसके पौधों को अखरोट या नारियल के बगीचों में भी लगाया जा सकता है। जिससे पौधों को छायादार वातावरण मिल जाता है, और पौधा अच्छे से विकास करता है।

लौंग की खेती के लिए सिंचाई

लौंग के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई को पौध रोपाई के तुरंत बाद कर देना चाहिए। यदि पौधों को बारिश के मौसम में लगाया गया है, तो आवश्यकता पड़ने पर ही सिंचाई करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त जिन पौधों की रोपाई गर्मियों के मौसम में की गई है, उनकी सिंचाई सप्ताह में एक बार अवश्य कर दें। वहीं सर्दियों के मौसम में इसके पौधों की 15 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए।

लौंग के पौधों को पोषक तत्व (उर्वरकों) का प्रबंधन

लौंग के पौधे को शुरुआत में कम उर्वरक की जरूरत होती है। इसके लिए गड्ढो को तैयार करते समय प्रत्येक गड्ढो में 15 से 20 किलो पुरानी गोबर की खाद और लगभग 100 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा को गड्ढो में पौधों की रोपाई से एक महीने भर दिया जाता है। इसके पौधे की वृद्धि के साथ-साथ उर्वरक की मात्रा में भी वृद्धि कर देनी चाहिए। पौधों को खाद देने के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए।

लौंग के फलों की तुड़ाई, पैदावार और लाभ

                                                         

लौंग के पौधों की रोपाई के तकरीबन 4 से 5 वर्ष जैसे लम्बे समय बाद पैदावार देना आरम्भ करते है। लौंग के फल पौधों में गुच्छे के रूप मे लगते है, जो देखने में गुलाबी रंग के होते है। इसके फूलो को खिलने से पहले तोड़ लेना चाहिए। ताजी कलियाँ लालिमा लिए हुए हरी होती है।

इसका फल अधिकतम 2 सेमी. लम्बा होता है, जो सूखने के बाद लौंग का रूप ले लेता है। लौंग की शुरुआती पैदावार काफी कम होती है, किन्तु एक बार जब पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है, तो इसके एक पौधे में तकरीबन 2 से 3 किलोग्राम तक लौंग प्राप्त हो जाती है। लौंग का बाजार भाव 800 से 1000 रूपए प्रति किलोग्राम के मध्य होता है, तथा एक एकड़ के खेत में 100 से अधिक पौधे तैयार हो जाते है। इस हिसाब से किसान लौंग की खेती कर ढाई से तीन लाख रूपए तक की कमाई आसानी से कर सकते है।

लौंग को लेकर कुछ खास बातें

  • लौंग के पौधे करीब 4 से 5 साल में फल देना शुरू कर देते हैं।
  • इसके फल पौधे पर गुच्छों में लगते हैं। इनका रंग लाल गुलाबी होता है।
  • इसका पौधा 10.12 मीटर तक बढ़ता है।
  • ये असल में फ्लावर बड्स यानी लौंग के पेड़ के फूलों की कली होती है जो असल में खिली नहीं होती है।
  • अगर ये फूल खिल गए तो इसे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
  • अगर लौंग की कली टूट गई तो इसकी कीमत कम हो जाएगी।
  • फार्म्स में सिर्फ इसे हाथों से ही तोड़ा जाता है।

                                                           

लौंग को अच्छी बारिश की जरूरत

ज्यादातर लौंग एशियन कॉन्टिनेंट में ही उगाई जाती है, इसके अलावा लौंग साउथ इंडिया में उगाया जाता है। लौंग के पेड़ का फल मौसम पर निर्भर करता है। अगर इसके लिए उपयुक्त मौसम नहीं मिला तो इसमें फल नहीं आएंगेण् ये गर्म और ह्यूमिड मौसम में अच्छे से उगाई जाती है और इसे अच्छी बारिश की भी जरूरत होती है। इसके पेड़ को पार्शियल शेड चाहिए होती है।

यहां हैं लौंग के कुछ बेमिसाल फायदे

सूजन कम करती है- लौंग में कई ऐसे कॉम्पोनेंट्स शामिल होते हैं जो एंटी. इंफ्लेमेटरी गुणों से जुड़े होते हैं। इसके उपयोग से शरीर में सूजन कम करनेए गठिया जैसी बीमारी को कम करने और लक्षणों को ठीक किया जाता है।

फ्री रेडिकल्स से मुक्ति- लौंग एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। ये आपके शरीर को Free Redicals से लड़ने में मदद करते हैं, जो आपके Cells को नुकसान पहुंचा सकते हैं और बीमारी का कारण बनते हैं। आपके सिस्टम से मुक्त कणों को हटाकरए लौंग में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट हृदय रोग, मधुमेह और कुछ कैंसर के खतरे को कम करता है।

अल्सर से बचाव- लौंग अल्सर से बचने में मदद कर सकती है। इसके साथ मौजूद अल्सर को ठीक करने में भी सहायता कर सकती है।

बेहतर डाइजेशन- लौंग खाने से डाइजेशन सही रहता हैण् दिन में एक या दो टीस्पून भुने लौंग के पाउडर के साथ शहद मिलाकर लिया जा सकता हैण्

माउथ हेल्थ. लौंग के उपयोग से मसूड़ों की बीमारियां नहीं होतीण्

डायबिटीज को कंट्रोल करने में मदद. लौंग डायबिटीज को कंट्रोल करने में मदद करता हैण् एक स्टडी में कहा गया कि लौंग के उपयोग से ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहता हैण्

किस मौसम में होता है लौंग

इसकी हार्वेस्टिंग अधिकतर फरवरी से शुरू होती है.

लौंग के फूल क्यों नहीं खाने चाहिए?

लौंग का ज्यादा सेवन करने से खून पतला हो सकता है. जिन लोगों को ब्लीडिंग डिसऑर्डर जैसे हीमोफीलिया की बीमारी है. उन्हें लौंग का ज्यादा सेवन नहीं करना चाहिए इससे उनकी सेहत को नुकसान पहुंच सकता है.

मानसून में ऐसे करें लौंग की खेती, होगा डबल मुनाफा

भारत में लौंग का प्रयोग कई तरह की बीमारियों में किया जाता है, यह एक सदाबहार पेड़ है, जो सेहत के लिए बहुत ही लाभकारी है.  लौंग के बीज को तैयार करने के लिए पेड़ से पके हुए कुछ फलों को इक्कठा किया जाता है. इसके बाद उनको निकालकर रखा जाता है. जब बीजों की बुआई करनी हो, तब पहले इसको रात भर भिगोकर रखना होता है.

यहां हैं लौंग के कुछ बेमिसाल फायदे

सूजन कम करती है- लौंग में कई ऐसे कॉम्पोनेंट्स शामिल होते हैं जो एंटी- इंफ्लेमेटरी गुणों से जुड़े होते हैं. इसके उपयोग से शरीर में सूजन कम करने, गठिया जैसी बीमारी को कम करने और लक्षणों को ठीक किया जाता है.

फ्री रेडिकल्स से मुक्ति

लौंग एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है. ये आपके शरीर को free radicals से लड़ने में मदद करते हैं, जो आपके cell को नुकसान पहुंचा सकते हैं और बीमारी का कारण बनते हैं. आपके सिस्टम से मुक्त कणों को हटाकर, लौंग में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट हृदय रोग, मधुमेह और कुछ कैंसर के खतरे को कम करता है.

अल्सर से बचाव

लौंग अल्सर से बचने में मदद कर सकती है. इसके साथ मौजूद अल्सर को ठीक करने में भी सहायता कर सकती है.

बेहतर डाइजेशन

लौंग खाने से डाइजेशन सही रहता है. दिन में एक या दो टीस्पून भुने लौंग के पाउडर के साथ शहद मिलाकर लिया जा सकता है.

माउथ हेल्थ

लौंग के उपयोग से मसूड़ों की बीमारियां नहीं होती.

डायबिटीज को कंट्रोल करने में मदद- लौंग डायबिटीज को कंट्रोल करने में मदद करता है. एक स्टडी में कहा गया कि लौंग के उपयोग से ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है.