
भारत को टीबी मुक्त बनाने की मुहीम Publish Date : 07/03/2025
भारत को टीबी मुक्त बनाने की मुहीम
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
चुनौतीः भारत को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, परन्तु अब भी प्रतिवर्ष सामने आ रहे टीअीी के लाखों केस, 40 प्रतिशत रोगी हैं बिना किसी प्रकार के लक्षण वाले।
भारत में प्रत्येक वर्ष टीबी के लाखों नए मामले तो सामने आ ही रहे हैं इसके साथ ही भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के डेटा की माने तो देश में लगभग 40 प्रतिशत मरीज ऐसे भी हैं जिनमें कोई लक्षण नहीं देखे जाते हैं। भारत सरकार ने इसी वर्ष यानि की वर्ष 2025 तक देश को टीबी मुक्त बनाने की लक्ष्य निर्धारित किया था।
विस्तार
मेडिकल क्षेत्र में नवाचार, आधुनिक चिकित्सा उपकरणों और प्रभावी रणनीति की सहायता से पिछले दो दशकों में भारत ने कई प्रकार की बीमारियों पर विजय प्राप्त की है। हालांकि, ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) अब भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए गंभीर चिंता का कारण बनी हुई है। भारत सरकार ने इसी साल 2025 तक देश को टीबी मुक्त बनाने की लक्ष्य निर्धारित किया था, हालांकि जिस तरह के डेटा प्राप्त हो रहे हैं उसे देखते हुए ये लक्ष्य अभी भी हमारी पहुँच से बहुत दूर नजर आ रहा है।
ट्यूबरकुलोसिस या क्षय रोग (टीबी) एक गंभीर बीमारी है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है। 13 दिसंबर 2024 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने लोकसभा में बताया था कि-
भारत में टीबी के मामलों की दर कम हुई है। वर्ष 2015 में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 237 लोगों को यह बीमारी थी, जो कि वर्ष 2023 में 17.7 प्रतिशत कम होकर प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 195 के स्तर पर आ गई है। इस दौरान टीबी से होने वाली मौतों में भी 21.4 प्रतिशत तक की कमी आई है, जो 2015 में प्रति लाख जनसंख्या पर 28 से घटकर 2023 में प्रति लाख जनसंख्या पर 22 हो गई है।
सरकार के प्रयासों से टीबी के मामलों में कमी तो जरूर आई है, परन्तु देश से टीबी के पूरी तरह से उन्मूलन का लक्ष्य अब भी काफी दूर नजर आ रहा है।
भारत में टीबी के मामले
भारत में प्रति वर्ष टीबी के लाखों नए मामले तो सामने आ ही रहे हैं इसके साथ भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के डेटा के अनुसार देश में 40 प्रतिशत मरीज ऐसे भी हैं जिनमें किसी भी प्रकार के कोई लक्षण नहीं देखे जाते हैं। इन मरीजों से भी टीबी के संक्रमण के प्रसार का खतरा सम्भव हो सकता है, जो कि टीबी के खात्मे की दिशा में एक बहुत बड़ा चौलेंज माना जाता रहा है।
भारत सरकार ने वर्ष 2025 तक टीबी को पूरी तरह से खत्म करने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (2017-2025) लागू की थी।
देश में टीबी से संबंधित प्रगति
राष्ट्रीय स्तर पर करीब 17 हजार ग्राम पंचायतों ने बीते एक साल में टीबी एक भी नया मामला नहीं मिलने का दावा किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश से साल 2024 में 7,755 ग्राम पंचायतों ने टीबी मुक्त होने का प्रमाण हासिल करने का दावा किया है। इनमें अकेले सिद्धार्थनगर जिले से 216 ग्राम पंचायतों ने राज्य सरकार को आवेदन किया है।
उत्तर प्रदेश के राज्य टीबी अधिकारी डॉ. शैलेन्द्र भटनागर ने बताया कि 2023 में कुल 1,372 ग्राम पंचायतों को टीबी मुक्त घोषित किया गया था। वहीं, बीते एक वर्ष में 7,755 ग्राम पंचायतों ने आवेदन किया है, जिसका सत्यापन एक सप्ताह में पूरा होगा।
वहीं दूसरी ओर हाल ही में तमिलनाडु टीबी प्रसार सर्वेक्षण में 39 प्रतिशत सब-क्लिनिकल टीबी के मामले पाए गए। सब क्लिनिकल टीबी का मतलब उन रोगियों से है जिनमें इस बीमारी के लक्षण जैसे खांसी या कफ आदि नहीं दिखाई देते हैं। ऐसे मामलों को देखते हुए सभी राज्यों को बिना लक्षण वाले मरीजों को संज्ञान में लेने और उनकी जांच कराने की सलाह दी गई है।
दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार, भारत में हर साल करीब 26 लाख नए टीबी मरीज मिल रहे हैं, जबकि कुल मरीजों की संख्या 28 लाख से अधिक होने का अनुमान है। इनमें 42.6 प्रतिशत टीबी के मरीज ऐसे भी हैं जिनमें बीमारी के लक्षण नहीं होते है, इन लोगों के माध्यम से समुदाय में टीबी का संक्रमण फैलाने का जोखिम अधिक हो सकता है, क्योंकि इन्हें स्वयं को भी अपनी बीमारी के बारे में पता नहीं होता है और ये बचाव के लिए जरूरी उपाय भी नहीं कर रहे होते हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
टीबी के विशेषज्ञ कहते हैं कि वर्ष 2025 में भी देश से टीबी खत्म करने का लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा, इसका एक कारण यह है कि बहुत से लोग लंबे समय तक बने रहने वाले कफ और बुखार को अनदेखा कर देते हैं। दो सप्ताह से अधिक समय तक अगर खांसी की परेशानी बनी रहती है और कफ या खून आता है, सीने में दर्द, कमजोरी या थकान की समस्या रहती है तो यह टीबी का संकेत भी हो सकता है। इसलिए इसकी तुरंत जांच और उचित उपचार करया जाना चाहिए।
कुछ मरीजों में टीबी के कोई भी लक्षण नहीं दिखते हैं, पर जब उनकी इम्युनिटी कमजोर हो जाती है तो इसके स्पष्ट संकेत दिखने लगते हैं, इस प्रकार की टीबी को लेटेंट ट्यूबरक्यूलोसिस कहा जाता है। अगर आपके परिवार में किसी को टीबी है तो आपको परिवार के अन्य लोगों को भी स्क्रीनिंग जरूर करानी चाहिए, इससे समय पर ही बीमारी का पता लगाया जा सकता है। टीबी की दवा को कभी कोर्स पूरा होने से पहले नहीं छोड़नी चाहिए।
वैश्विक स्तर पर टीबी के मामले
ऐसा नहीं है कि टीबी केवल भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। ऐसे कई अन्य देश भी हैं जो इससे परेशान रहे हैं, हालांकि वैश्विक टीबी का लगभग 26 प्रतिशत हिस्सा अब भी भारत में ही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट में बताया गया कि वर्ष 2023 में दुनियाभर में 8 मिलियन (80 लाख) से अधिक लोगों में तपेदिक का पता चला है। यह संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी द्वारा 1995 में ट्रैक रखना शुरू करने के बाद से दर्ज किए गए मामलों की सबसे अधिक संख्या है। इससे पहले 2022 में डब्ल्यूएचओ ने टीबी के 7.5 मिलियन (75 लाख) मामले दर्ज किए। पिछले साल लगभग 1.25 मिलियन (12.5 लाख) लोगों की टीबी से मृत्यु भी हुई है।
ड्रग रिजेस्टेंस टीबी भी बन रहा खतरा
देश में ड्रग रिजेस्टेंस टीबी के मामले भी काफी चुनौतीपूर्ण रहे हैं। हाल ही में प्रयागराज महाकुंभ के दौरान भी 19 मरीजों में ड्रग सेंसिटिव टीबी और एक ड्रग रेसिस्टेंट टीबी का मरीज भी पाया गया था। ड्रग रिजेस्टेंस टीबी (टीबी), टीबी का एक प्रकार है जो उन बैक्टीरिया के कारण होता है जो एंटी-टीबी दवा के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं। ऐसे मरीजों पर टीबी के सामान्य उपचार का कोई असर नहीं होता है।
इसको लेकर साल 2021 में मौखिक दवा की शुरुआत की गई थी, इस पहल की मदद से ड्रग रिजेस्टेंस टीबी के उपचार की दिशा में बड़ी सफलता मिली है। ड्रग रेजिस्टेंस टीबी के उपचार की सफलता दर जो साल 2020 में 68 प्रतिशत थी वह इस दवा के बाद बढ़कर वषै 2022 में 75 प्रतिशत हो गई थी।
ट्यूबरकुलोसिस के बारे में जानकारी रखना सभी के लिए जरूरी
टीबी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होने वाला यह संक्रामक रोग है। यह मुख्य रूप से वायुजनित ड्रॉपलेट्स के माध्यम से फैलता है। टीबी रोग वाले लोगों की खांसी या छींक से निकलने वाली बूंदों के माध्यम से आसपास के अन्य लोगों में संक्रमण का खतरा हो सकता है। यही कारण है कि स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के बीच टीबी की घटनाओं को लेकर विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की है।
सफदरजंग अस्पताल में सामुदायिक चिकित्सा विभाग के निदेशक और प्रोफेसर डॉ. जुगल किशोर ने बताया कि भारत में स्वास्थ्य कर्मियों के बीच टीबी पर व्यापक दर काफी चिंताजनक है।
वर्ष 2004 से 2023 के बीच किए गए दस अध्ययनों की समीक्षा की गई। इसमें प्रयोगशाला तकनीशियनों (प्रति 100,000 में 6,468.31 मामले), डॉक्टरों (प्रति 100,000 में 2,006.18) और नर्सों (प्रति 100,000 में 2,726.83) के बीच विशेष रूप से टीबी की उच्च दर का पता चलता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, दो सप्ताह से अधिक समय तक अगर खांसी की परेशानी बनी रहती है और इसके साथ ही कफ या खून आता है, सीने में दर्द, कमजोरी या थकान की समस्या रहती है तो यह टीबी का संकेत हो सकता है। इस तरह के संकेतों पर गंभीरता से ध्यान देना और उपचार कराना बहुत जरूरी हो जाता है।
लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।