अधिक आय के लिए ब्राह्यी की खेती

                                                                    अधिक आय के लिए ब्राह्यी की खेती

                                                                     

ब्राह्यी एक वर्षीय अत्यंत महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है। भारत में प्राचीन काल से ही प्रयुक्त की जाने वाली उन जड़ी-बूटियों में से है, जिसे प्राचीन भारत की प्रमुख औषधीय पौधों के रूप में की जाती रही है।

प्राचीन ग्रन्थों जैसे, अथर्ववेद, चरक संहिता एवं आयुर्वेदिक मेटेरिया मेडिका में यह पौधा अधिकांशतः नदियों अथवा तालाबों के आस-पास नमी वाले स्थानों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। भारत के अतिरिक्त श्रीलंका एवं सिंगापुर के कुछ क्षेत्रों में इसका पौधा प्राकृतिक रूप से पाया जाता है।

वानस्पतिक परिचय

    ब्राह्यी (जलनीम) एक औषधीय पौधा होता है। ब्राह्यी सीलन एवं दलदले स्थानों में प्राकृतिक रूप से उग जाता है। यह एक विसर्पी अथवा रेंगनें वाला, मांसल, पत्तियों एवं कांड वाला पौधा होता है, जिसकी जड़ें एवं पत्तियां इसकी गांठों से निकलती हैं।

इसकी गांठों से इतनी अधिक पत्तियां एवं जड़ें विकसित होती हैं कि भूमि पर उनकी एक चटाई सी बन जाती हैं। ब्राह्यी की पत्तियां 6.25 मिमी से 2.0 सेमी0 तक लम्बी एवं 2.5 मिमी0 से 10 मिमी0 तक चौड़ी, विनाल कुठिंताम सरल तट वाली और काली बिन्दु अंकित होती हैं। ब्राह्यी के पुष्प सफेद अथवा हल्के नीले रंग के 1 सेमी0 लम्बे होते हैं, जो छोटे और पतले पत्र कोणोद्भूत एकक वृन्तों पर धारण किए जाते हैं, जिनमें 0.2-0.3 मिमी0 आकार के अनेक चपटे और लम्ब, गोल बीज तैयार होते हैं, जिनका तल सूक्ष्म रेखांकित होता है।

रासायनिक संगठन

                                                          

    ब्राह्यी में विभिन्न प्रकार के यौगिक पाए जाते हैं, जिनमें बैकोसाइड (0.5-2.6 प्रतिशत) ए1, ए2 एवं ए3, बी तथा सपौनिन समूह बैकोसिन, बैकोजिनिन ए1, ए2, एवं ए3 आदि प्रमुख यौगिक हैं। इनके अतिरिक्त ब्राह्यीन, हरपैस्टिन तथा तीन अन्य क्षारोद बी1 आक्जैलेट, बी2 आक्जैलेट, एवं बी3 क्लोरोप्लास्टिनेट डी मैनीटाल, बैटुलिक एसिड, मौनिरीन, निकोटिन लटियोलिन-7 आदि भी उपलब्ध रहते हैं।

औषधीय उपयोगः औषधीय उपयोग में ब्राह्यी के पंचांग, रस एवं मूल चूर्ण का उपयोग किया जाता है। ब्राह्यी एक मध्य औषधि अर्थात मनुष्य की सामान्य बुद्वि का विकास करती है। ब्राह्यी के सामान्य गुणों का विवरण निम्नवत् है-

बुद्वि एवं स्मरण शक्तिवर्धकः ब्राह्यी के पौधे का 10 मिली0 से 20 मिली0 तक ताजा रस सुबह-शाम 4-6 माह तक नियमित रूप से सेवन करने से मनुष्य की बुद्वि एवं में स्मरणशक्ति में उल्लेखनीय वृद्वि होती है। सूखें पौधे का एक से दो ग्राम चूर्ण शहद के साथ 4-6 माह तक नियमित रूप से सेवन करने पर मनुष्य की बुद्वि एवं स्मरण शक्ति में आशातीत लाभ होता है।

संधिवात (जोड़ों का दर्द अथवा गठिया)ः ब्राह्यी के ताजे पत्तों का रस निकालकर इसे गर्म पैराफिन केे साथ मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाने से तुरंत लाभ मिलता है। ब्राह्यी के ताजे पत्तों का रस निकालकर उसंे पिघली हुई पैट्रोलियम जैली के साथ मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाने से भी लाभ मिलता है। जब यह ठण्ड़ा होर ठोस रूप में आ जाए तो इसे पुनः पिघलाकर और गरम करके प्रभावित स्थान पर लगाएं, इससे तंत्रिका शूल (न्यूरेल्जिया), संधिवात एवं सूजन आदि में लाभ प्राप्त होता है।

बच्चों की खांसीः ब्राह्यी के पौधों को उबाल कर उनकी पुल्टिस बनाकर बच्चों की छाती पर 1/2 घंटें तक बाधने से तुरंत लाभ होता है।

चिन्ता एवं व्याग्रता के निवारण हेतुः ब्राह्यी को नियमित सेवन करने से चिन्ता एवं व्याग्रता जैसी व्याधियां भी दूर होती है। अतः इसका उपयोग उपशामक के रूप में भी किया जाता है।

                                                            

    उपरोक्त व्याधियों के अतिरिक्त ब्राह्यी का उपयोग श्वास, कब्ज, बुखार, मिर्गी के दौरे, उन्माद (पागलपन), मधुमेह, सर्पदंश, पेशाब की जलन, मस्तिष्क की कमजोरी, गर्भधारण क्षमता में वृद्वि हेतु भी ब्राह्यी का उपयोग किया जाता है।

    ब्राह्यी के औषधीय उपयोग में निरन्तर वृद्वि हो रही है, जिसके कारण ब्राह्यी की मांग भी दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही है। अतः ब्राह्यी की खेती कर किसान भाई इसका लाभ उठा सकते हैं।