स्किल सेल एनीमिया

                                                                             स्किल सेल एनीमिया

                                                                       

खून के कणों का आकार बदलने से होता है

हाल ही में देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2047 तक स्किल सेल एनीमिया बीमारी को खत्म करने के लिए कहा है इसलिए आजकल यह काफी चर्चाओं में है और सरकार के साथ-साथ डॉक्टर और आम जनता भी इस पर ध्यान देने लगी है।

स्किल सेल एनेमिया खून की कमी से जुड़ी एक बीमारी है इस अनुवांशिक डिसऑर्डर में ब्लड सेल्स या तो टूट जाते या उनका आकार स्किल यानी बराती जैसे बदलता है जिसे ब्लड सेल्स में ब्लॉकेज और रेड ब्लड सेल्स तेजी से मरते भी हैं। इसमें रेड ब्लड सेल्स की आयु 10 से 20 दिन होती है जबकि सामान्य रूप से 1 से 20 दिन होता है इससे शरीर में खून की कमी और अन्य अंगों को भी नुकसान होता है।

यह बीमारी 15 से 50 साल की उम्र की करीब 56 प्रतिशत महिलाओं में पाई जाती है पिछले 6 दशकों से यह बीमारी भारत में ज्यादा तेजी से फैल रही है। विश्व के करीब आधे मरीज भारत में पाए जाते हैं स्किल सेल एनेमिया एक अनुवांशिक बीमारी है यह बीमारी अधिकतर जनजातियों में देखने को मिलती है जो कुल आबादी का 8.6 प्रशित है।

कहां है इसके ज्यादा मरीज

                                                        

राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, तेलगाना, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में यह बीमारी ज्यादा देखने को मिलती है।

क्या होते हैं इसके संभावित लक्षण

इसके लक्षण बच्चों में 6 माह की उम्र में देखे जा सकते हैं इससे थकान कमजोरी होती है। छाती पेट और जोड़ों में खून की समस्या होने से तेज दर्द हो सकता है यह कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक रह सकता है। हाथ पैरों में सूजन और बार-बार संक्रमण होना भी इसकी प्रमुख लक्षण हो सकते हैं।

क्या है एकमात्र कारण

अगर माता-पिता को यह बीमारी है तो बच्चे को भी निश्चित रूप से होगी। यह प्रमुख रूप से अनुवांशिक बीमारी है इनमें 1 दिन होता है जो अनन्या के खिलाफ आंशिक सुरक्षा प्रदान करता है यह जीन ही बीमारी का कारण बनता है बार-बार संक्रमण से पलीहा की क्षमता पर असर पड़ता है।

कब दिखाएं डॉक्टर को

जब शरीर में तेज बुखार हो चिड़चिड़ापन महसूस हो रहा हो, शरीर का रंग पीला पड़ता जा रहा हो, तेज सांसें लेनी पड़ रही हो, पेट बढ़ने, हाथ और पैरों में सूजन कमजोरी, बेसुध होने की समस्या, आंखों में दिक्कत और दौरे आने लगते हैं। ऐसी दशा में आपको तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए और उसकी सलाह पर ही दवाइयों का सेवन करना चाहिएं।

कौन सी जांच करानी होगी

इसे बच्चे के जन्म के समय डायग्नोस्टिक जाता है जांच के लिए सीवीसी यानी संपूर्ण ब्लड काउंट टेस्ट, हेमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफॉरेसिस टेस्ट, असमान हीमोग्लोबिन की जांच, यूरिन की जांच ताकि किसी तरह के छिपे हुए इंफेक्शन का पता चल सके अल्ट्रासाउंड और एक्सरे कराने की आवश्यकता पड़ती है।

क्या हो इलाज

हर मरीज के लक्षणों के आधार पर इलाज होता है। इसमें खून चढ़ाने की जरूरत भी पड़ सकती है, बोन मैरो ट्रांसप्लांट एकमात्र इलाज है। यह न केवल कठिन महंगा इलाज है बल्कि इसके साइड इफेक्ट भी होते हैं। इसमें डोनर मरीज का भाई या बहन हो ताकि बोन मैरो मैच हो जाए।

                                                       

इन बातों का रखें विशेष ध्यान

शादी से पहले लड़का और लड़की के ब्लड की जांच हो ताकि यह बीमारी इनके साथ बच्चों में न फैले।

शिशुओ को लगने वाले सभी टीको के नयूमोंकाकल के फ्लू और मेनिगोकाकल का टीका भी लगवाए।

फोलिक एसिड सप्लीमेंट भी नियमित रूप से लेना चाहिए ताकि नई लाल रक्त कोशिकाएं बनती रहे।

खूब पानी पीते रहे ताकि दर्द से बचा जा सके दर्द निवारक दवाइयां डॉक्टरी सलाह के बाद ही लें तो अच्छा रहेगा।

ककोड़ा एक सब्जी ही नहीं अपितु यह एक औषधि भी है

बरसात के दिनों में ककोड़े की सब्जी बहुत पॉपुलर होती हैं और लोग मार्केट में ककोड़ा को खोजते रहते हैं, लेकिन बड़ी मुश्किल से ही यह कुछ ही सब्जी वालों के पास मिल पाता हैं। यदि इस मानसूनी सीजन में इस सब्जी का सेवन किया जाए तो यह त्वचा से संबंधित अनेक रोगों से लोगों को बचाती है।

इनको खाने से सिर का दर्द, बालों का झड़ना, कान का दर्द, खाँसी, पेट का इन्फेक्शन, बवासीर एवं पीलिया आदि रोगों से बचाव होता है। इसके अलावा ककोड़ा का नियमित सेवन करने से तो दाद, खाज, खुजली आदि से भी बचाव किया जा सकता है।

ककोड़ा में प्रोटीन, फाइबर, कार्बाेहाइड्रेट्स, विटामिन इ1, बी2, बी3, बी5, बी6, बी9, बी12, विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन डी, दो और तीन तथा कैल्शियम आदि भरपूर मात्रा में मिलते हैं।

                                            स्वास्थ्य रक्षा के लिए होम्योपैथिक के विभिन्न उपाय

                                           

होम्योपैथी में केवल उपचार ही नहीं अपितु बीमारियों से बचाने वाली दवाएं भी उपलब्ध हैं-

मानसून की बारिश में भीगने के बाद वायरल, बुखार, सर्दी, खांसी, जुकाम के जैसी समस्याओं का होना एक आम बात है। इस मौसम में मच्छर और पानी से होने वाली बीमारियों की आशंका भी काफी बढ़ जाती है।

होम्योपैथी एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसमें न केवल बीमारी होने पर उसका इलाज किया जाता है बल्कि साथ बीमारियों से बचाव के लिए भी कुछ प्रीवेंटिव मेडिसिन भी दी जाती हैं। तो आइए और जानते हैं मानसूनी बीमारियों से बचाव के लिए क्या-क्या उपाय किए जा सकते है।

बारिश में भीगने से हल्का बुखार, गर्दन दर्द, और सिर दर्द हो सकता है, तो इसके लिए होम्योपैथी की दवा डलकामारा 30 दवा लेने से आराम मिल जाता है। व्यस्क इस दवा की दो-दो बूंद दिन में चार बार और बच्चों को एक-एक बूंद दी जा सकती हैं।

मच्छर जनित बीमारियां जैसे मलेरिया, चिकनगुनिया और डेंगू आदि होती है। इसके लिए मच्छरों से बचाव के अलावा कुछ दवाइयां हैं जैसे कि एकोनाइटिकम, यूपीटोरियम पफ एवं ब्रायोनिया एल्बा आदि दवाओं को लेकर हम इनसे अपना बचाव कर सकते हैं।

पानी के दूषित होने से डायरिया, कोलोरा आदि की आशंका रहती है, इसमें उल्टी एवं दस्त की समस्या होती हैं। इन बीमारियों में हाइजीन का ध्यान रखना होता है। जहां शंका है कि बाहर का खाना, पानी अशुद्ध है तो इसे खाने से बचें। इन परेशानियों से बचने के लिए आप आर्सेनिक एल्बम 30, पोडोफाइलम 30, वेरेट्रम एल्बम 30 और कैम्फोरा 30 आदि दवाएं अति उपयोगी साबित होती हैं।

मानसून में दूषित भोजन, पानी से टाइफाइड भी एक आम बीमारी है। इसमें संक्रमण होता है जिसमें लंबे समय तक बुखार, पेट में गंभीर दर्द, कब्ज और दस्त के साथ-साथ सिर दर्द भी हो सकता है। इस बीमारी में भी हाइजीन का ध्यान रखना आवश्यक होता है और इसके साथ ही वेरेट्रम एल्बम, बिस्मिथ तथा कार्बाेवेज आदि होम्योपैथी के चिकित्सक देते हैं। वायरल बुखार (इन्फ्लुएंजा) से बचाव के लिए आप आर्सेनिक एल्बम 30 की कुछ खुराक ले सकते हैं।

                                 महिलाओं में एस्ट्रोजन घटने और खराब आदतों से कमजोर होती हैं हड्डियां

                                          

महिलाओं में कम उम्र यानी कि 30 से 40 वर्ष में ही हड्डियां कमजोर होने के मामले देखे जा रहे हैं वहीं 45 वर्ष की उम्र के बाद मेनोपॉज शुरू होने से भी फास्ट प्रोसेस की समस्या होने लगती है इससे कमर जोड़ों ईद या फिर थोड़ी देर बैठने के बाद घुटनों में दर्द की समस्या आम है जानते हैं कि इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं।

एस्ट्रोजन घटने से शुरू होने लगती है समस्या

महिलाओं में एक खास हार्माेन यानी एस्ट्रोजन होता है यह हार्माेन कैल्शियम के अवशोषण में बड़ी भूमिका निभाता है और जब महिलाएं 20 से 30 वर्ष की उम्र  की होती हैं तो ज्यादा मात्रा में बनता है। लेकिन 30 से 40 की उम्र में डाइट मैं लिए गए कैल्शियम का शरीर ठीक से समान नहीं कर पाता और महिला की हड्डियां कमजोर होना शुरू हो जाती है। यही कमजोर हड्डियां अलग-अलग तरह की समस्याओं का कारण बनती है, दूसरा कुछ खराब आदतें हैं जो इस तरह की समस्या को बनाती और बढ़ाती रहती है।

इस कारण से होती है यह समस्या

ज्यादा प्रोटीन खाने से एसिडिटी होती है इससे भी कैल्शियम यूरिन में ज्यादा निकलता है।

कार्बाेनेटेड ड्रग्स में पासवर्ड ज्यादा होता है जो कैल्शियम को कम कर हड्डियों को कमजोर बनाते हैं।

ज्यादा मात्रा में एसिडिटी वाली दवाई लेने से शरीर को कैल्शियम मैग्नीशियम और जिंक जैसे खनिज पदार्थों का अवशोषित करने में मुश्किल होती है।

ज्यादातर महिलाएं बयान नहीं करती इससे हड्डियों में अकड़न और दूसरी समस्याएं शुरू हो जाती हैं।

महिलाएं कम दूध पीती है अधिक कैल्शियम का मुख्य स्रोत डेरी प्रोडक्ट ही है इसलिए महिलाओं को अधिक से अधिक दूध पीना चाहिए।

ज्यादातर महिलाओं में विटामिन डी-3 की कमी देखी गई है क्योंकि वह धूप में कम जाती है

ज्यादातर तनाव से कोर्टिसोल हार्माेन बढ़ता है, इससे ब्लड शुगर बढ़ता और टॉयलेट के रास्ते कैल्शियम भी शरीर से बाहर निकलता है।

ज्यादा कैफीन वाली चीजें लेने से भी हड्डियां अंदर से कमजोर होती है।

कैसे करें बचाव

शरीर को रोज सांसों से 1000 मिलीग्राम कैल्शियम की जरूरत होती है। डाइट में कैल्शियम से भरपूर सूट्स जैसे दूध, दही, पनीर, बीज, हरी सब्जियां, राजगिरा के बीज, तिल के बीज, दाल, राजमा, छोले, बादाम आदि को जरूर शामिल करना चाहिए। इनको खाने से शरीर को भरपूर मात्रा में कैल्शियम मिल सकेगा।

प्रतिदिन सुबह करीब 9:00 से 10:00 हर दिन थोड़ी देर धूप में बैठे ताकि शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी मिल सके।

महिलाओं को रोज कम से कम पांच हजार कदम जरूर चलना चाहिए, अकड़न जकड़न में आराम मिलेगा और हड्डियों में नए सह-संबंध के रहेंगे।

खानपान को ऐसा बना कर रखें जिससे वजन कंट्रोल में रहे, ज्यादा वजन घुटनों पर जोर पड़ता है उसने जल्दी खराब होते हैं, इससे जोड़ों के कार्टिलेज ज्यादा तेजी खराब से है।