मधुमेहके रोगियों को अकेलेपन से खतरा अधिक

                                               मधुमेहके रोगियों को अकेलेपन से खतरा अधिक

                                                

    डायबिटीज से ग्रस्त रोगियों को ह्दय से सम्बन्धित बीमारियो के प्रति सतर्कता बरतने सलाह चिकित्सकों के द्वारा दी जाती रहती है। अब एक नए शोध में बतया गया है कि डायबिटीज के रोगियों को अपने दिल के स्वास्थ्य के लिए आहार, धूम्रपान एवं अवसाद आदि की तुलना में अकेलेपन और सामाजिक अलगाव से अधिक खतरा है। युरापियन सोसाईटी ऑफ कार्डियेलॉजी अर्थात ईसीजी के द्वारा संचालित यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित इस शोध में यह जानकारी प्रदान की गई है।

    अमेरिका के तुलेन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ पब्लिक हेथ एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन ओरलेस के प्रोफेसर एवं शोध के लेखक लु की ने बताया कि डायबिटीज से पीड़ितों के दिल के स्वास्थ्य लिए अन्य कारकों की अपेक्षा सामाजिक सम्बन्ध अधिक महत्वपूर्ण हैं। ब्रिटेन के बायोबैक में किए गए इस अध्ययन में 37 से 73 वर्ष के ऐसे 18,509 डायबिटीज से पीड़ित लोगों को शामिल किया गया जिनमें ह्दय से सम्बन्धित बीमारी नही थी। लेकिन 10 वर्ष से अधिक के फोलोअप में 3,247 प्रतिभागियों में ह्दय से सम्बन्धित बीमारियों को पाया गया।

                                                       भरोसा करने से होती जिन्दगी आसान

                                                 

    ‘‘किसी एक इन्सान पर से एक बार हमारा भरोसा उठ जाए तो यह हमें कई अन्य लोगें पर भरोसा करने से रोकता है, और हम स्वयं पर भी सन्देह करने लगते हैं। परन्तु, यह जीवन है, जिसकी गाड़ी भरोसे के पहियों पर ही चलती है। हम बार-बार दूसरे व्यक्तियों पर भरोसा कर सके, इतना साहस तो हममें होना ही चाहिए।’’

    हमारे जीवन में अनेक ऐसे क्षण भी आते हैं, जब हम अपने प्रियजनों के व्यवहार से निराश होने लगते हैं और तब हम सोचते हैं कि जिन लोगों पर सबसे अधिक विश्वास करते थे, उन्होंने ही हमारे विश्वास को छिन्न-भिन्न कर दिया। ऐसे में जब हमें अपने करीबियों की सबसे अधिक जरूरत होती है, उस समय ही वे हमारे लिए उपलब्ध नही हो पाते हैं और जब ऐसा होता है तो हम स्वयं को अकेला और ठगा हुआ अनुभव करने लगते हैं।

    इस प्रकार की घटनाओं से दूसरे लोगों पर भरोसा करना हमारे लिए कठिन हो जाता है और हमारे अन्दर आने वाला यही भाव हमें कठोरता प्रदान करता है। अब हम इस प्रयास में अपने ध्यान को केन्द्रित करते है जिससे कि देबारा से हमे ठेस न पहुँचें। परन्तु कुछ बातों को ध्यान में रखकर हम फिर से इनसानियत पर अपने विश्वास को बना सकते हैं।

दुःख से बचने के लिए हमारे द्वारा खड़ी की दीवारें ही खुशियों को हमारे समीप नहीं आने देती हैं।                                                                  

                                                                                                                                                            - जिम रॉन।

जैसा हम सोचते हैं वैसा ही पाते हैं-

    जब हमारा मस्तिष्क शांत और दिल खुश होता है, तो हमें अपना जीवन अचानक ही सुन्दर लगने लगता है। हम अनुभव कर रहे होते हैं कि हमारे चारों ओर खुशियाँ ही खुशियाँ बिखरी पड़ी हैं। दरअसल हमें उस समय अपनी अंदरूनी खुशी के चलते ही ऐसा अनुभव होता है। इसके विपरीत जब हमारा दिल उदास होता है तो हमें अपने चारों ओर स्याह अन्धेरे के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नजर नही आता है। ऐसे मौके पर नकारात्मक विचार हमारे मन पर हावी होने लगते हैं और हमें अनुभव होता है कि हमारे सारे के सारे प्रयास नाकाफी हैं और यह दुनिया भरोसे के लायक ही नही है। यानि कि हमारी सोच सत्यता का रूप धारण कर हमारे सामने आने लगती है।

अपने आपको न समझे पीड़ित-

    किसी भी व्यक्ति का स्वयं को असहाय या बेचारा समझना उसका स्वयं के साथ अन्याय करना है। क्योंकि उस व्यक्ति को इस बात का अंदाजा ही नहीं होता है कि स्वयं को पीड़ित समझकर वह अपना ही कितना बड़ा नुकसान कर रहा है। इसलिए याद रखें कि चाहे जीवन में कितना बड़ा ही संकट क्यों न आए, चाहे कितने ही लोग आपके साथ छल करें, परन्तु व्यक्ति को अपने आपको किसी भी हाल में स्वयं को बेचारा या असहाय नही समझना चाहिए, क्योंकि यही असहाय होने का भाव हमारी इच्छाशक्ति/आत्मविशस को समाप्त कर देती है।

यह भाव हमारी आत्मा को घायल करने के साथ ही हमारी सही और गलत के तर्क क्षमता को भी नष्ट कर देता है। इसी के चलते अन्य लोग भी आपको उसी दृष्टि से देखने लगते हैं।

    यह अपने आप में सत्य है कि जीवन पीड़ितों के प्रति कोई भी सहानुभूति का भाव कभी भी प्रदर्शित नही करता है। अतः आपसे आशा की जाती है कि आप अपनी जिम्मेदारी स्वयं ही लें, और अपने मन में सदैव यही भाव रखें कि आप अपनी प्रत्येक समस्या का सामना, एक विजेता की तरह से ही करने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं।

हाथ को हाथ का ही सहारा होता है-

                                                           

    कई लोगों में बचपन से ही यह आदत होती है कि वे अपना छोटे से छोटा कार्य भी बिना किसी की सहायता के नही कर पाते हैं और समय के बीतते बीतते उनके अन्दर यह भावना घर कर जाती है कि बिना किसी के सहारे के वे अपना कोई काम नही कर पायंेगे और हमें अपने कार्यों में दूसरों से सहायता लेनी ही पड़ेगी। ठीक इसी प्रकार दूसरे लोगों को भी हमारी सहयता की आवश्यकता पड़ती है।

यह सब कहने का अर्थ यह है कि चाहे आपका दिल कितनी ही बार क्यों न टूट जाए अथवा आपको अपने करीबियों से कितनी ही बार निराशा क्यों न मिले, परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया में अच्छाई एवं अचछे लोग अभी भी उपलब्ध हैं। हम सदैव ही यह दिखावा नहीं कर सकते कि हमे किसी की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि असल में हम सभी को प्यार, लगाव और मदद के जैसे इनसानी भावों की तो आवश्यकता पड़ती ही रहती है।

कोई नहीं हैं अपने आप में सम्पूर्ण-

    लोग अक्सर कहते हैं कि हमें लोग निराश नही करते हैं अपितु उनसे जुड़ी हमारी अपेक्षाएं ही हमें दुख पहुँचाती हैं। जब भी आप दूसरे व्यक्तियों से कुछ उम्मीदे रखते है, जैसे कि वह सदैव आपके हिसाब से ही व्यवहार करेंगे तो आप उस समय अपने लिए निराशा का ही चुनाव कर रहे होते हैं, क्योंकि आपके हिसाब से व्यवहार करना किसी अन्य की जिम्मेदारी नही होती है। जबकि यह भी अपने आप में एक सनातन सतय है कि इस सम्पूर्ण दुनिया में कोई भी पूर्ण नही है।

    हम सभी गलतियाँ करते रहते हैं या कुछ भी ऐसा कर देते हैं कि वह किसी अन्य को बुरा लग सकता है और ऐसा सभी के साथ होता है। हमें हमेशा यह याद रखने की आवश्यकता होती है कि हमारी ही तरह से दूसरों के जीवन में भी उनके हिस्से में भी दुख और परेशानियाँ आदि होते हैं, जिनसे उन्हें स्वयं ही निपटना होता है।   

                                              मनुष्य ही नही, पक्षियों में भी हो रहा है अलगाव

                                           

    केवल इंसा नही नही, अब पक्षियों में भी अलगाव हो रहा है। चीन एवं जर्मनी के शोधकर्ताओं की टीम की ओर से किए गए नये अध्ययन में शोधकर्तााओं ने बताया कि दूसे पक्षियों से सम्बन्ध और लम्बे समय तक उनसे दूर रहने के कारण पक्षियों में भी अलगाव हो सकता है।

    अध्ययन की पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार, शोधकर्ताओं का कहना है कि पक्षियों करीब 90 प्रतिशत प्रजातियों में एक ही मादा पक्षी के साथ रहते हैं। हालांकि कुछ पक्षी अपने साथी को फिर भी छोड़ देते हैं। इस अध्ययन के दौरान इसके दो कारण भी बताये गये हैं।