बारिश के कारण बढ़ी हैं सब्जी की कीमतें

                                                    बारिश के कारण बढ़ी हैं सब्जी की कीमतें

    आजकल सब्जी की कीमतों में बेतहाशा वृद्वि देखने को मिल रही है, जबकि टमाटर के जैसी प्रतिदिन उपयोग में आने वाली सब्जी के दाम तो इस समय आसमान छू रहे हैं, जो सौ रूपये प्रति किलोग्राम से भी अधिक हो गये हैं। हरी सब्जियों की कीमतें भी खुदरा बाजार में 50 रूपये या उससे अधिक प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही हैं।

                                                        

आम पब्लिक यह तो देखती है कि इनके दाम बढ़ रहें है, परन्तु वे लोग इस मूल्य वृद्वि के पीछे निहीत कारणों को देखने कोशिा नही करते हैं। बारिश के कारण फसलें तो खराब होती ही हैं और इसके साथ ही लोग सब्जी खरीदने से भी बचते हैं।

    ऐसी परिस्थितियों में कोई भी सब्जी की खुदरा बिक्री करने वाला सुबह-सुबह मण्ड़ी जाकर अपनी जमा पूँजी को व्यय कर वहाँ से सब्जियाँ खरीद कर लेकर आता है, और वह बारिश में भीगते हुए ही बाजारों में सब्जी बेचता है। ऐसे में उस सब्जी विक्रेता को भी थोड़ा-बहुत मुनाफा तो मिलना ही चाहिए। इसके उपरान्त भी उससे सब्जी खरदने वाले लोग कहते हैं कि तुम तो बहुत महंगी सब्जियाँ बेक रहे हो, मानों सब्जी की यह कीमते उसी के द्वारा बढ़ाई गई हो।

                                                     

जमाखोरी भी होता है इसका एक प्रमुख कारण

    रोजमर्रा की उपयोग की जाने वाली वस्तुओं में यह महंगाई लगभग पिछले एक वर्ष से निरंतर बनी हुई है। हालांकि बीच में, तकरीबन दो महीने के लिए इसमें राहत भी मिली थी, परन्तु महंगाई की दर एक बार फिर से रिजर्व बैंक के दायरे से बाहर निकल चुकी है।

बेशक, केन्द्रीय वित्त मंत्री के द्वारा रिजर्व बैंक को निर्देश दिये गये हैं कि वह महंगाई को अनुमानित दायरे में ही रखने के लिए हर सम्भव प्रयास करे, बावजूद इसके स्थिति सम्भलती नजर नही आ रही है।

    यदि इसके परिप्रेक्ष्य में वर्ष 2022 की बात करें तो 10 महीनों में महंगाई की दर रिजर्व बैंक के द्वारा निर्धारित दायरे से छह प्रतिशत अधिक रही। वर्ष के अन्तिम दो माह के दौरान महंगाई में अवश्य ही कुछ नरमी दिखाई दी और लोगों को इससे लम्बे समय तक राहत नही प्राप्त हो सकी तथा जनवरी 2023 में इसमें फिर से तेजी दिखाई देने लगी।

    रिजर्व बैंक के द्वारा अभी आने वाले समय के दौरान भी स्थिति के नियंत्रण से बाहर रहने की ही आशंका व्यक्त की गई है, हालांकि, केन्द्रीय बैंक के द्वारा आगामी वर्ष के दौरान महंगाई में नरमी के संकेत भी दिए जा रहे हैं। जबकि उस समय भी हम अनेक चुनौतियों को दरकिनार नहीं कर सकेंगे। अभी तो मंहगाई का आलम यह है कि प्रतिदिन उपयोग की जाने वाली लगभग प्रत्येक वस्तु के दाम बढ़े हुए हैं।

    दाल, सब्जी और फल आदि दैनिक उपभोग में आने वाली वस्तुएं निरंतर आम लोगों की पहुँच से बाहर होती जा रही हैं, जिसका सबसे बड़ा कारण जमाखोरी ही है। केन्द्रीय सरकार के द्वारा विभिन्न कृषि कानूनों के माध्यम से जमाखोरों पर नकेल कसने का प्रसास किया था, परन्तु कुछ संगठनों की हठधर्मिता के चलते किसानों ने सरकार के विरूद्व एक आन्दोलन आरम्भ कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप केन्द्र सरकार को विवश होकर उन तीनों कृषि कानूनों को वापिस लेना पड़ा।

हालांकि अभी भी देर नही हुई है और यदि किसान भाई अपनी उपज का पूरा लाभ उठाना चाहते हैं तो किसानों को केन्द्र सरकार का साथ देना ही चाहिए।   

                                     श्री-अन्न को लोगों की थाली तक पहुँचाएं कम्पनियाँ

                                    

 ‘‘श्री-अन्न’’ की वैश्विक ब्रांडिंग से देश के लगभग 2.5 करोड़ ऐसे किसानों को सहायता प्राप्त होगी, जो कि केवल और केवल इन्हीं पर निर्भर हैं

‘‘वर्तमान समय में श्री-अन्न अर्थात मोटे-अनाज/मिलेट्स के माध्यम से बने चिप्स, कुकीज, नूडल्स एवं अन्य प्रकार की खाद्य सामग्रियाँ बहुत अधिक लोकप्रिय हो रही हैं, जो कि अपने आप में एक सकारात्मक पहलू के तौर पर देखा जा रहा है। एफएमसीजी उद्योग मोटे अनाज को आम लोगों की जीवनशैली का एक अहम हिस्सा बनाने में सहायता कर सकते हैं।’’

    इस दौर में मोटे अनाजों को लेकर घरेलू एवं वैशिक स्तर पर अभियान चलाया जा रहा है, और भारत की पहल पर वर्ष 2023 को अन्तरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। इसके साथ ही पौष्टिकता से भरपूर एवं चकाचौंध की दुनिया से दूर प्रचीन काल से मानव जाति का अभिन्न अंग रहे इस मोटे अनाज के क्षेत्र में इसे एक नया सूर्योदय माना जा रहा है।

सदियों से मोटे अनाज अपने पोषक तत्वों एवं जलवायु की अनुकूलता की गुणवत्ता से युक्त होने के कारण मानव स्वास्थ्य एवं भूमि की गुणवत्ता को बढ़ाने का कार्य करते चले आ रहे हैं।

    ऐसे समय में भारतीय सरकार की सक्रियता के चलते अब विभिन्न प्रकार के मोटे अनाज एक सहायक अनाज की भूमिका से आगे बढ़कर अब केन्द्रीय भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं।

एफएमसीजी और खाद्य प्रसंस्करण कम्पनियाँ मिलेट्स की लोकप्रियता को बढ़ाने के अभियान को सफल बनाने के लिए बीड़ा उठा सकती हैं और मिलेट्स को मुख्यधारा के अनाजों में शामिल करने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकती है जिससे इन्हें उपभेग में लाने के लिए लम्बे समय तक के लिए मुख्य अनाजों में शामिल किया जा सकता है।

    वर्तमान समय में विभिन्न उपभेक्ता ब्रांड ज्वार, बाजरा एवं रागी जैसे मोटे अनाज को पहले ही अपना चुके हैं, और मोटे अनाजों के माध्यम से बने चिप्स, कुकीज, नूडल्स और इसी प्रकार की अन्य खाद्य सामग्रियाँ काफी लोकप्रिय भी हो रही हैं, इसको एक सकारात्मक पहल कहा जा सकता है।

    इस उद्योग का अगला कदम यह होना चाहिए कि वह इन मोटे अनाजों को आम लोागें की दैनिक जीवनशैली का प्रमुख हिस्सा बनाने में अपनी भूमिका के साथ न्याय करें, न कि केवल अस्थाई चलन के रूप में। नियमित आहार में मोटे अनाज को शामिल करने से इनकी गुणवत्ता में भी सकारात्मक सुधार किए जा सकते हैं। उनमें पौषक तत्वों की मात्रा को बढ़ाकर अधिक पौष्टिकता से भरपूर बनाया जा सकता है। प्रतिदिन के आहार में मिलेट्स को शामिल करने से हमारे भोजन की विविधता में भी पर्याप्त वृद्वि होगी।

                                                                    

    सवास्थ्य के साथ कोई भी समझोता नही किया जा सकता, मोटे अनाजों की विविधता के चलते कम्पनियों को विविध खाद्य वर्गों में भी हाथ आजमाने का एक अवसर भी प्राप्त हो रहा है। इनमें फ्रोजन स्नैक्स, म्यूजली, ग्रेनोला अथवा परम्परागत भारतीय नाश्ते जैसे इडली, डोसा, उपमा, पोहा और अन्य प्रकार के आहार के साथ ही मिक्स केक आदि को भी शामिल किया जा सकता है।

इन कम्पनियों को मोटे अनाजों को विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पादों से सम्बन्धित व्यंजन विधियों के साथ नये प्रयोग करने की आवश्यकता भी है। छोटे उद्यम, स्वयं सहायता समूहों और सीधे उपभोक्ताओं तक पहुँचने वाले विभिन्न ब्रांड्स पहले से ही मोटे अनाजों के उत्पादन, उत्पादों की बिक्री एवं भण्ड़ारण आदि कार्यों में लगे हुए हैं। यह सम्भव है कि इन्हें इनके संवर्द्वन का अवसर प्राप्त न हुआ हो।

    वहीं बड़े उद्योग ‘‘मोटा अनाज उद्यमी मॉडल’’ के माध्यम से इस अभियान में अपनी सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं। एफएमसीजी कम्पनियाँ पहले से ही उपलब्ध मार्केटिंग, सेल्स एवं वितरण चैनल्स के के साथ ही बाजार के उभरते हुए इन नए खिलाड़ियों एवं सूक्ष्म उद्योगों के साथ भागीदारी भी कर सकती हैं।

    ‘‘मोटा अनाज उद्यमी मॉडल’’ अन्तरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष मनाए जाने के उपलक्ष्य में उपभोक्ता क्षेत्र में त्वरित परिवर्तन लाने में भी सहायक सिद्व होगा और साथ व्यवहारिक एवं समय बचाने वाला भी होगा। अतः अब भारतीय एफएमजीसी उद्योग के पास एक अवसर है िकवह निर्यात के रास्ते मोटे अनाजों के साथ देश में किए गए नवाचारों की उपस्थिति दुनियाभर में दर्ज कराएं।

    यह उद्योग मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने व ज्वार, बाजरा एवं रागी जैसे मोटे आनजों की लोकप्रियता को कायम करने में सक्षम है, जिसे कुछ उत्कृष्ट उदाहरणों के साथ समझा एवं सीखा जा सकता है। पेरू, बोलिविया, यूरोप, मैकिस्को और चीन आदि देशों में इस प्रकार के प्रयोग सफल भी हुए हैं। भारत सरकार का उद्देश्य है  िकवह भारत को ‘‘मोटे आनज का वैश्विक केन्द्र’’ के रूप में स्थापित करे।

    श्रीअन्न की वैश्विक ब्रांडिंग होने से देश के उन 2.5 करोड़ किसानों को भी सहायता प्राप्त होगी, जो कि अपनी आजीविका के लिए केवल मोटे अनाजों पर ही निर्भर करते हैं। भारत के मोटे अनाज उत्पाद ‘‘मिलेट अर्थव्यवस्था’’ का विस्तार ही करेंगे और एफएमजीसी उद्योग का विकास करेंगे। हालांकि इसमें सहायक उपायों की आवश्यकता भी हो सकती है, क्योंकि घर और परिवारों में मिलेट्स के उपभोग में वृद्वि होगी।

    हालांकि यह भी एक सत्य है कि मोटे अनाज का चोकर छान कर अलग करने वाली मिलेट मिक्सी’’ का उपयोग अभी छोटे स्तर पर ही किया जा रहा है, और अब इसके उपयोग को भी बढ़ाया जा सकता है। िभन्न उपभोक्ता फर्म्स, मोटा अनाज उत्पाद श्रंखला को भी बाजार में ला सकती हैं।

    अन्य प्रकार की सामाजिक पहलें जैसे वाटरशेड सपोर्ट सर्विसेज एंड एक्टिविटी नेटवर्क (वासान) के द्वारा आरम्भ की गई फार्म ईजी (इंजीनियरों और उद्यमियों का एक समूह) की पहल से मिलेट्स मिक्सी का निर्माण किया गया जो कि घरेलू स्तर पर छोटे आकार के मोटे अनाजों को पीसने के कार्य में सफलतापूर्वक उपयोग की जा सकती है अथवा इसका उपयोग लघु उद्योगों में भी किया जा सकता है।

    आन्ध्र प्रदेश में एक ऐसी ही पायलट योजना शुरू की गई है। इस परियोजना के अन्तर्गत 200 महिलाओं के द्वारा छोटी मिलेट मिक्सी से कुछ शुल्क लेकर अपने पास-पड़ोसियों के लिए मोटे अनाज को पीसना आरम्भ किया और इसे एक लघु उद्योग का स्वरूप प्रदान कर दिया गया। उपभोक्ता कम्पनियाँ लोगों को अपने आहार में और अधिक मोटे अनज को शामिल करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती हैं। सम्पूर्ण मार्केटिंग पहल, जनसम्पर्क, फूड फैस्टिवल आदि में भागीदारी एवं डिजिटल माध्यमों आदि का उपयोग इस परिवर्तन का मुख्य घटक रहा है।

    श्री अन्न को अपनानें में अभी कुछ और भी समय लग सकता है और एफएमजीसी कम्पनियाँ इतनी सक्षम हैं कि वे सरकार के प्रयासों के साथ मिलकर मोटे अनाजों को किसान के खेतों से आम लोगों की थाली तक पहुँचा सकंे। ऐसा होने के बाद, हम लोगों को स्वस्थ रख सकते हैं, इसके साथ ही पर्यावरण संरक्षण एवं सुदृढ़ अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को भी प्राप्त करने में समर्थ होंगे।