21वीं शताब्दी में मानव विकास में असमानताएं

                                                            21वीं शताब्दी में मानव विकास में असमानताएं

                                                            

    व्यक्तियों, परिवारों, समुदायों राष्ट्रों, क्षेत्रीय सामाजिक-आर्थिक संगठनों एवं बहुपक्षीय अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों तथा संस्थाओं के प्रयासों से बीसवीं शताब्दी में सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक क्षेत्रों में असमानताओं के स्तर और घातकता में कमी आई है।

निरपेक्ष रूप से चिकित्सा, स्वास्थ्य, बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल, प्रारम्भिक शिक्षा, जन-सुविधाओं की उपलब्धता में व्यापक रूप से सुधार हुआ है, लेकिन सापेक्षिक रूप से विभिन्न देशों के बीच तथा देशों के भीतर विभिन्न क्षेत्रों के बीच मानव विकास के विभिन्न कारकों के अन्तर्गत अनेक प्रकार की असमानताओं की खाई और भी अधिक चौड़ी हुई है।

आय एवं सम्पत्ति के वितरण में व्यापक स्तरीय असमानताएं देखी जा रही हैं, जो अन्ततः रहन-सहन के स्तर, मानव विकास, बुनियादी सुविधाओं का उपभोग आदि क्षेत्रों में परिलक्षित होती हैं।

    इक्कीसवीं शताब्दी तकनीकी और प्रौद्योगिकी के मामले में बीसवीं शताब्दी से बहुत आगे हैं। औद्योगिक विकास के मामले में जहाँ एक ओर विकसित देश उद्योग 4.0 (बृहत् आंकड़ा समूह, सिम्यूलेशन, इंटरनेट ऑफ सर्विसेज, ऑगमेन्टेड रियलिटी, साइबर-फिजीकल सिस्टम, एडीटिव मैन्यूफैक्चरिंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, क्लाउड कम्प्यूटिंग ऑटोनोमस रोबोट, 3-D प्रिंटिंग) की ओर बढ़ रहे हैं, तो अल्पविकसित देश उद्योग 3.0 के ही दौर में है।

इसी प्रकार की असमानता सर्विसेज 4.0 तथा कृषि 4.0 (हाइड्रोपोनिक्स, एल्गी फीड स्टॉक, बायो-प्लास्टिक, वर्टिकल फार्मिंग, ड्रोन टेक्नोलॉजी, डाटा एनालिसिस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, प्रीसीजन, एग्रीकल्चर, रेगिस्तानी खेती, समुद्री पानी से खेती, जेनेटिक मॉडीफिकेशन्स, कल्चरड् मॉस, 3-D प्रिंटिंग, नैनो टेक्नोलॉजी, आटीफीशियल इन्टेलीजेन्स, फूड-शेयरिंग एण्ड क्राउडफार्मिंग तथा ब्लैक चेन) की है।

    इक्कीसवीं शताब्दी में देशों से देशों के बीच तथा देशों के भारतीय क्षेत्र से क्षेत्र के बीच उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर, ऊर्जा के स्वच्छ तथा किफायती संसाधन जीवन की सुरक्षा और पोषण स्तर पर असमानताएं विद्यमान रहेंगी तथा इसमें वृद्धि भी हो सकती है।

    संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट 2019 इंगित करती है कि विश्व के कतिपय विकसित देशों में 40 वर्ष की आयु पर शीर्ष की एक प्रतिशत आय वितरण तथा निचले स्तर की एक प्रतिशत आय वितरण में जीवन प्रत्याशा में अन्तराल पुरुषों में 15 वर्ष तथा महिलाओं में 10 वर्ष है।

    मानव विकास में ऐसी असमानताएं समाजों को आघात पहुँचाती हैं। सामाजिक समरसता को कमजोर करती हैं, सरकारों, संस्थाओं तथा राजनीतिक नेतृत्व के प्रति लोगों के विश्वास में कमी लाती हैं। मानव विकास में व्याप्त ये असमानताएं संयुक्त राष्ट्र संघ के सन् 2030 तक सम्पोषणीय विकास एजेण्डा को प्राप्त करने की सबसे बड़ी बाधाएं हैं। इन असमानताओं को आकार एवं घातकता आय एवं सम्पत्ति की असमानताओं से भी बहुत बड़ी है।

असमानताओं के बारे में विचार

असमानताओं का समग्र मूल्यांकन करने के लिए आय एवं सम्पत्ति पर सुनिश्चित तौर पर विचार किया जाना चाहिए, लेकिन इसे मानव विकास के उन सभी पहलुओं को भी समझना चाहिए, जो ऐसी असमानताएं उत्पन्न करते हैं।

मानव विकास में असमानताएं 22वीं शताब्दी में जीवन व्यतीत करने वाले लोगों की सम्भावना का आकार तय करेंगी।

मानव विकास में असमानताओं का विश्लेषण किसी एक पहलू पर फोकस करने वाली असमानता के सरसरी तौर पर माप से इतर और आगे जाना चाहिए।

इक्कीसवीं शताब्दी के पहले दो दशकों में मानव विकास जनित असमानताओं की स्थिति

  • मानव विकास में उपलब्धियों के सबसे निचले फ्लोर से अनेक लोग ऊपर उठ आए हैं तथापि व्यापक रूप से असमानताएं विद्यमान हैं। मनचाहे विद्यालय/पाठ्यक्रम में प्रवेश लेकर शिक्षा प्राप्त करना, अपनी योग्यता एवं कौशल के अनुरूप रोजगार प्राप्त करना, मनचाहा भोजन करना आदि आज भी विश्व के लाखों लोगों के लिए दिवा- स्वप्न है। बहुत ऊँचे मानव विकास स्तर वाले देशों में सन् 2000 में जन्म लेने वाले बच्चों में से सन् 2020 तक 55% बच्चे उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षारत हैं, जबकि निचले मानव विकास वाले देशों में सन् 2000 में जन्म लेने वाले बच्चों में से 17% बच्चे तो 20 वर्ष की आयु पूरी करने से पहले ही मर गए। 80% बच्चे उच्च शिक्षा तक नहीं पहुँच सके तथा मात्र 3 प्रतिशत ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर सके हैं।
  • बीसवीं शताब्दी में व्याप्त अनेक असमानताओं में कमी आ रही है। लेकिन इक्कीसवीं शताब्दी में मानव विकास में अनेक गम्भीर असमानताएं जन्म ले रही हैं-जलवायु संकट एवं प्रौद्योगिकीय परिवर्तन जनित असमानताएं, वृद्धिकारी क्षमताओं में असमानताएं।
  • शक्ति असन्तुलनों के परिणामस्वरूप मानव विकास की असमानताएं जीवनभर संचित होती रहती हैं, समाजों, अर्थव्व्यवस्थाओं, राजनीतिक संरचनाओं में गहन रूप से अवगुंठित कारकों से मानव विकास की असमानताओं में संचयी रूप से वृद्धि होती है। यदि लोगों की आय सृजन क्षमता पहले से ही कमजोर है, तो मानव विकास की असमानताओं को कम करने के लिए देश एवं समाज के बुनियादी ढाँचे में आमूल-चूल परिवर्तन करना होगा।
  • 21वीं शताब्दी में मानव विकास में असमानताओं को कम किया जा सकता है। आर्थिक शक्ति असन्तुलनों के राजनीतिक प्रभाव में आने से पूर्व ही राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी कदम उठाने होंगे।
  • मानव विकास में असमानताओं के मूल्यांकन हेतु मैट्रिक्स में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाए जाने की आवश्यकता है।

निम्नलिखित प्रकार की असमानताएं पृथक्-पृथक् एवं विशिष्टीकृत विश्लेषण से ही हल की जा सकती है।

इक्कीसवीं शताब्दी में मानव विकास की संची असमानताएं एवं सम्भाव्य असमानताएं

    इक्कीसवीं शताब्दी के पहले दो दशकों का अनुभव बताता है कि वैश्विक, राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर मानव विकास में अनेक ऐसी असमानताएं विद्यमान हैं जो सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक कारणों से व्यक्ति के जन्म से लेकर वर्तमान तक संचयी रूप से उसके साथ जुड़ी हुई हैं और उसकी बुनयिादी क्षमताओं (Basic Capacities) को प्रभावित करती हैं, ये असमानताएं निम्नलिखित प्रकार की हैं-

  • जन्म से लेकर एक वर्ष तक जीवित रहना।
  • जन्म के समय जीवन प्रत्याशा।
  • प्राथमिक शिक्षा।
  • स्वास्थ्य का स्तर एवं जीवित रहने की दशाएं।
  • जीवन स्तर।
  • स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ एवं स्वास्थ्य के अनुकूल आवास।
  • पोषण स्तर।
  • आय एवं रोजगार की सुरक्षा।
  • कौशल युक्त शिक्षा।
  • सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक क्षेत्र में निर्णयन में भागीदारी

    संयुक्त राष्ट विकास कार्यक्रम द्वारा जारी मानव विकास रिपोर्ट 2019 एवं अन्य अनेक शोध परिणाम यह बताते हैं कि औसत रूप से उपर्युक्त असमानताओं में विगत दशकों में कमी आई है, लेकिन चित्र-1 में उल्लिखित प्रकार की असमानताएं न केवल विद्यमान हैं, वरन् उनमें वृद्धि ही हुई है।

    इक्कीसवीं शताब्दी में मानव विकास का स्वरूप उच्चीकृत क्षमताओं (Maximum Capacities) का है, इनमें प्रमुख हैं:

  • सभी स्तरों पर गुणवत्ता युक्त स्वास्थ्य तक पहुँच।
  • सभी स्तरों पर उच्च गुणवत्ता युक्त शिक्षा तक पहुँच।
  • अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों तक प्रभावी पहुँच।
  • अज्ञात नए झटकों के प्रति तन्यकता।

21वीं शताब्दी में असमानताओं का स्वरूप

    आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक एवं प्रौद्योगिकीय क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव मानव विकास की आवश्यकताओं पर पड़ना स्वाभाविक है। मानव विकास रिपोर्ट 2019 में निम्नलिखित दो क्षेत्रों में हो रहे एवं होने वाले वैश्विक परिवर्तनों का मानव विकास की असमानताओं पर प्रभावों का उल्लेख किया गया है -

1.   जलवायु परिवर्तन एवं एन्थ्रोपोसीन (एक नवीन युग) में असमानताएं-

    जलवायु संकट में हैं। वैश्विक तापमान में वृद्धि, हिमानियों के पिघलने की दर में वृद्धि, लू के थपेड़ों से आहत मानव एवं जीव-जन्तु, तीव्र गति वाली आँधियाँ/बवंडर, वनों में आग आदि जलवायु परिवर्तन के परिणाम हैं, इससे सभी पर एकसमान प्रभाव नहीं पड़ रहा है- न तो समान रूप से, न एक साथ और न एक रूप में, निर्धन देश और निर्धन लोग इससे सबसे पहले और सबसे बुरी तरह प्रभावित होंगे, हो सकता है कि विश्व के कुछ देशों/क्षेत्रों का तो अस्तित्व ही समाप्त हो जाए। इसका सर्वाधिक प्रभाव भावी पीढ़ी पर पड़ेगा। जो पूर्व की पीढ़ियों द्वारा जीवाश्म-ईंधनों पर निर्भर विकास के दंश झेलेगी। जलवायु जनित असमानताएं निम्नलिखित प्रकार की होंगी:

  • उत्सर्जन में असमानताओं से प्रभाव में असमानता-जलवायु अन्याय के दो आयाम।
  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन क्षमता में विभेदीकृत मार्ग-बुनियादी क्षमताओं में समाभिरूपिता (कन्वरजेन्स),
  • उच्चीकृत क्षमताओं में छितराव (डाइवरजेन्स)।

    इक्कीसवीं शताब्दी के अन्त तक असमाप्त जलवायु परिवर्तनों से सारे विश्व में प्रतिवर्ष सूखे की 1.4 अरब घटनाएं बढ़ जाएंगी तथा अति वर्षा की 2 अरब से अधिक अतिरिक्त घटनाएं होंगी, जिनसे बाढ़ के खतरे भी बढ़ेंगे।

2.  प्रौद्योगिकीय परिवर्तन-

    वर्तमान में अधिकांश लोगों का मानना है कि वैज्ञानिक एवं तकनीकी के क्षेत्र में हो रहे परिवर्तन नए विश्व का निर्माण करेंगे और असमानताओं के स्तर में कमी आएगी, लेकिन वैश्विक एवं घरेलू स्तर पर आय तथा सम्पत्ति के वितरण का असमान स्वरूप उद्योग, कृषि एवं सेवा क्षेत्रकों में उत्पादन तथा वितरण में असमानताओं में वृद्धि करेगा-

  • ऑटोमेशन एवं कृत्रिम मेघा जैसी तकनीकों से उत्पादन प्रक्रिया में मानव श्रम को मशीनों से प्रतिस्थापित किया जाएगा, जिससे श्रम बाजार में विसंगतियाँ उत्पन्न होंगी।
  • नवीन प्रौद्योगिकियों तक निर्धन देशों तथा निर्धन लोगों की पहुँच सीमित है, जो भविष्य में असमानता अन्तरालों को बढ़ाएगी।
  • प्रौद्योगिकी जीवन को नए रूप से ढ़ाल रही है। न केवल अर्थव्यवस्थाओं को वरन् समाजों और यहाँ तक कि राजनीति को।
  • यह आशंका व्यक्त की जा रही है, नवीन प्रौद्योगिकी जनित उत्पादन प्रक्रिया में कुल आय में श्रमिकों का हिस्सा धटेगा तथा फर्मों के लाभों में वृद्धि होगी।
  • स्वचालित वाहन-साझा किए जाने वाले वाहनों (ओला, उबेर) आने वाले वर्षों में निजी वाहनों की संख्या में कमी ला सकते हैं, इससे शहरों के भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में पार्किंग की समस्या का समाधान होगा।
  • इलेक्ट्रिक वाहन एवं नवीकरणीय ऊर्जा से चलने वाले वाहनों के बाजार में आ जाने से जीवाश्म ईंधनों-पेट्रोल, डीजल की माँग में कमी आएगी।
  • उपर्युक्त परिवर्तन ऑटोमोबाइल्स उद्योग, मेटल उद्योग, बीमा उद्योग तथा जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षेत्र में उथल-पुथल मचाने वाले तो होंगे, साथ ही इनसे देशज स्तर एवं वैश्विक स्तर पर असमानताओं में वृद्धि होगी, क्योंकि ऊँची लागत के कारण निर्धन एवं कमजोर आर्थिक स्थिति वाले लोग इनसे वंचित रहेंगे।
  • इक्कीसवीं शताब्दी रोबोटिक्स का युग होगा, जो अनेक पुनरावर्ती कारखाना जॉबों में स्वचालितीकरण लगाएगा, जिससे अन्ततः मानव श्रम ही विस्थापित होगा। इंटरनेट ऑफ थिंग्स के द्वारा 5-जी दूरसंचार तकनीक से कारखानों में मशीनें आपस में बातचीत करने में सक्षम होगी, इससे उत्पादकता में वृद्धि तो होगी, लेकिन उसका बड़ा हिस्स फर्मों को मिलेगा।
  • कोविड-19 वैश्विक महामारी जैसी आसाधारण परिस्थितियों में शिक्षण संस्थाओं के अनिश्चित काल के लिए बन्द हो जाने पर गुणवत्तायुक्त इंटरनेट तथा कम्यूटिंग तक पहुँच के बिना निर्धन वर्ग के विद्यार्थी तो ऑनलाइन शिक्षा से वंचित ही रहेंगे। भारत जैसे विकासशील देशों में डिजिटल वंचितीकरण अभी भी बहुत ऊँचा है। इंटरनेट एण्ड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इण्डिया तथा नीलसेन की नवम्बर 2019 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में एक्टिव इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या क्रमशः 22.7 करोड़ एवं 20.5 करोड़ ही है। भारत में स्मार्ट फोनों की पैंठ 50 करोड़ है। इसका अर्थ यह हुआ कि भारत की आधे से अधिक जनसंख्या के लिए ऑनलाइन शिक्षा या टेलीमेडिसिन के रास्ते बन्द हैं।

    प्रौद्योगिकीय परिवर्तन कृषि, उद्योग, सेवाएं क्षेत्रक में युगान्तरकारी परिवर्तन लाएंगे, लेकिन इनकी ऊँची लागतें/कीमतें विश्व के करोड़ों निर्धनों / कमजोर आर्थिक स्थिति वाले लोगों की पहुँच को सीमित कर देगी।

आँकड़ों के अनुसार मानव विकास से जुड़ी असमानताएं

  • वैश्विक अति-निर्धनता वर्ष 1990 में 36 प्रतिशत से कम होकर वर्ष 2016 में 9 प्रतिशत के स्तर पर आ चुकी थी। (विश्व बैंक के हालिया आकलन के अनुसार काविड-19 वैश्विक महामारी से विश्व में लगभग 60 मिलियन लोग, निर्धनता के कुचक्र से बाहर निकल चुके थे, वह वापस निर्धनता के मकड़जाल में फंस जाने के लिए मजबूर होंगे)।
  • मानव विकास के निचले पायदान पर आने वाले देशों निवास करने वाले लोगों की संख्या वर्ष 2000 में 2.1 अरब से घटकर वर्ष 2020 में 0.923 अरब ही रह गई थी।
  • जन्म के समय जीवन प्रत्याशा स्वास्थ्य असमानताओं का विश्लेषण करने वाला महत्वपूर्ण सूचक है। यह मानव विकास के सूचकांक का एक सह-सूचकांक है तथा दीर्घजीवी और स्वस्थ जीवन की प्रॉक्सी माप है।
  • वर्ष 1950 के दशक के दौरान जीवन प्रत्याशा 47 वर्ष थी, जो कि वर्ष 2020 में 72 वर्ष की हो चुकी थी।
  • वैश्विक स्तर पर कुल जनसंख्या में 60 वर्ष से ऊपर की आयु वर्ग के लोगों के अनुपात में वृद्वि हो रही है।
  • पूर्व माध्यमिक शिक्षा और तुतीयक (उच्च शिक्षा) स्तर की शिक्षा में व्याप्त असमाताओं में वृद्वि हो रही है।
  • वर्तमान समय में 5.4 मिलयिन बच्चे, जिनमें से आधे से अधिक नवजात शिशु हैं, पाँच वर्ष की आयु तक भी जीवित नही रह पाते हैं और यदि यह स्थिति इस प्रकार की रही, तो ऐसे में मरने वाले बच्चों की संख्या, वर्ष 2030 तक लगभग 03 मिलियन होगी।
  • वैश्विक आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2007 में 262 मिलियन बच्चे और किशोर विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त नही कर रहे थे। स्कूलों से बाहर बच्चों की दर वर्ष  2017 की 18 प्रतिशत की दर, वर्ष 2030 में 14 प्रतिशत तक होने के अनुमान व्यक्त किए जा रहे हैं।
  • 21वीं सदी में मानव विकास के विधाई पहलुओं को परिभाषित करने में गरिमामय जीवन व्यतीत करने की एक महत्वपूर्ण खोज है।
  • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के माध्यम से वर्ष 2017 में किए गए एक सर्वेक्षण में 41 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बताया कि गत वर्ष के दौरान उनके साथ विभिन्न स्तरों पर असम्मानजनक व्यवहार किया गया।
  • क्षैतिजजिक असमानताओं के कारण राजनीतिक उथल-पुथल, हिंसक संघर्ष एवं सिविल युद्व सहित आदि उत्पन्न हो सकते हैं।
  • हिंसक संघर्षों के दौरान और हिंसक संघर्षों के बाद के वर्षों में क्षैतिजिक असमानताओं में भी वृद्वि होती है।
  • वर्तमान मे विश्व में कोई भी एक ऐसा देश नही है, जहाँ के मानव विकास में कोई असमानता न हो। वर्ष 1980-2016 के दौरान धनी एवं निर्धन देशों के शीर्ष एक प्रतिशत आर्थिक अभिजात्य वर्ग के लोगों के द्वारा भारी लाभ कमाया गया।
  • वैश्विक स्तर पर आय की तुलना में सम्पत्ति का संकेंद्रण अधिक रहा। जबकि वर्ष 2017 में वैश्विक स्तर के शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों के पास 70 प्रतिशत सम्पत्ति का स्वामित्व था, और निचले स्तर के 50 प्रतिशत लोगों के पास केवल 20 प्रतिशत सम्पत्तियों का स्वामित्व था।
  • स्वास्थ्य, शिक्षा, आय प्राप्त करने के अवसरों एवं राजनीतिक अधिकारों और सहभागिता, सामाजिक निर्णयन एवं विकास में परिवर्तन ला सकते हैं।
  • पशुधन, भू-संसधनों का विश्व का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता कृषि ही है।
  • वैश्विक कृषि क्षेत्रक के द्वारा उत्सर्जित की जाने वाली ग्रीन हाउस गैसों में से 80 प्रतिशत का उत्सर्जन पशुधन के माध्यम से होता है। जो कि लगभग 7.1 गीगाटन कार्बन डाई-ऑक्साईड प्रतिवर्ष के समकक्ष है।