अब आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से बदलेगी मीडिया की तस्वीर, सच्चाई से कोई समझौता नही

                         अब आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से बदलेगी मीडिया की तस्वीर, सच्चाई से कोई समझौता नही

                                                               

    कृत्रिम मेघा अर्थात एआई (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) के आधुनिक युग में मीडिया क्षेत्र भी अब डिजिटल नवाचार की प्रभावशाली दुनिया में पदार्पण करने जा रहा है। इस प्रक्रिया में सर्वप्रथम 08 सितम्बर, 2020 को ‘द गार्जियन’ समचार पत्र के द्वारा प्रथम ओपन एआई चैटजीपीटी-3 नामक मॉडल का उपयोग करते हुए प्रथम रोबोटिक आलेख का प्रकाशन किया गया था। उस लेख में कहा गया था कि इस शोधपरक आलेख ‘मनुष्य, का आप भयभीत हैं?’ को एक रोबोट ने तैयार किया था।

    कुल मिलाकर देखा जाए तो मीडिया एवं मनोरंजन के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की व्यापक सम्भावनाएं उपलब्ध हैं। इस बात का अंदाजा ग्रेडवियु रिसर्च द्वारा प्रकाशित सीएजीबार की एक रिपोर्ट के माध्यम से अच्छी तरह से लगाया जा सकता है, जिस रिपोर्ट में कहा गया था कि मीडिया एवं मनोरंजन का वैश्विक बाजार वर्ष 2022 में 14.81 बिलियन यूएस डॉलर का था, जो कि 2030 तक 26.9 प्रतिशत वृद्वि कर 99.48 बिलियन यूएस डॉलर तक पहुँचने की सम्भावना है।

    इस हिसाब से पूरी दुनिया में एआई का करिश्मा केवल फोटोग्राफी तक ही नही अपितु यह खबरों में भी देखने को मिलेगा। हालांकि, ऐसा भी नही है कि एआई के समांतर कोई प्रयोग नही किए गए। नोवेयर नाम की एक र्स्टाटअप समाचार कम्पनी के द्वारा 04 मई वर्ष 2021 को मशीन लन्रिंग तकनीकऔर पत्रकारों का उपयोग करते हुए विभिन्न समाचार कथाओं का प्रकाशन किया गया था। कहा जा रहा है कि पत्रकारिता में अब एआई आधारित एक सिंथेटिक मीडिया के इस दौर में प्रवेश करने जा रही है।

                                                        

समाचारों की दुनिया में बाज से कुछ समय पूर्व ही डेटा जर्नलिज्म अर्थात आंकड़ों के प्रभावशाली प्रस्तुतिकरण पर आधारित पत्रकारिता और उसकी सृजनात्मकता सहित डेटा विज्युलाईजेशन को काफी सराहना प्राप्त हुई थी। वर्तमान में समाचारों की दुनिया में एकत्र होने वाले जटिल डेटा को हम एआई का का उपयोग कर बड़ी ही आससानी के साथ फिल्टर कर समाचार के लिए उपयुक्त संरचना में ढाल लेते हैं।

    हालांकि रोचक बात तो यह भी है कि अब कृत्रिम बाौद्विकता के डिजिटल हथियार आपको केवल डेटा विशलेषण ही नही, उसे तस्वीर के रूप में आपके सामने रखने की कला में सक्षम है। अतः यह कहा जा सकता है कि एआई तकनीकी समय की बचत एवं परिणामों के विविध विकल्प क्षणभर में ही आपके समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं।

इसी प्रकार से इसका एक बहुत ही अद्भुत पक्ष यह भी है कि किसी एक भाषण को आपने एआई को सौंपा और उसने पलभर में इसको लिखकर आपको दे दिया। अतः अब आपको इसको समाार का रूप प्रदान करने के लिए सका केवल संपादन एवं लेख नही किया जाना है।

                                                    

पत्रकारिता के अन्तर्गत फोटो को अधिक प्रभरावी बनाने और समाचार कथाओं अलग-अलग तरीको से प्रस्तुत करने में यह एआई तकनीकी बहुत ही मददगार साबित होने जा रही है। पाठकों की पसंद, समचारों को आकर्षक तरीके से पेश करने के मामले में एआई तकनीकी असीमित सम्भावनाओं के द्वार खोलने जा रही है।

    ऐसा भी का जा सकता है कि प्रत्येक नए युग में नए बदलावों को अपनाया जाता है।, जे किसी भी पेशे में नई ऊर्जा का का संचार करता है। अतः एआई से भी इसी प्रकार की अपेक्षाएं हैं। परन्तु जहाँ एक ओर एआई के उपयोग को लेकर इससे असीमित अवसरों का उत्साह है, तो वहीं दूसरी ओर कुछ आशंकाएं भी है जोकि अभी तक अनुत्तरित ही हैं।

    एआई के पितामह जेफ्री हिंटन ने लम्बे समय तक गूगल में अपनी सेवाओं से विराम लेते हुए एक चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने एआई की अंधी दौड़ को खतरनाक बताते हुए कहा था कि लोग इससे यह नही जान पाएंगें कि सच क्या है? और ऐसा ही भ्रम मीडिया को लेकर भी है, लेकिन उपयोग करने के खतरे और सच प्रतीत होने वाली झूठी खबरों से जुड़े प्रश्नों को तर्कहीन ही माना जाा चाहिए।

असल में समाचार के पेशेवरों का मुख्य कार्य झूठ को बेनकाब करना होता है, तो मीडिया को लेकर आशंकाएं व्यर्थ ही प्रतीत होती हैं। जहाँ तक सच प्रतीत होनेवाली भ्रामक सूचनाओं की बात है तो यह सोशल मीडिया में प्रचारित और प्रसारित होती रही हैं इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि वहां कि भी सूचना अथवा समाचार जाँच-परख करने वाला कोई गेटकीपर यानि कि संपादक नही होता है। लिहाजा अपुष्ट, असत्य और काल्पनिक जानकारियाँ, बहरूपिये समाचार की शक्ल प्रचारित कर दी जाती हैं। समाचार पेशेवर इसे अभियान चलाकर खारिज करते हैं।

अर्थात निचोड़ के रूप में यह कहा जा सकता है कि एआई समाचारों की पेशकश को जरूर बदलने जा रही है, परन्तु मीडिया में सच की पड़ताल के ऊपर समझौता होने वाला नही है।