बड़ी आंत में सूजन के साथ नासूर

                                                                 बड़ी आंत में सूजन के साथ नासूर

                                                                                                                               डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

किसे कहते हैं अल्सरेटिव कोलाइटिस-

                                                     

दोस्तों, जैसा कि इस रोग के नाम से ही ज्ञात होता है, अल्सरेटिव कोलाइटिस एक गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल बीमारी है जो मानव की कोलन या बड़ी आंत और मलाशय में अल्सर का कारण बनती है। यह एक ऐसा रोग है जो बड़ी आंत और मलाशय की परत की सूजन का कारण बनता है और इसलिए इसे आंत्र सूजन रोग के रूप में भी जाना जाता है।

इससे पहले कि हम अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए सबसे अच्छी होम्योपैथिक दवाओं की बात करें, तो इसके लिए आइए पहले इस बीमारी को थोड़ा-सा गहराई से समझनें का प्रयास करते हैं-

किस आयु वर्ग के लोग होते हैं अल्सरेटिव कोलाइटिस से प्रभावित

हालाँकि इस बीमारी के बारे में बहुत अधिक जागरूकता नहीं है, लेकिन यह काफी आम बीमारी है और बूढ़े लोगों की तुलना में युवाओं को यह बीमारी अधिक प्रभावित करती है। सही मायने में, यह 15-35 वर्ष की आयु वर्ग में यह रोग सबसे आम है। जबकि इस बीमारी से दूसरे सबसे अधिक प्रभावित होने वाले लोग 50-70 आयु वर्ग के लोग होते है। उपर्युक्त आयु समूहों के लिए इस प्राथमिकता का कारण को अभी तक कम ही समझा गया है।

अल्सरेटिव कोलाइटिस आंतों प्रभाव

                                                       

अल्सरेटिव कोलाइटिस आंतों के बड़े हिस्से को प्रभावित कर सकता है। अल्सर सतही या गहरा भी हो सकता है और यह इस रोग की गंभीरता पर निर्भर करता है। कुछ रोगियों में, अल्सर मलाशय में शुरू होते हैं और फिर धीरे-धीरे पूरी बड़ी आंत में फैल जाते हैं। अन्य रोगियों में, इसका प्रसार एक समान या एक साथ भी हो सकता है और मलाशय और बड़ी आंत दोनों एक साथ ही इसमें शामिल हो जाते हैं। रोगी को इस रोग के कारण अनुभव होने वाले सभी लक्षण मोटे-तौर पर इसी अल्सरेशन के कारण होते हैं।

क्या होते हैं अल्सरेटिव कोलाइटिस के कारण

चिकित्सा विज्ञान में किए गए अभी तक के सभी शोध और उनकी प्रगति अल्सरेटिव कोलाइटिस के सटीक कारणों पर पर्याप्त प्रकाश डालने में असमर्थ ही रहे हैं। हालांकि, तनाव को इस रोग के एक बड़े सहायक कारक के रूप में पहचाना गया है, जबकि यह कुछ लोगों को किस कारण से प्रभावित करता है और दूसरों को क्यों नहीं, इस पर भी कम ही प्रकाश डाला गया है।

अल्सरेटिव कोलाइटिस ऐसे लोगों को अधिक प्रभावित करता है जिनका पारिवारिक इतिहास समान नहीं होता है। मरीजों में अभी तक यह देखा गया है कि जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, उन पर उन लोगों की तुलना में इसका अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना होती है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है। कोई भी और हर कारक जो किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा में कमी का कारण बनता है, इस बीमारी के लक्षणों में वृद्धि का कारण भी बन सकता है।

                                                     

किस प्रकार के होते हैं अल्सरेटिव कोलाइटिस के लक्षण

  • मल की आवृत्ति सामान्य से बहुत अधिक होती है और इससे प्रभावित व्यक्ति को शौच के लिए कई बार जाना पड़ता है। जब भी वह कुछ खाता या पीता है, तो उसे मल त्यागने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
  • पेट में ऐंठन वाला दर्द एक अन्य विशेष लक्षण है और इसके बाद लगभग हमेशा मल त्यागने की इच्छा बलवती होती है।
  • मल में अक्सर रक्त और श्लेष्मा उपस्थित होते हैं, जबंकि यह कतई जरूरी नहीं है कि यह दोनों एक ही समय में उपस्थित हों।
  • मल की स्थिरता पनीले से लेकर अर्ध-ठोस तक प्रत्येक रोगी में भिन्न हो सकती है और मल में अक्सर अपचित भोजन के कण विद्यमान होते हैं।
  • लगातार दस्त और रक्त और श्लेष्मा की हानि के कारण पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स की हानि भी होती है।
  • रोगी को कमजोरी, निर्जलीकरण की शिकायत होती है और वजन में भी कमी देखी जाती है।
  • रक्ताल्पता अर्थात एनीमिया लगभग निरंतर इसके साथ ही रहने वाला रोग है।
  • अल्सरेटिव कोलाइटिस के रोगियों में शुष्क त्वचा और धँसी हुई आँखें आम तौर पर देखी जा सकती हैं।
  • जबकि कुछ रोगियों को गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षणों के साथ लंबे समय तक बुखार भी रह सकता है।

अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए क्या करें और क्या न करें

ऐसी कोई भी चीज़ और हर चीज़ जो इस रोग में वद्वि करती है, उससे बचने का प्रयास करना चाहिए।

  • यह ज्ञात हो कि धूम्रपान और शराब के सेवन से समस्या और बढ़ जाती है, इसलिए धूम्रपान और शराब से बचना ही सबसे अच्छा विकल्प है।
  • तले हुए भोजन, जंक फूड, मसालेदार भोजन और बहुत अधिक वसा वाले भोजन से भी बच कर ही रहना चाहिए, क्योंकि इस रोग से ग्रस्त लोगों का पाचन तंत्र इन चीजों को सहन करने में प्रायः असमर्थ होता है।
  • देखने में तो यह भी आया है कि दूध और अन्य डेयरी उत्पाद भी इस समस्या को बढ़ा देते हैं।
  • एक बार में पेट भर खाने के बजाय थोड़े-थोड़े अंतराल पर थोड़ा-थोड़ा भोजन करना सबसे अच्छा विकल्प है।
  • पानी का सेवन हर समय उचित मात्रा में करना चाहिए और नियमित रूप से ओआरएस का घोल सेवन करने की सलाह दी जाती है क्योंकि पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी को तत्काल प्रभाव से पूरा करने की आवश्यकता होती है।

अल्सरेटिव कोलाइटिस का उपचार

                                                           

अल्सरेटिव कोलाइटिस का उपचार करना हर किसी भी डॉक्टर के लिए एक चुनौती भरा होता है और ऐसा इस रोग की प्रकृति के कारण है। यह एक आंतों की पुरानी सूजन संबंधी रोग है और आंतों में मौजूद अल्सर का उपचार कर उसे ठीक करने में समय लगता है। यह कठिनाई इसलिए भी है क्योंकि आंतों को दिन-रात काम करना पड़ता है और उन्हें आराम करने का समय नहीं मिल पाता है। किसी फ्रैक्चर या चोट लगने पर हम अपने पैरों को तो आराम दे सकते हैं, लेकिन हमारे शरीर के कुछ अंग ऐसे होते हैं जो कभी आराम नहीं कर सकते।

जैसे कि हमारा दिल, फेफड़े और आंत आदि को दिन में 24 घंटे लगातार काम करना पड़ता है। अतः हमारे शरीर के इन अंगों में मौजूद किसी भी समस्या का उपचार करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। सूजन की प्रक्रिया को ऐसी चीजों का सेवन करने से मदद मिल सकती है जो हल्की और पाचन तंत्र पर बहुत अधिक दबाव न डालने वाली हों।

अल्सरेटिव कोलाइटिस का एलोपैथिक उपचार और इससे होने वाले नुकसान

आमतौर पर एलोपैथिक चिकित्सा पद्वति के अन्तर्गत दी जाने वाली दवाएं बहुत अधिक सूजन-रोधी होती हैं और इनका सेवन करने से लंबे समय में भी कोई विशेष फायदा नहीं होता है। अधिक गंभीर मामलों में एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में स्टेरॉयड का उपयोग भी किया जाता है, और यह प्रतिरक्षा प्रणाली को कुप्रभावित करते हैं और सूजन प्रक्रिया को रोकते हैं, जबकि उपचार के इस दृष्टिकोण की भी अपन एक सीमा होती है।

स्टेरॉयड के लंबे समय तक उपयोग करने के अपने दुष्प्रभाव होते हैं और इसलिए इसका उपयोग अनिश्चित काल तक नहीं किया जा सकता है। यही कारण है कि मरीज़ स्टेरॉयड के कुछ विकल्प तलाशते हैं। और यहीं से होम्योपैथी की शुरूआत होती है।

होम्योपैथी की सहायता से अल्सरेटिव कोलाइटिस का निदान

                                                                                          

होम्योपैथी चिकित्सा पद्वति का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह प्रकृति में हल्का है और शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा को संशोधित करता है। यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की जिम्मेदारी होती है कि वह इसे हर तरह के नुकसान से बचाए, चाहे बैक्टीरिया से हो या वायरस से या किसी अन्य बीमारी से।

यह किसी भी समय होने वाली क्षति की मरम्मत करने में भी मदद करता है। होम्योपैथिक दवाएं शरीर की  प्राकृतिक प्रतिरक्षा को मजबूत करने में मदद करती हैं जिससे कि वह अपने प्राकृतिक कार्यों को अधिक कुशल तरीके से कर सके।

                                                                    

अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए सर्वश्रेष्ठ होम्योपैथिक दवाएं

होम्योपैथी चिकित्सा पद्वति में प्रत्येक रोगी के लिए उसके लक्षणों पर आधारित दृष्टिकोण ही वह आधार होता है जिस पर होम्योपैथी विज्ञान कार्य करता है। इसे ध्यान में रखते हुए, यह किसी के लिए आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए कि ऐसी दर्जनों की संख्या में होम्योपैथिक दवाएं हैं जिनका उपयोग अल्सरेटिव कोलाइटिस के उपचार में किया जाता है। हालांकि, कुछ दवाएं ऐसी भी हैं जिनका संकेत अक्सर दिया जाता है। और मेरे अनुभव में, यह होम्योपैथिक दवाएं अल्सरेटिव कोलाइटिस के उपचार में काफी प्रभावी पाई गई हैं-

इस प्रकार से अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए सर्वश्रेष्ठ होम्योपैथिक दवाएं निम्नलिखित हैं-

  • मर्क सोल- रक्त और टेनेसमस के साथ अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए सबसे अच्छी दवाओं में एक होम्योपैथी की दवा।
  • नक्स वोमिका- उच्च जीवन के कारण अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए सबसे अच्छा एक होम्योपैथी उपाय।
  • आर्सेनिक एल्बम- चिंता और बेचौनी के साथ अल्सरेटिव कोलाइटिस की समस्या के लिए होम्योपैथी की सबसे अच्छी दवा।
  • बैप्टीशिया- निम्न श्रेणी के बुखार के साथ अल्सरेटिव कोलाइटिस से परेशानी के लिए एक सबसे अच्छी होम्योपैथी दवाई।
  • फॉस्फोरस- ठंडे पानी की बढ़ती प्यास की चाहत के साथ अल्सरेटिव कोलाइटिस का सबसे अच्छा होम्योपैथी उपचार।

विशेषः मुकेश शर्मा होम्योपैथी के एक अच्छे जानकार हैं जो पिछले लगभग 25 वर्षों से इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हे। होम्योपैथी के उपचार के दौरान रोग के कारणों को दूर कर रोगी को ठीक किया जाता है। इसलिए होम्योपैथी में प्रत्येक रोगी की दवाए दवा की पोटेंसी तथा उसकी डोज आदि का निर्धारण रोगी की शारीरिक और उसकी मानसिक अवस्था के अनुसार अलगण्अलग होती है। अतः बिना किसी होम्योपैथी के एक्सपर्ट की सलाह के बिना किसी भी दवा सेवन कदापि न करें।

ऐसा भी हो सकता है कि आपकी दवा कोई और भी हो सकती है और कोई दवा आपको फायदा देने के स्थान पर नुकसान भी कर सकती है। अतः बिना चिकित्सीय परामर्श के किसी भी दवा का सेवन न करें।

डिसक्लेमरः प्रस्तुत लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखकगण के अपने हैं।