सब्जी की फसल को कोहरे और ठंड़ के प्रभाव से बचाने के लिए मल्चिंग      Publish Date : 20/01/2025

सब्जी की फसल को कोहरे और ठंड़ के प्रभाव से बचाने के लिए मल्चिंग

                                                                                                            प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं गरिमा शर्मा

किसान को खेती-बाड़ी के कामों में नित नई चुनौतियों का समाना करना पड़ता है, जैसे कभी पानी की कमी, कभी मौसम की मार तो कभी कीट-पतंगों एवं रोगों का आक्रमण आदि। यह समस्याएं किसान के लिए कृषि कार्यों को अधिक कठिन बना देती हैं, हालांकि वर्तमान दौर में कृषि में आए विभिन्न तकनीकी बदलाव और नए तरीके किसानों के लिए मददगार भी सिद्व हो रहे हैं। इन्हीं तरीकों में से एक तरीका है मल्चिंग, जो कि विशेषरूप से सब्जी की खेती करने वाले किसानों के लिए लाभदायक सिद्व हो सकता है। यह तकनीकी कम पानी में भी उच्चतम पैदावार देने में सक्षम है। इसके साथ ही यह तकनीक सब्जी फसल की कोहरा, पाला और अत्याधिक गर्मी के प्रभावों से भी फसलों की रक्षा करती है।

                                                      

मल्चिंग, एक सरल और प्रभावी तकनीक है जो सब्जी की खेती के दौरान आने वाली विभिनन प्रकार की समस्याओं का समाधान भी प्रदान कर सकती है। यह तकनीक न केवल पानी की बचत करती है, बल्कि फसल को ठंड़ और गर्मी आदि के प्रभाव से भी बचाती है और इसके साथ ही यह खेती की मृदा की गुणवत्ता को बनाए रखने में भी सहायता करती है। ऐसे में जो किसान भाई अपनी खेती में में सुधार करना चाहते हैं, तो वह इस विधि को अपनाकर अपनी फसल की उपज को बढ़कर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

ऐसे किसान भाई, जो कम पानी में खेती करना चाहते हैं अथवा जिन किसान भाईयों की फसले मौसम के उतार-चढ़ाव से अधिक प्रभावित होती हैं, वह इस तकनीक का उपयोग कर एक बेहतर उपज प्राप्त कर सकते हैं। हमारे कृषि विशेषज्ञ आज की अपनी इस पोस्ट में आपको मल्चिंग विकध के बारे में पूरी जानकारी प्रदान करने जा रहें हैं अतः आपसे अनुरोध है कि हमारी इस पोस्ट को आप ध्यान से अंत तक धैर्य पूर्वक पढ़ें और मल्चिग विधि का पूरा लाभ उठाएं।

क्या है मल्चिंग

                                                             

दोस्तों, मल्चिंग एक ऐसी कृषि विधि है जिसके अंतर्गत किसानों को अपने खेतों में एक परत बिछानी होती है, यह परत मिट्टी में नमी का उचित स्तर बनाए रखने, खरपतवारों को पैदा होने से रोकने और फसलों को ठंड़ा रखने का काम प्रभावी रूप से करती है। मल्चिंग के लिए विभिनन सामग्रियों का उपयोग किया जा सकता है जैसे- पुआल, लकड़ी की छाल, पत्तियाँ, प्लास्टिक या या अन्य जैविक अथवा अजैविक सामग्री।

इस विधि को अपनाने से खेती में नमी बनी रहती है जिससे गर्मियों में सूखे का प्रभाव कम हो जाता है, तो वहीं यह विधि सर्दियों में फसलों को ठंड़ और पाले आदि के प्रकोप से भी बचाती है। मल्चिंग, विशेष रूप से रेतीली मिट्ठी, दोमट मिट्ठी या ऐसी मिट्ठी जिसमें पोषक तत्वों की कमी हो, पर किया जाता है। मल्चिंग से मिट्ठी की संरचना में सुधार होता है और फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों का संरक्षण होता है। विशेष रूप से जिन क्षेत्रों के तापमान में अधिक उतार एवं चढाव होता है, ऐसे स्थानों पर मल्चिंग विधि बहुत कारगर सिद्व होती है।

मल्चिंग के प्रकार

                                                                

भारत में मल्चिंग के विभिन्न रूप प्रयोग किए जाते हैं। अतः किसानों को अपनी मिट्ठी और फसल के अनुसार मल्चिंग में प्रयुक्त सामग्री का चयन करना होता है। मल्चिंग की कुछ प्रमुख विधियों का वर्णन लेख में नीचे किया जा रहा है-

पुआल की मल्चिंग

यह मल्चिंग की एक प्राकृतिक विधि है, जिसके अंतर्गत सूखे पुआल को खेत में बिछा दिया जाता है। पुआल के उपयोग से न केवल मृदा की नमी सुरक्षित रही है, बल्कि यह खरपतवार को भी पनपने से रोकता है, और साथ ही मिट्ठी की संरचना में भी सुधार करता है।

खरपतवार की मल्चिंग

मल्चिंग की इस विधि के अंतर्गत खेत में पहले से ही उगे हुए खरपतवारों का उपयोग किया जाता है। खेत में उगे खरपतवारों को खेत में बिछाकर उपयोग किया जाता है, यह खेत की मिट्ठी को ठंड़ा बनाए रखता है और खरपतवार की वृद्वि को भी नियंत्रित करता है।

पॉली मल्चिंग

पॉली मल्चिंग, मल्चिंग करने की एक अजैविक विधि है, इस विधि के अंतर्गत प्लास्टिक की पट्ठियां अथवा शीट्स का उपयोग किया जाता है। पॉली मल्चिंग विधि खेत को तीव्र गर्मी से बचाता है और इसके साथ ही यह वर्षा के दौरान अत्याधिक पानी की भी रोकथाम करता है।

राख की मल्चिंग

राख का उपयोग करके भी मल्चिंग की जा सकती है, यह विधि मिट्ठी अम्लता को भी नियंत्रित करने में सहायता करती है और इसके साथ ही खरपतवार के प्रभाव को भी कम कर देती है।

सब्जी की खेती में मल्चिंग के लाभ

                                                           

मल्चिंग का उपयोग सब्यिों की खेती में करने के अनेक लाभ प्राप्त होते है जैसे-

मल्चिंग खेत की मिट्ठी में नमी का उचित स्तर बनाए रखती है जिसके कारण पानी की खपत कम हो जाती है। मल्चिंग की यह विधि विशेष रूप से ऐसे क्षेत्रों के लिए उपयोगी होती है, जहाँ पानी की कमी होती है। मल्चिंग विधि को अपनाने से खेतों में खरपतवार नही उग पाते हैं। मल्चिंग फसलों के लिए अतिरिक्त पोषक तत्वों का संरक्षण करती है और एक कीटनाशक के रूप में कार्य करता है। इसके अतिरिक्त सर्द मौसम में फसले पाला और ठंड़ के कारण फसलों को खराब होने से बचाती हैं। मल्चिंग से मिट्ठी की उर्वरता संतुलित बनी रहती है और इससे पोषक तत्वों की हानि भी कम होती है। इसके साथ ही मल्चिंग विधि से मिट्ठी के कटाव को भी रोका जा सकता है। 

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।