साकार भी शिव तो निराकार भी शिव

                                                                   साकार भी शिव तो निराकार भी शिव

                                                       

हमारे देश में सावन का महीना किसी उत्सव की तरह ही होता है, जिसमें विभिन्न पर्व भी पड़ते हैं। इस बार तो दो सावन हैं और उनमें आठ सोमवार पड़ेंगे, कहने का अर्थ यह है कि आदिदेव की उपासना करने के लिए दोगुना समय शिव भक्तों को प्राप्त होगा, और इससे पुण्य फल की प्राप्ति भी दोगुनी ही होगी। क्योंकि भगवान शंकर ही एकमात्र ऐसे देव हैं जो इतनी सरलता एवं शीघ्रता से प्रसन्न हो जाते हैं। 

    पौराणिक कथा है कि जिस समय देवता और दानवों दोनों ने मिलकर समुंद्र का मंथन किया था तो उसमें से हलाहल विष निकला और उसके प्रभाव से सम्पूर्ण सृष्टि में हलचल मच गई थी। उस समय सृष्टि की रक्षा करने के लिए आदिदेव महादेव ने उस हलाहल विष का पान कर अपने कण्ठ में धारण कर लिया था और इसी के कारण उनका नाम नीलकण्ठ पड़ गया था।

                                                                    

    उसके बाद जब उस हलाहल विष का ताप भगवान शंकर के ऊपर बढ़ने लगा तो देवराज इन्द्र ने उस हलाहल विष के प्रभाव को कुछ कम करने के लिए उस पूरे महीने में घनघोर वर्षा की, और इस वर्षा के प्रभाव से विष का प्रभाव कुछ कम हुआ, लेकिन अत्याधिक वर्षा से सृष्टि की रक्षा करने के लिए भगवान आशुतोष ने अपने मस्तक पर चन्द्रमा को धारण कर लिया। चन्द्रमा की शीतलता के पभाव से भगवान भोले शंकर को भी विष के दुष्प्रभाव से राहत प्राप्त हुई।

    इसी के साथ राहू-केतु के माध्यम से बनने वाले कालसर्प दोष का शमन भी शिवोपासना के माध्यम से ही सम्भव है। श्रावण मास में भगवान शंकर की उपासना तथा जपापदि से दूसरे ग्रहों की बड़ी से बड़ी अनिष्ठ बाधाओं को भी दूर किया जा सकता है। शुद्व ह्नदय और मन के निर्मल भावों से भगवान शंकर अतिशीघ्र एवं सरलता से प्रसन्न हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त साधक ‘‘ऊँ नमः शिवाय’’ मंत्र का जाप करते हुए शिव लिंग पर दूध, दही, शहद, शक्कर एवं घी आदि से भी अभिषेक कर भगवान बाबा भोलेनाथ से मनचाहा वरदान प्राप्त कर सकते हैं।

श्रद्वा से परिपूर्ण श्रावण

    श्रावण मास के प्रत्येक दिन, प्रत्येक पल मनोकामन प्राप्ति, पुण्यार्चन और जन्म कुण्ड़ली के तमाम दुर्योगों का शमन कर साधक के लिए अपने जीवन में सुख-शांति प्राप्त करने का अति महत्वपूर्ण अवसर होता है। आठ सोमवार के साथ ही पूर्णिमा, अमवास्या और श्रावन में पड़ने वाले अधिक मास का भी शास्त्रों में विशेष महत्व का वर्णन दिया गया है। भगवान शिव जी की कृपा प्राप्त करने के लिए श्रावण महात्म्य, रूद्राभिषेक, शिवाष्टक, रूदा्रष्टक, शिव महिम्नस्त्रोत, शिव चालीसा, शिव सहस्रनाम, शिव मंत्रों का जाप एंव शिव पुराण आदि का पाठ अथवा इनका श्रवण करना चाहिए। सावन के महीने में शिवजी की पूजा करने के साथ अधिमास के आने पर जो व्यक्ति श्रद्वा एवं भक्तिपूर्वक व्रत, उपवास, श्रीविष्णु पूजन, पुरूषोत्तम महात्म्य का पाठ और दानादि शुभ कर्म करता है, उसे अपने मनावाँछित फलों की प्राप्ति होती है और वह मरने के बाद गोलोक पहुँच कर योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण का सानिध्य प्राप्त कर लेता है। सावन के महीने में गीता का पाठ करना, श्रीराम-कृष्ण के मंत्रों का जाप,शिव पंचाक्षर मंत्र, अष्टाक्षर नारायण मंत्र और द्वादशाक्षर वासुदेव मंत्र आदि का जाप करने से साधक को अनंत फल की प्राप्ति होती है।

जीवन यात्रा का प्रतीक

                                                  

    सावन के महीने में चलने वाली काँवड़ यात्रा, अपने आप में जीवन की यात्रा का प्रतीक होती है, जिसका उद्देश्य अनुशासन, सात्विकता एवं वैराग्य के साथ ईश्वरीय शक्ति के साथ सम्बद्व होना होता है। काँवड़ यात्रा से संकल्प शक्ति के साथ ही व्यक्ति का आत्मविश्वास भी जागृत होता है। काँवड़ के साथ जुड़े दोनों पात्रों को ब्रह्मघट और विष्णुघट कहते हैं, को पवित्र गंगाजल से भरकर उन्हें एक बाँस के डण्ड़े के सहारे सजा-धजाकर पूजन करके स्थापित कर देते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार, रूद्र यानि कि भगवान शंकर का समावेश बाँस में होता है। इस प्रकार काँवड़िये काँवड़ के माध्यम से ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश, साक्षात तीनों की एक साथ कृपा पाप्त करते हैं।

                                                             

    अतः काँवड़ यात्रा भगवान शिवजी की भक्ति का एक मार्ग होने के साथ ही भक्त के व्क्तिगत विकस में भ सहायक सिद्व होता है। भगवान शंकर को पसन्न करने के लिए आषाढ़ मास की पूर्णिमा से लेकर सम्पूर्ण श्रावण मास में काँवड़ियों के द्वारा गंगादि पवित्र नदियों एवं तीर्थ आदि के जल से इनक लशों को भरकर भगवान बाबा भोलेनाथ मंदिरों, ज्योतिर्लिगों आदि के स्वरूपों में श्रद्वारूपी गंगाजल से भगवान शंकर का अभिषेक करते हैं।

इच्छित वर प्राप्ति होती है

    श्रावण के मास में सोमतत्व की वृद्वि होती है। इसमें जो कुँवारी कन्याएं अपने सच्चे ह्नदय से व्रत/उपवास रखकर शिवलिंग के दर्शन और पूजन करती हैं उन्हें अपने मनवाँछित वर (पति) की प्रापित होती है और जो सुहागिन स्त्रियों के पति को प्रत्येक भवसागर से मुक्ति प्राप्त होती है। भागवान आशुताष, औढ़रदानी भोले भाले शिव जी अपने भक्तों पर अतिशीघ्र ही प्रसन्न होकर उन्हे उनका मचाचाहा वरदान प्रदान करते हैं।

    यदि आपकों कोई पीड़ा अथवा समस्या नही है तो भी आप जनकल्याण और मोक्ष की प्राप्ति हेतु भागवान शिव जी की आराधना विशेष फलदायी सिद्व होती है। सत्यम, शिवम, सुन्दरम के प्रतीक भगवान शंकर, समस्त जीवा जाति के लिए परम कल्याणकारी हैं और सर्वशक्तिमान परम कृपालु परमेश्वर को हम केवल एक शब्द ‘‘शिव’’ कहकर ही व्यक्त कर देते हैं।

    दो अक्षरों के इस छोटे से सरल नाम में सम्पूर्ण ब्रह्माँड का सार समाया हुआ है। इस प्रकार से यदि मानव के लिए सर्वाधिक कल्याण्कारी यदि कुछ हो सकता है तो वह, यह लघुत्तम, महानतम और महानतम शब्द है केवल और केवल ‘‘शिव’’ ही है। अतः ऊँ नमः शिवाय।

                                                                      राशियों के अनुकल शिव पूजन

मेष राशि वाले जातकों के लिएः-

    पूरे श्रावण मास में बेलपत्र पर सफेद चन्दन से श्रीराम लिखकर नित्य प्रति शिवलिंग पर अर्पित करें।

वृष राशि वाले जातकों के लिएः-

शिवलिंग का अभिषेक दूध और दही मिला कर करें और हारसिंगार के फूलों से बनी माला को चढ़ाकर सफेद चन्दन का तिलक धारण करें।

मिथुन राशि वाले जातकों के लिएः-

    भवान शिव का रूदा्रभिषेक शहद से करें तथा उसके बाद किसी गाय को हरी घास खिलाएं।

र्कक राशि वाले जातकों के लिएः-

    कर्क राशि वाले जातक दूध, दही, गंगाजल और मिश्री मिलाकार रूद्राभिषेक करें।

सिंह राशि वाले जातकों के लिएः-

    सिंह राशि वाले जातक श्रावण के मास में शुद्व देशी घी से रूद्राभिषेक करे तो उन्हें भागवान शिव का विशेष आर्शिवाद प्राप्त होगा।

कन्या राशि वाले जातकों के लिएः-

    भगवान शिव का दूध, दही, गंगाजल और मिश्री मिलाकार रूद्राभिषेक करें और साथ ही बंलपत्र, मदार के पुष्प, धतूरा एवं भाँग अर्पित करें।

तुला राशि वाले जातकों के लिएः-

    तुला राशि वाले जातक दही और गन्ने के रस से शिवलिंग को स्नान कराएं और उनका पूजन करने के बाद गरीबों को मिश्री बाँटें।

वृश्चिक राशि वाले जातकों के लिएः-

    शिवलिंग पर किसी तीर्थ स्थान का जल और दूध में शक्कर तथा शहद मिलाकर स्नान करा कर स्वयं लाल चन्दन का तिलक धारण करें।

धनु राशि वाले जातकों के लिएः-

    कच्चे दूध में केसर, गुड़ एवं हल्दी मिलाकर शिवलिंग को स्नान कराएं और पीले पुष्प अर्पित कर केसर एवं हल्दी युक्त तिलक धारण करें।

मकर राशि वाले जातकों के लिएः-

    घी, शहद, दही और बादाम के तेल से शिवलिंग का अभिषेक करें और नारियल के जल से स्नान कराने के बाद नीले रंग के पुष्प अर्पित करें।

कुम्भ राशि वाले जातकों के लिएः-

    भगवान शिव का गंगाजल में भस्म मिलाकर अभिषेक करने बाद स्वयं सरसों के तेल का तिलक धारण करें।

मीन राशि वाले जातकों के लिएः-

    मीन राशि के जातक भगवान शिव को कच्चे दूध में हल्दी मिलाकर भगवान शंकर को स्नान कराने के बाद पीले रंग के पुष्प एवं केसर के रेशे अर्पित करने के बाद स्वयं केसर का तिलक धारण करें।

                                                        विशेष उपाय

    जो लोग अपने जीवन में अत्याधिक कष्ट का अनुभव कर रहे हैं, उन्हें अधिमास सहित पूरे श्रावण पर्यन्त शिवलिंग पर प्रतिदिन काले तिल, साबुत अक्षत, गंगा जल और भस्म अर्पित करनी चाहिए और इसके साथ ही पूरे श्रावण मास के लिए तामसिक भोजन का परित्याग करें।