पेड़ हमारे लिए किस प्रकार से उपयोगी हैं-

                                                         पेड़ हमारे लिए किस प्रकार से उपयोगी हैं-

                                                     

  • वृक्ष हमें प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन प्रदान करते हैं।
  • वृक्ष पथिकों के लिए छाया एवं शीतलता प्रदान करते हैं।
  • पेड़ भूमि की बंजरता में सुधार कर उसे ऊपजाउ बनाते हैं।
  • पेड़ पर्यटन में वृद्वि कर देश की अर्थव्यवस्था में वृद्वि करते हैं।
  • पेड़ प्रत्यक्ष रूप से रोजगार को बढ़ावा देते हैं।
  • पेड़ मानव के लिए सुगन्धित पुष्पों का उत्पादन करते हैं।
  • पेड़ मानव स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों एवं औषधियों को प्रदान करने में सहायक भूमिका निभाते हैं।
  • पेड़ हमें बहुत से उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति का एक उत्तम साधन होते हैं।
  • पेड़ भूमिगत जल के स्तर में वृद्वि करते हैं।
  •     वृक्ष हमारी राष्ट्रीय आय में वृद्वि करते हैं।
  • वृक्ष हमारी कृषि की उपज में वृद्वि करने में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं।
  • पेड़ रेगिस्तान के प्रसार पर नियन्त्रण करते हैं।
  • पेड़ पर्यावरण की दशाओं में अपेक्षित सुधार करते हैं।
  • वृक्ष हमें भवन निर्माण के लिए इमारती लकड़ी प्रदान करते हैं।
  • पेड़ बाढ़ के जैसी आपदाओं पर भी प्रभावी नियन्त्रण करने में सक्षम हैं।
  • वृक्ष हमें हमारे स्वास्थ्य की रक्षा के लिए विभिन्न प्रकार के फल प्रदान करते हैं।
  • पेड़ हमें भोजन बनाने के प्रमुख साधन ईंधन प्रदान करते हैं।
  • पेड़ हमारे ग्रह पृथ्वी की सुन्दरता एवं इसकी शोभा में भी चार चाँद लगाते हैं।
  • वर्तमान में एक बड़ी वैश्विक समस्या का रूप धारण कर चुकी जलवायु परिवर्तन की समस्या पर प्रभावी नियन्त्रण के लिए पेड़ पौधों की अपनी एक अलग ही भूमिका है।
  • वृक्ष हमारे पशु-पक्षियों के लिए प्राकृतिक आवास प्रदान करते हैं।

 

विश्व बांस उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर काबिज

  • कुल मिलाकर बांस की 1662 प्रजातियाँ पूरे विश्व में हैं, जिनमें से 130 प्रजातियाँ भारत में पायी जाती हैं।
  • केवल कश्मीर को छोड़कर बाकी सम्पूर्ण भारत में बांस प्राकृतिक रूप ही उगता है।
  • घास की बहुत ही जीवट प्रजाति है बांस।
  • हंगेरियन यूनिवर्सिटी आफ एगीकल्चर से जुड़े शोधकर्ता झीवेई लियांग के समेत अनेक शोधकर्ताओं का कहना है कि बांस के माध्यम से बॉयोएथेनॉल, बॉयोगैस के साथ अन्य बॉयोएनर्जी के उत्पादों को बनाया जा सकता है।  

जमाखोर मस्त और उत्पादक हो रहे हैं पस्त

         कुछ माह पूर्व जिस टमाटर को किसानो ने उसके दाम नही मिलने के कारण सड़क पर फैंकने के लिए मजबूर होना पड़ा था, आज उसी टमाटर के भावों में सबसे अधिक उछाल देखने को मिल रहा है। इसी बात को यदि दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पिछले कुछ दिनो से टमाटर के भाव आसमान को छू रहे हैं, जिसके कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों के बाजारों में टमाटर लाल हो चुका है और टमाटर के इस प्रकार से लाल हो जाने के कारण लोग भी लाल-पीले हो रहे हैं। 30 से 40 रूपये किलोग्राम बिकने वाला टमाटर आज 100 से 120 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक रहा है।

         वर्तमान में केवल दिल्ली के उपभोक्ता ही नही अपितु देश के अन्य भागों के उपभोक्ता भी टमाटर की बढ़ती कीमतों से बुरी तरह से त्रस्त हैं। थोक एवं खुदरा कारोबारी टमाटर की आवक में भारी कमी की बात कहकर टमाटरों की कीमतों को बढ़ा रहे हैं, जबकि मण्ड़ी से प्राप्त आवक के आँकड़ें कारोबारियों के इस तर्क को पूरी तरह से झुठला रहे हैं।

अचानक टमाटरों की कीमतो में हुई इस वृद्वि के लिए उत्तर भारत के विभिन्न भागों में हुई भारी वर्षा, जिसके चलते टमाटर की फसल को व्यपाक हानि का सामना करना पड़ा, उत्तरदायी ठहराया जा रहा र्है। हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखण्ड़ में हुई बारिश के कारण फसल तो प्रभावित हुई ही है, इसके साथ ही टमाटर की आपूर्ति भी माँग की अपेक्षा कम हुई है। ऐसे में अब आशा की जा रही है कि कुछ अन्य रायों से आगामी एक से दो महीने में जब टमाटर एवं अन्य सब्जियों की आपूर्ति नई खेप के आनेसे बढ़ेगी तो कीमतों में भी कम अने के आसा बनेगे।

    इसी बीच सरकार ने कहा है कि सब्जियों की कीमतों में आया यह उछाल अस्थाई और मौसमी है। मुनाफाखारों के कारण आज स्थिति यह है कि देश में मानसून के  आते ही विभिन्न सब्जियों की कीरमते आसमान छूने लगी हैं। फुटकर बाजार में केवल टमाटर ही नही अपितुअन्य सब्जियों के भाव भी चार से पाँच गुना तक बढ़ चुके हैं। सब्जियों की कीमतों में आए इस उछाल के चलते आधी कीमत पर सब्जी खरीदकर, मुनाफाखोर व्यापारी लोग अपनी मनमानी कीमतों पर उन्हें बेच रहे हैं।

    बेचारा किसान तो लुट जाता है, क्योंकि उसके पास अपनी सब्जियों को रखने के लिए कोल्डस्टोरेज नही होमी है। वहीं सब्जियों के दामों में उछाल आने से सबसे अधिक मध्यवर्गीय एवं गरीब उपभोक्ता ही प्रभावित हो रहे हैं। वैसे भी भारत की अर्थव्यवस्था सदैव ही सटोरियों एवं बिचौलियों के हाथों की कटपुतली ही रही है और इसी के कारणस जमाखोरी भी बढ़ती रही है। रिटेल बाजार में विभिन्न खाद्य-पदार्थों के दाम चाहे कितने ही क्यों न बढ़ जाएं, किसानों को इसका लाभ शायद ही कभी मिल पाता हो यह पूरा का पूरा फायदा बिचौलिये और रिटेलर्स ही डकर जाते हैं। इससे न तो किसान को कुछ मिल पाता है और न ही उपभोक्ता को। र्वमान दौर में किसान चारों तरफ से संकट में तो था ही, अब धीरे-धीरे करके किसान से उसकी जमीनें भी छिनती जा रही हैं।

    ऐसे में देश का कृषि प्रधान होने का उपनाम भी अब बेमानी सा लगने लगा है। वैसे भी विभिन्न अर्थशास्त्रियों की दलीलें सदैव ही भ्रम की स्थिति पैदा करती रही हैं, वे जीडीपी का हवाला देकर ऐसा हो-हल्ला काटते हैं कि उसे लगने लगता है कि देश एक झटके में ही विकास के शिखरपर पहुँच गया है।

    भारत की राजनीति में गरीबी हटानेकी बात सदैव ही मजबूत और प्रभवकारी टूल के रूप में सामने आई है। गरीबी हटाओ का नारापूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी क राजनीति का ब्रह्यस्त्र रही है, जबकि हाल-फिलहाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी गाहे-बगाहे कहीं न कहीं इसका जिक्र करते रहे हैं।

    दरअसल, आज हमारे किसानों की सबसे बड़ी समस्या कर्ज न होकर, उसके उत्पदों का उचित मूल्य नही मिल पाना, उत्पाद का भण्ड़ारण और किसान के उत्पादों का मण्ड़ी तक पहुँचान के लिए पर्याप्त सुविधाओं का न होना, बाजार के जाखिम एवं किसान के किसी वैकल्पिक आजीविका साधन का नही होना भी अपने आप में बहुत र्बड़े कारण रहे हैं, जिनके लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारों को एक साथ मिलकर प्रभावी नीति को अविलम्ब बनाए जाने की आवश्यकता है।

    ऐसे में केन्द्र तथा राज्य सरकारों को किसानों की समस्या का सथाई निदान करने के लिए ठोस एवं कारगर नीतियों को बनाना ही चाहिए जिससेकि हमारे अन्नदाता मजबूरी वश आत्महत्या करने के लिए विवश न हों। यदि ऐसा नही किया गया तो किसान की नारजगी भारतीय जनता पार्टी के मिशन 2024 में पार्टी के लिए एक बहुत बड़ी चुनौति के रूप में भी सामने आ सकती है।

    हालांकि यह कहना कठिन है कि महंगाई की मार झेल रहे भारत का ऐसी सामाजिक-राजनीतिक बाधाओं से कुछ लेना-देना है या फिर नही। परन्तु कुल मिलाकर देश में व्याप्त इस महंगाई ने देश् के आमजन को अपनी सोच में बदल ाने के लिए विवश ही किया है। छोट-मोटी नौकरी कर रहे लोगों के कई शौक तो केवल सपना बनकर ही रह गए हैं और हर कदम पर लोगों को समझौता ही करना पड़ता है। सच्चाई तो यह है कि पिछले दो दशकों से ऊँची वृद्वि दर के साथ ही महंगाई की दर ने लोगों के मुँह से निवाला तक छीनने का काम किया है। इस समयकाल में गरीबों की आय में जो कुछ थोड़ी-बहुत वृद्वि हुई भी थी तो उसे यह महंगाई लील चुकी है। अतः इस बात में कोई शक नही कि आमजन के लिए महंगाई आज भी सचमुच एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है।