नस्ल के आधार पर होने वाले अमेरिकन कॉलेजों के एडमीशन रोक

                                                   नस्ल के आधार पर होने वाले अमेरिकन कॉलेजों के एडमीशन रोक

    अमेरिका के उच्च शिक्षण संस्थानों में नस्ल एवं जातीय आधार पर होने वाले एडमीशन्स पर अमेरिकन सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह रोक लगा दी थी। इसके सम्बन्ध में कोर्ट ने कहा कि यह नीति कॉलेजों में प्रवेश के समानता के अधिकार का उल्लंघन करती है।

    हार्वड यूनिवर्सिटी और नार्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी में अश्वेत, हिस्पैनिक समेत अन्य अल्पसंखक समुदायों को प्रवेश में छूट दिये जाने को भेदभाव पूर्ण बताते हुए लोवर कोर्ट के निर्णय को चुनौति दी गई थी। अमेरिकन सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से भारतीय समेत एशियाई मूल के विद्यार्थियों को लाभ मिलेगा।

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस एतिहासिक निर्णय में कहा कि कॉलेजों में अफर्मेटिव एक्शन अर्थात सकारात्मक पक्षपात से विधार्थियों के प्रवेश से अमेरिकी संविधान में समानता की सुरक्षा को लेकर किए गये वायदे का उल्लंघन होता है।

    मुख्य न्यायाधीश जॉन राबर्ट्स ने कहा कि विद्यार्थियों को उनकी मेधा, बुद्वि एवं अनुभव के आधार पर अवसर प्रदान किये जाने चाहिए न कि किसी नस्ल, जाति व त्वचा के रंग आदि के आधार पर। वहीं कोर्ट की प्रथम अश्वेत महिला जज केटांजी ब्राउन जैक्शन ने अपने अलग से दिये गये निर्णय में कहा कि बहुमत का निर्णय हम सभी के लिए बहुत अधिक त्रासदी से भरा हुआ है। कॉलेजों में निष्पक्ष प्रवेश की मांग करते हुए एंटी अफर्मेटिव एक्शन एक्टिविस्ट एडवर्ड ब्लम ने लोवर कोर्ट के फैंसले के विरूद्व सुप्रीम कोर्ट में यह अपील की थी। उक्त संगठन में भारतीय मूल के भी कई लोग सदस्य हैं। कोर्ट ने यूनिवर्सिटी ऑफ नार्थ कैरोलिन के खिलाफ 6-3 से और हावर्ड यूनिवर्सिटी के खिलाफ 6-2 के बहुमत से यह फैंसला जारी किया।

बाइडन की छात्र ऋण माफी योजना पर भी रोक लगाई गई

    अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने छात्र ऋण की 430 अरब डॉलर की राशि को माफ करने की राष्ट्रपति जो बाइडन की योजना को भी अस्वीकार कर दिया गया। बाइडन के द्वारा अपने चुनाव अभियान के दौरान छात्रों के ऋण माफी का वायदा किया गया था।

अमेरिका में अब हिन्दी को दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जायेगा

प्रमुख बिन्दु-

  • अगले वर्ष सितम्बर से हो सकता है पढ़ाई का आरम्भ

यदि सब कुछ तय किये गये समय के अनुसार हुआ तो बहुत ही जल्दी हिन्दी भाषा अमेरिका के स्कूलों में एक सम्मानीय स्थान पाप्त कर लेगी। इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य तो यह है कि अमेरिकी स्कूलों में अब अंग्रेजी के बाद दूसरी भाषा के रूप में हिन्दी को पढ़ाया जाने लगेगा।

बाइडन प्राासन को अमेरिकी स्कूलों में हिन्दी को पढ़ाने का प्रताव दिया गया है। सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के संगठन एशिया सोसायटी (एएस) एवं इंडियन अमेरिकन इम्पैक्ट (आईएआई) से जुड़े 100 से अधिक जनप्रतिनिधियों के द्वारा राष्ट्रपति जो बाइडन को इसके सम्बन्ध में एक प्रस्ताव सौंपा गया है।

प्रस्ताव में 816 करोड़ रूपये के फंड से एक हजार स्कूलों में हिन्दी पढ़ाई को आरम्भ करने की बात की गई है और ऐसी सम्भावना है कि बाइडन का भारत के प्रति सकारात्मक रूख और अगले वर्ष राष्ट्रपति के चुनावों के चलते इस प्रस्ताव को स्वीकृति दी जा सकती है और अगले वर्ष सितम्बर माह से अमेरिकी स्कूलों में हिन्दी की पढ़ाई आरम्भ की जा सकती है।

इससे अमेरिका में रहने वाले लगभग 45 लाख भारतवंशियों में से हिन्दी सर्वाधिक नौ लाख से अधिक लोगों के द्वारा बोली जाने वाली भाषा है।

प्रस्ताव के निम्न लाभ होंगे-

1.  सबसे पहले तो छात्रों को वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए तैयार करने में सहायता प्राप्त होगी। हिन्दी विश्व में चौथी सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है।

2.  इस प्रस्ताव को स्वीकृति प्राप्त होने से अमेरिका और भारत के बीच सांस्कृतिक समझ के साथ ही प्रशंसा को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि यह दोनों ही देश दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र भी हैं।

3.  इससे हिन्दी भाषा एवं संस्कृति को संरक्षित करने में मदद मिलेगी, जो कि वैश्वीकरण के बढ़ते हुए खतरों का सामना कर रही है। इसके फायदेमंद होने का एक कारण यह भी है।

हाई स्कूल में होती है हिन्दी की पढ़ाई

        अमेरिका में अभी तक हाई स्कूल के स्तर पर ही हिन्दी के कोर्स संचालित किये जाते हैं। हाई स्कूल स्तर पर होने के कारण बच्चे हिन्दी को आसानी के साथ सीख नही पाते हैं। ऐसे में प्राथमिक कक्षाओं से ही हिन्दी की पढ़ाई कराने का लाभ छात्रों को मिलेगा।

फिलहाल इन देशों में पढ़ाई जा रही है हिन्दी

        वैसे तो हिन्दी भाषा को पहले से ही वैश्विक स्तर पर काफी पहिचान मिली हुई है। वर्तमान में विभिन्न देशों में हिन्दी भाषा को पढ़ाया जा रहा है। इन देशों में मॉरिशस, फिजी, जापान, इटली, नेपाल, दक्षिण अमेरिका और फिनलैण्ड के समेत अन्य कई देश भी शामिल हैं। हाल ही में ब्रिटेन में भी इसी सत्र से 1,500 स्कूलों में हिन्दी की पढ़ाई को आरम्भ करने का फैंसला किया गया है।

                                               कुछ इस प्रकार से सोचकर देखने का प्रयास करें

        अपनी सोच के अच्छे-बुरे पैटर्न की समझ होना कोई छोटी बात नही होती, क्योंकि यही वह बिन्दु होता है, जहाँ से हम अपनी विपरीत धारणाओं में सुधार कर अपनी निराशा और उदासियों को पीछे छोड़ कर आगे निकल सकते हैं, और स्वयं को एक ही प्रकार की गलतियों को बार-बार करने से रोक पाते हैं। हमारे मन से शक्तिशाली और कुछ भी नही है अतः हमें अपने मन को मनाना आना ही चाहिए।

मै सक्षम हूँ

        जब हम हीनभावनाओं से ग्रस्त होते हैं, तो हम अपने आप को सबसे अयोग्य और नकारा मानने लगते हैं और असफलताओं से डरते हैं। केवल दूसरे हमारे बारे में क्या सोचेंगे इसी बात में उलझे रहते हैं। कई बार हम स्वयं को ही दोष देते हैं और दूसरे लोगों को यह अहसास करा देते हैं कि हम कुछ नही कर सकते हैं। मोटिवेशन कोच ब्रायन ट्रेसी कहते हैं कि कैसा हो अगर आप अपने आप को सदैव ही सहज पाएं, भले ही कुछ करें या नही? कैसा हो अगर आप अपने आपको और अधिक बेहतर बनाने की चिंता न रहे? यदि आप इस नजरिये का अभ्यास करेंगे तो आपको अपनी अधिकतर चिंताएं आसान होती दिखाई देने लगेंगी। अब आप बिना किसी दबाव के बेहतरी के लिए प्रयास करने में स्वयं को समर्थ पाएंगे।

यह जिन्दगी मेरी भी है

                                                   

        अक्सर हमें लगता है कि जिन्दगी को अपने लिए नही जी रहे हैं, हम वह करते हैं, जिसे करने की हमसे अपेक्षा की जाती है और हम वह नही कर पाते हैं जो कि हम करना चाहते हैं। इसलिए हर समय हमारे व्यक्तित्व में मजबूरी का भाव झलकता है और हमारी विभिन्न समस्याएं और शिकायतें होती हैं और म स्वयं को पीडित्रत ही मानते रहते हैं।

एक नजरिया यह भी है कि हम अपनी जिम्मेदारियों से बच सकते हैं और अपने लिए फैंसले नही ले पाते हैं। इसके लिए हम बहाने बनाने और हमदर्दी को बटोरने में लगे रहते हैं। यह जीवन उन लोगों का नही है, मेरा है और इसका चुनाव मैने ही करना है, उक्त नजरिया जीवन पर हमारी पकड़ को मजबूत बनाता है, और हमारा विकास करता है।

मैं अच्छे-बुरे के ठप्पे से आजाद हँ

        कई बार हम स्वयं अपने आपको सही और गलत, अच्छे तथा बुरे के ठप्पे के अन्दर कैद किये रखते हैं और विभिन्न प्रकार के अफसोस हमें अवसाद की ओर धकलने का काम करते हैं। मुझे ण्ेसा नही करना चाहिए था, मुझे वैसा करना चाहिए था, मुझे स्वयं पर शर्म आनी चाहिए जैसी बातों को सोचकर हम स्वयं को कोसीन में अपना बहुत सा समय बर्बाद कर देते हैं और सही-गलत का ठप्पा अन्य लोगों पर भी लगाते रहते हैं।

जेन हेबिट के संस्थापक लिओ बॉबटा कहते हैं कि सब सही हों, यह सोच तनाव को बढ़ावा देती है। सही-गलत से कहीं अधिक भूमिका हमारी कोशिशों एवं मंशाओं की होती है। किसी विशष ढाँचें में कैद हुए बिना मुक्त मन से कार्य करना बहुत कुछ बदलने में सक्षम है। जब हम कुछ नया सीखते एवं रचते हैं और हार-जीत से परे पूरे खेल का आनन्द पूरे मन से लेते हैं।

सोच को बदलने का तरीका

        अब सवाल यह उठता है कि बरसों से मन में जड़ें बना चुकी अपनी इस सोच को, अपनी इन धारणाओं को किस प्रकार बदल सकते हैं? इस पर लिओ बॉबटा कहते हैं कि आप इसके लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ें। इसके लिए सबसे पहले अपनी विपरीत सोच की पहिचान करे और शांत मन से उसे स्वीकार करें। दूसरे, नई सोच के साथ धीरे-धीरे इन सोचों का बदलाव करें। इस कार्य में आप किसी की सहायता भी ले सकते हैं।

        माइंड सेट को बदलना कोई आसान कार्य नही है। पुरानी आवाजें बार-बार अपना सिर उठाती ही रहती हैं, क्योंकि हमारा मन ऐसा ही है, अतः आप प्रयास करते रहेंगे तो यह मान भी जाता है।        

                                                     र्वैिश्वक स्तर पर बढ़ती हुई भारत की साख

        भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमेरिका के अधिकारिक दौरे की चर्च सर्वत्र की जा रही है। वैश्विक मंदी के दौर और पूरी दुनिया की प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच भी भारत की बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था वैश्विक बाजार को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत, गत नौ वर्षों के दौरान अपनी स्वतन्त्र, आत्मनिर्भर और सशक्त छवि का निर्माण करने में सफल रहा है।

        काँग्रेस के शासनकाल के दौरान भ्रष्टाचार, आतंकवाद एवं वैश्विक दबाव में रहने वाला नेतृत्व, पडोसी के द्वारा किए गऐ हमलों को लेकर कभी यूएन, कभी अमेरिका या कभी रूस से ही शिकायत करता नजर आता था। जबकि वर्तमान में भारत, मोदी के नेतृत्व में अपनी बढ़ती शक्ति के चलते अब तीसरी महाशक्ति के रूप में उभरकर सामने आ रहा है।

        प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अेमरिकी प्रवास इन दिनों खूब चर्चा में है। अभी तक कुल सात बार चुके नरेन्द्र मोदी की यह पहली अमेरिकी राजकीय यात्रा है। मोदी भारत के ऐसे तीसरे राजनेता हैं, जिन्हें अमेरिका के द्वारा यह सम्मान दिया गया है और मोदी के इस प्रयास को सम्पूर्ण विश्व करीबी नजर से देख रहा है, क्योंकि इस यात्रा के दूरगामी परिणाम देश के साथ-साथ वैश्विक हालातों को भी प्रभावित करने वाले हैं। भी किसी विदेशी दौरे पर जाते हैं तो वहाँ विविधतापूर्ण भारतीय संस्कृति के गौरव को वैश्विक पटल पर रखने से नही चूकते हैं।

प्रधानमंत्री ने अमेरिका की फर्स्ट लेडी डॉ0 जिल बाइडन को एक 75 कैरेट ग्रीन डायमण्ड का उपहार भी प्रदान किया। यह सौर एवं पवन ऊर्जा से बना ईको-फ्रेन्डली होगा जो भारत के उभरते सनराइज संसार का प्रतीक है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के द्वारा मोदी को चन्दन का एक विशेष डिब्बा भी भेंट किया, जिसमें भारतीय संस्कृति की झलक दिखती है। 

    प्रधानमंत्री मोदी की यह अमेरिकी यात्रा भारत-अमेरिका के बीच लगभग 21 हजार करोड़ रूपये के सौदे के साथ निवेश के नए आयाम स्थापित करेगी।