उन्नत नस्ल के पशु के लिये-भ्रूण प्रत्यारोपण

                                                             उन्नत नस्ल के पशु के लिये-भ्रूण प्रत्यारोपण

                                                                                                                                                         डॉ डी एस साहू, सह प्राध्यापक

भ्रूण प्रत्यारोपण क्या है ?

                                        

    भ्रूण प्रत्यारोपण एक ऐसी विधि है, जिसमें उच्च क्षमता की दाता मादा में हार्मोन के उपयोग द्वारा डिम्बग्रंथी से अधिक संख्या में डिम्बक्षरण किया जाता है। तदुपरान्त दाता मादा को उच्च आनुवंशिकी क्षमता के नर के वीर्य द्वारा गर्भित किया जाता है।

    गर्भधारण के लगभग 6 दिन बाद निषेचित अण्डे एकत्र करके तथा उनकी गुणवत्ता का वैज्ञानिकी परीक्षण करने के उपरांत उन्हें निम्न श्रेणी की स्वस्थ ग्राहक मादाओं में प्रत्येक में एक, शेष गर्भकाल की अवधि तक गर्भाशय में धारण किया जाता है।

    भ्रूण प्रत्यारोपण में कृत्रिम विधि द्वारा एक मादा जननांग से भ्रूण को प्राप्त कर उसी जाति के दूसरे मादा पशुओं के जननांग में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है, जहां विकास पैदा होने तक होता है।

                                                       

    भ्रूण प्रत्यारोपण विधि से उत्पन्न हुई संतानों का प्रसवकाल सामान्यतः, सामान्य रूप से होता है तथा संतानों में आनुवंशिकी गुण केवल उच्च श्रेणी के दाता मादा तथा नर पशुओं के ही आते हैं। ग्राहक पशुओं का (या निम्न श्रेणी की मादाओं का) इन गुणों में कोई भी योगदान नहीं होता है, वे केवल फोस्टर मां का कार्य ही करती है।

   इस प्रकार अपने देश के असंख्य स्वस्थ निम्न श्रेणी की ग्राहक पशु माताओं का भी भरपूर योगदान दुग्ध उत्पादन में किया जा सकता है।

   आजकल भ्रूण संग्रह तथा प्रतिरोपण दोनों ही क्रियाएं सफलतापूर्वक, कम व्यय में की जा रही हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि भ्रूण प्रत्यारोपण का उपयोग हम देश के असंख्य पशुओं के उत्पादन वृद्वि में कर सकते हैं।

दाता तथा ग्राहक पशु:- ऐसे मादा पशु जिनके द्वारा भू्रणों को प्राप्त किया जाता है, उन्हें दाता पशु या डोनर तथा जिनमें प्रत्यारोपित किया जाता है, उन्हें ग्राहक, ग्राही, ग्राहिता, प्रापक, धाय मां या सेरोगेट मदर कहा जाता है।

                                                       

    इस विधि से पैदा हुए बच्चों में सारे गुण वही होते हैं, जिनसे वे भ्रूण के रूप में प्राप्त किया जाते है। वास्तव में परखनली शिशु में निषेचन की क्रिया परखनली में होती है, जबकि भ्रूण प्रत्यारोपण में निषेचन की क्रिया मादा जननांग (फैलोपियन नली) में होती है।

    प्राकृतिक रूप से गायों का मदकाल हर 21 दिन बाद आता है, लेकिन प्रत्यारोपण की नई तकनीक में (फोलिकिल स्टुमुलेटिंग) हार्मोन का टीका दाता पशु को मांसपेशी में चार या पांच दिन तक सुबह-शाम बारह घंटे के अंतराल पर निश्चित मात्रा में लगवाकर शीघ्र ही ऋतुचक्र में लाया जाता है। सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन करने वाली स्वस्थ गायों को दाता पशु के रूप में चुना जाता है।

   इस हार्मोन के टीके से दाता गाय के गर्भाशय में (अण्डाशय) एक साथ बहूत सी अण्ड कोशिकाएं (डिम्ब) उत्पन्न होती हैं। पशु को प्रोस्टाग्लैन्डिन हार्मोन का टीका लगाने के बाद सभी अण्डों का एक साथ डिम्बक्षरण (आव्युलेशन) होता है। इस प्रक्रिया को अति डिम्बक्षरण (सुपर ओव्युलेशन) भी कहा जाता है।

   इस तकनीकी में हार्मोनों प्रयोग के द्वारा एक उच्च आनुवंशिकी क्षमता वाली-अधिक दूध देने वाली संकर अथवा शत-प्रतिशत होलिस्टन, फ्रिजियन या जर्सी गाय जब गर्मी में आती है, तो उचित समय पर अच्छे प्रकार के सांडों से प्राप्त वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान कराया जाता है।

                                             

   इसके लिये सांडों से प्राप्त वीर्य जो तरल नत्रजन के साथ मिलाकर 196 डिग्री सेल्सियस पर सुरक्षित रखा गया होता है, साफ हवा में सामान्य तापक्रम पर लाकर दाता पशु को गर्भित कर दिया जाता है।

   आमतौर से भ्रूण दाता गाय को हार्मोन का टीका लगवाकर ऋतुचक्र में लाने के 12 घंटे बाद तब तक कृत्रिम विधि से उसके गर्भाशय में वीर्य डाला जाता है, जब तक उस गाय में ऋतुचक्र के लक्षण समाप्त न हो जाएं। ऐसा 2-3 बार ट्यूब द्वारा वीर्य डालने से हो जाता है।

   इसके लिये वीर्य को एक ट्यूब के सहारे दो-तीन बार दाता पशु के गर्भाशय में डाला जाताहै। सफल गर्भाधान होने पर 24 घंटे के भीतर ही भ्रूण बन जाते हैं। निषेचन के बाद भ्रूण पशु के गर्भाशय में ही प्राकृतिक अवस्था में विकसित होते हैं। छह-सात दिन बाद गाय एवं पांच-छह दिन बाद भैंस दाता पशु के गर्भाशय में एक विशेष गुब्बारा युक्त फोली कैथेंटर प्रवेश कराकर विशेष प्रकार के द्रव्य को गर्भाशय में डालते हैं।

   पुनः अन्दर डाले गये द्रव्य को बाहर भ्रूण फिल्टर में एकत्र करते हैं। फिर भ्रूणों को प्रापक पशु के गर्भाशय में रख दिया जाता है, जो आगे विकसित होने लगता है और सामान्य गर्भावस्था के पूरा होने पर गाय बच्चा देती है। इस प्रकार दाता गाय से कई ग्राहक गायों में भ्रूण प्रत्यारोपित कर अनेक बच्चे एक बाद में ही प्राप्त होते हैं।

लेखकः डॉ डी एस साहू, सरदार वललभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के पशु चिकित्सा महाविद्यालय में सह प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।