दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के उपाय

                                                                दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के उपाय

                                                                                                                  डॉ0 विपुल ठाकुर डॉ0 आर एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                           

वर्तमान समय में हमारा देश दुग्ध उत्पादन 74 मिलियन टन के साथ विश्व में प्रथम स्थान पर है। हमारे देश में पशुधन की संख्या के (196 मिलियन गायें एवं भैंस 80 मिलियन हैं) और संख्या हिसाब से यह उत्पादन काफी कम है। इस संख्या के हिसाब से हमारे देश में दूध की प्रति व्यक्ति खपत 206 ग्राम है, जो कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के द्वारा निर्धारित प्रति व्यक्ति दूध की खपत 280 ग्राम प्रतिदिन की अपेक्षा काफी कम है।

चूंकि हमारे देश में पशुओं की औसत दुग्ध उत्पदान की क्षमता विदेशी नस्लों की तुलना में काफी कम है, अतः हमें दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में अभी भी काफी प्रयास करने होंगे। इसके लिए आवश्यक है कि हम एवं हमारे किसान भाई हरित क्रांति के साथ-साथ श्वेत क्रांति के नारे को भी बुलन्द करें।

दुग्ध उत्पादन में वृद्धि आवश्यक क्यों ? - जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे किसान भाई अपनी जीविकोपार्जन हेतु कृषि पर निर्भर हैं और इस कार्य के लिए अधिकांश कृषकों के पास 5 एकड़ से भी कम भूमि उपलबध है। सिंचाई साधनों के अभाव एवं विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के चलते कई बार हमारे किसान भाई काफी परेशानी का शिकार भी हो जाते हैं। इन सब कारणों को ध्यान में रखकर यह आवश्यक है कि आज हम डेयरी को एक व्यवसाय के रूप में किस प्रकार अपनाएं। यदि हमारा कृषक वर्ग अपनी कृषि योग्य भूमि के साथ ही कुछ दुधारू पशुओं का पालन भी करें तो यह निम्न कारणों से हमारी स्थिति के लिए काफी लाभदायक होगा।

                                                               

  • यदि किसान, कृषि भूमि के साथ-साथ अगर कुछ पशुधन को भी रखें तो खेती के कार्य में हमें काफी मदद मिलती है। जुताई, माल ढोने हेतु बैल एवं कई अन्य प्रकार के कार्य हेतु पशु बहुत उपयोगी रहते हैं।
  • खेती से प्राप्त चारा, भूसा आदि का भी समुचित उपयोग होगा, जोकि हमारे किसान भाईयों को अलग से खरीदना नहीं पड़ेगा। अतः कृषि उत्पादों का समुचित उपयोग होता है।
  • दुधारू पशु से प्राप्त दूध उत्पादन का कुछ भाग अपने परिवार के उपयोग में लाया जा सकता है, जिससे हमारे मेहनती किसान भईयों को शरीर की आवश्यकतानुसार खनिज, लवण, वसा एवं प्रोटीन प्राप्त होती है।
  • आवश्यकता से अतिरिक्त बचे दूध को बाजार में बेचकर अपनी आवश्यकता की वस्तुएं खरीदने में इस पैसे का उपयोग कर सकते हैं। जैसे कि बीज, खाद, दवाई इत्यादि और इससे किसानों की आय में वृद्वि होगी।
  • अतिरिक्त दूध से दही, खोया, घी, पनीर इत्यादि बनाकर भी अपनी आवश्यकतानुसार उपयोग कर सकने की क्षमता का विकास होगा।
  • पशुधन से प्राप्त गोबर का उपयोग ईंधन एवं खाद के रूप में किया जा सकता है। जो कि आज वैज्ञानिक जांच के बाद यह सिद्ध हो गया है कि गोबर की खाद भूमि के लिए काफी लाभदायक है। यह भूमि को बंजर नहीं होने देती है, जैसा कि बाजारू खाद में होता है और साथ ही खेती को उपजाऊ बनाती है।           

यदि हम ऊपर लिखे लाभों पर गौर करें तो पाते हैं कि इन सभी कारणों से कृषि और पशुधन एक-दूसरे के पूरक हैं। इससे किसी भी प्रकार की अलग से कोई परेशानी या व्यवस्था की आवश्यकता नहीं होती है।

दुग्ध उत्पादन में वृद्धि कैसे करें ?- हमारे देश में दुग्ध उत्पादन प्रति गाय औसत 157 किलो एवं भैस 504 किलोग्राम ही है, जो कि उन्नत देशों के पशुओं की तुलना में काफी कम है।

हमारे देश की दुग्ध खपत प्रति व्यक्ति/दिन 206 ग्राम है, जोकि उन्नत देशों की तुलना में काफी कम है। निम्न प्रमुख कारण है, हमारे देश के पशुओं की दुग्ध उत्पादन कम होने के:

                                                            

  • पशुओं की अनुवंशिक दुग्ध उत्पादन क्षमता का अभाव। इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने देश के ही कुछ उन्नत नस्त के दुधारू पशुओं जैसे गिर, साहीवाल, सिंधी एवं थारपारकर जाति के सांडोंसे कम उत्पादन वाली गायों को प्रजनित करायें, जिससे कि आने वाली पीढ़ी का दुग्ध उत्पादन दोनों के औसत के बराबर होगा।
  • कुछ उन्नत विदेशी नस्लों की गायों जैसे कि जर्सी, होलस्टीन, फ्रीजियन आदि का पालन करें। चूंकि इन प्रजातियों की गायों का हमारे यहां लाना संभव नहीं है, अतः आवश्यक है कि इन सांड़ों के वीर्य से हम अपने यहां की गायों का प्रजनन करायें। इस कार्य के लिए सरकार काफी समय से प्रयासरत है और प्रत्येक शहर और गांव-गांव में कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र कार्यरत हैं। हमारे किसान भाईयों को चाहिए कि इन सुविधाओं का अधिक से अधिक उपयोग करें।
  • कृत्रिम गर्भाधान की सुविधाओं के उचित उपयोग हेतु आवश्यक है कि हर गावों और शहरों में आवारा घूमने वाले सांड़ों का बधियाकरण किया जाए। इनके बधियाकरण करने का प्रमुख कारण यह है कि इससे ये सभी संाड प्रजनन योग्य नहीं रहेंगे ओर हम अपनी इच्छानुसार कृत्रिम गर्भाधान करवा कर लाभान्वित हो सकेंगे।
  • उचित मात्रा में दाना एवं हरे चारे का उपयोग करें। प्रायः यह देखने में आ रहा है कि हमारे किसान भाई पशुओं को उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता के अनुसार दाना एवं हरा चारा नहीं देते। इस कारण पशुओं की उत्पादन क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। यह वैज्ञानिक निष्कर्ष से सिद्ध हो चुका है कि पशु की अनुवांशिक क्षमता यदि ज्यादा दूध देने की है और उसे उसके अनुरूप दाना नहीं दिया जा रहा है तो भी उसका उत्पादन कम हो जायेगा। अतः प्रत्येक एक किलो दूध उत्पादन पर 1/2 किलो दाना गायों को खिलाएं। यह मात्रा उनके शरीर को दुधारू रूप में लाने के लिये आवश्यक मात्रा के अलावा होती है।

 

दूध सुरक्षित रखने के उपाय

                                                                     

इस बात हम बहुत अच्छी तरह से परिचित हैं कि दूध बहुत जल्दी खराब हो जाने वाली वस्तु है। दूध जिस प्रकार मनुष्यों या स्तनधारी प्राणियों के लिये पहली तथा सबसे अच्छी खुराक है, उसी तरह वह सभी प्राणियों तथा उन छोटे-छोटे जीवाणुओं (बैक्टीरिया) आदि के लिए भी एक अच्छी खुराक है, जिन्हें हम केवल सूक्ष्मदर्शी यंत्र (माइक्रोस्कोप) की सहायता से ही देख सकते हैं। ये जीवाणु दूध में उस समय प्रवेश कर जाते हैं, जब गाय, भैस या बकरी दुहने में गंदे बरतन और गंदे हाथ का प्रयोग किया जाता है। ये जीवाणु गंदी गायों के शरीर और हवा के जरिए भी वे दूध में पहुच सकते हैं। इन जीवाणुओं में से कुछ तो मनुष्य के लिये बहुत हानिकारक होते हैं और कुछ दूध केा बहुत जल्दी बिगाड़ देते हैं। इससे दूध फट जाता है या फिर खट्टा हो जाता है।

दूध को फटने से बचाने के लिये दूध की सुरक्षा की जरूरत पड़ती है। एक कर्तव्यदक्ष गृहणी को यह ध्यान रखना चाहिए कि सुरक्ष्ज्ञित दूध ही गुणकारी होता है। दूध सुरक्षित एवं गुणकारी तभी रहता है, जब स्वच्छ और अप्रदूषित हो। दूध को सुरक्षित या तो उबालकर या निर्जीवीकृत (पास्चयूराइज) करके रखा जा सकता है। दूध को बहुत देर तक सुरक्षित रखने के लिये उबालने अथवा निर्जीवीकृत करने के बाद भी कुछ सावधानियो की आवश्यकता होती है।

                                                             

व्यावहारिक बातें:- थोड़ी सी देखभाल व सूझबूझ से दूध की पौष्टिकता व ताजगी को अधिक समय तक बनाए रखने के लिये कुछ व्यावहारिक बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है। इन बातों को हर रोज काम में लाकर दूध को घर में सुरक्षित, सुस्वाद एवं अधिक समय तक बरकरार रखा जा सकता है।

निर्जीवीकृत दूध को वैसे ही पिया जा सकता है (जो बोतलों या पॉलीथीन पैकेट में मिलता है), क्योंकि यह पहले ही गरम किया जा चुका होता है और इसमें से रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु नष्ट कर दिए गए होते हैं, किन्तु घर पर कच्चे दूध को (या बूथ के दूध को) इस्तेमाल करने से पहले अवश्य ही गरम कर लेना चाहिए। दूध को बहुत देर तक रखने के लिये उबालने अथवा पास्चयूराइज करने के बाद भी अन्य तरीकों से सावधानी जरूरी होती है।

निम्नलिखित व्यावहारिक तथ्यों को ध्यान में रखकर काफी समय तक दूध की गुणवत्ता को घर में बनाये रख सकते हैं।

निर्जीवीकृत बोतल वाले दूध के लिये बोतल ही सबसे अच्छी जगह है, जिसमें दूध रखें, क्योंकि वह डेरी में पहले ही जीवाणु रहित की जा चुकी होती हैं अतः दूध को बोतल में से,उस समय तक दूसरे बरतन में न डालें, जब तक आपको उसे इस्तेमाल न करना हो। आप उसे बोतल से भी पी सकते हैं। यदि घर में प्रशीतक (फ्रीज) न हो, तो बोतल को रसोई से दूर, किसी ठंडे स्थान पर रखें। गर्मियों में दूध की बोतल को पानी से भरे किसी पात्र में रखें या बोतल पर मलमल का एक टुकड़ा, जिसके किनारे पानी से भीगे हुए हों, में रखें।

1. बरतन साफ हो: ग्वाले से दूध को बरतन में लेने से पहले यह देख लीजिए कि आपका बरतन साफ है या नहीं। बरतन का ढक्कन बंद करके उसमें थोड़ा पानी उस समय तक उबालिए, जब तक भाप बाहर न निकलने लगे, इससे वह बरतन जीवाणु रहित हो जायेगा।

                                                                 

2. दूध छानकर गरम करें: जब ग्वाला आपके घर दूध लाता है तो उसे साफ छलनी या मलमल के कपड़े से छानकर साफ बरतन में रखें। इस दूध को लगभग उबालने तक गरम करके फौरन ठंडा करें। किसी बड़े तसले या खुले बरतन में नल का ठंडा पानी भरकर दूध वाले बर्तन को उसमें रख दें और पानी में दूध के बरतन को घुमा-घुमा कर दूध को ठंडा कर लें।

3. उपयुक्त बर्तन इस्तेमाल करें: दूध गरम करने के लिये मोटी तली वाला पीतल का बरतन सबसे अच्छा और उपयुक्त होता है। अगर यह न मिल सके तो अल्यूमिनियम का बरतन इस्तेमाल करना चाहिये। स्टील के बरतन दूध गरम करने के लिये अच्छे नहीं होते, क्योंकि उनमे दूध जल जाता है। पतली तली वाले बर्तन में दूध जल जाता है और वह नीचे लग जाता है। यह दूध की पौष्टिकता कम कर देता है।

                                                       

4. दूध के बर्तन को ढककर रखें: दूध के बर्तन को हमेशा ढककर रखें ताकि उसमें धूल और मक्खियां आदि न गिर सकें। दूध को कभी धूप में न रखें, क्यांेकि इससे दूध का स्वाद और उसमें पाये जाने वाले कुछ विटामिन नष्ट हो जाते हैं।

5. दूध को ठंडा रखें: बिना प्रशीतक-फ्रीज के भी दूश ठंडा रखा जा सकता है। दूध को ठंडा रखने का एक अच्छा तरीका यह है कि दूध के बरतन को पानी भरे हुए मिट्टी के बरतन में रखा जाए। दूध के बर्तन पर मलमल का एक कपड़ा डाल देना चाहिए, जो कि दूध के बर्तन के चारों तरफ रहता है तथा पानी के भाप बनकर उड़ने की क्रिया से दूध को ठंडा रखता है। लगभग 6-8 घंटे तक दूध रख सकते हैं।

6. बासी दूध में न मिलाएं: बासी दूध को कभी ताजे दूध में या ताजे दूध को कभी बासी दूध में न मिलाएं।

7. खाली बर्तन को तुरन्त साफ करें: खाली दूध के बर्तन को फौरन साफ करें। पहले बरतन को नल के पानी से धो लें, फिर उसको भीतर और बाहर से खारे मोडे से रगडिए। बर्तनों को बार-बार साफ करने के लिए उन्हें से अच्छी तरह धोइए, जब तक कि वह अच्छी तरह साफ न हो जाए। कभी भी बर्तन को रेत या मिट्टी या किसी खुरदरी चीज से न रगड़िए जो बर्तन पर खरोंच डाले और फिर साफ करने में दिक्कत पैदा करे। अंत में बरतन को साफ पानी से धो डालें और उसे उस समय तक उलटा रखें, जब तक उसमें फिर से दूध न लेना हो। दूध हमेशा साफ और सूखे बर्तन में लेना चाहिए।

ऊपर बताये गए घर में ‘दूध सुरक्षित रखने के उपाय’ ध्यान से करेंगे तो आप अपने दूध को काफी समय तक सुरक्षित रख सकेंगे।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभ्भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर के कृषि जैव पौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।