जीवन एवं स्वास्थ्य पर भारी पड़ता असुरक्षित भोजन

                                               जीवन एवं स्वास्थ्य पर भारी पड़ता असुरक्षित भोजन

                                                

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा एक बार फिर खराब भोजन के प्रति अपनी चिन्ताओं को दोहराया-

  • 110 अरब डॉलर की हानि उठाी पड़ती है तमाम देशों को।
  • असुरक्षित भोजन का सेवन करने से विश्व में प्रतिदिन 340 बच्चों की मौत हो जाती है।

सम्पूर्ण विश्व में असुक्षित एवं घटिया किस्म के भोजन का सेवन करने से औसतन 16 लाख व्यक्ति बीमार हो जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के द्वारा इस विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस की थीम खाद्य-गुणवत्ता से ही जीवन सुरक्षित रखी है।

इस अवसर पर डब्ल्यूएचओ ने बताया कि असुरक्षित भोजन का सेवन करने से दुनियाभर में 05 वर्ष से कम आयु के 340 बच्चे असमय ही काल के गाल में समा जाते हैं। जबकि पूरे विश्व में 50 लाख लोग फूड पॉइजनिंग अथवा उससे सम्बद्व अन्य रोगों के कारण मर जाते हैं। इस वैश्विक संगठन का कहना है कि वर्तमान में खराब भोजन जीवन एवं स्वास्थ्य दोनों पर ही भारीपड़ रहा है। 

                                                 

प्रत्येक वर्ष एक बड़ी राशि की होती है बर्बादीः संयुक्त राष्ट्र संघ का कहना है कि कम और मध्यम आय वाले देशों में, असुरक्षित भोजन के चलते इन देशों की प्रॉडक्टिविटी बुरी तरह से प्रभावित होती है और स्वास्थ्य पर भी एक बड़ी धनराशि का व्यय होता है जिससे 110 अरब डॉलर का वार्षिक नुकसान हो रहा है। इसके सापेक्ष विशेषज्ञों का मानना है कि विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या के चलते विभिन्न प्रकार के खद्य-पदार्थों की माँग बढ़नी तय है।

डायरिया तथा कैंसर का कारक बनता हैः- असुरक्षित भोजन, डायरिया से लेकर कैंसर के जैसी जानलेवा बीमारियों का कारण भी बन रहा हैं। डब्ल्यूएचओ की सहायक महानिदेशक डॉक्टर मारिया नीरा कहती हैं कि खाना बनाने से लेकर उसे परोसने एवं पकेजिंग आदि में होने वाली गड़बड़ी के कारण विश्वभर में विभिन्न रोगों का प्रकोप बढ़ रहा है।

बच्चे उठा रहें हैं बीमारियों का बोझ

                                                            

    डब्ल्यूएचओ के अनुसार दुनियाभर की आबादी में 05 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों की भागीदारी इस समस्या में 9 प्रतिशत है। उसमें भी चिंता की बात तो यह है कि दुनियाभर में खाने से होने वाली 40 प्रतिशत बीमारियों का बोझ यह बच्चे अकेले उठा रहे हैं।

बच्चो एवं बुजुर्गों के लिए है अधिक खतनाक

    अमेरिका स्थित सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एण्ड प्रिवेंशन के अनुसार खराब खाना बच्चों एवं ुजुर्गों के लिए सबसे अधिक खतरनाक साबित होता है। 65 वर्ष और इससे अधिक आयु के लोगों के साथ छोटे बच्चों के लिए खराब खाना सबसे अधिक खतरनाक होता हैं।

दरअसल इन लोगों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता स्वस्थ्य व्यस्कों की अपेक्षा अधिक कमजोर होती है। इससे अधिक आयु के लोगों के साथ छोटे बच्चों के लिए खराब खाना सबसे अधिक खतरनाक होता हैं। दरअसल इन लोगों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता स्वस्थ्य व्यस्कों की अपेक्षा अधिक कमजोर होती है।

असुरक्षित खाना किसे कहते हैं-

  • खुले में बिकने वाला स्ट्रीट फूड हमारी सेहत के लिए सबसे अधिक नुकसान दायक होता है।
  • खुले में रखा खाना खाने से भी बीमार होने सम्भावना अधिक होती है।
  • खाना बनाने में बरती गई असावधानी एवं गन्दगी स्वास्थ्य के लिए खतरा साबित होती हैं।
  • लम्बे समय से रखा हुआ पैक्ड भोजन, जूस एवं दूध भी सेहत के लिए खतरनाक होते हैं।
  • आधा-अधूरा पका हुआ खाने का सेवन करने से फूड पॉइजनिंग का अधिक खतरा होता है।

फूड पॉइजनिंग के प्रमुख लक्षण-

  • तीन से चार दिनों तक निरन्तर डायरिया का बने रहना।
  • 1020 बुखार के साथ डायरिया का होना।
  • मुँह के सूखने के कारण शरीर में पानी की कमी का अनुभव करना।
  • पेट में असहनीय दर्द होना।
  • लगातार उल्टियों के होने के कारण शरीर में बहुत कमजोरी का अनुभव करना आदि खराब खाने के प्रमुख लक्षण हैं।

                                              एंटीबायोटिक अणु, जो जानलेवा सुपरबग से बचाव करता है

                                      वर्ष 2017 में, दुनिया का सबसे खतरनाक सुपरबग में से एक, जिसकी काट भारतीय वैज्ञानिकों निकाली

    जानलेवा सुपरबग से लोगों को बचाने में भारतीय वैज्ञानिकों को एक बड़ी सफलता प्राप्त हुई है। लखनऊ स्थित केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीडीआरआई) और पुणे स्थित भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) के शोधकर्ताओं के द्वारा एक नए एंटीबायोटिक अणु की खोज की गई है, जो एसिनेटोबैक्टर बॉमनी नामक घातक सुपरबग को मारने में सक्षम है।

    वर्ष 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा एसिनेटोबैक्टर बॉमनी की पहिचान दुनिया के सबसे घातक एंटीबायोटिक प्रतिरोधी में की गई थी। सीडीआरआई के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ0 सिद्वार्थ चौपड़ा ने कहा कि आरम्भ में नए मॉलिक्यूल के पिरणाम काफी सकारात्मक रहे हैं।

इस खोज को आगे बढ़ाने से पूर्व ऐसे अणुओं की एक लाइब्रेरी तैयार की गई तथा इसके बाद जानवरों पर इसके परीक्षण किए गए हैं। पूरी दुनिया में घातक माने जाने वाले कई सुपरबग उपलब्ध हैं, जिनमें से अधिकाँश का अभी तक कोई भी उपचार नही है।

    हालांकि कुछ दवाओं के माध्यम से लोागें को इनसे बचाने की कोशिश की जाती है, लेकिन सामान्य तौर पर इस उपचार में प्रयोग की जाने वाली दवाओं के लाभ एवं हानि दोनों ही होते हैं।

    डब्ल्यूएचओ के बाद भारतीय जैव प्रौद्योगिकी विभाग एवं भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के द्वारा हाल ही में भारतीय प्राथमिकता रोगजनक सूची तैयार की गई है और भारत में सबसे अधिक पाए जाने वाले 12 सुपरबग इस सूची में शामिल किए गए हैं। सूची में शामिल इन सुपरगों में से चार एसीनेटोबैक्टर बॉमनी के समेत बहुत गम्भीर हैं तो तीन गम्भीर सुपरबग हैं।

    शोधकर्ताओं के अनुसार, एसीनेटोबैक्टर बैक्टीरिया (कीटाणुओं) का एक समूह है, जिसके विभिन्न रूप होते हैं। इन सब में से एसीनेटोबैक्टर बॉमनी मनुष्यों के लिए बहुत गम्भीर संक्रमण है, जो फेफड़ों में रक्त, मत्र-पथ संक्रमण एवं निमोनिया आदि का कारण बन सकता है।

अस्पतालों में भरती रोगियों को होता है अधिक खतरा- यदि वैज्ञानिक साक्ष्यों की माने तो यह सुपरबग आमतौर पर अस्पतालों में पाया जाता है जो लम्बे समय तक आईसीयू या वेंटीलेटर पर रहने वाले मरीजों को संक्रमित कर सकता है। वैसे अस्पताल में भर्ती किए गए 10 में से 1 मरीज को यह संक्रमित कर सकता है। इसके साथ ही यह सुपरबग मिट्टी एवं पानी में भी पाया जाता हैं।