बीजामृत का उपयोग      Publish Date : 20/11/2024

                           बीजामृत का उपयोग

                                                                                                                                  प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

गोबर, गौ मूत्र और मिट्टी से तैयार किया गया घोल गेहूं की फसल में फूंक देता है जान और यह धान और मक्का की फसल के लिए भी होता है बेहद कारगर-

                                                           

गौमूत्र, गुड़ और बेसन आदि सामग्री से बीजामृत बनाया जाता हैं। खेत में बीज लगाने से पहले बीज उपचार के लिए बीजामृत का उपयोग किया जाता है। रासायनिक खादों का अधिक प्रयोग करने से कैंसर, पेट से संबंधित रोग और कई तरह की बीमारियां होने लगी हैं। जिससे रासायनिक खादों के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। अतः ऐसी समस्याओं से बचने के लिए जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए, क्योंकि आजकल लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक हो चुके हैं इसलिए जैविक उत्पादों की मांग भी तेजी से बढ़ रही है।

रबी सीजन के दौरान यदि किसान भाई गेहूं के बीज का शोधन बीजामृत से कर खेत में बुवाई करतें है तो गेंहू की फसल स्वस्थ रहेगी और फसल में कीट नहीं लगेंगे एवं इससे किसानों को अच्छा उत्पादन भी मिलेग। आमतौर पर किसान रासायनिक दवाओं के माध्यम से ही बीज का शोधन करने को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन यदि किसान भाई जैविक तरीके से बीज का शोधन करते हैं तो इससे किसानों को बेहतर जमाव मिलेगा और फसल का उत्पादन भी अच्छा रहेगा।

                                                           

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर आर. एस. सेंगर ने बताया कि बीजामृत एक ऐसा जैविक उत्पाद है, जिसका उपयोग करने से किसान रासायनिक कीटनाशकों से होने वाले दुष्प्रभावों से बच सकेंगे। इसके साथ ही बीजामृत से बीज के अंकुरण की क्षमता भी बढ़ती है। बीजामृत का उपयोग करने से मृदा जनित रोगों से भी पौधों का प्रभावी बचाव होता है। इसके अतिरिक्त पौधों की जड का तेजी के साथ विकास होता हैं और यह फंगस और वायरस आदि से भी पौधे का बचाव करता है।

100 किलोग्राम बीज का शोधन करने के लिए यदि किसान बीजामृत तैयार कर रहे हैं, तो इसके लिए किसान को 20 लीटर पानी, 5 लीटर देशी गाय का मूत्र, 5 किलो देसी गाय का गोबर, 50 ग्राम चूना और एक मुट्ठी खेत की मिट्टी को किसी ड्रम में डालकर लकड़ी की छड़ी से अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। अब तैयार किए गए इस घोल को 24 घंटे के लिए ऐसे ही रखा रहने दें। ध्यान रहे कि गोमूत्र जितना अधिक पुराना होगा तो उतना ही अधिक लाभकारी यह घोल यानी बीजामृत होगा।

                                                          

डॉ आर. एस. सेंगर ने बताया कि बीज का शोधन करने के लिए किसान बीज को अच्छी तरह से जमीन पर फैला लें और उसके बाद स्प्रे पंप के द्वारा पूरे बीज पर बीजामृत का छिड़काव कर दें। इसके बाद बीज को हाथ से अच्छी तरीके से मिला दें। ऐसा करने के बाद 6 से 12 घंटे के लिए उपचारित बीज को छाया में सुखा लेना चाहिए और इसके बाद किसान गेहूं की फसल की बुवाई कर सकते हैं।

डॉ आर. एस. सेंगर ने बताया कि बीजामृत का उपयोग गेहूं की फसल के अतिरिक्त धान, मक्का, ज्वार, बाजरा और दलहनी फसलों में भी कर सकते हैं जिसके किसानों को बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।