दावाः रक्त में बढ़े हुए शुगर के स्तर को कम करेंगे पाँच मोटे अनाज

ग्लाइसेमिक इंडेक्स मात्रा के काफी कम होने के कारण वजन नियन्त्रित रहता है। 

पाँच ऐसे मोटे अनाज हैं जो बढ़े हुए शुगर को पूरी तरह से गलाकर शरीर से बाहर निकलने में सक्षम हैं। इन पाँच मोटे अनाजों में ज्वार, बाजरा, रागी, जेई का चैकर और बार्ली आदि शामिल हैं, जिन्हे अपनी डाइट में शामिल करने से इनका प्रभाव तत्काल रूप से देख सकते है। अमेरिका में किए गए एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है, जिसे चोटी की वेबसाइट वेबएमडी में प्रकाशित किया गया है। 
इस अध्ययन के अनुसार मोटे अनाजों की आऊटर लेयर को चोकर कहते हैं। इसके बाद अंदर की लेयर में जर्म यानी रोगाणु होता है जो किसी भी बाहरी परजीवी से सुरक्षा के लिए बना होता है। वहीं दूसरी ओर चोकर में फाइबर अधिक मात्रा में उपलब्ध रहता है, जो कि आसानी से पचता नही है। मोटे अनाजों का ग्लाइसेमिक इण्डेक्स बहूत कम होने के कारण इनका सेवन करने से ब्लड शुगर के स्तर में वृद्वि नही होती है, और इसके साथ ही यह वजन पर भी नियन्त्रण रखता है। 
अध्ययन के दौरान जब कुछ लोगों को मोटे अनाज का सेवन करने के लिए कहा गया तो इसके कुछ दिनों के बाद ही इनमें इंसुलिन के स्तर में वृद्वि पाई गई और इनका सेवन करने से उनमें कोलेस्ट्राल का स्तर भी कम होने लगा था। 
सफेद अनाज की अपेक्षा ब्लड शुगर के बढ़ने की रफ्तार कम होती हैः वहीं एक दूसरे अध्ययन में पाया गया कि नाश्ते में चावल के स्थान पर मोटे अनाज का सेवन करने से ब्लड-शुगर का स्तर कम होता है। इस अध्ययन के अनुसार, स.फेद अनाज वाले उत्पादों की अपेक्षा मोटे अनाज ब्लड-शूगर के स्तर में धीरे. धीरे वृद्वि करते हैं। इस अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि यदि आप सफेद ब्रेड, पास्ता तथा चावल के स्थान पर बाजरा आधारित खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं तो अपनी रक्.त शर्करा को बेहतर ढंग से नियन्त्रित कर पाते हैं। 
फिलहाल में डायबिटीज कैपिटल है भारतः भारत में डायबिटीज के मामले तीव्र गति के साथ बढ़ रहे हैं। वर्तमान में देश में 8 करोड़ से अधिक लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं। इसी कारण से भारत को विश्व की डायबिटीज की राजधानी भी कहा जाने लगा है। एक अनुमान के अनुसार  वर्ष 2045 तक भारत में डायबिटीज से पीड़ितों की संख्या 13.5 करोड़ तक पहुँचने की आशंका है।    
    वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व में डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति लगभग 42.2 करोड़ हैं।
    इसके सापेक्ष भारत में 8 कारेड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं। 
    एक अनुमान के अनुसार लगभग 15 लाख लोग प्रत्येक वर्ष डायबिटीज के कारण काल-कलवित हो जाते हैं।
मोटे अनाज से होने वाले लाभ-
रागीः रागी दिखने में सरसों की तरह ही होता है परन्तु रागी का रंग काला होता हैं रागी पोषक तत्वों से भरपूर होता है, यह ब्लड शुगर के साथ ही कोलेस्ट्राल को कम करने में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
 
ज्वारः ज्वार नामक मोटे अनाज में प्रचुर मात्रा में फाइबर उपलब्ध होने के साथ ही विटामिन के-1 भी उपलब्ध होता है जो ब्लड की क्लोटिंग तथा हड्डियों की सुदृढ़ता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ज्वार का सेवन करने से मधुमेह के स्तर में कमी आती है। 
 
बजराः .बाजरा एशिया तथा अफ्रीका में मुख्य रूप से उगाया जाने वाला मोटा अनाज है और इसकी खेती प्राचीन काल से ही की जाती रही है। हालांकि बाजरे का अधिकतर भाग मवेशियों को ही खिलाया जाता है, इसका ग्लाइसेमिक इण्डेक्स कम होता है जो ब्लड शुगर के स्तर को कम करता है। 
 
जेई का चोकरः जेई के चोकर में साल्युबल फाइबर होता है। इसके अतिरिक्त इसमें उपलब्ध मैग्नीशियम एवं प्रोटीन आदि ब्लड शुगर को अवशोषित करते हैं। 
बार्लीः बार्ली को जेई के द्वारा तैयार किया जाता है। इसके अन्दर बीटा ग्लूकेन होता है जो ब्लड शुगर  को कम करने के साथ ही कोलेस्ट्राॅल के स्तर को भी कम करता है.।   

याददाश्त को दुरूस्त करने में मदद कर सकते हैं मश्रूम के सक्रिय यौगिक
    एक नये अध्ययन के माध्यम से शोधकर्ताओं को ज्ञात हुआ है कि मश्रूम मस्तिष्क की कोशिकाअें के विकास एवं .याददाश्त में भी सुधार करती हैं और इसके माध्यम से अल्जाईमर के खतरे को भी कम किया जा सकता हैं। इस अध्ययन में बताया गया कि आस्ट्रलिया के क्वीसलैण्ड विश्वद्यिालय के (यूक्यू) के शोधकर्ताओं के द्वारा प्री-क्लीनिकल परीक्षणों के आधार पर मश्रूम के सक्रिय यौगिक की खोज की है जो तंत्रिका के विकास और याददाश्त में वृद्वि करने में सक्षम है। क्वीसलैण्ड विश्वविद्यालय के ब्रेन इन्स्टीट्यूट के प्रौफेसर फैडरिक मैवुनियर ने बताया कि टीम ने मशरूम के हेरिवियम एरीनेसस नामक नए सक्रिय यौगिक पहिचान की है। इस अध्ययन का प्रकाशन जर्नल आफ न्यूरोकैमिस्ट्री में हुआ। मेवुनियर ने बताया कि शेर के गले के बाल जैसे दिखने वाले मश्रूम के अर्क का इस्तेमाल सदियों से एशियाई और अफ्रीकी देशों में चिकित्सा के लिए किया जाता रहा है। जबकि हम वैज्ञानिक रूप से मस्तिष्क की कोशिकाओं पर उसके पड़ने वाले सम्भावित प्रभावों का निर्धारण करना चाहते थे।