मधुमेह से बचने के लिए अपनाएं स्वस्थ दिनचर्या

                                                  मधुमेह से बचने के लिए अपनाएं स्वस्थ दिनचर्या

डायबिटीज से बचने के लिए अपनी जीवनशैली में परिवर्तन लाकर इस समस्या से बचा जा सकता है। यदि आपकी यह समस्या वंशानुगत है तो घबराएं नहीं केवल सावधान रहने की जरूरत है और इसके समाधान को तलाशने पर ध्यान देना होगा। यदि आपको मधुमेह हुआ है तो दवा लेकर ठीक हो जाएंगे। इस दृष्टिकोण के साथ स्वस्थ दिनचर्या की तरफ कदम बढ़ाना चाहिए तो प्री-डायबिटिक खानपान की आदतों में अपेक्षित सुधार कर स्थाई रूप से अपना बचाव कर सकते हैं।

एक सक्रिय जीवन अपनाएं 

                                            

आराम पसंद दिनचर्या को बदलने का प्रयास करें और इसके साथ ही लंबे समय तक बैठकर काम करने या मोबाइल स्क्रॉल करने की आदत को एक हद तक कम करें। कम्प्यूटर आदि पर काम करते हुए प्रत्येक 1 घंटे के बाद 5 से 10 मिनट अवश्य टहलना चाहिए। साइकिलिंग करें, घर के छोटे-मोटे काम स्वयं ही करने की आदत डालें। यदि आपको कोई बीमारी या घुटनों में दर्द है तो आप बैठकर भी काम कर सकते हैं।

डिब्बाबंद खाने से करें परहेज

                                               

आजकल ज्यादातर लोग अपनी व्यस्त दिनचर्या के चलते अपने खाने पर विशेष ध्यान नहीं दे पाते और ज्यादातर लोग बाहर के भोजन को खाना पसंद करते हैं। ऐसे में हमे कोशिश करनी चाहिए कि बाहर के खाने से बचें अपने भोजन में पारंपरिक खानपान और मोटे अनाज का प्रयोग बढ़ाएं तो निश्चित रूप से मधुमेह निन्त्रित हो जाएगी।

यदि प्री-डायबिटिक तो क्या करें

यदि रक्त में ग्लूकोज का स्तर सामान्य से अधिक है तो इसे Pre-Diabetes कहा जाता है। ऐसे लोगों को रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल/लिपिड का स्तर नियंत्रित रखना चाहिए। कार्डियोवस्कुलर (जैसे हृदय रोग, स्ट्रोक) बीमारी का जोखिम कम करने के लिए धूम्रपान और शराब आदि के सेवन से भी बचना चाहिए।

डायबिटिक पेशेंट जी सकते हैं एक अच्छा जीवन

                                         

डायबिटीज को पूरी तरह खत्म नही कर पाने की बात सहीं है, परन्तु इसे नियंत्रित रख कर अच्छा व लंबा जीवन जी सकते हैं। कहा जाता है कि जो लोग इंसुलिन लेते हैं वह इस पर निर्भर हो जाते हैं, परन्तु यह मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है। अब ओरल दवा भी आ चुकी है परन्तु जो लोग लंबे समय तक दवा खाते हैं, शुगर बहुत ज्यादा है एवं अनियंत्रित रहता है तो उन्हें इंसुलिन लेना ही पड़ता है।

डायबिटिक पेशेंट के लिए कुंजी स्वस्थ जीवन की

लुसेंट में प्रकाशित आईसीएमआर के द्वारा कराए गए ताजा अध्ययन के अनुसार वर्तमान में हर 9वा भारतीय डायबिटीज का शिकार है। 15 प्रतिशत से अधिक लोग प्री-डायबिटिक स्टेज परं है। जीवनशैली सुधार कर डायबिटीज पर नियंत्रण आसानी से पाया जा सकता है विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वस्थ आहार, कुपोषण व गैर-संचारी रोग जैसे मधुमेह, हृदय रोग, स्ट्रोक, और कैंसर आदि से लड़ने में सुरक्षा प्रदान करता है। रोजाना के अपने भोजन में मोटे अनाज को शामिल करें तो निश्चित रूप से फायदा होगा।

  • 10 प्रतिशत से नीचे सैचुरेटेड वसा यानी घी, मक्खन आज का प्रयोग करें।
  • 10 प्रतिशत से ज्यादा ना हो फ्री शुगर। खाद्य पदार्थ में मिलाई गई चीनी और शहद, सिरप और फलों के रस में मिलाई गई चीनी आदि का प्रयोग कम से कम करें।
  • 5 ग्राम प्रतिदिन से अधिक नमक का सेवन न करें।
  • अनाज के अलग प्रकार जैसे गेहूं व चावल, मक्का आदि का नियमित रूप से सेवन करें।
  • 400 ग्राम प्रतिदिन फल एवं सब्जी आदि का सेवन अवश्य करें।
  • असंतृप्त वसा का प्रयोग करें यह सोया, सूर्यमुखी, ऑलिव ऑयल आदि में प्रचुरता से उपलब्ध होता है।

वजन को रखे नियंत्रण में

एक योजना बनाकर व्यायाम और श्रम को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। मीठे पेय के बजाय नींबू पानी पी सकते हैं। अचानक भोजन में कटौती कर या उपवास कर वजन कम करने की न सोचे भूख नहीं लगने पर जबरदस्ती भोजन ना करें। अपनी ऊँचाई के अनुपात में भोजन यानी कि बॉडी मास इंडेक्स से अपनी सेहत जांचना बेहतर तरीका है।

करें तनाव का प्रबंधन

तनाव से निकलने वाले कॉर्टिसोल हार्मान से शुगर लेवल एकदम से बढ़ जाता है। तनाव से नींद भी बाधित होती है अधिक क्रेविंग यानी आपको बार-बार खाने की इच्छा होती है। तनाव को नियंत्रित करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति के अपने अलग तरीके होते हैं, अतः आप भी अपना तरीका खोजें की क्या करने से आपका तनाव कम हो सकता है क्योंकि मधुमेह से यदि बचना है तो तनाव को कम करना ही होगा।

कुछ बातों का हमेशा रखें ध्यान

खाने की थाली के आधे हिस्से में हरी सब्जियां अवश्य लें। एक चौथाई में प्रोटीन युक्त चीजें जैसे चिकन, मछली एवं दाल आदि ले और अन्य एक चौथाई हिस्से में ओट्स, ब्राउन राइस तथा गेहूं जैसे कार्बाेहाइड्रेट युक्त पदार्थों का सेवन करें।

  • आटे के साथ चोकर का सेवन भी करें।
  • फल साबुत ही खाएं और एक बार में अधिक फल खाने से बचें।
  • अदरक, प्याज, लहसुन, काली मिर्च एवं टमाटर आदि जैसी प्राकृतिक चीजों का अधिक से अधिक प्रयोग करें।

                                                   आखिर क्यों बिगड़ रही है दिल की सेहत

                                             

हाल ही में प्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट जिनकी उम्र केवल 41 वर्ष थी अचानक मौत हो गई। इन दिनों यह मौत काफी चर्चा में है क्योंकि लोगों को जीवन देने वाला अचानक ही चला गया। ऐसी घटनाएं आजकल आए दिन सुनने और देखने को मिल रही है। इसमें पहले से हृदय संबंधी कोई परेशानी ना होना अधिक हैरान करता है।

आखिर क्यों बिगड़ रही है, लोगों के दिल की सेहत अब सतर्क रहकर अपने हृदय को स्वस्थ रखने की जरूरत है और इसके लिए समय पर जांच करा कर अपने हृदय को सुरक्षित रखा जा सकता है।

हृदय की बीमारी में कई तरह के जोखिम होते हैं। परिवार में पहले किसी को कम उम्र में हृदय संबंधी समस्या हो चुकी है तो उसे एक बड़े जोखिम कारक के रूप में देखा जाता है दूसरा धूम्रपान और शराब की आदत भी बड़े रिस्क फैक्टर उच्च रक्तचाप और मधुमेह की भी समस्या है तो यह आशंका और प्रबल हो जाती है।

कैसे लगाएं जोखिम का अनुमान

यदि जीवन शैली अण्व्यवस्थित और तनावपूर्ण है साथ ही योग और व्यायाम से दूर हैं, तो समस्याओं का बढ़ना स्वाभाविक ही है। इससे मोटापे की दिक्कत भी आती है और इससे जोखिम का भी अनुमान लगाना आसान हो जाता है। अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि वह रिस्क में है तो कुछ जरूरी जांच करा लेना चाहिए।

इनमें ईसीजी, इको, ट्रेडमिल टेस्ट, सीटी कोरोनरी एंजिओ टेस्ट आदि प्रमुख हैं तो कई बार एंजियोग्राफी भी करानी पड़ सकती है। यह सभी टेस्ट आसान तरीके से किए जा सकते हैं और इससे हमें साइलेंट ब्लॉक का पता चल जाता है जो आमतौर पर तकलीफदेह नहीं होते हैं।

इससे आगे चलकर आने वाली किसी बड़ी परेशानी को दुरस्त आसान हो जाता है। कई बार छोटे-मोटे लक्षणों को लोग नजरअंदाज कर देते हैं नियमित रूप से जो जाचें जरूरी है उसे लोग महीनों-वर्षों तक चलाते रहते हैं।

नियमित जांच भी है जरूरी

अगर आपका वजन सही है और कोई रिस्क फैक्टर नहीं है तो भी समय-समय पर लिपिड प्रोफाइल टेस्ट करा लेना चाहिए। इससे दो तरह की जानकारी मिलती है। अगर एलडीएल बहुत ज्यादा है तो सतर्क हो जाएं यह 100 के आसपास स्वीकार्य है। एलडीएल का असंतुलन पारिवारिक कारणों से भी हो सकता है।

इस दशा में सीटी कोरोनरी एंजियो से पता चलता है कि कोलेस्ट्रॉल धमनियों में जमा है या नहीं। इसके बाद उसी के आधार पर उपचार किया जाता है। एलडीएल को कम करने की जो दवाई दी जाती हैं उनका सेवन करने से भी बचना चाहिए। बहुत जरूरी होने पर ही यह दवा लेनी चाहिए।

हृदय गति बढ़ने और घटने से भी होती है दिक्कत

कई बार धमनियों में अवरोध ही मृत्यु का कारण नहीं बनता है। ह्नदय कि गति अचानक बढ़ या घट जाने से भी दिक्कत हो सकती है। इसके पीछे अलग तरह के कारण हो सकते हैं। परीक्षण के आधार पर चिकित्सक मरीज को आगे की जांच और उपचार की सलाह देते हैं।

यहां दो बातें महत्वपूर्ण है, संतुलित वजन और शारीरिक श्रम बहुत जरूरी है। अगर किसी व्यक्ति को मधुमेह, उच्च रक्तचाप के साथ धूम्रपान और शराब पीने की आदत है, साथ ही वजन अधिक और दिनचर्या तनावपूर्ण है तो उसे अधिक सावधान रहने की जरूरत होती है।

अचानक मृत्यु के दो कारण है हार्ट अटैक दूसरा वैन्ट्रीकुलर फेब्रिकेशन यानी धड़कनों का अनियमित होना। कुछ जेनेटिक सिंड्रोम भी होते हैं। धड़कन रुकने पर का कॉर्डियोवर्जन दिया जा सकता है।

परिवार की स्क्रीनिंग है जरूरी

ईसीजी और इकोकार्डियोग्राफी से सही स्थिति को जाना जा सकता है। यह सब चीजें हो तो हृदय की समस्याओं को समय रहते ही रोका जा सकता है। खानपान में वसा, चीनी और नमक की मात्रा को नियंत्रित रखना भी बहुत आवश्यक है।

कोलेस्ट्रोल का अनुपात रखे सही

यदि किसी व्यक्ति के एलडीएल का स्तर 150 के ऊपर है, तो इसक लिए कुछ दवाएं दी जाती हैं। आमतौर पर हमारे देश के लोगों का एचडीएल स्तर कम ही रहता है। यह 50-60 के ऊपर होना चाहिए, साथ ही इनका अनुपात को बेहतर बनाए रखना जरूरी होता है।

एचडीएल के स्तर में वृद्वि के लिए अभी उपयुक्त दवा उपलब्ध नहीं है। अतः इसके नियमन के लिए हमें खानपान और व्यायाम आदि क्रियाओं पर ध्यान देना चाहिए।

वॉर्निंग साइन को समझें, इन्हें न करें नजरअंदाज

हार्ट अटैक के लक्षण कई बार बहुत कम या छोटे भी हो सकते हैं। इससे लोग सोचते हैं कि गैस बन रही है या फिर साधारण कमजोरी है। इसके लक्षण नजरअंदाज हो जाते हैं। यदि कोई ऐसा लक्षण दिख रहा है जो पहले नहीं था, जैसे कि सीने में दर्द, घबराहट, सांस लेने में परेशानी तो इसे टालने से बचना चाहिए।

दिल को कैसे रखे सेहतमंद

  • प्रतिदिन 3 से 5 किलोमीटर मध्यम गति चलें। यह सप्ताह में कम से कम 5 दिन आवश्यक है।
  • खानपान में नियमित रूप से पोषक तत्व पर्याप्त और संतुलित मात्रा में लेते रहें।
  • सामान्य जांच नियमित कराते रहें।
  • जांच का समय तय करें जैसे कि महीने 2 महीने या 3 महीने में एक बार। इससे 50 प्रतिशत तक समस्याओं से बचा जा सकता है।
  • रिस्क फैक्टर है तो डॉक्टर से सलाह अवश्य ले।