नीट परीक्षा के अगले चरण के लिए कुछ आवश्यक बातें

                                                      नीट परीक्षा के अगले चरण के लिए कुछ आवश्यक बातें

                                                    

मेडिकल के अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम के लिए प्रवेश परीक्षा NEET (UG) के परिणाम आने के बाद काउ्रसलिंग एक महत्वपूर्ण चरण होता है, जबकि इस चरण में उलझनें भी कुछ कम नही है। इन उलझनों के चलते ही कुछ छात्र धोखे का शिकार भी हो जाते हैं। इसके सम्बन्ध में कुछ अहम सुझाव अग्रलिखित हैं-

इस वर्ष आयोजित की गई मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट-अंडरग्रेजुएट) में 18000000 से भी अधिक युवाओं ने लगभग 01 लाख एमबीबीएस की सीटों के लिए भाग लिया, जिसका परिणाम आने के बाद अब काउंसलिंग का दौर चलने वाला है।

अक्सर देखा गया है कि सरकारी संस्थानों में दाखिला लेने के लिए एक होड़ सी चलती है। इसका कारण यह है कि सरकारी संस्थानों की फीस तुलनात्मक रूप से कम होती है और इसी होड के कारण विभिन्न छात्र धोखे का शिकार भी बन जाते हैं।

इसमें छात्रों एवं उनके अभिभावकों के द्वारा लिए गए निर्णय इसलिए गलत होते हैं कि उन्हें प्रवेश के सम्बन्ध में सही जानकारी नही होती है। इसके सम्बन्ध में कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद आवश्यक होता है जो कि इस प्रकार से हैं-

  • काउंसलिंग के बिना प्रवेश नही
  •     यदि कोई आपसे कहता है कि वह काउंसलिंग के बिना अमुक संस्थान में प्रवेश दिला देगा तो यह सरासर धोखेबाजी ही है। अतः यहाँ आपके लिए यह समझना बेहद जरूरी है कि काउंसलिंग के बिना किसी भी प्रकार के मेडिकल प्रोग्राम में दाखिला सम्भव ही नही है। एमबीबीएस, बीडीएस, बीएएमएस या फिर बीएचएमएस के प्रवेश के लिए काउंसलिंग के दौर से तो गुजरना ही पड़ता है।
  •     हमारे देश में किसी भी मेडिकल कोर्स में एडमिशन के लिए दो स्टेज होती हैं। इसके अन्तर्गत पहले नीट की तैयारी के लिए कोचिंग एवं उसे उत्तीर्ण कर लेने के बाद काउंसलिंग की प्रक्रिया में भाग लेना।

किस प्रकार आवंटित होते हैं संस्थान

                                                                         

इस बात का विशेष ध्यान रखें कि किसी भी व्यक्ति अथवा संस्थान के पास एमबीबीएस की सीट पर एडमिशन देने का कोई अधिकार नही होता है। भारत में समस्त मेडिकल कॉलेजों की विद्यमान सीटों का आवंटन दो स्तर पर किया जाता हैं, जिनमें से एक तो एमसीसी के द्वारा किया जाता है।

जिसके अंतर्गत आईएनआई एवं डीम्ड मेडिकल यूनिवर्सिटीज की सभी सीटों और इसके साथ ही देश के सभी सरकारी मेडिकल कॉलेजों की 15 प्रतिशत सीटों के लिए जिसे एआईक्यू या ऑल इण्डिया कोटा सीट्स भी कहा जाता है, का आवंटन किया जाता है। यह काउंसलिंग, बिना किसी डोमिसाइल शर्त के नीट उत्तीर्ण सभी छात्रों के लिए उपलब्ध होती हैं।

दूसरे स्तर की काउंसलिंग राज्यों के डायरेक्टर जनरल ऑफ मेडिकल एजुकेशन के द्वारा आयोजित की जाती है। जिसके अन्तर्गत सम्बन्धित राज्य में स्थित निजी मेडिकल कॉलेजों की समस्त सीटों के साथ ही गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेजों की 85 प्रतिशत स्टेट कोटा सीटों के लिए आवंटन किया जाता है।

इस काउंसलिंग में भाग लेने के लिए आवेदक को नीट में उत्तीर्णता के साथ डोमेसाइल सम्बन्धित शर्तों का पालन करना भी अनिवार्य होता है। राज्य स्तर की काउंसलिंग के अन्तर्गत किसी भी गवर्नमेंट सीट के लिए सम्बन्धित राज्य का डोमिसाइल होना भी अवाश्यक है, जबकि कुछ राज्य कुछ शर्तों के साथ अपनी प्राइवेट मेंडिकल कॉलेज की सीटों के लिए दूसरे राज्यों के आवेदकों को भी अवसर प्रदान करते हैं।

ईयर ड्रॉप का चुनाव कब और क्यों करें

बहुत से छात्र, कोचिंग टीचर्स या ऑनलाइन परामर्श से प्रभावित होकर अपनी मेडिकल की पढ़ाई के लिए सरकारी कॉलेज में प्रवेश को ही अपना अन्तिम लक्ष्य बना लेते हैं। वित्तीय सामर्थ्य होने के उपरांत भी इस जिद में साल ड्रॉप कर लेते हैं, यह कोई सही सोच नही है।

हमारे देश में बहुत से प्राइवेट एवं डीम्ड कॉलेज बहुत से सरकारी कॉलेजों की अपेक्षा अधिक अच्छे साबित हो रहे हैं। अतः आपसे अपेक्षा की जाती है कि केवल डीम्ड अथवा निजी कॉलेज होने के आधार पर वहाँ की पढ़ाई एवं प्रैक्टिस का आंकलन न करें।

                                           

ऐसे अभ्यर्थी जिनके प्रथम प्रयास में ही 400 से अधिक अंक आते हैं, और उनकी आर्थिक स्थिति डीम्ड अथवा निजी कॉलेजों की फीस के अनुकूल नही है तो वे अगली बार सरकारी कॉलेज में एडमीशन के लिए प्रयास कर सकते हैं। वहीं पहले प्रयास में 400 से कम नम्बर आने की स्थिति में अभ्यर्थियों के मता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को निजी अथवा किसी डीम्ड कॉलेज में एडमीशन अवश्य दिला दें।

यदि अभ्यर्थी की आर्थिक स्थिति अच्छी नही है तो एमबीबीएस की पढ़ाई किसी बैंक से एजुकेशन लोन लेकर भी की जा सकती है। सरकार के द्वारा एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए खास प्रावधान किए गए हैं, जिनके तहत छात्रों को बहुत ही आसान शर्तों पर आसानी के साथ लोन मिल जाता है।

ईयर ड्रॉप करने का कब लाभ नही

एक बात यह समझ लीजिए कि यदि नीट में दो प्रयास करने के उपरांत भी सरकारी सीट पर नम्बर नही आता है तो आगे के प्रयासों में भी कोई खास लाभ मिलने की सम्भावना न के बराबर ही होती हैं।

वैसे हाल ही में नेशनल मेउिकल कमीशन के द्वारा नीट के आयोजन से सम्बन्धित कुछ बदलावों की पेशकश की गई है, जनमें नीट की योग्यता को $ 2 के दो साल बाद तक ही सीमित कर देन का प्र्रस्ताव रखा है।

इसका अर्थ यह हुआ कि यदि आपने वर्ष 2021 में +2 की परीक्षा पास की है तो इस तथ्य को धन में रखते हुए ही नीट के लिए कोशिश करने का निर्णय लेना चाहिए।

कितना होता है खर्च

                                                                 

  • यदि हम एमबीबीएस में एडमीशन की बात करे तो इस वर्ष हमारे देश में 4 प्रकार के 690 मेडिकल कॉलेजेज में कुल 1,08,000 के आसपास एमबीबीएस की सीटें हैं यह चार प्रकार के मेडिकल कॉलेज आईएनअई जैसे एम्स, बीएचयू, जेआईपीएमईआर, एएफएमसी गवर्नमेंट, प्राईवेट मेडिकल कॉलेज एवं डीम्ड मेडिकल यूनिवर्सिटी होते हैं।
  • जहाँ आईएनआई एवं गवर्नमकेंट मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की पर्ढ़ा के लिए वार्षिक दो लाख रूपये से भी कम देनी होती है, तो वहीं प्राईवेट और डीम्ड मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई का वार्षिक खर्च 6.5 लाख रूपये से शुरू होकर 28 लाख रूपये तक जाता है।

काउंसलिंग के लिए इन बातों का रखे ध्यान

  • नीट स्कोर, डोमिसाइल, कैटेगिरी एवं फीस के बजट के हिसाब से एमबीबीएस में एडमीशन की सम्भावना का सटीक आंकलन करे।
  • एडमीशन के आंकलन के बाद यह निर्धारण करें कि किस-किस मेडिकल काउंसलिंग में भाग लेने की पात्रता आपके पास है और उनमें से किस में भाग लेना आपके लिए श्रेयकर होगा। इसके लिए आपको वहाँ के प्रॉस्पैक्टस को अच्छी तरीके से पढ़ना और समझना आवश्यक है।
  • सम्बन्धित कॉलेजों में से अपनी च्वाईस लिस्ट तैयार करें। इसके लिए उक्त कॉलेज की एकेडेमिक गुणवत्ता, क्लिनीकल व्यवहारिक प्रशिक्षण, कॉलेज का इन्फ्रास्ट्रक्चर, फीस, आसान पहुँच तथा उसकी संस्कृति जैसे विषयों को लकर ही लिस्ट को तैयार किया जाना चाहिए।
  • प्रवेश लेने के लिए समस्त आवश्यक डॉक्यूमेंट्स के बारे में सम्पूर्ण जानकारी कॉलेज के प्रॉस्पेक्ट्स में इी गई होती हैं अभिभावकों को काउंसलिेग की फीस देने के लिए ऑनलाईन पेमेण्ट सर्विसेज को एक्टिवेट करा लेना चाहिए।
  • यह आवश्यक है कि यी सारी प्रक्रिया छात्र अपने माता-पिता या किसी बड़े की सलाह एवं उनके मार्गदर्शन में ही पूर्ण करें।
  • इस दौर के लिए मेडिकल एडमीशन काउंसलर अति सहायक होगा। परन्तु किसी विश्वास के योग्य एक्सपर्ट से ही सम्पर्क करना उचित हैं।   

 

 

 

नमस्कार

                                                   

अभी कुछ देर पहले आज मॉर्निंग में UPSC ने 2023 के Civil Services के Pre Exam का परिणाम घोषित किया है। शुभम् (सुपुत्र) ने इस बार UPSC Pre Exam क्वालीफाई किया है। हालांकि मुख्य लड़ाई अभी आगे है, असली चुनौती भी आगे ही है, लेकिन फिर भी एक कॉन्फिडेंस इस सन्दर्भ में ज़रूर हासिल हुआ है, की हाल के वर्षो में UPSC ने इस परीक्षा का स्तर इस कदर बढ़ा दिया है कि UPSC के फाइनल में सफ़ल घोषित अनेकों टॉपर्स भी अपने विगत प्रयासों में कई कई बार Pre Exam को क्वालीफाई करने से चूकते रहे हैं।

UPSC के आज के दौर का Pre Exam का पेपर देखता हूं तो उसके लेवल को देखकर दिमाग़ चकराने लगता है जबकि मैंने स्वयं भी वर्ष 1990 का UPSC का Pre Exam क्वालीफाई किया था, लेकिन वो दौर अलग था, उसमे General Studies के अलावा एक ऑप्शनल सब्जेक्ट भी हुआ करता था। अब Pre Exam में फोकस केवल General Studies ही रहता है और इसमें अभ्यर्थी को मात्र अर्जित ज्ञान की कसौटी पर ही नहीं कसा जाता है बल्कि उससे कहीं ज्यादा कैंडिडेट की इंटेलिजेंस, समझ, धैर्य, मानसिक और भावनात्मक स्थिरता, स्पष्टता  और एकाग्रता जैसे अन्यान्य मानवीय सबल पक्षों के स्तर का ही आंकलन विशेष रूप से किया जाता है ।

सिविल सर्विसेज के aspirants अभ्यर्थियों की संख्या देश भर में बहुत अधिक है, वर्षो तक एकनिष्ठ होकर पूर्ण समर्पण के साथ त्याग और तपस्या के साथ अनथक परिश्रम करते हुए बच्चों को देखता हूं तो उनके जज्बे को सैल्यूट करने का मन करता है। UPSC की Civil Services की राह पर चलने वाले बच्चों को ट्रैक 2 या प्लान बी की संभावनाएं हमेशा Open रखनी चाहिए, मसलन स्टेट सिविल सर्विसेज के अलावा NABARD, SEBI, RBI etc. या फिर खुद का स्टार्ट-अप भी एक बेहतरीन आइडिया हो सकता है।

एक देशप्रेमी