यूरेमिया (मूत्र-विकार) का होम्योपैथिक उपचार

                                                          यूरेमिया (मूत्र-विकार) का होम्योपैथिक उपचार

                                                                                                                                                 डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                     

              एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में मूत्र के सम्बन्ध में बहुत सी समस्याओं का सामना पड़ता है। मूत्र विकार की अवस्था में बहुत सावधानी से चिकित्सा करनी चाहिए। मूत्राभाव या मूत्रावरोध के कारण विकार हो जाने पर, पहले मस्तिष्क-लक्षण और कै होने लगती है, फिर क्रमशः अण्ड़-बण्ड़ बकना, छटपटाहट, उठ-उठ कर भागना इत्यादि उपसर्ग दिखाई पड़ते हैं, ऑंखें लाल हो जाती हैं, निःश्वास और कै में नौसादर या अमोनिया जैसी गन्ध पाई जाती है, फिर क्रमशः बेहोशी निगलने में परेशानी, श्वास-कष्ट, पेशाब और पखाने में उग्र गंध, श्वास तेज होती है और हार्टफेल होने से रोगी की मौत तक हो जाती है। यूरिमिक फंक्शनल में इनैन्थी-क्रोकेटा इसकी अच्छी दवाएं हैं। गर्भावस्था में एसक्लिपियस।

(गर्भावस्था में एसक्लिपियस)

मूत्राशय में पेशाब एकत्रित, परंतु पेशाब का न होना-

कैन्थरिस-कालरा में, मूत्राष्य में पेशाब एकत्रित है, क्रमागत वेग, पेशाब करने की इच्छा, किन्तु पेशाब का न होना, साथ में घबराहट, छटपटाहट , पेट में दर्द, अंड-बंड़ बकना, आच्छन्नता, प्यास, हाथ-पैर ठण्ड़े, दुर्बल नाड़ी, अन्दर ज्वाला, (यूरेमिया से पैदा शिवनेत्र, चक्षुकशिरा लाल, कुछ खाना-पीना नही चाहता, दौड़-दौड़ कर भागता है, शरीर रखने से चिल्लाता है, मारने दौड़ता है, आदि लक्षण रहते हैं)।

टेरिबिन्थ- पेशाब जमा हो गई है, कुछ भी वेग नही, साथ में पेट फूल आता है, और फूलना जैसे लगातार बढ़ता जाता है। पेशाब पखाना बन्द, श्वास कष्ट, गोत या आच्छन्नता, जीभ लाल रंग की।

ओपियम- पेट फूला हुआ, पेशाब भरी हुई, किन्तु वेग नही, मूत्राश्य का पक्षाघात, (हायोसिस, कस्टिकम, आर्सेनिक एल्ब में भी पेशाब नही होता)।

बेलाडोना- पेशाब इकट्ठा है, परंतु मूत्राश्य-पेशी की कमजोरी के कारण पेशाब नही होती, साथ में अंड़-बंड़ बकना, ऑंखें लाल, कै, श्वास-कष्ट इत्यादि।

नक्स वोमिका- पेशाब एकत्रित, बार-बार वेग, क्रमशः कुन्थन, पेशाब नही होती या बॅंूंद-बूंद करके होती है, पेशाब द्वार में ज्वाला (ओपियम से पूर्व इसका व्यवहार करने से बहुत लाभ होगा), पेशाब के बाद सामान्य पेशाब होना या बिल्कुल न होना (स्ट्रॉमानियम- प्रसव के बाद और वात ज्वर में पेशाब का बन्द)। पेशाब पहले मलिन, बाद में गन्दली सादी, मवाद जैसी बलगम मिला हुआ।

                                                                

ऐपिस मेल- बार-बार वेग, सिर्फ 2-1 बॅंूद पेशाब होता है, मूत्र-थैली में अम्ल, ज्वाला, कभी कट से आवाज हो, पेशाब बन्द होने पर प्यास का न रहना।

प्रमेह पीड़ाग्रस्त रोगी की मूत्रनली में ज्वाला और पेशाब करने की अत्यंत इच्छा लक्षण में कैनाबिस इण्डिका और थूजा की भी परीक्षा करनी चाहिए।

मूत्राश्य में पेशाब का एकत्र न होना-

मूत्राश्य में पेशाब न जमने पर-कैलीबाइक्रम यूरेथा में ज्वाला रहती है)। स्ट्रमोनियम, आर्सेनिक, लाइकोपोडियम इत्यादि में भी मूत्राश्य में पेशाब जमा नही होती। मर्ककर की एक मात्रा भी बहुत लाभदायक है।

अन्यान्य लक्षण-

आर्सेनिक एल्बम- छटपटाहट के साथ; आर्सेनिक ब्रोम- छटपटाहट और अज्ञानता पर्यायक्रम से; कूप्रम एसेट और कूप्रम आर्स- अकड़न के साथ; ऐसिड हाईड्रो- ह्तक्रिया का स्थान, श्वास कष्ट, गों-गों करना इत्यादि, टेबेकम- किड्नी एवं लीवर की क्रियाहीनता के कारण।

गोत में रहना आच्छन भाव-

ऐपोसानम कैन-पेशाब बन्द, मूत्रकृकच्छ, पेशाब में तकलीफ, पेशाब बन्द, निस्पन्द भाव, होश में लाना कठिन, होश में आते ही फिर बेहोश, पेशाब का वेग या चेष्टाशून्य-स्पिरिट नाइटर8-10 औंस पानी में मिलाकर 1-2 चम्मच मात्रा में प्रत्येक दो घंटे के अंतर पर सेवन कराना चाहिए।

यूरिमिक कोमा ;ब्वउंद्ध-एसिड कार्बोलिक।

एमोन कार्ब- अज्ञान, आच्छन्न, यूरिमिया की शेष अवस्था में, गला घड़-घड़, होंठ एवं जीभ नीली, जैसे कुछ धरना जाता हो, ह्तपिण्ड का रक्त जूकर हार्टफेल।

मस्तिष्क लक्षण एंव ज्वर विकार-कालारा की इस अवस्था में कोई-कोई रोगी अण्ड़-बण्ड़ बकता है, छटपटाता है, किसी-किसी को ये लक्षण अधिक नही रहते, अज्ञान एवं गोत में पड़ा रहता है।

छटपटाहट  और अण्ड़-बकने पर-बेलाडोना, स्ट्रामोनियम, हायोसियामस, रसटॉक्स, कैली ब्रोम।

अज्ञानता में पड़े रहने पर-एसिड फॉस, ओपियम, नक्स-मस्केटा, एसिड हेलीबोरस, हायोसियामस, वेरेट्रम विरिड, नाइट्रि-स्पििर-डल, कैली ब्रोम। अत्यंत छटपटाहट कींदा रहना, जीभ सूखी, ऑंत का तारा छोटा।

ऐसिड फॉस- थोड़ा बुखार, अस्थिरता शून्य, अज्ञान, किन्तु जवाब नही देता।

हायोसियामस-सम्पूर्ण अज्ञान, नंगा, लिंग पर हाथ रखता है, पिउपिल बड़ी, ऑंख लाल, कभी गंदी, एक बार छटपटाहट, एक बार आच्छन्नता, कभी अपलक देखता रहता है, पेशाब जमा किन्तु पेशाब नही होती या फिर अन्जानें में पेशाब हो जाती है, थोड़ी पेशाब, प्यास, केवल पानी पीना, जीभ सूखे चमड़े जैसी, पेशाब होने पर मस्तिष्क लक्षण।

ओपियम- घोर अचैतन्य, शिवनेत्र, नाक बोलती है, गला घॅं-घॅं करता है।

स्ट्रामोनियम- हॅंसता है, गाना गाता, सिसकारी देता है, तकियंे से माथा उठाता, फिर रख लेता है, बीच-बीच में पसीना, हाथ-पैर एक तरह से हिलते हैं, इशारे करता है, विदेशी भाषा बोलता है, पेशाब बन्द, सारे शरीर या हाथ-पैर में कम्पन।

वेरेट्रम विरिड- अचैतन्य, मानों सो रहा है, अकडपन, श्वास-कष्ट, पसीना।

                                                               

नक्स मस्केटा-बहुत उन्नींदा रहना, नींद जैसे टूटती ही नही, पेट फूलता है, फूलकर तुडुम होता है, पसीना ठंड़ा और सूखा, मुॅंह सूखा किन्तु प्यास एकदम नही।

एपिस मेल-अचैन्यता के लक्षण, निस्तब्ध भाव से पड़े रहकर बीच-बीच में चिल्ला उठता है, प्यास नही रहती, पेशाब बंद होना या थेड़ा-थोड़ा करके होना।

फेरम फॉस-लगातार कै-दस्त के बाद अज्ञान, छटपटाहट, चेहरा लाल, पिउपिल फैले हुए, माथा लगातार हिलाते रहना।

कैली फॉस- विकारावस्था में-फेरम फॉस का और फटन में मैगफॉस 15-20 मिनट के अन्तर पर प्रयोग करना चाहिए। इसमें बार-बार खूब कै-दस्त होता है, मल में सड़ी बदबू, पेट में कभी दर्द रहता है और कभी नही, कभी छटपटाहट तो कभी चुपचाप पड़ा रहता है।

कैली ब्रोम- कै-दस्त रहे या न रहें, हाथ-पैर ठण्ड़ें, चक्षुमणि प्रसारित, अनिंद्रा, बहुत छटपटाहट, प्यास, विकार लक्षण, उठ-उठ कर भागना कभी आच्छन्नभाव, निश्वास क्रमशः जोर से, पेशी रह-रहकर नाच उठती है, पेशाब थोड़ा एकदम बन्द, निगलने में तकलीफ, हरा बदबूदार मल, आक्षेप या आक्षेप का उपक्रम (बच्चों के रोग में अधिक उपकारी है)।

आर्सेनिक ब्रोम- भयानक छटपटाहट, शायद ऐसी ऐसी छटपटाहट किसी ओर दवा में नही होती, साथ में आच्छन्नता, श्वास कष्ट क्रमशः श्वास कष्ट बढ़े, पेशाब बन्द, पेशाब होकर भी बन्द, बहुत बदबूदार मल।

बैप्टीशिया- आच्छन्नता के साथ प्रलाप, बिस्तर से उठनें की चेष्टा, सिर्फ करवटें बदलना, श्वास-प्रश्वास में कष्ट और शब्द हो, किसी भी बात का जवाब देते-देते आच्छन्न पड़ना। कै-दस्त, पेशाब ही क्या सांस तक में बदबू, निगलने में तकलीफ और क्षत, कर्ण-शूल प्रदाह।

                                                             

हेलीबोरस- निम्न शक्ति में, ओपियम की तरह से एकदम बेहोश, बीच-बीच में छटपटाहट, हमेशा कुछ चबाने जैस मुॅंह चलाना, प्यास लेशमात्र भी न हो लेकिन पानी देखते ही आग्रह के साथ पीता है, बीच-बीच में हाथ-पैर हिलाता है (पैर ही अधिक हिलाना), हाथ-पैर की बड़ी अंगुली मुटठी में कसी रहे, केवल एक तरफ का हाथ या पैर हिलाता है और हिलाते समय दूसरा हाथ एवं पैर लकवाग्रस्त की तरह पड़ा रहता हैं, (इन लक्षणों में कमी हो तो आच्छन्नता के साथ और कीभी छटपटाहट या लगातार माथा हिलाना, शिशु बीच-बीच में चीख पड़ता है एवं हाथ-पैर और माथा इसी प्रकार हिलाता है)।

वेरट्रम विरिडि- माथे में रक्ताधिक्य होने से ऑंखे लाल, अच्छन्नभाव, घोर अज्ञानता, प्रलाप, बीच-बीच में अकड़न, श्वास-प्रश्वास में भयंकर कष्ट, सांस रूकने जैसा उपक्रम होता है, बार-बार कै की चेष्टा।

एमोन कार्ब- रोगी अज्ञानता, आच्छन्नता, श्वास नली में घोर घड़-घड़ की आवाज, मूत्र -विकार, होंठ एवं जीभ नीले रंग की।

कैम्फर- एकाएक सम्मस्त अंग बर्फ की तरह ठण्ड़ें, नाड़ी क्षण या लुप्त, शरीर एकदम ठण्ड़ा, शरीर बिल्कुल दबा नही रहता।

                                                   

लैकेसिस- ह्तपिण्ड़ की दुर्बलता के साथ पेशाब कष्ट या मूत्राश्य का पक्षाघात होने के कारण पेशाब बन्द होकर, यूरिमिया और विकार के लक्षण। रोगी लगातार बिड़-बिड़ करके बकता रहता है, सोते या जागते ही रोग के लक्षण बढ़तें हैं।

ऐसिड हाइड्रो- नाड़ी मोटी, कोमल, ह्तपिण्ड पहले द्रुत चलकर बाद में क्रम से धरे-धीरे चलता है ओर अवश हो जाता है, छाती बहुत धड़कती है, इससे पूर्व अकड़न होती है, बाद में शरीर क्रमशः अवश हो जाता है, सांस बहुत ही मन्द गति ओर कष्ट से चलती है, गों-गों करता है,गले में घड़-घड़ का शब्द होता है। निस्तेज होकर पड़ा रहता है। अत्यन्त श्वास कष्ट, रोगी खूब अधिक खाना खाता है, श्वास सहज ही लेता है, किन्तु श्वास छोड़ने के समय तकलीफ होती है।

मस्केरिन- रोगी लगातार झिझक उठता है, लेकिन निंद्रित ही जान पड़ता है, साथ में पेशाब बन्द, हाथ-पैर ठंडें और श्वास कष्ट (इसे बेलाडोना, हायोसियामस, रूट्रामों से पूर्व ही देना उचित है)।

विशेषः मुकेश शर्मा होम्योपैथी के एक अच्छे जानकार हैं जो पिछले लगभग 25 वर्षों से इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हे। होम्योपैथी के उपचार के दौरान रोग के कारणों को दूर कर रोगी को ठीक किया जाता है। इसलिए होम्योपैथी में प्रत्येक रोगी की दवाए दवा की पोटेंसी तथा उसकी डोज आदि का निर्धारण रोगी की शारीरिक और उसकी मानसिक अवस्था के अनुसार अलग.अलग होती है। अतः बिना किसी होम्योपैथी के एक्सपर्ट की सलाह के बिना किसी भी दवा सेवन कदापि न करें।

इसमें ऐसा भी हो सकता है कि आपकी दवा कोई और भी हो सकती है और कोई दवा आपको फायदा देने के स्थान पर नुकसान भी कर सकती है। अतः बिना चिकित्सीय परामर्श के किसी भी दवा का सेवन न करें।

डिसक्लेमरः प्रस्तुत लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं।