स्वास्थ्य रहने कुछ आयुर्वेदिक नियमः

                                                             स्वास्थ्य रहने कुछ आयुर्वेदिक नियमः

                                                        

    यदि कोई भी इन व्यक्ति आयुर्वेदिक स्वास्थ्य के नियमों का पालन करता है तो वह अपने आपकों अनेंक बीमारियों से बचाकर रखता है। स्वास्थ्य के कुछ नियम इस प्रकार से हैं आप इनका पालन करे और स्वास्थ्य रहें यही हमारी कामना है-

                                                      

1.   सिर को सदैव दक्षिण या पूर्व की दिशा में सर को रखकर सोने वाला व्यक्ति सदैव लक्ष्मीवान्, आयुवान एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम जीवन व्यतीत करता है।

2.   कभी भी खड़े होने की अवस्था मे पानी न पिएं ऐसा करने से जीवन में घुटने आदि के जोड़ों में कोई परेशानी नही होती है। परन्तु इसके विपरीत दूध, चाय एवं गर्म पानी सदैव खड़े होकर ही पीना चाहिए।  

3.   भोजन करने के पश्चात् एक घण्टें तक जल का सेवन न करें। ऐसा करने से आपका पेट एकदम ठीक रहेगा और पाचन क्रिया बहुत अच्छी रहेगी। 

                                                             

4.   भोजन करते समय अपने विचारों को पवित्र रखें तथा भोजन करने के तीन घण्टें तक स्त्री-प्रसंग न करें। इससे आपकी आयु एवं स्वास्थ्य में वृद्वि होती है।

5.   रात्री में शयन करने से पूर्व तिल, नारियल अथवा सरसों के तेेल से पाँच मिनट तक दायें पैर के तलवे, फिर बायें तलवे की पाँच मिनट मालिश करे। यह एक चमत्कारिक उपाय है इसके लाभ पूरे शरीर को प्राप्त होते हैं। इसे शुरू करने के चार-पाँच दिन के बाद ही आपको अपने शरीर पर इसका प्रभाव दिखाई देने लगेगा।

6.   मल त्यागते समय सदैव अपने दाँतों को एक दूसरे के साथ दबाकर रखें ऐसा करने से आपके दाँत जीवन भर आपका साथ नही छोड़ेंगे और आपको कभी पक्षाघात अथवा लकवा यानि कि पैरालाइसिस भी नही होगा।

                                                            

7.   खाना खाने के तुरन्त बाद मूत्र विर्सजन करने से आपके गुर्दे सदैव जवान रहेंगे अर्थात आपको गुर्दे के सम्बन्ध में कोई परेशानी नही होगी।

8.   प्रतिदिन नहाने से पाँच मिनट पूर्व दोनों पैर के अंगुठों में सरसों के तेल की मालिश करने से आपके आपके नेत्रों की ज्योति जीवनभर सही रहती है और आपको चश्में की आवश्यकता नही पड़ती है।

9.   रोजाना सोने पहले से अपनी गुदा में जितना सम्भव हो उतने अन्दर तक अपने हाथ की मध्यमा अंगुली से सरसों अथवा इसमें नीम का तेल मिलाकर लगाने से आपको गुदा सम्बन्धित रोगों जैसे कि बवासीर, भद् , भगन्दर अदि की समस्या नही होती है। क्योंकि वर्तमान समय में गुदा मैथुन को लेकर इसके प्रति अवधारणा के प्रति लोगों की सोच में काफी परिवर्तन आया है, यदि कोई स्त्री-पुरूष गुदा मैथुन करते हैं तो उन्हे इसका कोई भी साइड इफ्फेक्ट नही होता है, ऐसा स्त्री-पुरूष दोनों को ही करना चाहिए।

                                                           

10.  रोजाना सेाने से पूर्व लगभग पाँच मिनट तक सीधे लेटकर गहरी-गहरी साँसें ले ऐसा करने से आपके फेफड़े मजबूत होते हैं और आपका पेट भी ठीक रहता है। इस क्रिया का समय धीरे-धीरे बढ़ाते रहें। जितना यह समय बढ़ेगा उतना ही आपको मिलने वाला लाभ भी बढ़ेगा।

                                                                   

11. नाड़ी परीक्षण की प्रक्रिया

                                                               

नाड़ी परीक्षण करने के लिए पुरुषों के दाएं हाथ की और स्त्रियों के बाएं हाथ की नाड़ी की गति का अध्ययन किया जाता है। हालांकिए कभी कभी रोग की सटीक जानकारी हासिल करने के लिए दोनों हाथों की नाड़ी भी देखी जाती है। नाड़ी परिक्षण के दौरान हाथ की पहली तीन उंगलियों ;तर्जनी, मध्यम और अनामिका का प्रयोग किया जाता है।

नाड़ी परीक्षण में हथेली से लगभग आधा इंच नीचे उँगलियों के माध्यम से नाड़ी की गति का अध्ययन किया जाता है। चिकित्सक नाड़ी की गति से वातए पित्त व कफ के स्तर को देखते हुए रोग का पता लगाता है। यदि नाड़ी की गति 68-74 के बीच हो तो इसे सामान्य माना जाता है। इससे कम या ज़्यादा गति होने पर व्यक्ति अस्वस्थ माना जाता है।

                                                                 

नाड़ी परीक्षण से जुड़ी कुछ विशेष बातें 

                                                           

  • यदि नाडी अपनी नियमित गति में लगातार तीस बार धड़कती हैए तो इसका अर्थ है कि रोग का इलाज संभव है और रोगी जीवित रहेगा। लेकिन अगर धड़कन के बीच में रूकावट आती है तो इसका मतलब है कि अगर मरीज का जल्दी इलाज नहीं किया गया तो उसकी मृत्यु हो सकती है।
  • बुखार होने पर रोगी की नाड़ी तेज चलती है और छूने पर हल्की गर्म महसूस होती है।
  • उत्तेजित या तेज गुस्से में होने पर नाड़ी की गति तेज चलती है। 
  • चिंता या किसी तरह का डर होने पर नाड़ी की गति धीमी हो जाती है।
  • कमजोर पाचन शक्ति और धातु की कमी वाले मरीजों की नाड़ी छूने पर बहुत कम या धीमी महसूस होती है।
  • तीव्र पाचन शक्ति वाले मरीजों की नाड़ी छूने में हल्की लेकिन गति में तेज होती है।
  • नाड़ी की जांच में कुशल वैद्य सिर्फ आपके शारीरिक रोगों का ही पता नहीं लगाते बल्कि इससे वे मानसिक रोगों का भी पता लगा लेते हैं। अगर आप डिप्रेशनए एंग्जायटी या किसी गंभीर चिंता से पीड़ित हैं तो इसका भी अंदाज़ा नाड़ी परीक्षण से लगाया जा सकता है।